जिन्हें शिक्षा के उद्देश्य कहा जाता है वास्तव में वे सम्पूर्ण मानवता के उद्देश्य होते हैं और शिक्षा वह साधन है जिससे यह उद्देश्य प्राप्त किए जाते हैं।लेकिन बलचाल में हम शिक्षा के उद्देश्य का प्रयोग करते हैं और ये इतने आवश्यक हैं कि बी ० डी ० भाटिया जी को कहना पड़ा कि :-

“Without the knowledge of aims, the educator is like a sailor who does not know the goal or his determination, and the child is like a rudderless vessel which will be drifted along somewhere ashore.”

उद्देश्यों के ज्ञान के अभाव में शिक्षक उस नाविक के समान है जो अपने लक्ष्य या मन्जिल को नहीं जानता है और बालक उस पतवार विहीन नौका के सामान है जो लहरों के थपेड़े खाकर किसी भी किनारे जा लगेगी।

प्रजातन्त्रीय देश भारत के उत्थान हेतु यह परम आवश्यक होगा कि वह लोकतन्त्र की मर्यादा के अनुरूप सम्पूर्ण देश की शिक्षा हेतु उद्देश्यों का निर्धारण करे और इस उद्देश्य निर्धारण में निम्न बिन्दु महती भूमिका का निर्वहन करेंगे। सुविधा की दृष्टिकोण से इन्हें तीन भागों में विभक्त किया गया है।

[A] – व्यक्ति सम्बन्धी उद्देश्य या वैयक्तिक उद्देश्य

[B] – समाज सम्बन्धी उद्देश्य

[C] – राष्ट्र सम्बन्धी उद्देश्य

[A] – व्यक्ति सम्बन्धी उद्देश्य या वैयक्तिक उद्देश्य

01 – शारीरिक विकास

02 – चारित्रिक विकास

03 – आध्यात्मिक विकास

04 – मानसिक विकास

05 – सांस्कृतिक विकास

06 – वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास

07 – सकारात्मक रूचि का विकास

08 – चिन्तन शक्ति का विकास

09 – आर्थिक सक्षमता का विकास

10 – प्रजातान्त्रिक नागरिकता का विकास

[B] – समाज सम्बन्धी उद्देश्य

01 – कल्याणकारी राज्य की स्थापना

02 – सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना का विकास

03 – सामाजिक बुराइयों का अन्त

04 – जन शिक्षा का प्रसार

05 – वातावरण से सामन्जस्य शक्ति का विकास

[C] – राष्ट्र सम्बन्धी उद्देश्य

01 – राष्ट्रीय एकता

02 – भावनात्मक एकता

03 – अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना का विकास

04 – बेरोजगारी निवारण, व्यावसायिक विकास

05 – उत्पादन क्षमता में वृद्धि

06 – आधुनिकीकरण शक्ति का विकास

07 – मूल्य संरक्षण

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