तत्त्व मीमांसा और शिक्षा
ब्रह्माण्ड के यथार्थ स्वरुप और उसमें मनुष्य के जीवन की तात्त्विक विवेचना तत्त्व मीमांसा के माध्यम से सम्पन्न होती है। इसी के माध्यम से मानव जीवन के उद्देश्य और उनकी प्राप्ति के उपाय विवेचित किये जाते हैं और इस आधार पर यह कहना समीचीन होगा कि जीवन दर्शन के आधार पर समाज के उद्देश्य निर्धारित होते हैं जिन्हें शिक्षा अपना उद्देश्य बना लेती है। इन उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु शिक्षा के विविध अंग सहयोग करते हैं इसीलिए शिक्षा की पाठ्यचर्या, शिक्षण विधि , शिक्षक, विद्यार्थी, अनुशासन सभी जीवन दर्शन के आलोक में क्रियान्वित होते हैं। अतः यह पूर्णतया स्पष्ट है कि इन सभी शिक्षा के अंगों का विकास तत्त्व मीमांसा के आधार पर होता है।
विविध दर्शन की तात्त्विक विवेचना हमें बताती है कि विविध दर्शन चाहे वह आदर्शवाद, प्रकृतिवाद, प्रयोजनवाद, अस्तित्ववाद कोई भी हो। तत्त्व मीमांसा में उसकी व्याख्या का प्रभाव इनके शैक्षिक उद्देश्यों व इसके अन्य अंगों पर पड़ता है जिसे इस प्रकार विवेचित कर सकते हैं।
तत्त्व मीमांसा और शिक्षा के विविध घटक
Metaphysics and various components of education
शिक्षा के विविध घटकों की तत्त्व मीमांसात्मक विवेचना निम्न शिक्षा के उद्देश्य स्व आलोक में प्रस्तुत करती दीख पड़ती है –
A – शिक्षा के उद्देश्य –
01 – शिक्षा के सामाजिक उद्देश्य / Social objectives of education – सामाजिक उद्देश्यों का निर्धारण शिक्षा इस प्रकार करती है जिससे मानव समाज से सामंजस्य बिठाकर समाज ,राज्य, राष्ट्र सबकी प्रगति में अपना योगदान सुनिश्चित कर सके। बॉसिंग महोदय कहते हैं कि
“The function of education is concerned to be the adjustment of man to environment and that the most enduring satisfaction may accrue (अक्रू= अर्जित) to the individual and to the society.”
“शिक्षा का कार्य मनुष्य को पर्यावरण के अनुरूप ढालना है और यह सुनिश्चित करना है कि व्यक्ति और समाज दोनों को ही सबसे स्थायी संतुष्टि प्राप्त हो।”
02 – व्यक्तित्त्व का पूर्ण विकास / Complete development of personality – शिक्षा के द्वारा समग्र क्षमताओं का सम्यक विकास होना चाहिए जैसा कि गांधीजी ने कहा –
“By education I mean an all round drawing out of the best in child and man – body, mind and spirit.”
“शिक्षा से मेरा तात्पर्य बच्चे और मनुष्य के भीतर की सर्वोत्तम विशेषताओं – शरीर, मन और आत्मा – को समग्र रूप से बाहर निकालना है।”
03 – चारित्र, ज्ञान व स्वस्थ आदतों का विकास /Development of character, knowledge and healthy habits. – इस तरह के विकास से सामान्यतः सभी दार्शनिक सहमति रखतेहैं जैसाकि ड्रेवर महोदय का विचार है –
“Education is a process in which and by which the knowledge, character and behavior of the young are shaped and molded.”
“शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा युवाओं के ज्ञान, चरित्र और व्यवहार को आकार दिया जाता है।”
04 – पूर्ण जीवन की तैयारी का उद्देश्य / The purpose of preparing for a fulfilling life –
हर्बर्ट की तरह कई विद्वान् पूर्ण जीवन की तैयारी पर बल देते हैं जैसाकि डीवी महोदय ने भी कहा –
“Education is the development of all those capacities in the individual which will enable him to control his environment and fulfill his possibilities.”
“शिक्षा व्यक्ति में उन सभी क्षमताओं का विकास है जो उसे अपने परिवेश को नियंत्रित करने और अपनी संभावनाओं को पूरा करने में सक्षम बनाएंगी।”
05 – समग्र व्यक्तिगत विकास का उद्देश्य / Aim for holistic personal development – बालक में निहित गुणों के विकास की बात विविध दर्शन करते हैं इन्ही विचारों से सहमति जताते हुए विवेका नन्द जी कहतेहैं –
“Education is the manifestation of perfection already in man”
“शिक्षा मनुष्य में पहले से मौजूद पूर्णता की अभिव्यक्ति है।”
06 – सभी स्थितियों में सामंजस्यपूर्णता का उद्देश्य / Aim for harmony in all situations –
जीविकोपार्जन की क्षमता हासिल करना हो या प्रतिकूल परिस्थितियों में स्वयं को ढालना, शिक्षा और इससे जुड़े दर्शनों की तात्त्विक विवेचना उसे सामंजस्यपूर्ण बनाने पर जोर देती है। जैसा कि रबीन्द्र नाथ टैगोर के इन शब्दों से दृष्टिगत होता है। –
“The highest education is that which does not merely give us information but makes our life in harmony with all existence.”
“सर्वोत्तम शिक्षा वह है जो हमें केवल जानकारी ही नहीं देती बल्कि हमारे जीवन को समस्त अस्तित्व के साथ सामंज स्यपूर्णबनाती है।”
B- शिक्षा का पाठ्यक्रम / Curriculum of education –
जहाँ आदर्शवादी शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक विकास के साथ नैतिकता को पाठ्यक्रम का महत्त्वपूर्ण अंग मानते हैं वहीं प्रकृतिवादी पाठ्यक्रम में स्वानुभव विविध विज्ञान, गणित आदि के स्थापन के साथ इन्द्रिय प्रशिक्षण को पाठ्यक्रम का अभिन्न अंग बनाना चाहते हैं। प्रयोजनवादी सामाजिक तात्कालिक समस्याओं से सम्बंधित विषयों का चयन करना चाहते हैं।
C – शिक्षण विधियाँ / Teaching methods —
आदर्शवादी – प्रवचन, कहानी कथन, दृष्टान्त, तर्क विधि
प्रकृतिवादी – स्वानुभव, इन्द्रिय प्रशिक्षण, खेल विधि, भ्रमण द्वारा
प्रयोजनवादी – करके सीखना, प्रयोगात्मक विधि, अन्वेषण, संश्लेषण, प्रदर्शन
D – अध्यापक /Teacher —
आदर्शवादी – आदर्श, विशिष्ट ज्ञानी
प्रकृतिवादी – परदे के पीछे / केवल वातावरण बनाने वाला / अधिगम प्रकृति द्वारा
प्रयोजनवादी – मित्र व पथ प्रदर्शक
E – शिक्षार्थी / Student —
आदर्शवादी – अनुकरण प्रधान, आज्ञा पालक
प्रकृतिवादी – स्वेच्छाचारी, प्रकृति अनुगामी
प्रयोजनवादी – मित्र
F – अनुशासन / Discipline —
आदर्शवादी – कठोर अनुशासन, आज्ञा पालक
प्रकृतिवादी – प्राकृतिक अनुशासन
प्रयोजनवादी – स्व अनुशासन

