वैदिक काल में शिक्षा

वैदिक शिक्षा से आशय / Meaning of Vedic education

वैदिक शिक्षा से आशय उस शिक्षा से है जो मानव का सर्वाङ्गीण विकास कर सके और वह जीवन का परम लक्ष्य धर्म के मार्ग पर चलकर प्राप्त कर सके। इन अर्थों को समाहित करते हुए अल्तेकर महोदय कहते हैं –

“Education was regarded as a source of illumination and power which transforms and ennobles our nature by the progressive and harmonious development of our physical mental, intellectual and spiritual powers and faculties.”

A.S.Altekar : Education in Ancient India, 1973.p.8

शिक्षा को ज्ञान प्रकाश और शक्ति का ऐसा स्रोत माना जाता था जो हमारी शारीरिक, मानसिक, भौतिक और आध्यात्मिक शक्तियों तथा क्षमताओं का उत्तरोत्तर और सामंजस्य्पूर्ण विकास करके हमारे स्वभाव को परिवर्तित और उत्कृष्ट बनाती है।

यह शिक्षा मूलतः वेदों पर आधारित थी और आध्यात्मिक अलख जगाने वाली अर्थात अन्तर्ज्योति के जागरण व आध्यात्मिक पथ को आलोकित  वाली थी। वेद में शिक्षा का प्रयोग विद्या, बोध, ज्ञान, विनय आदि के लिए किया गया है। इसी लिए कहा था कि

  -“ज्ञानं मनुजस्य तृतीय नेत्रं

लेकिन सायण महोदय ने ऋग्वेद भाष्य भूमिका में पृष्ठ 49 पर लिखा है –

जो स्वर, वर्ण, मात्रा, आदि के उच्चारण  – प्रकार का उपदेश दे, शिक्षा दे वही शिक्षा है।

वैदिक कालीन शिक्षा के उद्देश्य / Objectives of Vedic period education

वैदिक कालीन शिक्षा में मानव मूल्य उसे इह लौकिक और पार लौकिक ज्ञान प्राप्ति का निर्देश देते थे पर पारलौकिक अर्थात परा विद्या को अधिक महत्तव प्रदान किया जाता था।

1 – नैतिक उन्नयन / moral elevation

2 – चारित्रिक विकास / Character development

3 – आध्यात्मिक मानसिक उत्थान / Spiritual upliftment

4 – व्यक्तित्व का विकास / Personality development

5 – राष्ट्रीय संस्कृति संरक्षण व प्रसार / National Culture Preservation and Dissemination

6 – मोक्ष की प्राप्ति / Attainment of salvation

उक्त विविध तथ्यों को ध्यान में रखते हुए अल्तेकर महोदय कहते हैं –

“Infusion of a spirit of pity and religiousness, formation of character, development of personality, inculcation of civic and social duties promotion of social efficiency and preservation and spread of national culture may be described as the chief aims and ideals of ancient Indian Education.”

प्राचीन भारतीय शिक्षा के उद्देश्यों व आदर्शों का वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है -ईश्वर भक्ति की भावना का एवम धार्मिकता का समावेश, चरित्र का निर्माण, व्यक्तित्व का विकास,सामाजिक कर्त्तव्यों को समझाना, सामाजिक कुशलता की उन्नति व संस्कृति का संरक्षण तथा प्रसार

शिक्षा व्यवस्था /  Organization of education –

वैदिक कालीन शिक्षा व्यवस्था को समझने हेतु इस प्रकार विवेचित किया जा सकता है –

1 – विद्यारम्भ संस्कार / Vidyarambha Sanskar

2 – उपनयन संस्कार / Upanayana ceremony

3 – पाठ्यक्रम / Syllabus

4 – शिक्षण विधि / Teaching Method

5 – शिक्षण अवधि / Teaching period

6 – संस्थान का अध्ययन समय / Institute study time

7 – अवकाश व शिक्षणसत्र / Vacation and academic session

8 – शिक्षण शुल्क व आर्थिक व्यवस्था / Tuition fee and financial system

9 – परीक्षा तथा उपाधियाँ / Exams and degrees

10 – समावर्तन संस्कार / Samavartan Sanskaar

विविध शिक्षाएं / Miscellaneous teachings –

सैन्य शिक्षा

व्यावसायिक शिक्षा

पुरोहितीय शिक्षा

महिला शिक्षा

कला कौशल की शिक्षा

आयुर्वेद की शिक्षा

पशु चिकित्सा

शिक्षण संस्थाओं के विविध रूप / Various forms of educational institutions –

1 – गुरुकुल

2 – ऋषि आश्रम

3 – चरण

4 – परिषद्

5 – सम्मेलन

6 – परिब्राजक उपदेश

प्रमुख शिक्षा केन्द्र /  Major Educational Center 

वैदिक कालीन शिक्षा के केन्द्र सम्पूर्ण भारत में फैले थे दक्षिण भारत में माल खण्ड, तन्जौर, कल्याणी, उत्तर भारत में मिथिला, कन्नौज, धार, तक्षशिला प्रमुख शिक्षा केंद्र थे। कर्नाटक, काञ्ची, काशी, और नासिक में भी शिक्षण कार्य होता था।

वैदिक कालीन शिक्षा का मूल्याङ्कन / Evaluation of Vedic period education –

वैदिक कालीन शिक्षा के मूल्याङ्कन हेतु इसके गुण दोषों पर दृष्टिपात करना आवश्यक होगा इसलिए पहले जानते हैं इसके गुण

वैदिक कालीन शिक्षा के गुण / Virtues of Vedic Period Education –

1 – नागरिकता के उच्च गुणों का समावेशन। Inclusion of high qualities of citizenship

इस सम्बन्ध में अल्तेकर महोदय कहते हैं –

“The success of educational system in infusing a sense of civic responsibility was also remarkable.”

नागरिक उत्तरदायित्व की भावना अनुप्राणित करने में शिक्षा प्रणाली की सफलता भी अनूठी थी।

2 – आध्यात्मिकता को प्रश्रय / support spirituality

3 – चारित्रिक सुगठन / Character formation

इस सम्बन्ध में अल्तेकर महोदय कहते हैं –

“There is no exaggeration and that the educational system of the country had succeeded remarkably in its ideas of raising the national character to a high level.”

इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि देश की शिक्षा प्रणाली उच्च स्तर के राष्ट्रीय चरित्र के उत्थान के अपने आदर्श में सफल रही थी।

4 – व्यक्तित्व का विकास / Personality development

5 – गुरु शिष्य सम्बन्ध / Teacher-disciple relationship

6 – विशेषज्ञ तैयार करने में सफल / Successful in producing experts

अल्तेकर महोदय कहते हैं –

“The educational system did not aim to act imparting a general knowledge of a number of subjects; its ideal was to train experts in different branches.”

अनेक विषयों का सामान्य ज्ञान देने के कार्य का लक्ष्य इस शिक्षा प्रणाली का नहीं था। इसका आदर्श विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञ तैयार करना था।

7 – साहित्य व संस्कृति के संरक्षण व प्रसार में सफल / Successful in the preservation and dissemination of literature and culture

अल्तेकर महोदय का कहना है –

“The ancient Indian system of education has been eminently successful in its aim of the preservation of ancient literary and cultural heritage.”

प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली प्राचीन साहित्यिक और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के अपने उद्देश्य में विशेष सफल रही।

वैदिक कालीन शिक्षा की सीमाएं / Limitations of Vedic Period Education –

निम्न सीमाएं वैदिक कालीन शिक्षा में दृष्टिगत होती हैं –

1 – धर्म पर अधिक बल / More emphasis on religion

2 – लौकिक विज्ञानों की उपेक्षा। Neglect of cosmic sciences

अल्तेकर महोदय ने कहा –

“Secular sciences like history, economics, politics, mathematics, and astronomy did not receive as much attention as theology, philosophy, ritualism, and sacred law.”

लौकिक विज्ञानों जैसे इतिहास, अर्थ शास्त्र,राजनीति, गणित और ज्योतिष इतना ध्यान नहीं पा सके थे जितना धर्म शास्त्र, दर्शन, कर्मकाण्ड वाद, और पवित्र कानून।

3 – साधारण जनता की प्रगति में असमर्थ / Incapable of progress of the general public

4 – लोक भाषाओँ के प्रति उदासीन / Indifferent to folk languages

अल्तेकर महोदय ने कहा –

“Hindu educational system was unable to promote the education of the masses, probably because of its concentration on sanskrit and the neglect of vernaculars.”

सम्भवतः हिन्दू शिक्षा प्रणाली जनसाधारण की शिक्षा की उन्नति करने में असमर्थ रही क्योंकि इसका लोक भाषाओँ की उपेक्षा और संस्कृत भाषा पर ध्यान केन्द्रित था।

5 – नारी शिक्षा की अवहेलना / Disregard for women’s education 

6 – शूद्र शिक्षा की उपेक्षा / neglect of shudra education

एफ ई केई महोदय कहते हैं –

“The Brahmnik educational system become stereotyped and formal and unable to the needs of a progressive civilization.”

“ब्राह्मणीय शिक्षा प्रणाली रूढ़िगत एवं औपचारिक हो गई थी और प्रगतिशील सभ्यता की आवश्यकताओं को पूर्ण करने में असमर्थ थी।”

उक्त विश्लेषण के आधार पर यह स्पष्ट रूप से स्वीकार किया जा सकता है कि तत्कालीन परिस्थितियों के दृष्टिकोण से वैदिक कालीन शिक्षा सर्वोत्तम शिक्षा व्यवस्था थी इसने शिक्षा के क्षेत्र में महान विदुषी महिलाओं व महान विचारकों व शोध पिपासुओं को जन्म दिया तथा उस ज्ञान ज्योति को और अधिक जाज्वल्यमान करने में योगदान दिया इसीलिये एफ ई केई महोदय को लिखना पड़ा कि –

“Not only did the brahman educators develop a system of education which survived the crumbling of empires and changes of society but they also, through all those thousands years, kept aglow the torch of higher learning.” 

“ब्राह्मण शिक्षकों ने एक शिक्षा प्रणाली को केवल विकसित ही नहीं किया जो साम्राज्यों के पतन समाज के परिवर्तनों में जीवित रही वरन उन्होंने हजारों वर्षों तक उच्च शिक्षा की ज्योति को प्रज्ज्वलित रखा।”

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