मध्यमवर्ग की जिन्दगी पटरी से उतर जाती है,

जब भी उस परिवार में हारी- बीमारी आती है,

बालबच्चों को पढ़ाने में जिन्दगी गुजर जाती है,

वो तबभी पिसता है,जब करकी बारी आती है।

 

स्तर बनाने में सारी तनख्वाह ही खप जाती है,

बामुश्किल मेहनत प्रतिष्ठा रक्षण कर पाती  है,

त्यौहार में सब रहीसही कसर निकल जाती है,

कभी मन्दी, कभी बन्दी दूकान को हिलाती है।

 

शादी ब्याह का खर्चा कभी उस को डराता है,

बच्चे के लिए रिश्वत का, जुगाड़ न  हो पाता है,

रिश्तेदारियाँ संभालना, मुश्किल हुआ जाता है,

मंहगाई का  दुष्चक्र भी इस वर्ग को डराता है।

 

जिम्मेदारियों का वजन, आवा-गमन बढ़ाता है,

पैतृक कर्जों का बोझ, मुश्किल को  बढ़ाता है,

कहीं कहीं पारिवारिक  झगड़ा यह  कराता है,

इससे  कोर्ट- कचहरी पर  खर्चा  बढ़ जाता है।

 

अतिथिआगमन पर उत्साह नहीं दिख पाता है,

महीने का अन्तिम सप्ताह अँखियाँ दिखाता है,

पारस्परिक ईर्ष्या की गलत, भावना जगाता है,

फालतू का द्वन्द सबका, हित नहीं   कराता है।

 

प्रॉब्लम सॉल्विंग का अब अलग मजा आता है,

जीवट वाला व्यक्ति, समस्या से  भिड़ जाता है,

जीवन भर लड़तेलड़ते कर्म योगी बन जाता है,

कर्म  है सद रास्ता भली- भाँति समझ जाता है।

 

प्रमाद को हटाने से, सफल हर काम  होता है,

समस्या कोई  भी हो,निश्चित समाधान  होता है,

परम्परा अन्धानुकरण कारण नुकसान होता है,

उपयुक्त  रण नीति से हासिल मुकाम होता है।

Share: