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काव्य

अजी चोट देकर कहाँ जाइएगा ?

April 29, 2023 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

सितम अपने अन्धड़ का अजमाइएगा,

वादा  खिलाफी  सिल-सिला  पाइएगा।

वो अरमाँ, वो वादे, रुठाए जो तुमने,

हर जगह बस वही सिसकियाँ पाइयेगा।

अजी चोट देकर कहाँ जाइएगा,

जख्म जो दिए हैं हरे पाइएगा ।1।

अब खुशियों के वन में धुआँ पाइएगा,

निशाँ जिन्दा होने का,  ना  पाइएगा।

समय के वो हिस्से जिए थे जो हमने,

चन्द वादों में गुम हिचकियाँ पाइयेगा।

अजी चोट देकर कहाँ जाइएगा,

जख्म जो दिए हैं हरे पाइएगा ।2।

बहारों  का जंगल न हरा पाइएगा,

वहाँ केवल बस वीरानियाँ पाइएगा।

जहाँ चन्द खुशियाँ टहलती थीं उनमें,

निशाँ अपने कदमों के देख आइएगा,

 अजी चोट देकर कहाँ जाइएगा,

जख्म जो दिए हैं हरे पाइएगा ।3।

इक – दूजे के दाने तो मत खाइएगा,

रौंद कर सब तमन्ना न मुस्काइएगा।

रुदन सिसकियाँ जो प्रगट की हैं तुमने,

उनमें न कभी कोई कमी पाइयेगा।

अजी चोट देकर कहाँ जाइएगा,

जख्म जो दिए हैं हरे पाइएगा ।4।

कसम है तुम्हें न कफ़न लाइएगा,

करनी का फल बस देख आइएगा।

फसल स्वार्थ की जो उपजाई मन में,

उपजे तीक्ष्ण कण्टक सहम जाइएगा।   

अजी चोट देकर कहाँ जाइएगा,

जख्म जो दिए हैं हरे पाइएगा ।5।

चन्द हसरत जरूरत कुचल जाइएगा,

दुआ है हमारी, बस दुआ पाइएगा।

थोड़ी श्वासें औ सपने चुराए जो तुमने,

सजा उनकी तुम न कभी पाइयेगा।    

अजी चोट देकर कहाँ जाइएगा,

जख्म जो दिए हैं हरे पाइएगा ।6।

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काव्य

अक्सर क्यों हमें बुलाता है ?

April 4, 2023 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

जन्म स्थली वाला ठिकाना

अक्सर क्यों हमें बुलाता है ?

निरन्तर उम्र बढ़ते जाना

नवअनुभव से मिलवाता है।

और नए क्रन्दन का आना

शिशु जन्म बोध कराता है।

जन्म स्थली वाला ठिकाना

अक्सर क्यों हमें बुलाता है ? 1

मदमस्त हो खेलते जाना

जीवन आनन्द दिलाता है।

समस्या का ना पता ठिकाना

नव रस सा बढ़ता जाता है

जन्म स्थली वाला ठिकाना

अक्सर क्यों हमें बुलाता है ? 2 

पूर्व बाल्यावस्था का आना

नवसंस्था से जुड़वाता है।

नए परिवेश से यूँ जुड़जाना

सखाओं संग मिलवाता है।

जन्म स्थली वाला ठिकाना

अक्सर क्यों हमें बुलाता है ? 3 

हर वस्तु खिलौना बन जाना

इस उम्र का दौर सिखाता है।

इस वय में सम्बन्ध बनजाना

कोई जीवन भर निभाता है।  

जन्म स्थली वाला ठिकाना

अक्सर क्यों हमें बुलाता है ? 4

उत्तर बाल्यावस्था का आना

नव ऊर्जा का बोध कराता है।

सम्बन्धों का यह तानाबाना

संसार में उलझा जाता है। 

जन्म स्थली वाला ठिकाना

अक्सर क्यों हमें बुलाता है ? 5 

नाना विधि ज्ञान  जुड़ जाना

नव चमत्कार दिखलाता है।

प्रश्नों का उत्तर बन जाना

फिर से नव प्रश्न जगाता है।  

जन्म स्थली वाला ठिकाना

अक्सर क्यों हमें बुलाता है ? 6

कैशौर्य में मस्ती का आना

पुर जोश से होश हटाता है।

जोश में होश का यूँ खो जाना

किशोरवय का बोध करता है  

जन्म स्थली वाला ठिकाना

अक्सर क्यों हमें बुलाता है ? 7  

संघर्ष सहित तूफ़ान का आना

इस जटिल उम्र में भाता है।                    

 गिरते पड़ते रस्ते कटजाना

नवपथ का दर्श कराता है। 

जन्म स्थली वाला ठिकाना

अक्सर क्यों हमें बुलाता है ? 8

प्रौढ़ा वस्था की वय पाना

समस्या का बोध कराता है।

जीवन यथार्थ से जुड़जाना

कण्टक पथ मर्म सिखाता है।

जन्म स्थली वाला ठिकाना

अक्सर क्यों हमें बुलाता है ? 9   

जीवन में भूल भुलैया आना

इस उम्र से जुड़ता जाता है।

बचपन का वह बोध भुलाना

मजबूरी सा बनता जाता है।   

जन्म स्थली वाला ठिकाना

अक्सर क्यों हमें बुलाता है ? 10

धीरे से जीवन सन्ध्या आना

वृद्धा वस्था ही कहलाता है।

ऊर्जा ह्रास का हो जाना

मानव तन को नहीं भाता है। 

जन्म स्थली वाला ठिकाना

अक्सर क्यों हमें बुलाता है ? 11    

सर्वाधिक यादों का आना

इस उम्र को ख़ास बनाता है

बचपन के साथी याद आना

जड़ से जुड़ जाना कहता है।    

जन्म स्थली वाला ठिकाना

अक्सर क्यों हमें बुलाता है ? 12

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काव्य

आधुनिकता की कमाई है ।

March 22, 2023 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

अरे ये क्या है ?

ये कैसी रुलाई है।

ये कैसी है मार

पकी फसलों ने खाई है।

लगता है यही सच है।

आधुनिकता की कमाई है ।1।

प्रकृति की सहज तन्द्रा

मानव ने भगाई है।

छीना है जो प्रकृति का

विपदा उससे ही आई है। 

लगता है यही सच है।

आधुनिकता की कमाई है ।2।

जब भी चाहा विस्फोट किया

जब चाहा खाई बनाई है।

पृथ्वी के अन्तस्तल में

खलबली सी मचाई है।

लगता है यही सच है।

आधुनिकता की कमाई है ।3।

बेहिसाब जल स्रोतों का

दोहन कर करी कमाई है।

असंख्य घाव करे छाती पर

पर दी न कोई दवाई है।

लगता है यही सच है।

आधुनिकता की कमाई है ।4।

लगता है प्रकृति निधि पर

विपदा ये नई सी आई है।

बरसात से प्राप्त जलनिधि भी

ना वापस लौटाई है।

लगता है यही सच है।

आधुनिकता की कमाई है ।5।

जल निधि में जहर की

अजब मात्रा बढ़ाई है।

कहते हो अम्लीय वर्षा

ये हमने ही कराई है।

लगता है यही सच है।

आधुनिकता की कमाई है ।6।

मौसम में परिवर्तन की

भारी कीमत चुकाई है।

लगता है इन्ही वजहों से

बे मौसम बारिश आई है।

लगता है यही सच है।

आधुनिकता की कमाई है।7।

ग्लोबल वार्मिंग ने

दी हमको यही दुहाई है।

जो बोओगे सो काटोगे

यह नीति सदा चल आई है।  

लगता है यही सच है।

आधुनिकता की कमाई है ।8।

पूर्व योजना की शक्ति

क्यूँ कर हमने गँवाई है।

जड़ प्राकृतिक विपदा की

क्यूँ समझ हमें न आई है।

लगता है यही सच है।

आधुनिकता की कमाई है ।9।

आवश्यक है आधुनिकता भी

पर लगाम क्यों गँवाई है।

कहीं कौमा, कहीं अल्प विराम

की रीति क्यों भुलाई है। 

लगता है यही सच है।

आधुनिकता की कमाई है।10।

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काव्य

परीक्षा रूपी उत्सव को………………

July 24, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

खिलखिलाकर, मुस्कुराकर, हँस दिखाना चाहिए,

सारा परि आवरण ही, खुशग़वार बनाना चाहिए,

परीक्षा बोझ नहीं है, व्यवहार से दिखाना चाहिए,

धैर्य युक्त, दृढ़ लगन से व्यवहार निभाना चाहिए।

परीक्षा रूपी उत्सव को महोत्सव बनाना चाहिए ।1।

पाठ्यक्रम को समयबद्ध सहज निपटाना चाहिए,

आज का कार्य, कल ऊपर नहीं टिकाना चाहिए,

समय कम है, पढ़ना अधिक न घबराना चाहिए,   

यथा सम्भव अधिगम कर विश्वास जगाना चाहिए।

परीक्षा रूपी उत्सव को महोत्सव बनाना चाहिए ।2।

विगत वर्षों के प्रश्नपत्रों को पुनः दोहराना चाहिए,

रटना पर्याप्त नहीं अतः चिन्तन में लाना चाहिए,

गर सम्भव है तो अन्य को वह समझाना चाहिए,  

जो ज्ञाननिधि है पास, सब ही बाँट आना  चाहिए।

परीक्षा रूपी उत्सव को महोत्सव बनाना चाहिए ।3।

स्वच्छ, निर्मल मन से परीक्षा कक्ष जाना चाहिए,

पावन आचरण, शुचिता से कर्म निभाना चाहिए,

कर्म को युग-धर्म बना व्यवहार में लाना चाहिए,

स्व आदर्श, स्थापन कर जग को दिखाना चाहिए।

परीक्षा रूपी उत्सव को महोत्सव बनाना चाहिए ।4।

अस्तित्व रक्षा, ज्ञान इच्छा सामञ्जस्य बैठाना चाहिए,

अवसाद सी नकारात्मकता जड़ से मिटाना चाहिए,

महाराणा, लक्ष्मीबाई, शिवाजी मन में छाना चाहिए,

कण्टकाकीर्ण पथ से दिव्य ज्ञानमार्ग बनाना चाहिए।

परीक्षा रूपी उत्सव को महोत्सव बनाना चाहिए ।5।

अभाव में प्रभाव का प्रत्यक्षीकरण कराना चाहिए,

पूर्ण मनोयोग व जीवट से तन-मन लगाना चाहिए,

स्मरण कर स्व ईष्ट का लक्ष्यहित लगजाना चाहिए,

आत्म विश्वास से परीक्षा में ‘नाथ’ पार पाना चाहिए।

परीक्षा रूपी उत्सव को महोत्सव बनाना चाहिए ।6।

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काव्य

कृष्णा तेरी गीता लानी पड़ेगी ।

June 21, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

जन जन की वाणी बनानी पड़ेगी

उपद्रवियों कीमत चुकानी पड़ेगी

योगधर्म बताने से कुछ भी न होगा

लौ योग की फिर जलानी पड़ेगी।

कृष्णा  तेरी गीता  लानी पड़ेगी

घर घर तक जाकर सुनानी पड़ेगी ।1।

उन्हें उनकी क्षमता बतानी पड़ेगी

स्वयं, शौर्य  क्षमता बढ़ानी पड़ेगी

मात्र सिद्धान्तों से कुछ भी न होगा

असल क्षमता अपनी दिखानी पड़ेगी।

कृष्णा  तेरी गीता  लानी पड़ेगी

घर घर तक जाकर सुनानी पड़ेगी ।2।

राष्ट्रद्रोही को गलती बतानी पड़ेगी

कीमत संसाधनों की चुकानी पड़ेगी,

प्रेमसद्भाव मार्ग से कुछ भी न होगा

माँ भवानी, बलि अब चढ़ानी पड़ेगी

कृष्णा  तेरी गीता  लानी पड़ेगी

घर घर तक जाकर सुनानी पड़ेगी ।3।

प्रेममुरली कलयुग में छिपानी पड़ेगी

शास्त्र संग शस्त्रभाषा सिखानी पड़ेगी,

प्रेम – पेंगें बढ़ाने से कुछ भी न होगा

निज क्षमता सुदर्शन बढ़ानी पड़ेगी

कृष्णा  तेरी गीता  लानी पड़ेगी

घर घर तक जाकर सुनानी पड़ेगी ।4।

जो बोलें कृष्ण गीता जलानी पड़ेगी

निश्चित उन्हें, मुँह की खानी पड़ेगी,

चेहरे बदलने  से कुछ भी न होगा

धुल भारत भूमि की चटानी पड़ेगी।

कृष्णा  तेरी गीता  लानी पड़ेगी

घर घर तक जाकर सुनानी पड़ेगी ।5।

सच सच है, सच्चाई बतानी  पड़ेगी

सूरत इतिहास की धीरे धीरे दिखेगी,

गलती, छिपाने से कुछ भी न होगा

राष्ट्रवादी भूमिका निभानी पड़ेगी।

कृष्णा  तेरी गीता  लानी पड़ेगी

घर घर तक जाकर सुनानी पड़ेगी ।6।

भारत को गरिमा वह पानी पड़ेगी

अमृत है पयनिधि, पिलानी पड़ेगी

बचने छिपने से अब कुछ न होगा

सार्थकता ‘नाथ’ गीता बतानी पड़ेगी। 

कृष्णा  तेरी गीता  लानी पड़ेगी

घर घर तक जाकर सुनानी पड़ेगी ।7।

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काव्य

वन्दन हो जाता है ।

May 14, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments


जब प्रारब्ध के फलने से

शिशु आगमन हो जाता है।

मात पिता के चिन्तन से

कर्मों का वरण हो जाता है।

दोनों हाथों के जुड़ने से

देखो वन्दन हो जाता है  । 1 ।

केवल एक हाथ के चलने से

वह तो थप्पड़ हो जाता है।

क्रोध संचरण हो मन से

प्रेम विघटन हो जाता है ।

दोनों हाथों के जुड़ने से

देखो वन्दन हो जाता है । 2 ।

अँगुष्ठ अंगुलियाँ कसने से

मुष्टिका स्वरुप हो जाता है।

क्रोध धधकता नेत्रों से

प्रेम भाव भी खो जाता है।

दोनों हाथों के जुड़ने से

देखो वन्दन हो जाता है । 3 ।

इन हाथों के टकराने से

ताली का चलन हो जाता है।

यह ताली बजती जब लय से

भावों का वरण हो जाता है।

दोनों हाथों के जुड़ने से

देखो वन्दन हो जाता है । 4 ।

दाएं बांयें इन हाथों से

कुछ नाम पुकारे जाते हैं।

उनकी कर्त्तव्य निपुणता से

कहने का चलन हो जाता है।

दोनों हाथों के जुड़ने से

देखो वन्दन हो जाता है । 5 ।

यह हस्त छुलें जब चरणों से

सुब कुछ पावन हो जाता है।

शक्ति मिलती उन चरणों से

आशीष वरण हो जाता है।

दोनों हाथों के जुड़ने से

देखो वन्दन हो जाता है । 6 ।

जब हाथ जुड़ उठें श्रद्धा से

दुआ का मन हो जाता है।

पावस विचार उठते मन से

पावन आचरण हो जाता है।

दोनों हाथों के जुड़ने से

देखो वन्दन हो जाता है । 7 ।

जब हाथ बढ़ें कुछ लम्बे से

तब आलिङ्गन हो जाता है।

जय माल युक्त इन हाथों से

वर वधु मिलन हो जाता है।

दोनों हाथों के जुड़ने से

देखो वन्दन हो जाता है । 8 ।

इन हाथों के स्पर्शों से

मृदुता संचरण हो जाता है।

श्रद्धा और नमन के भावों से

बस अभिनन्दन हो जाता है।

दोनों हाथों के जुड़ने से

देखो वन्दन हो जाता है । 9 ।

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काव्य

मातृ दिवस(Mother’s Day)

May 7, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

यह अद्भुत संयोग – सुखद है

माँ की ममता याद दिलाने का। 

हाँ उऋण नहीं हो सकता जन है

उस करुणा रस के बरसाने का।

मातृ दिवस एक मात्र दिवस है

माँ का ऋण याद दिलाने का ।1।

सम्मान सुनो एक मात्र शब्द है,

भावों को वसन पहनाने का।

यह प्रयत्न है सफल उतना ही,

जैसे सूर्य को दीप दिखाने का। 

मातृ दिवस एक मात्र दिवस है

माँ का ऋण याद दिलाने का ।2।

बचपन की स्मृतियाँ क्षीण हैं

कारण तेरे जग में आने का।

आज दीखता जो तन मन है ,

प्रमाण है तेरे कष्ट उठाने का।

मातृ दिवस एक मात्र दिवस है

माँ का ऋण याद दिलाने का ।3।

जो सर्वस्व हँसकर खो देती है,

सर्व त्याग माँ रूप ले लेती है।

खो निस्वार्थ नहीं कुछ लेने का

माँ कृत्यों से सिद्ध कर देती है।

मातृ दिवस एक मात्र दिवस है

माँ का ऋण याद दिलाने का ।4।

कष्ट उठा बच्चे को सुख दे देती है 

जीवन में  वो खुशियाँ  बरसा देती है

न चाह सम्मान निधि को पाने का

माँ भाव जड़ को चेतन कर देती है।

मातृ दिवस एक मात्र दिवस है

माँ का ऋण याद दिलाने का ।5।

वह धरती के सर्वगुण ले लेती है

ममता,दया,क्षमा गुण धर लेती है।

नहीं चाहती बदले में कुछ लेने का

माँ नाम जीवन में सार्थक कर देती है         

            मातृ दिवस एक मात्र दिवस है

माँ का ऋण याद दिलाने का ।6।

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काव्य

ऐ भारत में रहने वालो……….

May 4, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

मेरी कलम आज देती है,

ऐ नव पीढ़ी यह सन्देश।

यदि आपस में बैर करोगे,

कैसे बढ़ पाएगा देश।  

ऐ भारत में रहने वालो,

सजग रहो गढ़ो नवपरिवेश ।1।

जंग कभी नहीं देती है,

मधुमय याद मंगल सन्देश।

खुद का कैसे अस्तित्व रखोगे,

आज पूछता तुमसे देश।     

ऐ भारत में रहने वालो,

सजग रहो गढ़ो नवपरिवेश ।2।

पूजा कभी नहीं देती है,

प्रतिष्ठानों का लूट आदेश।

दुश्मन को कैसे खोजोगे,

निष्क्रिय रह खोकर आवेश।       

ऐ भारत में रहने वालो,

सजग रहो गढ़ो नवपरिवेश ।3।

संस्कृति कभी नहीं देती है,                     

मिथ्या तुष्टिकरण सन्देश।

निज स्वार्थों को याद रखोगे,

नहीं बचेगा कुछ अवशेष।        

ऐ भारत में रहने वालो,

सजग रहो गढ़ो नवपरिवेश ।4।

धरती कभी नहीं देती है,

निज लहू बहाने का आदेश।

तुम जी कर भी क्या कर लोगे,

नहीं बचा यदि प्यारा देश।        

ऐ भारत में रहने वालो,

सजग रहो गढ़ो नवपरिवेश ।5।

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काव्य

नया भारत है अब ये सहेगा नहीं

April 18, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

बूढ़े तोते को कुछ भी रटाते रहो,

ये फितरत है उसकी रटेगा नहीं ।

राजे दिल यूँ कितने छिपाते रहो

मेरा दावा है हमसे छिपेगा नहीं ।

तुम सदा वैर के गुल खिलाते रहे

नया भारत है अब ये सहेगा नहीं ।1।

तुम पानी पर बरछी चलाते रहो,

वो रवानी है उसमें फटेगा नहीं।

तुम तो चेहरे पे चेहरे लगाते रहो,

जो सच है वो हमसे छिपेगा नहीं। 

तुम सदा वैर के गुल खिलाते रहे,

नया भारत है अब ये सहेगा नहीं ।2।

हम लिखते रहें तुम मिटाते रहो,

सच तो सच है फिर भी मिटेगा नहीं।

हम जलाते रहें तुम बुझाते रहो,

भोर का सूर्य है अब छिपेगा नहीं।   

तुम सदा वैर के गुल खिलाते रहे,

नया भारत है अब ये सहेगा नहीं ।3।

चाहे कितने भी काँटे बिछाते रहो,

काफिला प्यार का अब रुकेगा नहीं।

अमन की बस्तियाँ तुम जलाते रहो,

ज्वार संचेतना का रुकेगा नहीं ।    

तुम सदा वैर के गुल खिलाते रहे,

नया भारत है अब ये सहेगा नहीं ।4।

तुम दामन को दागी बनाते रहो,

यह सिलसिला अब टिकेगा नहीं।

तुम सदा घाव पर घाव लगाते रहे,

इम्तिहाँ हो गई अब सहेगा नहीं।  

तुम सदा वैर के गुल खिलाते रहे,

नया भारत है अब ये सहेगा नहीं ।5।

मधुर रिश्तों का राग ‘नाथ’ गाते रहे,

अब जाकर के समझे फबेगा नहीं।

मीठी बातों से उसे समझाते रहे

भूत लातों का है,वो समझेगा नहीं।      

तुम सदा वैर के गुल खिलाते रहे,

नया भारत है अब ये सहेगा नहीं।6। 

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काव्य

बोलो बम बम बम

February 24, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

बोलो बम बम बम

आओ दिन भर करें बस पावन करम,

धीरे – धीरे बढ़ाएं हम शान्ति कदम,

गाएं हम सब मिल शिव शक्ति भजन,

शिव का डमरू बजेगा डम डम डम।

हम चले हाँ चले करते शिव को नमन

बोलो बम बम बम,बोलो बम बम बम ।1।

बेल पत्री, जल, धतूरे से हो आचमन,

शुद्ध रहता है तन शुद्ध रहता है मन,

धीरे धीरे शिवालय को बढ़ते कदम,

कभी तुम बोलो बम कभी बोलें  हम।

हम चले हाँ चले करते शिव को नमन

बोलो बम बम बम,बोलो बम बम बम ।2।

कभी बजेगा मृदंग, कभी बजे सरगम,

हम शिव को भेजेंगे भूल सारे ही गम,

अब अलख जगेगी,  ना लगाएंगे दम,

जी हाँ जीवन से मिटेगा अब सारा तम।   

हम चले हाँ चले करते शिव को नमन

बोलो बम बम बम,बोलो बम बम बम।3।

ऊँ नमः शिवाय शुभशुभ ध्वनि गुञ्जन,

सब कर देगा, तन – मन – धन पावन,

करूणानिधि की, करुणा का चलन,

अब सिद्ध करेगा, अपने सारे जतन। 

हम चले हाँ चले करते शिव को नमन

बोलो बम बम बम,बोलो बम बम बम।4।

इस जग से मिटा दो प्रभु सब क्रन्दन

सब गाएं खुशी में, खूब होकर मगन

गंगा तट से करेंगे अब शिव दरशन

और ढोल बजेगा भइया ढम ढम ढम। 

हम चले हाँ चले करते शिव को नमन

बोलो बम बम बम,बोलो बम बम बम।5।

करें हम झांझ,  मजीरे संग सब नर्तन

विश्व नाथ,  के दर्शन को बढ़ते कदम

इस ‘नाथ’ को लगी है लौ, यह हर दम

बस शिव का मनन, शिव का चिन्तन  

हम चले हाँ चले करते शिव को नमन

बोलो बम बम बम,बोलो बम बम बम।6।

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