आज का आदमी जो जीवन जीता है,

क्यों लगता है कि वो  खोखला सा है।

वो हँसी, वो ठिठोली आज गुम सी है,

आज जिन्दगी ठहरी हुई नदी सी है।

 

नदी ठहरती है तोअस्तित्व खो देती है,

विगत  को  स्मरण  कर  रो  देती  है।

फोटो से वो आनन्द  नहीं मिलता  है ,

नहाने का झरने में जब वो झरता  है।

 

वाद्य  यंत्रों  के शोर में खुशी ढूंढते हैं,

गीत जो हैं नहीं उनमें संगीत ढूंढते हैं।

पूँजी वाले  सम्बन्धों  में मीत  ढूंढते  हैं,

दिखावटी दुनियाँ, सच्ची प्रीत ढूंढते हैं,

 

कह कर नहीं  कर  के दिखाना  होगा,

नागरिकों को खुद को  सुधारना होगा।

तब  सच्चाई  का  वह  आयाम  आएगा,

उदासी हारेगी और मानव मुस्कुराएगा।

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