यहाँ एक बात पूर्ण रूप से स्पष्ट करना परम आवश्यक है कि यहाँ हम उस मीमांसा दर्शन की बात करने नहीं जा रहे हैं जो भारतीय दर्शनों में कर्मकाण्ड द्वारा उद्भवित दर्शनों में गिना जाता है। यहां केवल यह बताने का प्रयास है कि एम एड का विद्यार्थी विभिन्न दर्शनों की तत्त्व मीमांसा(Meta Physics), ज्ञान व तर्क मीमांसा(Epistemology and Logic), मूल्य व आचार मीमांसा (Axiology and Ethics) कैसे करे। परीक्षा में पूछे गए प्रश्न में प्रदत्त दर्शन की उक्त मीमांसाएं कैसे लिखकर आए।
तत्त्व मीमांसा, ज्ञान व तर्क मीमांसा, मूल्य व आचार मीमांसा
(Meta Physics, Epistemology and Logic, Axiology and Ethics)
भारतीय दार्शनिक मुख्यतः उक्त मीमांसाओं के माध्यम से किसी भी दर्शन का विश्लेषणात्मक अध्ययन करने की आशा उच्च शिक्षा के विद्यार्थी से करते हैं अतः यह जानना तर्क संगत होगा कि उक्त के तहत विविध दर्शनों की व्याख्या करते समय किन बातों का विशेषतः ध्यान रखा जाए। यहां हम एक एक करके इनके बारे में जानने का प्रयास करेंगे।
1 – तत्त्व मीमांसा (Meta Physics) –
जब किसी भी दर्शन की तत्त्व मीमांसा करनी होती है है तो मुख्यतः ब्रह्माण्ड के वास्तविक स्वरुप व मानवीय जीवन की तात्त्विक विवेचना की जाती है मानव जीवन के मूल उद्देश्य व उनकी प्राप्ति के साधनों पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है कोई भी शिक्षा दर्शन इसमें क्या भूमिका निर्वाहित कर सकता है, तय किया जाता है वास्तव में तत्त्व मीमांसा का क्षेत्र अत्याधिक व्यापक है इसमें सृष्टि के सम्बन्ध में तत्त्व ज्ञान अर्थात सृष्टि शास्त्र (Cosmogony), सृष्टि विज्ञान (Cosmology) और सत्ता विज्ञान (Ontology) का अध्ययन किया जाता है। इसके अन्तर्गत सृष्टि – सृष्टा, आत्मा -परमात्मा और जैविक जगत के साथ मानवीय जीवन की विवेचना की जाती है साथ ही अब तक जो भी सोचा विचारा और शोधा जा चुका है सभी की तात्त्विक विवेचना को शामिल किया जाता है।किसी भी दर्शन की तात्विक विवेचना करते समय निम्न तथ्यों का ध्यान रखा जाना चाहिए। –
01 – ब्रह्माण्ड का स्वरुप ?
02 – ब्रह्माण्ड का निर्माण व निर्माता ?
03 – ब्रह्माण्ड का मूल तत्त्व
04 – ब्रह्माण्ड का अन्तिम सत्य
05 – ब्रह्माण्ड के अस्तित्व की प्रकृति
06 – सृष्टि स्वरुप ?
07 – सृष्टि का निर्माण व निर्माता ?
08 – आत्मा – परमात्मा ?
09 – मानव का वास्तविक स्वरुप ?
10 – अन्तिम उद्देश्य व उद्देश्य की प्राप्ति ?
2 – ज्ञान व तर्क मीमांसा (Epistemology and Logic) –
जब किसी भी दर्शन की ज्ञान व तर्क मीमांसा की बात की जाती है तो उससे आशय उसमें निहित ज्ञान के वास्तविक स्वरुप तथा ज्ञान प्रदान करने वाले साधनों व विधियों से है वस्तुतः ज्ञान मीमांसा के परिक्षेत्र में मानवीय बुद्धि, उसके ज्ञान के स्वरुप ज्ञान की प्रमाणिकता, ज्ञान की सीमाएं, इसे प्राप्त करने की विधियाँ, ज्ञान प्राप्ति के साधन ज्ञाता और ज्ञेय के बीच सम्बन्ध आदि की विवेचना की जाती है जब कि तर्क मीमांसा के परिक्षेत्र में विविध प्रमाणों, सत्य असत्य प्रमाण,तार्किक विधियों, सत्यता व भ्रम आदि की व्याख्या की जाती है तर्क व आज तक प्राप्त ज्ञान के आधार पर तार्किक विवेचना करते हुए सत्य को शोधा जाता है। सभी की ज्ञान व तर्क मीमांसा सम्बन्धी विवेचना को शामिल किया जाता है।किसी भी दर्शन की ज्ञान व तर्क मीमांसा करते समय निम्न तथ्यों का ध्यान रखा जाना चाहिए। –
01 – ज्ञान का स्वरुप ?
02 – ज्ञान प्राप्ति के साधन ?
03 – ज्ञान प्राप्ति के स्रोत ?
04 – ज्ञान प्राप्ति की विधियाँ ?
05 – ज्ञेय और ज्ञाता सम्बन्ध ?
06 – स्मरण ?
07 – विस्मरण ?
08 – सत्य व असत्य ज्ञान का अन्तर ?
09 – ज्ञान की सत्य सिद्धि हेतु तर्क प्रमाणिकता के आधार ?
10 – विविध तर्क विधियाँ ?
3 – मूल्य व आचार मीमांसा (Axiology and Ethics) –
यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि किसी भी दर्शन की मूल्य व आचार मीमांसा उसकी तत्व मीमांसा पर ही आधारित होती है किसी भी समाज के शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्य क्रम, शिक्षण विधियां, अनुशासन, शिक्षक व शिक्षार्थी सम्बन्धी विविध विचार मूल्य व आचार मीमांसा से ही अनुप्रेरित होते हैं कोई भी समाज अपनी नैतिकता की पराकाष्ठा हेतु विविध सामयिक मूल्यों की स्थापना पर पूरा ध्यान केंद्रित करता है और उनको स्थापित करना चाहता है। मूल्य व आचार मीमांसा के अन्तर्गत मानव समाज के जीवन हेतु आदर्श मूल्यों को विवेचित किया जाता है मूल्य विचारों और व्यवहारों को निर्देशित करते हैं नियन्त्रित करते हैं हमारा आचरण इन्ही मूल्यों को परिलक्षित करता है जीवन में कौन से कार्य किये जाने योग्य हैं और कौन से कार्य त्याज्य हैं इनका निर्धारण नीति शाश्त्र के अन्तर्गत आता है।सभी की मूल्य व आचार मीमांसा सम्बन्धी विवेचना को शामिल किया जाता है।किसी भी दर्शन की मूल्य व आचार मीमांसा करते समय निम्न तथ्यों का चिन्तन किया जाना चाहिए। –
01 – मानवीय जीवन उद्देश्य
02 – मूल उद्देश्य प्राप्ति साधन
03 – साध्य साधन सम्बन्ध
04 – उद्देश्य प्राप्ति उपाय
05 – मूल्य वरण
06 – शाश्वत मूल्य समझ
07 – नैतिकता
08 – उच्च नैतिक मानदण्ड स्थापन हेतु आवश्यक मूल्य
09 – करने योग्य कर्म
10 – त्याज्य कर्म
उक्त तत्त्व मीमांसा, ज्ञान व तर्क मीमांसा, मूल्य व आचार मीमांसा को बार बार पढ़कर हृदयंगम करना है लेकिन यह याद रहे की सम्यक मीमांसा करने हेतु उस दर्शन का गहन अध्ययन परमावश्यक है जब तक दर्शन को भली भाँति अधिगमित नहीं किया जाएगा तब तक सम्यक मीमांसा करना सम्भव नहीं होगा।