जीवन
में सक्रियता में कमी व निष्क्रियता की अधिकता आलस्य के नाम से जानी जाती है आलस्य
वह ढंग है जिसके कारण अनमने मन से धीमी गति से या दूसरों के माध्यम से कार्य कराने
की प्रवृत्ति प्रभावी हो जाती है ऐसे लोग कामचोरी के बहाने ढूँढते हैं और अपना
कार्य दूसरों पर टालते हैं।
आलस्य
और प्रमाद में अन्तर –
आलस्य
की स्थिति में शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार की क्रियाओं में मन्दता या ढीलापन
देखा जाता है जबकि प्रमाद की स्थिति तन की अपेक्षा मन की दुर्बलता की द्योतक है।
आलस्य
से नुकसान –
आलस्य ने विश्व का बहुत बड़ा नुकसान किया है रिचर्ड
स्टील महोदय ने इसी लिए कहा है कि –
“…… sloth has ruined more nations than
the sword.”
अर्थात तलवार की तुलना में आलस ने अधिक राष्ट्र तबाह
किये हैं।
दुःख का कारण
आलस्य हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।
ना सत्युद्यम समो बन्धु कृत्वा यं न अवसीदते।।
मानव के शरीर में रहने वाला आलस्य ही उनका सबसे शत्रु है परिश्रम के समान कोई दूसरा बन्धु नहीं
है कार्य करने वाला कभी दुःखी नहीं होता।
यजुर्वेद में भी कहा गया कि “आलस्य दरिद्रता का मूल है।”
निर्णय में विलम्ब
आलस्य का सताया कोई कार्य समय पर नहीं कर
पाता क्यों कि उसके निर्णय विलम्ब से हो पाते हैं। पूरा जीवन अव्यवस्था का शिकार
हो जाता है कबीर दास जी ने भी यही समझाने की कोशिश की है –
पाछे दिन पाछे गए, हरि से किया न हेत।
अब पछतावै होत का जब चिड़िया चुग गई खेत।
नकारात्मकता को बढ़ावा
आलसी व्यक्ति का चिन्तन तो नकारात्मक होता ही है सारी उपलब्धियाँ
उससे दूरी बनाने लगती हैं विद्या उससे दामन बचाती है कोई उसे मित्र भी नहीं बनाना
चाहता इसी भाव को दर्शाता श्लोक –
अलसस्य कुतो विद्या, अविद्यस्य कुतो धनम्।
अधनस्य कुतो मित्रम्, अमित्रस्य कुतो सुखम्।
अर्थात आलसी को विद्या कहाँ, विद्याहीन
को धन कहाँ। धनहीन को मित्र कहाँ और मित्रहीन को सुख कहाँ।
रक्त प्रवाह असन्तुलन
दिवास्वप्न को बढ़ावा
आलस्य का मारा व्यक्ति कल्पना लोक में विचरण
करता रहता है यथार्थ से कतराता है। दिवा स्वप्न देखना उसका मुकद्दर बन जाता है कोई
कोई पूरी जिन्दगी इस भ्रम का शिकार बना रहता है। सुकरात महोदय ने कहा भी है
–
“आलस्य में जीवन बिताना आत्म
ह्त्या के समान है।”
संकल्प शक्ति का ह्रास
आत्मविश्वास क्षय
आत्म विश्वास जैसे सम्बल को आलस्य छीन लेता है और व्यक्ति भाग्यवादी
बनने लगता है दैव योग पर भरोसा करने लगता है जबकि तुलसी दासजी ने स्वयं
रामचरित मानस में लक्ष्मण से कहलाया –
नाथ दैव
कर कवन भरोसा। सोषिअ सिंधु करिअ मन रोसा॥
कादर
मन कहुँ एक अधारा। दैव दैव आलसी पुकारा॥
(लक्ष्मणजी ने कहा-) हे नाथ! दैव का कौन
भरोसा! मन में क्रोध ले आइए और समुद्र को सुखा डालिए। यह दैव तो कायर के मन का एक
आधार (तसल्ली देने का उपाय) है। आलसी लोग ही दैव-दैव पुकारा करते हैं॥
महत्त्वाकाँक्षा अवरोधक
आलस्य प्रगति मार्ग और महत्त्वाकांक्षा पूर्ति का सबसे बड़ा अवरोधक है
और जब हम कोई महत्वांकाक्षा नहीं पालते तो कबीर के शब्द अक्षरशः सत्य सिद्ध
होने लगते हैं –
रात गँवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय
हीरा जनम अनमोल सा, कौड़ी बदले जाए।
अवसर दुरूपयोग-
मौके पर चौका लगाना तो दूर की बात है आलसी
हाथ आये मौके को भी सहज ही छोड़ देता है और अन्त में पछताता है कि काश उस समय जागा
होता। जो समय का उपयोग नहीं कर सकता उससे सदुपयोग की तो आशा ही नहीं की जा सकती
तो अन्ततः दुरूपयोग ही उसका मुकद्दर बन जाता है।
निर्णयन शक्ति क्षय
आलस्य के कारण–
1 – नकारात्मक
चिन्तन
आज
व्यक्ति का चिन्तन कुप्रभावित हो गया है उसकी निर्भरता दूसरों पर बढ़ रही है इससे
सफलता संदिग्ध हो जाती है किसी ने ठीक ही कहा है –
वो
सफलता क्या पायेगा,
जो
निर्भर रहता गैरों पर।
मञ्जिल
उनको मिलती है,
जो
चलता अपने पैरों पर।
2
– नींद पूरी न होना
3
– असन्तुलित भोजन
4
– समय कुप्रबन्धन
समय पर सोना, समय पर जागना न होने से नियत समय पर नियत कार्य सम्पन्न नहीं हो
पाते पहले से गन्तव्य का आरक्षण करवाने के बाद भी अन्त समय तक सामान नहीं लगाया
जाता कुछ हड़बड़ी में होता है।
समय का उचित प्रबन्धन न करना आलस्य का बहुत
बड़ा कारण बनता है यह तथ्य सत्य है कि
‘वक़्त बरबाद
करने वालों को वक़्त बरबाद करके छोड़ेगा।‘
और बर्बादी का प्रवेश द्वार बन जाता है
आलस्य। आलसी का रोम रोम कह उठता है –
यूँ भी
तो आराम बहुत है आलसियों में नाम बहुत है।
दिन भर
खाली बैठे रहते कहते सबसे काम बहुत है।
5
– नशे की प्रवृत्ति
6
– मोबाइल की लत
7
– स्वास्थय जागरूकता में कमी
8
– अन्तिम क्षण पर कार्य सम्पादन
आज करै
सो काल्ह कर
काल
करै सो परसों।
क्यों
इतनी जल्दी करै
अभी
पड़े हैं बरसों।
उक्त चिन्तन का अवलम्ब लेने वाले असफलता को
अंगीकार करते हैं और कार्य को समय पर सम्पादित नहीं कर पाते।
9
– ब्रह्म मुहूर्त का दुरूपयोग
बेंजामिन
फ्रैंकलिन महोदय ने कहा –
“Early to bed and
early to rise
makes a man healthy,
wealthy and wise.
10
– स्पष्ट लक्ष्याभाव
आलस्य
भगाने के उपाय –
ऐसा
भी नहीं है कि आलस से छुटकारा नहीं मिल सकता बस सही दिशा बोध की आवश्यकता है किसी
विचारक ने ठीक ही कहा है –
रास्ता
किस जगह नहीं होता,
सिर्फ
हमको पता नहीं होता।
छोड़
दें डरकर रास्ता ही हम, यह कोई रास्ता नहीं होता।
आलस्य
मुक्ति के उपायों को इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है।-
1 – सकारात्मक चिन्तन
2 – आत्म विश्वास में वृद्धि
3 – प्राणायाम, व्यायाम
4 – कर्म पर विश्वास
रामधारी
सिंह दिनकर जी हमें सचेत करते हुए कहते हैं –
ब्रह्मा
से कुछ लिखा भाग्य में मनुज नहीं लाया है
अपना
सुख उसने अपने भुज बल से ही पाया है ….
5 – आत्मानुशासन
दीन
दयाल शर्माजी
कहते हैं –
“आलस
है हम सबका दुश्मन
नहीं
काम करने देता।
जो
भी होता पास हमारे,
उसको
भी यह हर लेता।
6 – महत्त्वाकांक्षा
7 – लक्ष्य प्राप्ति ललक
काल्ह
करै सो आजकर
आज
करै सो अब
पल
में परलै हो गई
तो
बहुरि करैगो कब।
8 – प्रतिमान स्थापन
ऐसा आदर्श मौलिक प्रतिमान कायम करने की जिद हो
जिसका लोग अनुसरण करें और मानवता का उत्थान सम्भव हो किसी विचारक ने ठीक ही कहा है
–
सीढ़ियाँ उनको मुबारक
जिनको छत तक जाना है।
जिन्हें अम्बर को छूना है
उन्हें रस्ता खुद बनाना है।
9 – प्रगतिशील सोच
10 – आरामदायक परिधियों का त्याग
कभी
तो अपने आलस्य का हिसाब करो,
सफल
क्यों नहीं हुए ?खुद
से सवाल करो।
11 – ब्रह्म मुहूर्त जागरण
सफलता पाना है, तो आलस्य को मिटाना है
इस कमजोरी को हर सुबह उठकर हराना है।
12 – यथोचित आहार विहार
हमें
समय पर हल्का सुपाच्य भोजन ग्रहण करना चाहिए गरिष्ठ भोजन से बचना चाहिए यह आलस्य
को बढ़ाता है कुण्डलिनी की शक्तियाँ पचाने में व्यस्त हो जाएंगी तो अन्य महत्वपूर्ण
कार्य कैसे सम्पादित होंगे। इसीलिये श्रीमद्भगवदगीता में छठे अध्याय में जगद्गुरु
कृष्ण कहते हैं। –
युक्ता
हार विहारस्य युक्त चेष्टस्य कर्मसु।
युक्तस्वप्नावबोधस्य
योगो भवति दुःखहा।।6.17।।
अर्थात
दुःखोंका
नाश करनेवाला योग तो यथायोग्य आहार और विहार करनेवालेका, कर्मोंमें यथायोग्य चेष्टा करनेवालेका तथा
यथायोग्य सोने और जागनेवालेका ही सिद्ध होता है।
उक्त समस्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि निर्विकल्प होकर दृढ़ इच्छा
शक्ति से जब ऊपर दिए गए बिंदुओं का अनुपालन सुनिश्चित करेंगे तो आलस्य से अवश्यमेव
छुटकारा मिलेगा ।