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शिक्षा

सूक्ष्म शिक्षण [Micro Teaching]

September 23, 2018 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

सूक्ष्मशिक्षण का   अर्थ( Meaning of Micro Teaching):

शिक्षण की सम्पूर्ण प्रक्रिया बहुत सारी कुशलताओं का सम्मलित ताना बाना है। इन कुशलताओं में से एक एक कौशल को सुधारने हेतु प्रत्येक शिक्षण कौशल पर पृथकतः ध्यान देने की आवश्यकता को शिद्दत से महसूस किया गया इस आवश्यकता की पूर्ति हेतु वर्तमान में प्रयुक्त सम्प्रत्यय है –सूक्ष्मशिक्षण

सूक्ष्म शिक्षण ,शिक्षण प्रशिक्षण की प्रयोगात्मक विधि है सूक्ष्म शिक्षण कम समय में अधिक लाभान्वित करने का तरीका है इसमें अध्ययन की एक इकाई और एक कौशल का प्रयोग कर अल्पअवधि तक विद्यार्थियों के एक छोटे समूह कोपढ़ाया जाता है जब प्रशिक्षाणार्थी पढ़ा लेता है तब प्रतिपुष्टि, पर्यवेक्षक द्वारा प्रदान की जाती है इस आधार पर पाठ में संशोधन कर पुनः पाठ योजना तैयार की जाती है उसी विषय वस्तु को पुनः पढ़ाया जाता है और पहली बार पढ़ाने में जो कमियां रह गयी थीं उनका निराकरण होता है और अगर दूसरी बार भी कमी रहती है तो पढ़ाने की प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद पर्यवेक्षक पुनः प्रतिपुष्टि देता है यही चक्र इस सूक्ष्म शिक्षण का आधार है।

उक्त आधार पर कहा जा सकता है कि :-

“सूक्ष्म शिक्षण अध्यापनके एक एक कौशल को कृत्रिम वातावरण में अल्पावधि में सीखने की सोद्देश्यपूर्ण  क्रिया है।”

सूक्ष्म शिक्षण की परिभाषा (Definitions of Micro Teaching) :

सूक्ष्म शिक्षण  विभिन्न परिभाषाओं को इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है :-

एलन(Allen)  व रायन( Ryan)के अनुसार  -“सूक्ष्म शिक्षण एक प्रशिक्षण सम्प्रत्यय है ,जो सेवापूर्व और सेवारत शिक्षकों के व्यावसायिक विकास में प्रयोग किया जा सकता है। सूक्ष्म शिक्षण शिक्षकों को शिक्षण अभ्यास के लिए एक ऐसी स्थिति प्रदान करता है ,जिसमें कक्षा कक्ष की सामान्य जटिलताएँ कम हो जाती हैं और जिसमें शिक्षक अपने निष्पादन( शिक्षण व्यवहार) पर वृहत मात्रा में प्रतिपुष्टि प्राप्त करता है। ”

“Micro teaching is a training concept that can be applied to various pre service and in service stages in professional development of teachers. Micro teaching provides teachers with a practical setting for instruction in which the normal complexities of the class room are reduced and in which the teacher receives a great deal of feedback on his performance.”

शिक्षा – विश्वकोष(The Encyclopedia of Education) के अनुसार -” सूक्ष्म शिक्षण वास्तविक निर्मित तथा अध्यापन अभ्यास का न्यूनीकृत अनुमाप है जो शिक्षण प्रशिक्अनुसन्धान में प्रयुक्त्त किया जाता है।”

“Micro-teaching is a real constructed,Scaled down,Teaching encounter which is used for teacher training curriculum development and research”

बी 0 के 0 पासी (B.K.Passi) के अनुसार – “सूक्ष्म शिक्षण एक प्रशिक्षण तकनीक है जो छात्र अध्यापक से यह अपेक्षा रखती है की वे किसी तथ्य को थोड़े से छात्रों को कम समय में किसी विशिष्ठ शिक्षण कौशल के माध्यम से शिक्षा दें।”

“Micro-Teaching is a training technique which requires student teacher to teach a single concept to a small number of pupils using specified teaching skills in a short duration of time.”

उक्त आधार पर कहा जा सकता है कि सूक्ष्मशिक्षण एक ऐसी तकनीक है जिससे अल्पावधि में नियत पाठ इकाई  के आधार पर एक कौशल पर सम्पूर्ण ध्यान केन्द्रित कर कृत्रिम कक्षा स्थितियों में अल्पावधि में सिद्धहस्त हुआ जा सकता है और पर्यवेक्षक के निर्देशन में त्रुटि निवारण भी सम्भव है।

सूक्ष्म शिक्षण चक्र (Micro Teaching Cycle)-

पाठ योजना (Lesson Planning)-शिक्षण (Teaching)- प्रतिपुष्टि (Feedback)-पुनः पाठ योजना (Re-Lesson Planning)- पुनः शिक्षण (Re-Teaching)- पुनः प्रतिपुष्टि (Re-Feedback)

कौशल में सुधार हेतु यह क्रम जारी रहता है। इस चक्र से वांछित परिणाम प्राप्त किये जाते हैं।

सूक्ष्म शिक्षण का विकास  ( Development of Micro Teaching)-या सूक्ष्म शिक्षण का इतिहास  ( History of Micro Teaching )-

आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है इस क्रम में साधन क्रिया को सरल बना देते हैं जब शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को सशक्त व प्रभावी बनाने हेतु कीथ ऐचीसन चिन्तन कर रहे थे उसी समय 1961 में एक जर्मन वैज्ञानिक द्वारा छोटे टेप रिकॉर्डर के आविष्कार के बारे में खबर छपी इस खबर को पढ़कर उन्होंने शिक्षण अभ्यास के समय सुपरविसेर के स्थान पर ध्वनि दृश्य टेप रिकॉर्डर का प्रयोग किया   इससे पाठ को पढ़ाने वाले ,प्रशिणार्थी अपने व्यवहारों में परिमार्जन करने करने लगे। एचिसन ने इस विचार को स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के इनके सहयोगी बुश और  एलन का समर्थन प्राप्त हुआ और 1964 से प्रतिपुष्टि प्रदान करने हेतु साधन का व्यावहारिक प्रयोग प्रारम्भ हुआऔर व्यवहार में वांछित परिवर्तन पारिलक्षित होने लगा, दी गयी प्रतिपुष्टि की प्रभावात्माकता सिद्ध होने लगी। स्टेनफोर्ड विश्व विश्वविद्यालय आसपास के प्रशिक्षण विद्यालयों के वीडिओ टेप  विवेचना कर उन्हें वापस कर देता था इससे अपेक्षित सुधार सुगम व निर्विवाद हो गया।

इसकी सफलता देख सेन जॉन्स स्टेट यूनिवर्सिटी ने इस सूक्ष्म शिक्षण को प्रभावशाली उपागम सिद्ध किया स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय ने शोधार्थी हेरीे गेमिसन के शोधाधार पर स्टेनफोर्ड शिक्षक सामर्थ्य मूल्यांकन गाइड सृजित की इस प्रकार एचीसन,एलन ,क्लेनवेश सेनजोश ,टकमैन आदि ने सूक्ष्म शिक्षण विकास यात्रा में अभूतपूर्व योगदान दिया सन 1969 तक संयुक्त राष्ट्र के 141 विश्वविद्यालय सूक्ष्म शिक्षण से शिक्षण कौशल दक्षता बढ़ाने का कार्य करने लगे।

भारत में सूक्ष्म शिक्षण की विकास [DEVELOPMENT OF MICRO-TEACHING IN BHARAT]-

भारत में इलाहाबाद विश्व विद्यालय के डी 0 डी 0 तिवारी (1967 )के द्वारा शिक्षण प्राकिशन के क्षेत्र में सूक्ष्म शिक्षण का प्रयोग किया गया जो की आज के सूक्षम शिक्षण  भिन्नता लिए हुए था  इसके बाद राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवम प्रशिक्षण परिषद ,नई दिल्ली [N.C.E.R,T.,NEW DELHI],एम0 एस0 विश्वविद्यालय बड़ौदा [M.S.UNIVERSITY ,BARODA] चण्डीगढ़,वाराणसी ,देहरादून आदि भी इस परिक्षेत्र से जुड़े ,१९७०से इसके प्रसार ने गति पकड़ी मद्रास में जी 0 बी 0 शाह ने इसे शिक्षक प्रशिक्षण में प्रयुक्त किया सी दोसाज 1970, कलकत्ता में भट्टाचार्य 1974 का भी विशेष योगदान रहा ,पासी एवं शाह 1974 ने सूक्ष्म शिक्षण परिक्षेत्र में प्रथम प्रकाशन किया।पासी,ललिता व जोशी 1976  में  व  बड़ौदा में सिंह एवं ग्रेवाल,गुप्ता 1978 ने इस क्षेत्र में विशेष कार्य किया। सन 1978 में ही इन्दौर विश्व विद्यालय ने ही National proposal for the  Project की रचना की, इसके तहत विभिन्न विश्व-विद्यालयों के शिक्षक प्रशिक्षकों का सहयोग लिया गया व राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवम प्रशिक्षण परिषद ,नई दिल्ली के सहयोग से इसे पूरा किया गया एवं इस क्षेत्र में सतत प्रयास व शोध कार्य को गति मिली। तत्पश्चात जिन विश्वविद्यालयों ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा प्रस्तावित शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम स्वीकारा वहां सूक्ष्मशिक्षण कार्य  क्रियान्वित हुआ व निरन्तर इसका प्रयोग विकास के नूतन आयाम पा  रहा है।

सूक्ष्म शिक्षण की विशेषताएं (Characteristics of Micro-Teaching)-

परम्परागत शिक्षण से भिन्न सूक्ष्म शिक्षण शिक्षक प्रशिक्षण में प्रभावी भूमिका अपनी निम्न विशेषताओं के आधार पर निर्वाहित कर पा रही है। :-

01 – इसमें  अधिगमार्थियों की संख्या 5 से 10 के बीच होती है।

02 – शिक्षण अवधि 5 से 10  मिनट के बीच रखी जाती है।

03 – वास्तविक छात्रों की जगह अधिकांशतः सहपाठी ही छात्र की भूमिका अभिनीत करते हैं।

04 – एक कालांश एक कौशल के प्रशिक्षण हेतु होता है।

05 – विषय वस्तु एक सूक्ष्म इकाई होता है।

06 – पुनः सुधार का अवसर उपलब्ध होता है।

07 – यह छात्राध्यापक केन्द्रित रहती है।

08 – यह व्यावसायिक प्रवीणता देने में सक्षम विधि है।

09 – यह लघु अवधि  में अधिक दक्ष बनाती है।

10 – प्रतिपुष्टि तुरन्त प्राप्त हो जाती है।

11 -समय बद्ध होने से गति विधियां नियन्त्रित रहती हैं।

12-शिक्षण कौशल विकास की अत्याधिक प्रभावी व व्यावहारिक व्यवस्था है।

भारतीय मॉडल (Bhartiy  model):

पाठ योजना(Lesson Planning)————   –

शिक्षण (Teaching)—————————  06 मिनट

प्रतिपुष्टि(Feed back)————————-   06 मिनट

पुनःपाठ योजना (Re-lesson Planning)——–  12 मिनट

पुनःशिक्षण (Re-Teaching)——————-    06 मिनट

पुनःप्रतिपुष्टि  (Re-Feed back)—————      06 मिनट

———————————————————-

कुल कालावधि ( Total Time Period)——–       36 मिनट

उक्त मॉडल राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद ,नई दिल्ली ,एम 0 एस 0 विश्वविद्यालय,बड़ौदा,व  इन्दौर विश्वविद्यालय के समेकित प्रयासों से विकसित हुआ।

कौशल (Skill) :

वर्तमान में अधिकांश अध्यापक प्रशिक्षण महाविद्यालय मुख्यतः  प्रस्तावना कौशल(Introductory Skill ),प्रश्नीकरण कौशल (Questioning Skill ), व्याख्या कौशल (Explanation Skill), व्याख्यान कौशल  (Lecture Skill), दृष्टान्त कौशल (Illustration Skill ), उद्दीपन परिवर्तनकौशल (Stimulus Variation Skill), पुनर्बलनकौशल( Reinforcement Skill), श्याम पट्टकौशल (Blackboard Skill), पाठ समापनकौशल (Lesson closure Skill) आदि  का अभ्यास कराते हैं।

———————————

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शिक्षा

पर्यावरणीय प्रदूषण का प्रमुख कारण प्रयोजन वाद [PRAGMATISM: MAIN CAUSE OF ENVIRONMENTAL POLLUTION]

August 24, 2018 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

पर्यावरण में दो शब्द निहित हैं परि +आवरण अर्थात जो हमें हर ओर से ढके हो। इसमें किसी प्रकार का असन्तुलन ही  प्रदूषण  का परिचायक है जहाँ वस्तुएं ,जल ,वायु ,आकाश हमें प्रभावित करता है वहीं विचार भी पथ भ्रष्ट हो नैतिक प्रदूषण का कारक बनाते हैं। कोई विचार या वाद किस तरह से प्रदूषण का कारक बन सकता है यह इस लेख में स्पष्ट नजर आता है :-    

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