शिक्षण प्रशिक्षण का एक महत्त्वपूर्ण अंग है मौखिक परीक्षा अर्थात VIVA .यद्यपि इसके लिए अंक निर्धारित हैं लेकिन यह ही
भविष्य के साक्षात्कार [Interview]
का मुख्य आधार है जिस स्तर का VIVA होता है उस स्तर पर आपका कितना अधिकार है और आप
सर्वहित में इसका भविष्य में कैसे प्रयोग करेंगे, इसकी झलक इस मौखिक परीक्षा अर्थात VIVA से मिल जाती है। आइए B. Ed. स्तर पर अन्ततः होने वाले viva को प्रभावशाली बनाने के लिए हमारे लिए क्या
आवश्यक है इस पर विचार करते हैं।
बी० एड ० वायवा हेतु आवश्यक कारक
Factors Required for B.Ed. Viva
यद्यपि पूर्व निर्धारित प्रश्नों की कोई व्यवस्था नहीं होती है इसलिए
आपके व्यक्तित्व से लेकर अधिगम क्षमता व उनके व्यावहारिक प्रयोग की परीक्षा इसके
माध्यम से हो जाती है। इसे प्रभावशाली बनाने के लिए निम्न तथ्य महत्त्वपूर्ण
भूमिका अभिनीत करते हैं।
1- आधारभूत
ज्ञान [Basic knowledge]
2- तत्सम्बन्धी
फाइलें व आवश्यक सामग्री [Related
files and necessary material]
3- स्वनिर्मित
फाइल सम्बन्धी जानकारी [Self-contained
file information]
4- अप्राप्त
ज्ञान की स्व स्वीकारोक्ति [Self confession of unrealized knowledge]
5- झूठ
से परहेज [Abstaining
from lies]
6- बहानेबाजी
व बहस से दूरी [Distance
from excuses and arguments]
7- धारा
प्रवाहिता [Fluency]
8- आत्म
विश्वास [Self-confidence]
मौखिक परीक्षा के असंरचित (Unstructured) होने की वजह से इसका स्वरुप व्यापक हो जाता है लेकिन यह सत्य का एक
आवश्यक दर्पण भी होता है यदि गैर पक्षपात पूर्ण और योग्य व्यक्तित्व द्वारा इसका
सम्पादन होता है। यह आज की व्यवस्था का अनिवार्य अंग है इसे सहजता से लिया जाना
चाहिए यह आपकी परिपक्वता का द्योतक है।
आज का मानव जानता बहुत कुछ है पर मानता बहुत कम है। सफलता हर कोइ चाहता है पर प्रयास ओछे रह जाते हैं कभी आत्म विश्वास नहीं जग पाता और कभी अति आत्मविश्वास असफलता का पर्याय बन जाता है। आखिर मानव अपने सपने, अपने मन्तव्य, अपने गन्तव्य तक क्यों नहीं पाते। कभी सारा जीवन किस एक तत्व की कमी के कारण अभिशप्त सा दीख पड़ता है। भाग्य का ताला आखिर खुलता किस चाभी से है जब आप अपने कर्म बोध को जगाकर विश्लेषण करते हैं तब पाएंगे की सफलता की कुञ्जी है आत्मविश्वास । आइए जानते हैं कि किन आठ तत्वों से आत्मविश्वास का शीर्ष स्तर छूकर जीवन को सफल बनाया जा सकता है।
सक्रियजीवन
चर्या (Active Life Style) –
मानव का शरीर गुब्बारे की तरह फूलने के लिए नहीं बना है वह पसीना
बहाकर शुचिता कर्मठता का अनुगमन कर लक्ष्य प्राप्ति का साधन है हमेशा ऋगवेद पर
आधारित ऐतरेय ब्राह्मण के शब्द ‘चरैवेति
चरैवेति’ चलते रहो चलते रहो का उद्घोष कर हमेशा हमें
प्रेरणा देते हैं की तन को ,मन
को,मस्तिष्क को हमेशा सक्रिय रखना है। हमारे और
लक्ष्य के बीच का अन्तराल कम होता चला जाएगा वह महिला पुरुष का अन्तर नहीं देखता
पुरुषार्थ की सक्रियता देखता है। इसीलिये स्वामी विवेकानन्द ने कठोपनिषद से
दिशाबोधक उद्घोष किया –
“उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।” अर्थात् उठो, जागो, और
ध्येय की प्राप्ति तक मत रूको।
अतः अवश्य मानें – जीवन है, चलने
का नाम …
सद सङ्गति (Good Fellowship) -आत्म विश्वास का सूर्य तब जाग्रत स्थिति में
होता है जब उच्च ऊर्जाओं का समन्वयन होता है इसीलिये उन लोगों का साथ करें,उन लोगों को मॉडल या आदर्श के रूप में
स्वीकारें जिनके विचार आपके आत्मिक उत्थान में योग दे सकें यह मुहावरा तो आपने
अवश्य सुना होगा कि -खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है। आप जैसा बनना चाहते हैं
वैसे लोगों का साथ करें।
संयमित जिद –
जी हाँ जिद जरूरी है, उत्थान के लिए, उत्कर्ष के लिए, प्रगति
के लिए इतना जिद्दी तो अपने आप को बनाना होगा कि जो ठान लिया, जो उद्देश्य बना लिया, जो लक्ष्य तय कर लिया उस उद्देश्य को उचित
साध्यों से प्राप्त करके रहूँगा और अपने कम्फर्ट जॉन का परित्याग तत्परता से
करूंगा।
याद रखें सफलता का पथ
दुरूह होता है कण्टकाकीर्ण होता है ,भयावह
दीख पड़ता है पर आत्म विश्वासी उसी पथ का पथिक होता है और अन्ततः विजिट होता है।
हमें अपनी जिद की पूर्णता हेतु सैद्धान्तिक
धरातल की जगह यथार्थ के कठोर धरातल पर संयमित होकर चलना पड़ेगा। किताबी सैद्धान्तिक
धरातल पर तैरना सीखें, सुन्दर नृत्य करें,
व्यापार में शिखर छुएं आदि सम्भव नहीं है अतः
व्यावहारिक कठोर धरातल पर पूर्ण अनुशासन से अपनी मर्यादित जिद पूर्ण करने हेतु
उतरना ही होगा। फल के परिपक्व होने में उसमें तीन परिवर्तन परिलक्षित होते हैं वह
नम्र हो जाता है , उसमें मिठास आ जाती है,
तीसरे उसका रंग बदल जाता है। आत्म विश्वास की
परिपक्वता में मानव में इसी परिवर्तन के लक्षण दीखते हैं।
आस्था –
विश्वास रखें आप सफल होंगे,जीवन की छोटी छोटी सफलताओं,
उपलब्धियों, प्रशंसा की स्मृतियों को कुरेदकर स्वस्थ धरातल
तैयार करें। यदि बचपन के डगमगाने वाले कदम दौड़ने में समर्थ हो सकते हैं तो हमारा
आस्था का अवलम्ब, विजय पथ का निर्माण अवश्यम्भावी कर सकता है
शङ्कर के उपासक हर हर महादेव, देवी के उपासक जय भवानी के उद्घोष से अन्य
मतावलम्बी अपने अपने इष्टों को याद कर जाग्रत स्थिति में आ जाते हैं। सीधे चेतना
के अनंत सागर से अविरल परवाह को निरंतरता मिलाती है ऊर्जा के अजस्र स्रोत से आस्था
हमको जोड़ती है।
संघर्षशील प्रवृत्ति –
विश्वास रखें। आप ईश्वर की अमूल्य कृति हैं। हम सभी का अस्तित्व किसी
न किसी उद्देश्य से जुड़ा है सपनों को साकार करने के लिए मानस में विचारों के अन्धड़ चलते हैं संघर्ष के विभिन्न
उपादान तय करते समय याद रखें समुद्र मन्थन से विभिन्न रत्नों की प्राप्ति हो सकती
है तो हमारा चिन्तन, मंथन,द्वन्द
संघर्षशील जुझारू प्रवृत्ति अन्ततः हमें सफल बना आत्म विश्वास में वृद्धि
सुनिश्चित करेगी। इसी दिशा में मेरी कुछ पंक्तियाँ आपको समर्पित हैं –
जीवन की धूप छाँह, नया
मार्ग देती है,
पत्थर, कण्टक,अग्नि
संताप हरलेती है,
मार्ग खोज देते हैं, उन्नति, उत्कर्ष का
संघर्षशील प्रवृत्ति अन्ततः तार देती है।
उत्तम स्वास्थय –
स्वस्थ शरीर स्वस्थ मस्तिष्क का आधार है और आत्म विश्वास का वृक्ष
उत्तम स्वास्थय रूपी जड़ों पर विकास के सोपान तय करता है जितने भी प्रभावशाली
व्यक्तित्व हैं सभी ने तमाम व्यस्तताओं के बीच स्वास्थय को संभाले रखने के क्षमता
भर प्रयास अवश्य किये हैं। भारतेन्दु हरिश चन्द्र, स्वामी विवेका नन्द,
राहुल सांकृत्यायन अपने अल्प स्वस्थ जीवन में
जो ज्योति बिखेर गए हैं वह युगों तक हमारा मार्ग दर्शन करेगी।
व्यक्तित्व सुधार –
आज गुणवत्ता प्रबन्धन के युग में व्यक्ति का व्यक्तित्व कार्य की
सफलता सशक्त पृष्ठभूमि तैयार करता है कार्य की निरन्तर सफलताएं जो तेज जो ओज पैदा
करती हैं वह सञ्चित कर्मों का योग होता है। रामधारी सिंह दिनकर जी ने कहा है –
तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतलाके
पाते हैं जग में प्रशस्ति अपना करतब दिखला के
हीन मूल की ओर देख जग गलत करे या ठीक
वीर खींच कर ही रहते हैं इतिहासों में लीक।
खुश रहें खुश रहने दें –
यह सर्व विदित है कि जो जैसा करता है उसे वैसा फल मिलता है तो हम
सबके लिए खुशियों का आधार बनाएं इससे हम पर भी खुशियां बरसेंगी और उससे आलोकित पथ
ही तो आत्मविश्वास हेतु सर्वोत्कृष्ट पथ होगा। चेहरे पर हमेशा विजेता वाली मुस्कान
रखें आनन्द में मगन हो सकारात्मक निर्णय लें क्रोध को तिरोहित करें।हमारी खुश रहो
और रहने दो की मूल भावना आत्मविश्वास का ऐसा प्रासाद खड़ा करेगी जो चिर स्थाई
होगा।