बहुत आते हैं याद, वो बचपन वाले पल,
बिसरा नहीं पाते हैं, लड़कपन वाले दल,
स्लेट,बत्ती,खड़िया और तख्ती वाले रण,
तख्ती का बैट बनाते नटखटपन के क्षण।
यादों पर छाजाते हैं वो बचपन वाले पल।
काजल तेल फुलेल व गणवेशों वाले पल,
कॉपी,कलम,स्याही गेंदतड़ियों वाले क्षण,
बोलसमन्दर,विषअमृत आइसपाइस दल,
चोर सिपाही और कबड्डी कुश्तीवाले बल।
यादों पर छाजाते हैं वो बचपन वाले पल।
चम्मच,लंगड़ी,जलेबी,कुर्सी दौड़ों वाला कल,
राष्ट्रीयपर्वों का मीठा जन्माष्टमी का कुल्हड़,
हर क्षण उत्साहों से भर जाता था तन मन,
कदमताल,लेजम,दिल्ली की जन गण मन।
यादों पर छाजाते हैं वो बचपन वाले पल।
सब्जी वाली नानी को छेड़ने वाले चञ्चल,
झूठे टोटके, गाली सुनने के अद्भुत क्षण,
सोतेसाथी को खाट सहित लेजाने के पल,
उसके हड़बड़ाने की राह तकता दलबल।
यादों पर छाजाते हैं वो बचपन वाले पल।
कॉपी में कॉमिक्स छिपा पढ़ने को विकल,
जोक कहानी अन्त्याक्षरियों में होता रमण,
बाबा,चाचा व बुआ की कहानियों के तल,
झूठ उड़ी अफवाहों संग कौतूहल के क्षण।
यादों पर छाजाते हैं वो बचपन वाले पल।
फुटबॉल,क्रिकेट,टी0टी0 के साथबीते पल,
एकसाथ ही फिल्म देखना भूल पिटाई डर,
जादू के खेल के मध्य करते थे जब हुल्लड़,
बात बात पर शर्त लगाना कहाँ गए वो पल।
यादों पर छाजाते हैं वो बचपन वाले पल।
जामुन,मीठा,रेवड़ी,मूँगफली की तड़तड़,
दूधपीना दण्ड लगाना हर सवाल का हल,
अटक लड़ाई ले भिड़जाना याद है वो पल,
चन्दा करके खेल कराना गुजर गए वो पल।
यादों पर छाजाते हैं वो बचपन वाले पल।
बरसातों में खूब भीगकर आने वाले पल,
होली क्रिसमस ईद व दिवाली वालाकल,
देर रात तक गन्ना खाते स्वांग रचाते पल,
कैसा भी हो समारोह रहते थे, हम तत्पर।