वैदिक कालीन शिक्षा एवम् सामाजिक व्यवस्था पर ब्राह्मणों का एक मात्र अधिकार था इसलिए वैदिक शिक्षा को ब्राह्मणीय शिक्षा के नाम से भी जानते हैं कुछ इतिहासकार इसे वैदिक काल,उत्तर वैदिक काल,ब्राह्मण काल,उपनिषद काल,सूत्र काल और स्मृतिकाल में विभक्त कर वर्णित करते हैं परन्तु इन सभी कालों में वेदों की प्रधानता रही अतः इस सम्पूर्ण काल को वैदिक काल कहते हैं।

वैदिक शिक्षा का अर्थ – वैदिक साहित्य में ‘शिक्षा’ शब्द विद्या,ज्ञान, प्रबोध एवम् विनय आदि अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। वैदिक शिक्षा का तात्पर्य शिक्षा के उस प्रकार से था जिससे व्यक्ति का सर्वांगीण विकास हो सके और वह धर्म के आधार पर वर्णित मार्ग पर चलकर मानव जीवन के चरम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त कर सके जैसा  अल्तेकर महोदय ने लिखा –

“शिक्षा को ज्ञान, प्रकाश और शक्ति का ऐसा स्रोत माना जाता था जो हमारीशारीरिक,मानसिक,भौतिक और आध्यात्मिक शक्तियों तथा क्षमताओं का उत्तरोत्तर और सामन्जस्य पूर्ण विकास करके हमारे स्वभाव को परिवर्तित करती है और उत्कृष्ट बनाती है।”

“Education was regarded as a source of illumination and power which transforms and ennobles our nature by the progressive and harmonious development of our physical, mental, intellectual and spiritual powers and faculties.

 A.S.Altekar; Education in Ancient India    

1973, p. 8

शिक्षा के उद्देश्य एवम् आदर्श –

चूंकि जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना था इसलिए इसके अनुसार ही शिक्षा के उद्देश्य एवम् आदर्श निर्धारित किये गए जैसा कि अल्तेकर महोदय ने लिखा –

 “प्राचीन भारतीय उद्देश्यों एवम् आदर्शों का वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है – ईश्वर भक्ति की भावना एवम् धार्मिकता का समावेश, चरित्र का निर्माण,व्यक्तित्व का विकास, सामाजिक कर्तव्यों को समझाना,सामाजिक कुशलता की उन्नति तथा संस्कृति का संरक्षण तथा प्रसार।”

“Infusion of a spirit of piety and religiousness, formation of character, development of personality, inculcation of civic and social duties, promotion of social efficiency and preservation and spread of national culture may be described as the chief aims and ideals of ancient Indian Education.” – A. S. Altekar,pp8-9

1 – धर्म परायणता की भावना एवम् धार्मिकता का समावेश

      (Infusion of a spirit of piety and religiousness)

2 – सामाजिक कुशलता की उन्नति (Promotion of Social Efficiency)

3 – चरित्र निर्माण (Formation of character)

4 – व्यक्तित्व का विकास (Development of personality)

5 – नागरिक एवम् सामाजिक कर्त्तव्यों की समझ (Inculcation of civic and social duties)

6 – राष्ट्रीय संस्कृति का संरक्षण व प्रसार (Preservation and spread of National culture)

शिक्षा व्यवस्था (Organization of Education) –

01 – गुरुकुल प्रवेश

02 – उपनयन संस्कार

03 – पाठ्य क्रम

04 – शिक्षण विधि

05 – शिक्षा की अवधि

06 – शिक्षण सत्र

07 – अवकाश

08 – शिक्षण संस्थाओं का समय

09 – शिक्षण शुल्क व अर्थ व्यवस्था

10 – शिक्षा वाह्य नियन्त्रण से मुक्त

11 – परीक्षाएं व उपाधियाँ

12 – समावर्तन संस्कार

विशिष्ट शिक्षाएं –

1 – स्त्री शिक्षा

2 – व्यावसायिक शिक्षा

3 – पुरोहितीय शिक्षा

4 – सैनिक शिक्षा

5 – वाणिज्य शिक्षा

6 – कला कौशल की शिक्षा

7 – आयुर्वेद शास्त्र 

8 – पशु चिकित्सा

वैदिक शिक्षा का मूल्याँकन –

गुण :-

1 – धार्मिक भावना का विकास

2 – चरित्र निर्माण

3 – व्यक्तित्व का विकास

4 – नागरिक व सामाजिक उत्तरदायित्व भावना का विकास

5 – सामाजिक सुख समृद्धि की वृद्धि

6 – राष्ट्रीय संस्कृति का संरक्षण व विकास

7 – गुरु छात्र सम्बन्ध

8 – पवित्र प्राकृतिक वातावरण

दोष :-

1 – धार्मिकता पर अधिक बल

2 – भौतिक विज्ञानों पर अपेक्षाकृत कम ध्यान

3 – लोक भाषाओँ की उपेक्षा

4 – विषयों में समन्वय का अभाव

5 – हस्त कार्य के प्रति हे भावना

6 – स्त्री शिक्षा की उपेक्षा

7 – शूद्रों के साथ न्याय नहीं

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