न आएं राह में रोड़े, मजा क्या है, फिर जीने में,
मुश्किलें करवटें बदलें, मजा है गम को पीने में,
एक रसता सी रहती है आनन्द फिर कहाँ रहता,
बड़ा आनन्द आता है हरा ग़म को फिर जीने में।
चलो नव लक्ष्य चुनते हैं नव वर्ष के नव महीने में।।
न हों पथ में अगर काँटे, रहे सब कुछ करीने में,
हौसलों का फिर क्या होगा, रहेंगे सिर्फ सीने में,
समस्या सोई रहती है तो जज़्बा फिर कहाँ रहता,
जज्बा जब उमड़ता है, धड़कता दिल है सीने में।
चलो नव लक्ष्य चुनते हैं नव वर्ष के नव महीने में।।
परीक्षा जिन्दगी लेती, मजा आता है, जीने में ,
मजा बिल्कुल नहीं आता, गर न भीगें पसीने में,
न होतीं मुश्किलें कोई, फिर ये दिल कहाँ रहता,
कोई न संगदिल कहता, खुशी क्या नगनगीने में।
चलो नव लक्ष्य चुनते हैं नव वर्ष के नव महीने में।।
अन्तर कैसे फिर करते, दयालु में, कमीने में,
भला फिर कोई क्यों कहता मजाआता है पीने में,
सज्जन और दुरजन में ,अन्तर फिर कहाँ रहता,
किडनी, गुर्दे और ये दिल, रखे रहते करीने में।
चलो नव लक्ष्य चुनते हैं नव वर्ष के नव महीने में।।
जल – जले भूल जाते हम, दिनों में या महीने में,
गर समरस से दिन होते ख़ास क्या फिर पतीले में,
पर्व भी रंगत खो देता, ईष्ट भी फिर कहाँ रहता,
फिर तुम भी कहाँ मिलते, दावत में, वलीमे में।
चलो नव लक्ष्य चुनते हैं नव वर्ष के नव महीने में।।
मजा फिर कुछ नहीं रहता, मेले में, सनीमें में,
बड़ी मुर्दानगी छाती, मजा ना आता, जीने में,
सब बेकार हो जाता फिर दर्दे दिल कहाँ रहता,
मुश्किल, दर्द, गम, काँटे सभी आ जाओ सीने में।
चलो नव लक्ष्य चुनते हैं नव वर्ष के नव महीने में।।