देव दीपावली का तात्पर्य देवताओं द्वारा मनाये जाने वाली दीपावली से है, यह कार्तिक मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। कहा जाता है भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक दैत्य का वध इस दिन ही किया था, इससे देवताओं में खुशी व्याप्त हो गयी और उन्होंने खुशी में स्वयं काशी में दीप प्रज्जवलित किये तथा उत्सव मनाया। इसलिए इस विशिष्ट पर्व को त्रिपुरोत्सव या त्रिपुरारी पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है। लोग इस दिन पावस नदियों में स्नान और दीपदान करते है। पतित पावनी भागीरथी में स्नान विशेष शुभ स्वीकार किया जाता है।
तिथि व सम्यक समय –
इस वर्ष देव दीपावली का पर्व 5 नवंबर 2025 दिन बुधवार को है । चूँकि देव दीपावली की पूजा प्रदोष काल में की जाती है।इस लिए पूजा का शुभ समय 5 नवंबर को शाम 5 बजकर 15 मिनट से 7 बजकर 50 मिनट तक रहेगा क्योंकि प्रदोष काल का समयावधि यही है।
देव दीपावली का इतिहास –
यूँ तो देव दीपावली का इतिहास देवाधिदेव शंकर द्वारा त्रिपुरासुर के वध से जुड़ा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यह वध कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ और जीत की खुशी में भगवान् शिव की नगरी में देवताओं द्वारा देव दीपावली का आयोजन हुआ।
वर्तमान में देव् दीपावली की काशी में शुरुआत का प्रसंग प्रमोद यादव जी के दैनिक जागरण के 01 /11 / 2025 के झंकार से ज्ञात हुआ जो कृतज्ञता युक्त साधुवाद सहित लेकर आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूँ। उन्होंने बताया कि काशी में देवदीपावली की शुरुआत महारानी अहिल्या बाई होल्कर से जुडी है उनके द्वारा पञ्च गंगा घाट पर बनाये गए हज़ारा दीप स्तम्भ से देव दीपावली मनाने का सिलसिला प्रारम्भ हुआ एक उत्साही युवक नारायण गुरु ने पोथियों की बातों को नई कल्पना दी। केंद्रीय देव दीपावली समिति का गठन हुआ। 1986 में पहली बार पञ्च गंगा सहित 6 घाटों पर दीपमालाएं जगमगाईं तो शहर में उत्साह की लहर दौड़ गई। अगले वर्ष श्रीमठपीठाधीश्वर जगद्गुरु रामगोपलाचार्य का संरक्षण मिला तो दीप मालाएं 12 घाटों तक बढ़ीं। फिर उत्सव दो गुना होकर 24 घाटों तक पहुँचा। काशी नरेश विभूति नारायण सिंह और कई अन्य के योगदान से 1994 तक उत्सव ने भव्यता के नए कीर्तिमान स्थापित किये। अब गंगा के घाटों तक ही नहीं कुंड , सरोवरोंऔर मंदिरों तक भी यह एत्सव पहुँच गया है। हरि प्रबोधिनी एकादशी पर गीतगंगा के प्रवाह के साथ देव दीपावली के अनुष्ठान शुरू हो जाते हैं।
देव दीपावली और दीपावली में प्रमुख अन्तर –
इन अन्तरों को अपनी सुविधानुसार इस प्रकार क्रम दे सकते हैं –
- जैसा कि पूर्व में बताया गया कि यह उत्सव देव – दीपावली देवताओं द्वारा त्रिपुरासुर का भगवान् शिव द्वारा वध कर दिए जाने के कारण मनाया गया जबकि दीपावली को राम के अयोध्या में वन आगमन व रावण पर विजय से जोड़कर देखा जाता है यह अयोध्यावासियों की प्रमुख देन माना जाता है।
- देव दीपावली के प्रमुख आराध्य देव देवाधिदेव भगवान शंकर को स्वीकार किया जाता है जबकि दीवाली की प्रमुख आराध्य माता लक्ष्मी हैं।
03 – देव दीपावली प्रमुखतः भागीरथी के तट पर मनाते हैं वहीं गंगा स्नान, दीपदान व आरती करते हैं जबकि दीपावली घर घर माता लक्ष्मी के पूजन के साथ मनाया वाला पर्व है।
04 – सबसे प्रमुख अंतर के रूप में कहा जा सकता है कि देव दीपावली देवताओं द्वारा पृथ्वी पर आकर मनाया जाने वाला पर्व है जबकि दीपावली को धन व समृद्धि के रूप में मनाया जाता है।
देव दीपावली मनाने की विधि –
01 – इस दिन प्रातः काल पवित्र नदी में स्नान किया जाता है । भोर में पानी में थोड़ा सा गंगाजल डालकर घर पर भी अपनी सुविधानुसार स्नान किया जा सकता है।
02 – घर के देव स्थल या मन्दिरों में साफ-सफाई की जाती है तथा देवाधिदेव भगवान शिव व अन्य देवी-देवताओं की पूजा अर्चना विधि-विधान से की जाती है।
03 – सर्वप्रथम देवाधिदेव भगवान शिव का जलाभिषेक किया जाता है, पंचामृत से स्नान कराकर श्वेत चन्दन, भांग, धतूरा, बेल पत्र, फल – फूल और श्वेत वस्त्र अर्पित किया जाता है। शुद्ध देशी घी का दीपक जलाकर आरती करने का प्रावधान है।
04 – सूर्यास्त के उपरान्त घर के मन्दिर में, पावस नदियों के तट पर और तुलसी के चौरे में मिट्टी के दीए जलाए जाने चाहिए। भगवान् का भोग, आरती व दीपदान क्षमतानुसार किया जाता है
05 – इस दिन तामसिक भोजन जैसे लहसुन, प्याज और मांसाहार नहीं किया जाना चाहिए।
06 – आजकल लोग घर, खेत खलिहान में भी दीपक प्रज्ज्वलित करने को शुभ मानते हैं।
07 – एक मान्यता के अनुसार इस दिन चौमुखी दीपक जलाने से अकाल मृत्यु के भय से रक्षा होती है।
वर्तमान देव दीपावली का महत्व –
01 – यह धार्मिक आयोजन भगवान शिव की त्रिपुरासुर पर विजय की खुशी में देवताओं द्वारा पृत्वी आकर किये दीपदान के कारण महत्ता प्राप्त है।
02 -दूसरा कारण दार्शनिक है दीप प्रज्ज्वलन अन्तस के तम को मिटाकर हमें पावस करता है लोभ, मोह, क्रोध, अहंकार जैसे दुर्गुणों को मिटाकर आत्मशुद्धि का पावन सन्देश प्रदान करता है।
03 – यह भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है इस दिन वाराणसी जैसे शहरों में भागीरथी के तट पर लाखों दीये जलाकर एक भव्य और अलौकिक दृश्य उदीयमान होता है जो भारत को एक सूत्र में बांधने के साथ सांस्कृतिक गरिमा प्रदान करता है।
04 – भारतीय पौराणिक कथाओं ने इसके महत्त्व को स्वीकारते हुए स्वीकार किया कि इस दिन किए गए दान, व्रत और पूजा का फल हजार गुना बढ़ जाता है, एवम् गंगा में स्नान को आत्मशुद्धि के प्रतीक के रूप में स्वीकार किया जाता है।
05 – जनजागरण, उत्साह वर्धन व सात्विकता के प्रसार में इस पर्व की बहुत महत्ता आज के समय में भी है।
हमारे पर्व त्यौहार हमें एकता सूत्र में आबद्ध कर इस भाग दौड़ की जिन्दगी में सुकून के पल प्रदान करते हैं। परिवार और समाज से जुड़ने के अवसर प्रदान करते हैं अंतस में घुली कालिमा के प्रभाव में कमी लाते हैं और हमें सात्विकता से जोड़ते हैं।

