पर्यावरण

पर्यावरण में उन समस्त तत्वों या उस सब कुछ को सम्मिलित किया जाता है जो हमें हर और से घेरे है, केवल चारों ओर से घेरे कहना उपयुक्त नहीं लगता। यहाँ यह कहना भी समीचीन होगा कि मानव से परे सब उसका पर्यावरण है। पर्यावरण पर दीर्घकाल से चिन्तन मन्थन होता आया है और अभी बहुत कुछ अध्ययन मनन की आवश्यकता है।

पर्यावरण से आशय परिभाषा

Meaning and definition of environment

पर्यावरण मानव संचेतना का वह विशिष्ट शब्द जिसके प्रति मानवीय जिज्ञासा व रूचि दीर्घकाल से रही है और रहेगी भी।यह विविध आयामी है  इसी कारण बहुत सी परिभाषाएं एक या अधिक आयाम को तो अपने में समेटती हैं सबको नहीं। क्योंकि ज्ञान के प्रस्फुटन के साथ नया विषय नया क्षेत्र इसे अपने आप से सम्बद्ध कर लेता है। अब तक के ज्ञान के आधार पर कुछ परिभाषाएं द्रष्टव्य हैं। –

बोरिंग महोदय के अनुसार –

एक व्यक्ति के पर्यावरण में वह सब कुछ सम्मिलित किया जाता है जो उसके जन्म से मृत्यु पर्यन्त तक प्रभावित करता है।” 

“A person’s environment consists of the sum total of the stimulation which he receives from  his conception until his death.”

सी सी पार्क (1980) के अनुसार

मनुष्य एक विशेष स्थान पर विशेष समय पर जिन सम्पूर्ण परिस्थितियों से घिरा हुआ है उसे पर्यावरण कहा जाता है।

“Environment refers of the sum total of conditions which surround man at a given point is space and time.”

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के अनुसार

पर्यावरण में वायु,जल, भूमि, मानवीय प्राणी, अन्य जीवजन्तु, पौधे, सूक्ष्म जीवाणु और उनके मध्य विद्यमान अन्तर्सम्बन्ध सम्मिलित हैं।

“Environment includes air, water, land, human beings, other living beings, plants, micro-organisms and the interrelationships existing between them.”

पर्यावरण को पारिभाषित करते हुए जी टेन्सले (A.G.Tansley) महोदय ने बताया –

प्रभावकारी दशाओं का वह सम्पूर्ण योग जिसमें जीवधारी निवास करते हैं, पर्यावरण कहलाता है।

“It is the sum total of effective conditions in which organism live.”

विविध परिभाषाओं के विश्लेषण करने के उपरान्त कहा जा सकता है कि पर्यावरण में मानव जीवन के प्राकृतिक, सामाजिक, कृत्रिम कारकों का योग है सामाजिक घटक परिवर्तनशील हैं लेकिन आज हम सांस्कृतिक,नैतिक,सामाजिक व व्यक्तिगत मूल्यों को स्थान दे सकते हैं।   

पर्यावरण का क्षेत्र

Scope of Environment-

पर्यावरण के क्षेत्र का अध्ययन करने में दिक्कत यह है कि आखिर छोड़ा क्या जाए सभी समाहित करने योग्य है लेकिन स्पष्ट करने के लिए यहां कुछ बिन्दुओं को आधार बनाने का प्रयास है। –

01 – पर्यावरण शिक्षा (Environment Education)

02 – अनिवार्य पर्यावरणीय विद्यालय शिविर (Compulsory Environmental School Camp)

03 – तत्सम्बन्धी शिक्षण विधियाँ (Related teaching methods )

04 – स्थाई विकास (Sustainable development)

05 – प्रदूषण (Pollution)

0 6 – जैव विविधता (Biodiversity)

07 – वैश्विक ताप वृद्धि (Global warming)

08 – पर्यावरणीय जागरूकता (Environmental Awareness)

09 – जलवायु परिवर्तन (Climate change)

10 – पारिस्थितिकी तन्त्र (Ecosystem)

11 – जनसंख्या वृद्धि (Population growth)

12 – आपदाएं (Disaster)

13 – मूल्यांकन (Evaluation)

14 – विविध संसाधन (Miscellaneous resources)- जल, खनिज, वन, ऊर्जा आदि  

15 – तत्सम्बन्धी क़ानून (Related Law)

16 – तत्सम्बन्धी विविध प्रयास (Various related efforts)

पर्यावरण की प्रकृति / Nature of environment –

सबसे पहले यह जानना आवश्यक है कि प्रकृति होती क्या है ? प्रकृति यहाँ स्वभाव,निहित गुण, व्यावहारिक आचरण आदि विविध गुणों को समाहित करती चलती है।  पर्यावरण की प्रकृति से आशय पर्यावरण के गुण धर्म, स्वभाव आदि से है और इसी प्रकृति के अनुसार पर्यावरण विविध कार्यों को अंजाम देता है। इन गुणों, संकेतों को अध्ययन का आधार बनाकर पर्यावरण की प्रकृति को बिन्दुवार इस प्रकार वर्णित किया जा सकता है।

01 – बहुआयामी प्रकृति / Multidimensional nature

02 – आपसी सम्बन्ध /Mutual relations

03 – भविष्य कथन में सक्षम / Capable of predicting future

04 – प्रकृति से निकटता / Closeness to nature

05 – सजगता / Vigilance

06 – अनुभव बोध / Sense of experience

07 – चेतनता आवाहन / Call to consciousness

08 – प्रकृति मानव सम्बन्धों की प्रगाढ़ता / Intensity of nature human relations

09 – आपदा प्रबन्धन / Disaster management

10 – स्वास्थय संवाहक / Health promoter

11 – प्रदुषण सम्बन्धी जानकारी / pollution related information

12 – पारिस्थितिकीय तन्त्र संरक्षण संकेत / ecosystem protection sign

13 – दायित्व बोध / sense of responsibility

14 – वसुधैव कुटुम्बकम  / Vasudhaiva Kutumbakam

उक्त सम्पूर्ण विवेचन मानव को सचेत तो करता है लेकिन पर्यावरणीय संचेतना का असली स्वरुप भविष्य के गर्भ में हैं।

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