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विविध

भारतीय युवा वर्ग की विवशता

September 3, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

भारतीय युवा वर्ग की विवशता / Helplessness of the Indian youth

वर्तमान अपने चँगुल में युवा वर्ग को कभी कभी इस प्रकार जकड़ता है कि प्रगति के रास्ते बन्द नज़र आने लगते हैं। जेहन पर अँधेरा छा जाता है। सोचने समझने की शक्ति जवाब देने लगती है।

बालक या बालिका जब युवावस्था की दहलीज पर कदम रखता है तो तमाम हसीन ख़्वाबों के साथ स्थायित्व का भी एक सपना होता है। मध्यम वर्ग या गरीबी से जूझते हुए गाँव, नगर, कसबों के बच्चे जब भविष्य सृजन हेतु बड़े शहर आते हैं तो घर को बदलने का, माता पिता को आराम देने का, छोटे भाई बहनों के विवाह आदि के तमाम सपने अंगड़ाई ले रहे होते हैं और हमारे वे बच्चे पूरे जोशो खरोश के साथ दिन रात परिश्रम करते हैं, अध्ययन करते हैं। निश्छल परिश्रम के आधार पर प्रगति की कामना लिए ये बालक बालिकाएं अपने शौक और घर के खाने की तमाम ख्वाहिशों को त्याग देते हैं और रूखा सूखा खाने व कभी कभी भूखे रहने की स्थिति का सामना करते हैं। ऐसे बहुत से विद्यार्थी हैं जो घरेलू आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं वे एक टाइम भोजन करके बदहाली से सामंजस्य बनाने की कोशिश कर रहे हैं। अपने जीवन काल में बहुत से ऐसे बेटे ,बेटियों से सामना हुआ है जब उन्होंने घर की एक मात्र भैंस या मान के गहने तक अध्ययन करने पड़े हैं।

इतनी परेशानी पर भी वे अध्ययन में कोइ कमी अपनी और से नहीं छोड़ते। जब अध्ययन के उपरान्त डिग्री हाथ आती है। वे किसी रोजगार सम्बन्धी फार्म को भरने लायक हो जाते हैं तब वे तत्सम्बन्धी परीक्षा की तैयारी हेतु स्वयम् को झौंक देते हैं। पूरी लगन, परिश्रम,व एकनिष्ठ होकर विशिष्ट अनुशासन से खुद को जोड़ लेते हैं।

सृजित रोजगार अवसर और भारतीय युवा / Employment opportunities generated and Indian youth –

केवल आई ० ए ० एस ० या पी ० सी ० एस ० की परीक्षा सूचना ही नहीं किसी भी वैकेन्सी की सूचना तत्सम्बन्धी विद्यार्थी को जुनूनी बना देती है। ढेर सारे सपनों को पलकों पर सजाये बालक पूर्ण मनोयोग से तैयारी में जुट जाता है। बाकी सारे स्थान से ध्यान हटाकर केवल तत्सम्बन्धी तैयारी ही एक मात्र ध्येय होती है। कोई कोचिंग ज्वाइन करता है कोई अपनी क्षमता पर विश्वास कर स्व अध्ययन करते हैं और कई आर्थिक विषमता से ताल मेल बैठाकर अपने अस्तित्व की रक्षा करते हुए कठोर परिश्रम करते हैं। कई शिक्षार्थियों को पढ़ने के साथ धनोपार्जन भी करना पड़ता है। आज हमारे कुछ बच्चे बहुत से ऐसे कष्ट उठाते हैं जिनकी बात करने पर भी जुबान कांपती है लेकिन विद्यार्थियों से सीधा संपर्क होने के कारण उनकी पीड़ा और यथार्थ के धरातल   पर उनके प्रयास मन को गहरे छूते हैं। कई विद्यार्थियों की कहानी रातों की नीद गायब कर देती हैं। बहुत सी बच्चियां पढ़ना चाह कर भी पढ़ नहीं पाती हैं जीते जी अपने सपनों की चिता सजाती हैं।

रोजगार फार्म और रोजगार अवसर – जब रिक्तियों की संख्या और उसकी प्राप्ति हेतु प्रयास करने वाले ,फार्म भरने वाले नवयुवकों की संख्या देखते हैं इसमें हज़ार गुने और उससे ऊपर के आँकड़े देखने को मिलते हैं। कभी लगता है जितनी राशि ये जीवन भर में कमाएंगे उससे ज्यादा तो केवल फ़ार्म भरने से सरकारी एजेन्सियों को प्राप्त हो जाएगी।

परिणाम, नौकरशाही, भ्रष्ट आचरण और यथार्थ –

विविध झंझावातों से जूझ कर, विषम परिस्थितियों से लड़ते हुए आशा की किरणें ह्रदय में संजोए हमारे बालक तत्सम्बन्धी परीक्षा को विविध शहरों में परेशानी उठाकर देने जाते हैं और परीक्षा परिणाम की प्रतीक्षा करते हैं। कभी पता चलता है कि पेपर लीक के कारण परिणाम घोषित नहीं होगा। कभी पता चलता है कि परीक्षा निरस्त हो गई है कभी ज्ञात होता है कि पोस्ट बिक गई है। विश्वास का सङ्कट अस्तित्व के सङ्कट  सामने अपने वीभत्सतम रूप में प्रगट होता है।  कई मेधावी बच्चे आत्म ह्त्या करने को विवश होते हैं। अखबार चीख चीख कर इसकी गवाही देते हैं। नौकरशाही की भूमिका भी अत्यन्त धीमी व संदिग्ध दीखती है विविध विद्यार्थियों को की विषम स्थिति केवल वे ही जानते हैं जो भोगते हैं कहते हैं न कि कब्र का हाल केवल मुर्दा ही जानता है। सिस्टम की कमी का खामियाज़ा युवाओं को भोगना पड़ता है। चोर उचक्कों का भी हमारे ये बच्चे सहज टारगेट होते हैं। इन विद्यार्थियों को कभी कभी तत्सम्बन्धी परीक्षा हेतु लम्बी यात्रा भी करनी पड़ती है किराया,खानापीना,ठहरना सभी पर अतिरिक्त व्यय भी आर्थिक बोझ में वृद्धि करता है।जाड़ा, गर्मी, बरसात, लू, कुहासा सभी युवा बेरोजगारों की परीक्षा लेते दीखते हैं।

समाज का अमर्यादित मानवीय व्यवहार / Immoral human behaviour of society –

हमारे बच्चे जहां अपना गाँव घर छोड़कर श्रेष्ठ समाज सृजन हेतु शहर में आकर परिश्रम करते हैं। अपना खर्चा निकालने हेतु कार्य करते हैं उनके उस श्रम की अनदेखी करते लोगों का व्यवहार उन्हें विचलित करता है। व्यथित विद्यार्थी कभी कभी भटकाव की स्थिति का शिकार भी हो जाता है। सभी से इन के प्रति सकारात्मक व्यवहार की अपेक्षा है। देश की प्रगति में इनका योगदान नकारा नहीं जा सकता।

प्रकाश किरण / Light beam –                                                                          

इतनी विषम स्थिति होने के बाद भी प्रतिभागियों का चयन होता है, उनकी मेहनत रंग लाती है और लगता है कि सत्य की गति धीमी हो सकती है पर सत्य पराजित नहीं होता। हमारे विद्यार्थियों को भी चाहिए कि केवल किसी सरकारी परीक्षा को अंतिम ध्येय न बनाएं। विकल्प भी रखें। आज सरकारी के साथ व्यक्तिगत क्षेत्र में स्वयम् को खपाने के अवसर हमारे पास हैं नौकर नहीं बन सकें तो मालिक बनने के अवसर हमारे पास हैं हतोत्साहित नहीं होना है। जीवन बहुत कीमती है, संयमित, धैर्यशील जीवन जीना है। याद रखें यदि एक रास्ता बंद होता है तो ईश्वर दो रास्ते खोलता है यदि उसने एक मुंह दिया है तो दो हाथ भी प्रदान किये हैं। भौतिकता के साथ आध्यात्मिकता का सम्यक करें। लोगों के ताने की परवाह न करें। अपना प्रगति पथ खुद तैयार करें। तैयारी इतनी खामोशी से करें की सफलता तहलका मचा दे पर खुद के मानस को विनम्रता की प्रतिमूर्ति बनाएं। सफल होने पर संस्कृति संरक्षण को अवश्य याद रखें व इसका पोषण करें। संस्कृति संरक्षण भारतीय जीवनी शक्ति को अक्षुण्ण रखेगी। अंत में युवा राष्ट्र शक्ति का आवाहन है कि अपने आप में सशक्त जीवट विकसित करें व लोगों में इसे विकसित करें। हमें अनवरत सम्यक रास्ते तलाशने हैं  कितना सुन्दर कहा किसी विज्ञ पुरुष ने –  

रास्ता किस जगह नहीं होता,

सिर्फ हमको पता नहीं होता,

छोड़ दें डरकर रास्ता ही हम

ये कोई रास्ता नहीं होता।

मैं Education Aacharya सभी विद्यार्थियों की ऊर्जा का सच्चे मानस और इसकी अनन्त गहराई से वन्दन करता हूँ। और आज के समय में स्वयम् कष्ट सहकर अपने बच्चों हेतु विषम स्थिति में भी अध्यययन अवसर जुटाने हेतु बहुत बहुत अभिनन्दन करता हूँ। मेरे पास शब्द सामर्थ्य कम और भाव बहुत गहरे हैं।

बारम्बार अभिनन्दन

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