प्रवेश और अधिगम

जब माता पिता के अरमानों को पंख लगते हैं तो अपने ह्रदय के टुकड़े बेटे या बेटी को विद्यालय में प्रवेश कराया जाता है वहाँ से अक्षर बोध,शब्द बोध,और ज्ञान के उच्चीकरण की एक यात्रा का प्रारम्भ होता हैजो कि प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च शिक्षा व तकनीकी शिक्षा से जोड़ता है। विविध स्तरों पर प्रवेश के समय एक विशिष्ट मनोदशा होती है और विविध लक्ष्यों को मानस में सजाकर कल का बालक आज का शिक्षार्थी और देश का मुकद्दर बनता है।

समय की गति अद्भुत है और अद्भुत है यह मानव तन। बहुत कुछ याद रखता है और बहुत कुछ विस्मृत करता चलता है। विविध स्तरों पर प्रवेश और उस स्तर के अधिगम के सम्बन्ध में अलग अलग विचार करेंगे तो बोध गम्यता, सरलता और सरसता बानी रहेगी। आज की पीढ़ी में निश्चित रूप से क्षमता है, कार्य करने की हिम्मत है, लक्ष्य प्राप्ति का अहसास है लेकिन पथ बहुत सरल नहीं है फिर भी इस कण्टकाकीर्ण पथ के अनुयायी होते आये हैं और इसी जिन्दादिली से दुनियाँ का अस्तित्व है।

 अधिगम की इस यात्रा में अनेकानेक पड़ाव आते हैं। जिसे इस पथ का पथिक महसूस करता है आज बहुत से मस्तिष्कों में बहुत सारी भूली बिसरी यादों का तूफ़ान हिलोरें ले रहा होगा। हमने अपने समय में जो गलतियाँ की हैं उस आधार पर नई पीढ़ी को सचेष्ट करने का प्रयास करते हैं लेकिन हम भूल जाते हैं कि समय बदलने के साथ समस्याएं बदलती हैं और उनके समाधान पाने के तरीके भी बदलते हैं इसलिए अपने विचार नई पीढ़ी पर थोपने की जगह सचेष्ट रहें। समय के साथ कदमताल करें।

आइए हम विचार करते हैं अलग अलग स्तरों पर प्रवेश और अधिगम के सम्बन्ध में साथ ही अधिगम के बाधक तत्वों पर भी विचार करके अधिगम पथ दुरुस्त रखने का प्रयास करेंगे।

स्तर आधारित वर्गीकरण  अध्ययन की सुविधा हेतु इसका विभाजन करके जानना उपयुक्त रहेगा क्रम इस प्रकार रखा जा सकता है।

1 – विद्यारम्भ से कक्षा 8 तक

2 – माध्यमिक शिक्षा कक्षा 9 से 12 तक

3 – उच्च शिक्षा यथा स्नातक, परास्नातक, शोध आदि  

4 – तक़नीकी शिक्षा व विविध प्रशिक्षण   

1 – विद्यारम्भ से कक्षा 8 तकइस समय प्रवेश के साथ बाल मन में विभिन्न कौतुहल, जिज्ञासा, नवबोध आशा, स्नेह आकाँक्षा, सुन्दर शब्द,भाव,ऊर्जा से जुड़ने का विशिष्ट भाव होता है और यही वह सर्वाधिक कीमती बहुमूल्य समय होता है जहाँ माता पिता अभिभावक, शिक्षक और विद्यालय को प्रतिपल सचेष्ट रहना जरूरी है।

 यहाँ से बालमन, बाहर की दुनियाँ, विद्यालय, समाज और विभिन्न सम्बन्धों को समझना शुरू करता है। जहां माता-पिता के सपने परवान चढ़ते हैं। वहीं बालक की क्षमता, स्वास्थ्य ,वातावरण मिलकर हर बालक के लिए एक नई दुनियाँ का सृजन कर रहे होते हैं। इस प्रवेश से बालक को नई दिशा, प्राइवेट सैक्टर को धन,विभिन्न संस्थाओं को पहचान मिलती है। और मूल कारक बालक प्रभावित होता है।

इस स्तर के बालक को हम अपनी महत्त्वाकाँक्षा से दुष्प्रभावित न करें, बालक को बालक ही रहने दें. उसे रोबोट न बनाएं। एक स्तर पर एक तय पाठ्यक्रम का अवबोध हो, एक सरलता सहजता बनी रहनी आवश्यक है। कृत्रिमता के बोझ तले उनका बचपन छीनने का प्रयास न करें, उन्हें खेलने दें स्वाभाविक रूप से बढ़ने दें पढ़ने दें। बच्चों की किलकारी से, मुस्कान से, हास्य से आनन्दित हों, भाव प्रगटन सहज रहने दें उनका शाब्दिक परिमार्जन करें लेकिन सहजता से स्वाभाविकता से। उनका सारा समय न छीनें।

 केवल उस स्तर का किताबी अधिगम काफी है व्यावहारिकता से जुड़ाव का प्रयास हो प्राकृतिक रूप से बिना किसी दवाब के। ट्यूशन कक्षा शिक्षण और घरेलू व्यवहार में आदेशात्मक वाक्यों से बचें। व्यक्तित्व में निखार स्वाभाविक रूप से आने दें। तुलना के नकारात्मक प्रभाव से दूर रहने का प्रयास करें। याद रखें प्रतिस्पर्धा और अन्धी दौड़ में फर्क है। इस स्तर की मार्कशीट (अंक तालिका) सहेज कर रखना बहुत तर्क सांगत नहीं है। आज अभिभावकों की ज्यादातर यह अंकतालिकाएं कहाँ हैं पता भी नहीं होगा।

स्वाभाविक स्तरोन्नयन के साथ बालकों की समझ को विस्तार के नए आयाम मिलने दें। कम अंक आने पर मारपीट करने की जगह स्वयं की भूमिका का विवेचन करें डिब्बा बन्द, मृत भोजन की जगह पौष्टिक व ताज़ा आहार व्यवस्था पर ध्यान अपेक्षित है। आपका सौम्य व नियन्त्रित व्यवहार इस स्तर के बच्चों की जमा पूँजी है। यह संस्कार, प्राकृतिक तालमेल सहज प्रगति जीवन का मज़बूत आधार है।

2 – माध्यमिक शिक्षा कक्षा 9 से 12 तक –

आठवीं के बाद परिवर्तन की एक नई आहट सुनाई पड़ती है, बहुत से नए साथियों, नए गुरुओं, नई पुस्तकों, बदलती दुनियाँ के बदलते परिवेश से तालमेल बैठाते हमारे नन्हें मुन्ने। हमारे बेटे,बेटियों के रूप में ये नए योद्धा नई परिस्थितियों, विषयों के विस्तार से जूझने को आतुर।

 ऐसे में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका अभिनीत करता है अध्यापक। स्वयं की उलझनों में उलझे अध्यापक से मुक्त शिक्षा से प्यार करने वाला अध्यापक निश्छल, सहज स्वाभाविक मुस्कान आत्म विश्वास से परिपूर्ण रहकर विद्यार्थियों को सकारात्मक दिशा दे सकता है। अभिभावकों को भी प्रशिक्षित अध्यापकों वाले विद्यालय का चयन  कर प्रवेश सुनिश्चित कराना चाहिए।

आज तक की समस्त सरकारें शिक्षा से पल्ला झाड़ने पर एक मत दिखाई देती हैं इसी वजह से निजी संस्थान लगातार अस्तित्व में आ रहे हैं जिनकी अपनी समस्याएं हैं, प्रतिस्पर्धा है। उद्देश्य धनार्जन है। शानदार इमारत की जगह अच्छा व कुशल प्रबन्धन, योग्य अध्यापक, विगत परीक्षा परिणाम, विद्यालय, अनुशासन, निष्पक्षता, संस्था व्यवहार अधिक मायने रखता है।

हमारे बालक बालिकाओं में इस स्तर पर सहज शारीरिक व मानसिक परिवर्तन होने लगते हैं

यहाँ कुशल अभिभावक, कुशल अध्यापक और जिम्मेदारी निर्वहन में समर्थ विद्यालय बालक का शारीरिक, चारित्रिक, मानसिक गठन में महत्त्वपूर्ण भूमिका अभिनीत करते हैं। संस्कार, नीति, व्यवहार इसी स्तर पर गढ़ा जाता है  बाजारोन्मुख अर्थव्यवस्था अपने सहज मोहपाश में जकड़ बालकों को दिग्भ्रमित कर सकती है।

3 – उच्च शिक्षा यथा स्नातक, परास्नातक, शोध आदि  –

            इस स्तर तक आते आते विद्यार्थी अपने अभिभावकों से प्रवेश, रूचि, अभिरुचि, पसन्दीदा क्षेत्र आदि के सम्बन्ध में विचार विमर्श की कुछ क्षमता हासिल कर लेता है। अच्छे विचार विमर्श के उपरान्त विद्यालय का उच्च शिक्षा हेतु चयन किया जाता है लेकिन कभी कभी नज़दीकी, सुविधा, जल्दबाजी आदि के आधार पर भी उच्च शिक्षा हेतु विद्यालय चयनित किया जाता है। यहाँ की शिक्षा व्यवस्था, पाठ्य सहगामी क्रियाओं में सहभागिता ,क्रीड़ा प्रतियोगिता में भागीदारी आने वाले जीवन के लिए आधार का काम करती है। कुछ विद्यार्थी पढ़ने के साथ पढ़ाने के स्वप्न भी देखते हैं और तदनुकूल आचरण भी करते हैं अपने अधिगम स्तर में वृद्धि कर सफल भी होते हैं। प्रशासकीय कार्यों हेतु आधार यहां से मिल जाता है। पात्र और उसकी पात्रता विद्यार्थी की क्षमता वृद्धि के साथ बढ़ती है।

स्नातक और परास्नातक स्तर के कुछ विद्यार्थियों में एक महत्त्व पूर्ण नकारात्मक बिंदु के भी दर्शन मिलते हैं वह यह की प्रवेश के समय सपना उच्च शिक्षा और उच्च प्रतिमान कायम करने का होता है लेकिन कालांतर में यह परिदृश्य ओझिल हो जाता है।

कतिपय विद्यार्थी कई पी० जी० करने लगते हैं और दिशाहीन व दिग्भ्रमित हो जाते है। उचित निर्देशन  व परामर्श की महाविद्यालयों में कोई व्यवस्था देखने को नहीं मिलती। ऐसा लगता है कि विद्यार्थी किसी भी कार्य से जुड़ जिन्दगी बचाने का प्रयास भी करेगा और दायित्व भी निभाएगा।

मध्यम स्तर का विद्यार्थी या सुविधा हीन विद्यार्थी इस स्तर पर अपने को ठगा सा महसूस करता है और सोचता है कि कोई व्यावहारिक कार्य सीखा होता तो ठीक रहता। साधन सम्पन्न या पूर्व नियोजित दिशा वाले विद्यार्थी  तक़नीकी शिक्षा व विविध प्रशिक्षण की ओर रुख करते हैं।

4 – तक़नीकी शिक्षा व विविध प्रशिक्षण  –

वर्तमान समय कठिन प्रतिस्पर्धा का है इसी लिए सदा शिक्षा की जगह प्रशिक्षण या तकनीकी शिक्षा को वरीयता दी जाती है। विद्यार्थी इस हेतु दूरस्थ स्थानों पर जाने में भी नहीं हिचकते। कई विद्यार्थी इस हेतु कोचिंग क्लास ज्वाइन करते हैं विगत समय में बहुत सी ख़बरें लक्ष्य न मिलने पर आत्म ह्त्या जैसे जघन्य अपराध की भी सुनने को मिली हैं। हमें याद रखना है कि हारा वही जो लड़ा नहीं।

किसी भी तकनीकी शिक्षा या ट्रेनिंग कोर्स में प्रवेश हेतु सम्यक रण नीति और उस पर अमल परम आवश्यक है। प्रवेश न मिलने पर जीने के रास्ते बंद नहीं होते दिशा बदल सकती है। कहा तो यह भी जाता है कि असफलता का मतलब है कि सफलता का प्रयास पूरे मन से नहीं किया गया।

प्रवेश मिल जाने पर अल्पकालिक लक्ष्य मिलता है वास्तव में सफर की शुरुआत यहाँ से होती है। इस पर चलने हेतु निरन्तर प्रवेश के समय तय उद्देश्य को ध्यान में रखना है क्यों कि यहां से निकलने पर यथार्थ का कठोर धरातल हमारी परीक्षा लेने को तैयार खड़ा है।

अधिगम के बाधक तत्त्व – प्रवेश के समय जो मानसिक उड़ान होती है वह कालान्तर में मन्द पद जाती है उसके पीछे विविध कारण होते हैं। इनसे अधिगम दुष्प्रभावित होता है कुछ को यहाँ विवेचित किया जा रहा है आशा कि ये बिन्दु तत्सम्बन्धी के जागरण में सहायक होंगे।

01 – रूचि

02 – चन्द अभिभावक

03 – कतिपय विद्यालय

04 – अकुशल अध्यापक

05 – निर्देशन परामर्श अभाव

06 – पाठ्य क्रम

07 – मानक हीन शिक्षा व्यवस्था

08 – अध्यापकों की दयनीय स्थिति

09 – शासन की शिक्षा नीतियाँ

10 – इच्छा शक्ति का अभाव

            उक्त विचार मन्थन ह्रदय को उद्वेलित करता है आजादी के इतने वर्ष गुजरने के बाद भी शिक्षा के साथ न्याय नहीं हुआ है प्रवेश के समय की सोच और अधिगम काल व अधिगम प्राप्ति के बाद की सोच में बहुत चौड़ी खाई है भारत में प्रति व्यक्ति सीमित आय व भ्रष्टाचार भी अधिगम प्रसार की मार्ग का रोड़ा बने हुए हैं। मर्यादा हनन सामान्य बात हो गयी है और शिक्षा स्वयम् व्यापार होती दिखती है लेकिन इन विषम परिस्थिति में भारतीय युवा सुधार की आशा में कड़ी मेहनत कर रहा है आशा है कि शिक्षा व्यवस्था स्वमूल्याङ्कन करेगी। प्रवेश के समय के सपने अधिगम के साथ पूर्णता प्राप्त करेंगे . 

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