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शोध

INTERDISCIPLINARY APPROACH TO EDUCATIONAL RESEARCH

April 3, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

शैक्षिक अनुसन्धान के लिए अन्तर-विषयक दृष्टिकोण

वैदिक काल से आज तक शिक्षा के क्षेत्र में अंतर दृष्टिगत होते रहे हैं जिस काल की जैसी आवश्यकता होती है शिक्षा उसी तरह के पथ प्रशस्त करती है लेकिन आज शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक प्रसार हुआ है और ज्ञान के विस्फोट जैसी स्थिति दृष्टिगत होने लगी है। शिक्षा के प्रसार के साथ इसकी गुणवत्ता का अवनमन चिन्ता  का विषय बनता जा रहा है। इस क्षेत्र में इतनी जटिल समस्याओं का प्रादुर्भाव हुआ कि उनका समाधान ऊँट के मुँह में जीरे के मानिन्द दिखने लगा।

            आज सभी विज्ञ-जन  यह महसूस कर रहे हैं कि उक्त समस्याओं का समाधान किसी एक विशेषज्ञ या किसी एक क्षेत्र विशेष द्वारा सम्भव नहीं है आज विविध विषयों के विषय विशेषज्ञ व विशेषज्ञों के विशेष समूह के समन्वित प्रयास से ही समस्या समाधान सम्भव है दूसरे शब्दों में अन्तर विषयक शोध विशेषज्ञों से समस्या समाधान में योग मिल सकता है।

अन्तर-विषयक का अर्थ / Meaning of inter disciplinary –

उदग्र अधिगम और सामानान्तर अधिगम के साथ आज हम अनेकों विषयों को परस्पर सम्बन्धित पाते हैं। अनुसन्धान के क्षेत्र में अन्तर विषयकता से आशय परस्पर सम्बन्धित विषय आधारित शोध विशेषज्ञों के समूह कृत शोध अध्ययनों से है। अतः विविध विषयों के शोध विशेषज्ञों द्वारा एक प्रयोजन को ध्यान में रखकर समस्या समाधान हेतु जो शोध अध्ययन किया जाता है। इस उपागम को अन्तर विषयकता या अन्तर विषयक उपागम (INTERDISCIPLINARY APPROACH) कहा जाता है।

परिभाषाएं / Definitions –

इसको पारिभाषित करते हुए शिक्षा शब्दकोष में कहा गया कि –

“आन्तरिक – विषयक उपागम अध्ययन की एक विधि है, जिसके द्वारा ज्ञान के अनेक पृथक पृथक क्षेत्रों से विशेषज्ञ अथवा श्रेष्ठ शोध कार्यकर्त्ता एक विशेष समस्या के परीक्षण में एक साथ लाये जाते हैं, जो सभी उन उपागमों के लिए प्रासंगिक हैं। “

“Inter – disciplinary approach is a method of study by which experts or the best research workers from many different fields of learning, are brought together in the examination of a particular problem, that is relevant to all their approaches.” 

Dictionary of Education, p .311

शिक्षा आयोग ने अपने मत को स्पष्ट करते हुए कहा –

“विभिन्न संस्थानों और शिक्षक वर्ग के लिए पैटर्न्स के मध्य विषयों के नए संयोजन, सहयोग की नई विधियाँ इसके लिए आवश्यक होंगी। क्षेत्र अत्यंत विशाल है परन्तु उदाहरण के तौर पर हम एक क्षेत्र ‘शिक्षा‘ को उद्धृत कर सकते हैं। इसकी समस्याओं का उनकी समस्त जटिलताओं के साथ अध्ययन करने के लिए शिक्षा, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, तुलनात्मक धर्म, अर्थ शास्त्र, लोक प्रशासन और क़ानून के विभागों के मध्य अन्तर – विषयक उपागम आवश्यक हो जाता है।”

“This will need new combinations of subjects, new methods of cooperation between different institutions and new patterns of staffing. The field is vast But by way of illustration, we may refer to one field; education. For a study of its problems in all their complexity, an inter-disciplinary approach is needed between the departments of education, sociology, psychology, comparative religion, economics, public administration and law.”

Report of the Education Commission. P.319

अन्तर विषयक उपागम की विशेषताएं / Features of interdisciplinary approach –

01 – एक विषय विशेषज्ञ सक्षम नहीं / One subject expert is not competent   –     जटिल समस्या –

02 – विशेषज्ञों के समन्वित प्रयास की आवश्यकता /Coordinated efforts of experts are required

03 – सामान कार्यविधि / Common methodology  

04 – समन्वित विश्लेषण द्वारा परिणाम/ Results through integrated analysis  

05 – विविध आवश्यक विषयों को पूर्ण सम्मान।/ Full respect for the diverse disciplines required.

06 – वैधता व विश्वसनीयता / Validity and reliability

07 – समन्वित प्रभावी अनुसन्धान प्रतिवेदन / Coordinated Effective Research Report

अन्तर विषयक उपागम से शैक्षिक शोध में लाभ

Benefits of interdisciplinary approach in educational research –

01 – समन्वित प्रयास से सूक्ष्म विश्लेषण सम्भव / Coordinated efforts make detailed analysis possible

02 – विशेषज्ञों की सहयोग भावना का विकास / Development of a spirit of cooperation among experts

03 – विशेषज्ञों के ज्ञान व अनुभव का लाभ /Benefit from the knowledge and experience of experts

04 – शिक्षा का व्यवस्थित अग्रसरण /Systematic advancement of education

05 – जटिल शैक्षिक समस्याओं का अध्ययन/Study of complex educational problems

06 – शोध निष्कर्षों की विश्वसनीयता व वैद्यता /Reliability and validity of  research findings

07 – शैक्षिक अनुसन्धान का समुन्नत स्तर /Advanced level of educational research

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शिक्षा

मनोवैज्ञानिक परीक्षण (Psychological Test)

January 17, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

मनोवैज्ञानिक परीक्षण से आशय –

बोलचाल की भाषा में सामान्यतः मनोवैज्ञानिक परीक्षण व्यक्ति के व्यावहारिक अध्ययन का वह साधन है जो उसके प्रति निर्णय लेने एवम् उसे समझने में सहायक होता है इसके द्वारा व्यक्ति की विभिन्न योग्यताओं का मापन तथा उसके व्यक्तित्व व चरित्र का अध्ययन भी सम्भव होता है। मनोवैज्ञानिक परीक्षण के आशय को स्पष्ट

करते हुए फ्रीमैन (Freeman) ने कहा →

“A psychological test is a standardized instrument designed to measure objectively one or more aspects of a total personality by means of other behavior.”

“मनोवैज्ञानिक परीक्षण वह मानकीकृत यंत्र है जो समस्त व्यक्तित्व के एक पक्ष या अधिक पहलुओं का मापन शाब्दिक या अशाब्दिक अनुक्रियाओं या अन्य किसी प्रकार के व्यवहार के माध्यम से करता है।”

मनोवैज्ञानिक शब्दकोष (Dictionary of Psychological terms) के अनुसार →

“मनोवैज्ञानिक परीक्षण मानकीकृत एवम् नियन्त्रित स्थितियों का वह विन्यास(set) है जो व्यक्ति से अनुक्रिया प्राप्त करने हेतु उसके सम्मुख पेश किया जाता है। जिससे वह पर्यावरण की माँगों के अनुकूल प्रतिनिधित्व व्यवहार का चयन कर सके।”  

एनस्तेसी (Anastasi) महोदय कहते हैं →

“A psychological test is essentially an objective and standardized measure of sample behavior.”

“मनोवैज्ञानिक परीक्षण आवश्यक रूप से व्यवहार के प्रतिदर्श का एक वस्तुनिष्ठ एवम् मानकीकृत मापन है।”

मन (munn) महोदय का विचार है →

“Test is an examination to reveal the relative standing of an individual in the group with respect to intelligence, personality, attitude or achievement.”

“परीक्षण वह परीक्षा है जो किसी समूह से सम्बन्धित व्यक्ति की बुद्धि, व्यक्तित्व, अभिक्षमता एवम उपलब्धि को व्यक्त करती है।”

टाइलर (Tyler) महोदय के अनुसार →

“A test can be defined as a standardized situation designed to elicit a sample of an individual behavior.”

“परीक्षण वह मानकीकृत परिस्थिति है जिससे व्यक्ति का प्रतिदर्श व्यवहार निर्धारित होता है।”

उक्त परिभाषाओं के आलोक में कहा जा सकता है कि मनोवैज्ञानिक परीक्षण वह वस्तुनिष्ठ एवम् मानकीकृत साधन है जिसके द्वारा सम्पूर्ण व्यवहार के विभिन्न मनोवैज्ञानिक पहलुओं जैसे योग्यताओं, क्षमताओं, उपलब्धियों, रुचियों एवम् व्यक्तित्व विशेषताओं का परिमाणात्मक एवम् गुणात्मक अध्ययन होता है। यह व्यक्ति को समझने एवम समूह में उसकी तुलना करने में भी सहायक होता है।

मनोवैज्ञानिक परीक्षण की आवश्यकता क्यों ? →

कालचक्र अविरल गति से चलता हुआ जहाँ मानव विकास के विविध सोपान रच रहा था वहीं वैयक्तिक भिन्नताओं के जटिल स्वरुप का महत्त्व भी स्थापित होने लगा उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में जैसे जैसे गाल्टन, कैटिल, आदि प्रवृत्ति मनोवैज्ञानिकों का ध्यान वैयक्तिक भिन्नताओं के स्वरुप इनकी उत्पत्ति एवं विभिन्न समस्याओं के अध्ययन की और अग्रसर हुआ। वैयक्तिक विभिन्नताओं के उद्गम से ही मनोवैज्ञानिक परीक्षण की आवश्यकता महसूस की जाने लगी। व्यक्तियों के मानसिक स्तर व्यक्तित्व के गुणों, योग्यताओं, क्षमताओं, रुचियों, उपलब्धियों, एवं जीवन के विविध पहलुओं में असमानताएं झलकने लगीं फलस्वरूप समायोजन की समस्या का स्वरुप विकृत होने लगा.इन विभिन्नताओं के जटिल स्वरुप को समझने व नैदानिक उपाय पर विचार करने हेतु मनोवैज्ञानिक परीक्षणों की आवश्यकता की महत्ता स्थापित हो गयी।

परीक्षण व प्रयोग में अन्तर →

1 -मनोवैज्ञानिक परीक्षण में व्यक्ति के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त कर व्यावहारिक पक्ष का अध्ययन किया जाता          है जबकि प्रयोग में प्रतिक्रियाओं का अध्ययन ही सम्भव होता है।

2 – बुद्धि, रूचि, अभिक्षमता, उपलब्धि, आदि मनोवैज्ञानिक पहलुओं का अध्ययन मनोवैज्ञानिक परीक्षण के द्वारा   होता है जबकि प्रयोग में स्वतंत्र चर के घटाने एवम् बढ़ाने के प्रभाव का अध्ययन करते हैं।

3 – वैधता, विश्वसनीयता आदि मानकों का स्थापन मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का निर्माण करते समय किया जाता है जबकि प्रयोगों में योजना का स्वरुप ही बदल जाता है इसमें उद्दीपकों व जीव परिवर्तियों को ही नियन्त्रित किया जाता है।  

4 – परीक्षणों की तुलना में प्रयोगों का क्षेत्र व्यापक होता है परीक्षण उन्हीं लोगों के लिए उपयुक्त होता है जिनपर उनका मानकीकरण होता है।

5 – मनोवैज्ञानिक परीक्षणों में भाषा का प्रयोग होने से यह केवल भाषा का ज्ञान रखने वालों के लिए ही उपयुक्त है जबकि मनोवैज्ञानिक प्रयोग प्रत्येक परिस्थिति में क्रियान्वित किये जाने योग्य हैं।

परीक्षण एवम् मापन में अन्तर →

1 – परीक्षण का क्षेत्र संकुचित होता है जबकि मापन का प्रयोग व्यापक रूप से किया जाता है।

2 – परीक्षण का प्रयोग स्वयं उपकरण के रूप में किया जाता है जबकि मापन में मानसिक एवम् भौतिक दोनों प्रकार के उपकरणों की आवश्यकता होती है।

3 – परीक्षण का सम्बन्ध अधिकतर मानसिक एवम् मनोवैज्ञानिक गुणों से होता है जबकि मापन में मुख्यतः भौतिक गुणों का अध्ययन करते हैं।

4 – परीक्षण में विभिन्न प्रकार के पद सम्मिलित होते हैं जिन्हें मानकीकृत करके उपयोग में लाते हैं। मापन में      वस्तुओं की संख्यात्मक विवेचना एक निश्चित नियमानुसार होती है।

मनोवैज्ञानिक परीक्षण के उद्देश्य →

(1) – वर्गीकरण एवं चयन 

(2) – पूर्व कथन

(3) – मार्ग निर्देशन

(4) – तुलना करना

(5) – निदान

(6) – शोध

मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का उपयोग

(a) ↦ वैयक्तिक भिन्नताओं का अध्ययन

(b) ↦ समूहों का अध्ययन

(c) ↦ शैक्षिक उपयोग

(d) ↦ उद्योग एवं व्यवसाय में उपयोग

(e) ↦ सेना में उपयोग

(f) ↦ नैदानिक उपयोग

(g) ↦ शोध कार्यों में उपयोग

(h) ↦ व्यावहारिक जीवन में उपयोग

परीक्षण लिखने की विधि (संकेत)

परीक्षण क्रमाङ्क

परीक्षण का नाम

प्रस्तावना

परीक्षण का विवरण

परीक्षण का उद्देश्य

सामग्री

परीक्षण के समय ध्यान रखने योग्य सावधानियाँ

प्रयोज्य विवरण 

परीक्षण का प्रशासन

अन्तः दर्शन विवरण

निरीक्षण कार्य

फलांकन (प्राप्तांक विश्लेषण व परिणाम)

परिणाम की व्याख्या व सुझाव

➤विस्तार से विवेचना संलग्न वीडियो में कर दी गई है।

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