आँख बन्दकर शासन का गुणगान नहीं लिख सकता हूँ
मैं घायल हूँ, रसिक अधर मुस्कान नहीं लिख सकता हूँ
जिसने राष्ट्र को पीड़ा दी, गुणगान नहीं लिख सकता हूँ
गाँवों शहरों चौराहों को शमशान नहीं लिख सकता हूँ ।1।
मक्कारों, जल्लादों का गुण गान नहीं लिख सकता हूँ,
भारत के महा गद्दारों को खुद्दार नहीं लिख सकता हूँ।
मेरा भारत मुश्किल में है, श्रृंगार नहीं लिख सकता हूँ,
लाचारी भूख गरीबी की दरकार नहीं लिख सकता हूँ ।2।
भ्रष्टाचारों, बेईमानों को सरताज नहीं लिख सकता हूँ,
भारतीय जनमानस को मुहताज नहीं लिख सकता हूँ।
जनअंगों के तस्कर को ऋतुराज नहीं लिख सकता हूँ,
क्रूर बदमाशों, गुण्डों को सरदार नहीं लिख सकता हूँ ।3।
मैं तो बस भारत वालों को इतना ही बताने निकला हूँ,
स्वाभिमान गहन न सो जाए मैं उसे जगाने निकला हूँ।
भारत माँ की पीड़ा क्या, बस यह दिखलाने निकला हूँ,
इस देश के सोये लालों को हर तरह जगाने निकला हूँ ।4 ।
नकली धर्म के ठेकेदारों का मैं सच जतलाने निकला हूँ,
लहू का रंग एक ही है यह सत – रस बरसाने निकला हूँ।
लड़ना भिड़ना पागलपन है, यह राज बताने निकला हूँ,
आओ सब मिलकर प्रगति करें ये भाव जगाने निकला हूँ।5।
और, और की चाह बढ़ रही, मैं उसे हटाने निकला हूँ,
नक़ल की अन्धी दौड़, न दौड़ो, ये समझाने निकला हूँ।
भारत की पुरानी गरिमा से, परिचय करवाने निकला हूँ,
मूल्य खोए खोया क्या ‘नाथ’ दर्पण दिखलाने निकला हूँ ।6।