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शिक्षा

क्रोध (Anger)

March 21, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

क्रोध एक मानसिक भाव है शरीर का सॉफ्टवेयर बिगड़ने का संकेत है इसमें आवाज ऊँची होने लगती है मुखाकृति बिगड़ने लगती है बुराइयों का ज्वार उठने लगता है एक एक पुरानी भटकी हुई बातें याद आने लगती हैं एक दूसरे में कमी के सिवाय कुछ नहीं दीखता, मति भ्रम कब पैदा हुआ, कब नासूर बना। सम्बन्ध कब तिरोहित हुए। सब कुछ अनहोनी शीघ्रता से घाटित हो जाती है थोड़े से सजग रहकर इस अनहोने घटना क्रम से बचा जा सकता है। सम्बन्धों के रिक्ताकाश को लबालब प्रेम से भरा जा सकता है। क्रोध से निपटना दुष्कर अवश्य लगता है पर यह असम्भव कदापि नहीं है।

            आइए जानने का प्रयास करते हैं कि समस्त विवाद का मूल क्रोध का कैसे नाश किया जा सकता है ?

क्रोध शान्त करने के उपाय (Ways to calm anger) –

मानव की मूल प्रकृति शान्ति है लेकिन यह भी अटल सत्य है कि कुछ परिस्थितियां मानव को क्रोध दिलाने में सक्षम हैं हालाँकि कोई क्रोध को जानबूझ कर अपना स्वभाव बनाना नहीं चाहेगा। अपनी मूल प्रकृति शान्ति की और लौटने तथा वाणी के घाव से खुद और दूसरे को बचाने के लिए कुछ उपाय प्रयोग में लाए जा सकते हैं आइए ध्यानपूर्वक संज्ञान में लेने का प्रयास करते हैं। –

  • स्वभाव में परिवर्तन –

परदोष देखने के मानवीय स्वभाव ने समाज में क्रोध के स्तर का उन्नयन किया है अपनी आदतों की और ध्यान देना चाहिए स्वयम् का विश्लेषण करने का प्रयास होना चाहिए। कुछ भी अनायास नहीं होता और प्रयास अन्ततः सफल होता है मिलनसार स्वभाव बनाना है यह हमेशा ध्यान रखना चाहिए। व्यवहार परिवर्तन की शुरुआत स्वभाव परिवर्तन की अनुगामी होती है। हमें गिले शिकवे की आदत नहीं बनानी है। अपने व्यवहार का रिमोट अपने पास ही रखना है भूल कर भी नियन्त्रण नहीं खोना है। याद रखें हम स्वयम् में परिवर्तन शीघ्र ला सकते हैं दूसरे में नहीं। इसीलिए कहना चाहूँगा –

स्वभाव में सु परिवर्तन का आगाज़ हो जाए,

स्वयम् की गलतियों का हमें दीदार हो जाए,

फिर क्रोध को न मिल पाएगा कोई ठिकाना,

यदि स्वभूलों के सुधार का व्यवहार हो जाए।

  • वाणी सदुपयोग –

कबीर दास जी ने कहा –

 “ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोये।

औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।।

इन शब्दों में क्रोध विनाश का मूल मन्त्र छिपा हुआ है याद रखें सम्राट के क्रोध भरे वचनों से भिखारी के मधुर शब्द ज्यादा अच्छे लगते हैं। वाणी से लगे घावों का आज तक कोई मरहम नहीं बना इसीलिये मधुर गरिमामयी वाणी का सोच समझ कर प्रयोग करना चाहिए। अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध‘ ने कितने सरल शब्दों  समझाया –

लड़कों जब अपना मुँह खोलो

तुम भी मीठी बोली बोलो

इससे कितना सुख पाओगे

सबके प्यारे बन जाओगे ।

  • क्षमा –

जब हमसे गलती हो तो क्षमा मांग लेना चाहिए और यदि गलती अन्य की हो तो उदारता से क्षमा कर देना चाहिए ध्यान रखना है कि क्षमा माँगने का अधिकार क्षमा देने की बुनियाद पर खड़ा है क्षमा से आनन्द का वह प्रवाह जीवन से जुड़ता है जो क्रोध तिरोहित कर जीवन को आनन्दमयी बना देता है रहीम दास जी ने कितना सुन्दर कहा –

क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात,

का रहीम हरी को घट्यो, जो भृगु मारी लात।

याद रखें क्षमा के प्रभाव से जवानी में गुस्सा मन्द और बुढ़ापे में बन्द हो जाता है।

  • सत्संग –

सत्संग का मानव पर व्यापक प्रभाव पड़ता है सकारात्मक परिवर्तन की चाह का प्रादुर्भाव सत्संग के प्रभाव से आता है और मानव मन पर फिर ऐसी अमिट छाप पड़ती है कि बुरी मनोवृत्ति की छाया सत्संगी पर कोई प्रभाव नहीं डाल पाती रहीम जी ने कितना अच्छा समझाया है –

जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकत कुसंग,

 चंदन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग

  • गहरी श्वाँस –

गहरी गहरी श्वाँस और इनकी निरन्तरता किसी भी क्रोध आवेग का क्षरण करने का अचूक उपाय है इससे जहाँ ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा का हम सेवन करते हैं वहीं समस्या पर विचार मन्थन का पर्याप्त समय मिल जाता है। स्थान परिवर्तन व पूर्ण श्वाँस प्रश्वाँस क्रोध शमन में वह कार्य कर जाता है जो कई बार वह पूर्वाग्रह युक्त मष्तिष्क नहीं कर पाता। इसी लिए कहता हूँ –

पूर्ण श्वांस प्रश्वांस का क्रम

वह जादू सा कर जाता है।

क्रोध आवेग और मतिभ्रम

सब का हरण कर जाता है।

06- कामना नियन्त्रण –

कामना नियन्त्रण एक दुष्कर कार्य है असम्भव नहीं। कामना में बाधा पड़ने पर क्रोध उत्पन्न हो जाता है इसीलिये यह जानना परमावश्यक है की आखिर कामना का जन्म कैसे हो जाता है यह जन्म पाती है रूप, रस, गन्ध आदि प्रधान कारणों से, इसका आधार होती हैं इन्द्रियाँ। इन्द्रियों पर नियन्त्रण का सबल आधार है सच्चा अध्यात्म, कामना अर्थात इच्छा भोग प्रवृत्ति से जन्म लेती है और योग इस पर अंकुश में सहायक है।

07- क्षमता सदुपयोग –

ज्यों ज्यों हमारी क्षमता में वृद्धि होती है सामान्यजन विवेक खोने लगता है और क्रोध मद में वृद्धि होने लगती है, जोकि क्षमता का दुरूपयोग कराती है इसके उदाहरण हमें यत्र तत्र सर्वत्र दीख पड़ते हैं। इसे साधने की क्षमता विवेक युक्त ज्ञान के पास है। हमारी आत्मिक शक्ति ही दिशा बोध पैदा कर  सकती है। क्षमता के साथ विवेक जन्य संयम आवश्यक है। educationaacharya.com पर ‘हमें क्रोध क्यों आ जाता है’ रचना में यह प्रश्न उठा है जिसका लिंक मैं डिस्क्रिप्शन बॉक्स में दे दूँगा।

08- सम्यक विवेचन –

आज होने वाले विवादों से उत्पन्न क्रोध सम्यक विवेचन के अभाव के कारण होता है जब दिशा देने वाली शक्तियाँ और धर्म के तथा कथित मसीहा दिशाबोध स्वयं के स्वार्थ से युक्त होकर देने लगते हैं तो सामान्य भोलाभाला जनमानस किंकर्तव्य विमूढ़ हो जाता है और क्रोध प्रादुर्भावित हो जाता है। इसीलिये कहा है –

क्रोध को सिरे से दरकिनार करना चाहिए।

जीवन छोटा है, बहुत प्यार करना चाहिए।

किसी विवाद से पूर्व विचार करना चाहिए।

प्रेम व सम रसता का प्रसार करना चाहिए।।

09-क्रोध उपवास–

जिस प्रकार अन्न उपवास शरीर में भू तत्व नहीं बढ़ने देता। अलग अलग उपवास अलग तरह के फल प्रदान करते हैं। ठीक उसी तरह क्रोध उपवास आपको आनन्द से भर देगा पहले कोई एक दिन चुनें और अपने सेदृ दृढ़ प्रतिज्ञा करें आज क्रोध उपवास करूंगा कुछ भी हो जाए आज विवाद नहीं करूंगा। हर हाल में उसे टालने का मन बनाना है। आप देखेंगे वह दिन खुशनुमा होगा। धीरे धीरे इन उपवासों की संख्या बढ़ा सकते हैं।

10 – एकान्त वास –

यदि सम्भव हो तो पूर्व निर्धारित समय पर मौन का सहारा ले मोबाइल और तमाम संचार साधनों से दूर रहकर देखें। अंग प्रत्यंग का चेतना स्तर उच्च हो जाएगा एक विलक्षण शक्ति की अनुभूति करेंगे लोक कल्याण की भावना आपको और सबल करेगी व्यक्तित्व प्रखर होगा प्रतिक्रियाओं में जान आएगी। क्रोध पर प्रभावी अंकुश लगेगा। याद रखें, करेंगे तो इसका महत्त्व समझ पाएंगे।

वस्तुतः आत्म साक्षात्कार हेतु साधक को इस गुण का अभ्यास करना ही चाहिए। मन प्रसन्न रहेगा और क्रोध छु मंतर हो जाएगा।

11 – शान्ति की साधना-

श्री मद्भगवद्गीता में सोलह कला सम्पूर्ण भगवान् श्री कृष्ण स्वयम् कहते हैं –

नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना।

न चाभावयतः शान्तिरशान्तस्य कुतः सुखम्।।2.66।।

जिसके मनइन्द्रियाँ संयमित नहीं हैं ऐसे मनुष्यकी व्यवसाय आत्मिका बुद्धि नहीं होती। व्यवसायात्मिका बुद्धि न होनेसे उसमें कर्तव्यपरायणताकी भावना नहीं होती। ऐसी भावना न होनेसे उसको शान्ति नहीं मिलती। फिर शान्तिरहित मनुष्यको सुख कैसे मिल सकता है।

वस्तुतः जहां शान्ति नहीं है वहाँ अशान्ति है ,क्रोध है, असन्तुलन है, तम है इसीलिए क्रोध मुक्ति हेतु शान्ति परमावश्यक है। इसीलिये शान्ति के साधक ध्यान, धारणा, समाधि आदि अन्तरङ्ग साधनों से इसे वरण करने में निरन्तर लगे रहते हैं।

ॐ शान्ति शान्ति शान्ति।

परमपिता परमेश्वर से यही प्रार्थना कि हम सब क्रोध पर नियन्त्रण रखना सीख सकें। उक्त बिन्दु सभी के लिए मददगार साबित होंगे ऐसा विश्वास है। धन्यवाद

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