कैसे अपनी जिन्दगी ही नर्क बना लेते हैं लोग,

सुबह उठते ही मुँह में खैनी दबा लेते हैं लोग,

खैनी खाना खुद को खाने का ही आमन्त्रण है,

जानबूझकर खुद की दावत उड़ा लेते हैं लोग।  

अब तो बाली उम्र में गुटका चबा लेते हैं लोग,

पूरा पाउच मुँह में पलट के दिखा देते हैं लोग,

गुटका खाना क्षय रोगों को खुला निमन्त्रण है,

वैधानिक चेतावनी, हवा में उड़ा देते हैं लोग।  

शराब पीना नारियों को भी सिखा देते हैं लोग,

अपने हाथ घर द्वार में अगन लगा लेते हैं लोग,

पता नहीं मद्यपान में दिखता क्या आकर्षण है?

महफ़िल में मय में डूब कैंसर बुला लेते हैं लोग।

ब्राउनसुगर चस्का युवाओं में लगा देते हैं लोग,

नवोदित नक्षत्रों को राख राख बना देते हैं लोग,

ये गलत लत बल, वीर्य, ओज का तीव्र क्षरण है,

क्यों नवयौवन,ऊर्जस्वी जीवन मिटा देते हैं लोग?

हुक्का बीड़ी सिगरेट का सुट्टा लगा लेते हैं लोग,

साथ ही भाँग, गाँजा हमसफर बना लेते हैं लोग,

क्या जिन्दगी के धुआँ होने में कोई आकर्षण है,

फिरभी बैठे ठाले जिन्दगी को रुठा देते हैं लोग।  

मार्फीन,कोकीन,धतूरा क्या क्या खा लेते हैं लोग,

कई रोगों को जान बूझ घर का पता देते हैं लोग,

जानते हुए रोग युक्त होना जीवन का प्रत्यर्पण है,

तो भी इस प्रत्यर्पण में जिन्दगी खपा देते हैं लोग। 

अफीम सुलफा चरस की लत लगा लेते हैं लोग,

बीयर से शुरू हो शुद्ध एल्कोहल ले लेते हैं लोग,

ये आफतों का खुशनुमा जिन्दगी  में संक्रमण है,

इससे संक्रमित हो के जिन्दगी मिटा लेते हैं लोग। 

खुलीआँखों अन्धेपन का स्वाँग रचा लेते हैं लोग,

खुद के हाथों खुद को निवाला बना लेते हैं लोग,

आधुनिक दुनियाँ में विविध कैंसर का प्रसारण है,

तड़पन लख खुद को क्यों नहीं बचा लेते हैं लोग। 

दृढ़ता से नशामुक्ति को कदम बढ़ा देते हैं लोग,

कलुषित भावना में खुद आग लगा  देते हैं लोग,

नकारात्मकता छोड़ना सकारात्मक परिवर्तन है,

नशा छोड़ के जिन्दगी को गले लगा लेते हैं लोग। 

विकल्पों में निर्विकल्प हो नशा छोड़ देते हैं लोग,

नशीली दुनियाँ से हट उजाला खोज लेते हैं लोग,

धुआँ होती जिंदगी में संभलना प्रकाश विवर्तन है,

धन्य हैं जो स्वजीवट से अलख जगा देते हैं लोग।     

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