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शिक्षा

JOHN DEWEY / जॉनडीवी (1859-1952)

September 29, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

शिक्षावादियों की बेहतरीन कण्ठ माला का अद्भुत मोती है जॉन डीवी। विलिम जेम्स से विचारों का जो प्लावन हुआ उससे प्रेरणा पाकर डीवी को जो दिशा मिली उससे जॉन डीवी ने संसार को दिग्दर्शित किया। एक सामान्य से दुकानदार का यह बेटा कालान्तर में सुप्रसिद्ध दार्शनिक के रूप में स्थापित हुआ।

डीवी की रचनाएं / DEWEY’s creations – डीवी महोदय ने अपनी 92 साल की उम्र में लगभग 50 ग्रन्थों की रचना की। इनमें से जो ज्ञात हो पाए उन्हें यहाँ देने का प्रयास किया है –

1 – Interest and Effort as Related to Will – 1896

2 – My Pedagogic Creed – 1897

3 – The School and Society – 1899

4 – The Child and the Curriculum – 1902

5 – Relation of Theory and Practice in the Education of Teachers – 1907

6 – The School and the Child -1907

7 – Moral Principle in Education – 1907

8 – How We Think – 1910

9 – Interest and Effort in Education – 1918

10 – School of Tomorrow – 1915

11 – Democracy and Education – 1916

12 – Reconstruction and Nature in Philosophy – 1920

13 – Human Nature in Conduct -1921

14 – Experience and Nature – 1925

15 – Quest for Certainity – 1929

16 – Sources of a Science Education – 1929

17 – Philosophy and Civilization -1931

18 – Experience and Education – 1938

19 – Education of Today – 1940

20 – Problems of Man –

21 – Knowing and Known –

डीवी दर्शन की मीमांसा / Meemansa’s of Philosophy – 

इस दर्शन की मीमांसाओं के अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाएगा कि इसके मूल में क्या है किस आधार पर यह विस्तारित हुआ, इस चिन्तन का दिशा निर्धारण कैसे हुआ इसे खाद पानी कहाँ से मिला। सबसे पहले विचार करते हैं इसकी  तत्त्व मीमांसा (Metaphysics)पर –

तत्त्व मीमांसा / Metaphysics –

विलियम जेम्स की वैचारिक पृष्ठ भूमि को पुष्ट करने वाला यह खुले दिमाग वाला व्यक्तित्व आत्मा परमात्मा की व्याख्या से दूर रहकर भौतिकता पर अवलम्बित रहा। इनका मानना था की संसार अनवरत निर्माण की अवस्था में रहता है यह लगातार परिवर्तनशील है इसमें कोई सर्वकालिक सत्य या  मूल्य हो ही नहीं सकता। निरन्तर बदल रहे सत्य व मूल्यों हेतु प्रयोग किये जाते रहने चाहिए इसी लिए डीवी की विचार धारा प्रयोगवाद (Experimentalism) के नाम से भी जानी जाती है।

ये मानव को सामाजिक प्राणी स्वीकार करते हैं और कहते हैं कि वही तथ्य सही है जो मानव मात्र हेतु उपयोगी हो। मानव को पूर्ण समर्थ मानते हुए ये कहते हैं कि अपनी समस्त समस्याओं को हल करने में वह समर्थ है अपनी प्रगति का निमित्त वह स्वयम् है विविध विषम परिस्थितियों, झंझावातों से टकराने में जो मानव समर्थ वह स्वयम् अपनी उन्नति का निमित्त कारण है इस उन्नति की कोई निर्धारित सीमा नहीं है इस तरह के विचारों का सम्पोषण करने के कारण ही इनकी विचारधारा नैमेत्तिक वाद (Instrumentalism) के नाम से भी जानी गयी।

ज्ञान और तर्क मीमांसा(Epistemology and logic) – डीवी  का स्पष्ट मत है कि ज्ञान क्रिया अवलम्बित होता है पहले समस्या आती है उसके समाधान हेतु मानव सक्रिय हो जाता है और विविध समाधानों की परिकल्पना बनाता है। इन्हें प्रयोग की कसौटी पर कसता है इस प्रकार प्राप्त सत्य को वह अंगीकृत करता है। इस प्रकार स्वहित और समाजहित हेतु सत्य स्थापन की तात्कालिक व्यवस्था के सोपान हुए –

1 – समस्या

2 – तत्सम्बन्धी विवेचना

 3 – परिकल्पना

4 – प्रायोगिक  कसौटी

 5 – सत्य स्थापन

आचार व मूल्य मीमाँसा (Ethics and Axiology) –  ये अध्यात्म या आध्यात्मिक मूल्यों पर तो विश्वास नहीं करते थे लेकिन मानव और मानव में कोइ भेद नहीं मानते थी इनका विश्वास था कि प्रत्येक मानव को उसकी रूचि, क्षमता व योग्यतानुसार स्वतन्त्रता मिलनी चाहिए इनका मानना था कि पूर्व निर्धारित आदर्श न लादकर प्रत्येक को अपने लिए खुद आदर्श व सत्य निर्धारण करना चाहिए। जिस आचरण व मूल्य से स्वविकास हो और समाज के विकास में बढ़ा न पहुँचे वह उचित है।

डीवी का शिक्षा दर्शन / Dewey’s philosophy of education –

आजाद भारत के जितने भी प्रधानमन्त्री हुए वे विकास के क्रम में आध्यात्मिक विकास को भी शामिल करते हैं और मनुष्य के समग्र विकास हेतु आवश्यक समझते हैं। डीवी भी मानव जीवन की विशेषता विकास को स्वीकार करता है लेकिन मानव के सामाजिक,शारीरिक व मानसिक विकास की बात प्रमुखतः करता है। वह यह भी स्वीकार करता है कि विकास हेतु अनुकूलन की स्थिति प्राप्ति हेतु वह पर्यावरण को नियन्त्रित करने का भी प्रयास करता है। इसी आधार पर वह शिक्षा के सम्बन्ध में कहता है –

“शिक्षा व्यक्ति में उन सब क्षमताओं का विकास है, जो उसको अपने पर्यावरण पर नियन्त्रण रखने और अपनी सम्भावनाओं की पूर्ति के योग्य बनाए।“

“Education is the development of all those capacities in the individual which will enable him to control his environment and fulfill his possibilities.”

शिक्षा के उद्देश्य / Aims of education –

1 – परिवर्तनशील उद्देश्य

डीवी के अनुसार –

“शिक्षा का सदैव तात्कालिक उद्देश्य होता है और जहाँ तक क्रिया शिक्षा प्रद होगी, उसी साम्य को प्राप्त होगी। “

“Education has all the time an immediate end, so for as activity is educative it reaches that end.”

2 – अनुभव सतत विकास प्रक्रिया

3 – समायोजन क्षमता विकास

 डीवी के अनुसार –

“शिक्षा की प्रक्रिया समायोजन की एक निरन्तर प्रक्रिया है जिसका प्रत्येक अवस्था में उद्देश्य होता है विकास की बढ़ती हुई क्षमता को प्रदान करना।“

अंग्रेजी अनुवाद

“The process of education is a continuous process of adjustment whose aim at each stage is to provide increasing capacity for development.”

4 – लचीले मष्तिष्क का निर्माण

5 – सामाजिक समायोजन में निपुणता

डीवी के अनुसार –

“शिक्षा का कार्य असहाय प्राणी को सुखी नैतिक एवम् कार्य कुशल बनाना है। “

“The function of education is to help growing of helpness young animal in to a happy moral and efficient human being.” -Dewey

6 – लोकतन्त्रीय व्यवस्था विकास

डीवी का शिक्षा के अंगों पर प्रभाव /Impact of Dewey on educational institutions – डीवी वह व्यक्तित्त्व था जो तत्कालीन व्यवस्था में यथार्थ के सन्निकट खड़ा दीख पड़ता था उसकी वाणी ऐसा ही उद्घोष करती थी लोग उससे प्रभावित हो रहे थे उसका जो दृष्टिकोण शिक्षा के विविध अंगों के प्रति था यहाँ संक्षेप में द्रष्टव्य है।–

पाठ्यक्रम / Syllabus – तत्कालीन पाठ्यक्रम सम्बन्धी विचारों से ये असंतुष्ट थे इनका साफ़ मानना था कि मानव कल्याण हेतु पाठ्यक्रम निर्माण अधोलिखित सिद्धान्तों पर अवलम्बित होने चाहिए –

01 – रूचि का सिद्धान्त / Principle of interest

02 – बालकेन्द्रित शिक्षा का सिद्धान्त /Principle of child centered education

03 – लोच का सिद्धान्त / Principle of elasticity

04 – सक्रियता का सिद्धान्त / Principle of activation

05 – सामाजिक व्यावहारिक अनुभवों का सिद्धान्त /Principle of social practical experiences

06 – उपयोगिता का सिद्धान्त / Principle of utility

07 – सानुबन्धिता का सिद्धान्त / Principle of co-relation

शिक्षण विधि / Teaching method – शिक्षण विधि के क्रियान्वयन के सम्बन्ध में इनका मानना है कि उचित सामाजिक वातावरण परमावश्यक है बिना सामाजिक चेतना की जाग्रति और सक्रिय क्रियाशीलता के विधि सम्यक आयाम ले ही नहीं पाएगी इन्होने कहा –“समस्त शिक्षा व्यक्ति द्वारा जाति की सामाजिक चेतना में भाग लेने से आगे बढ़ती है।””All education proceeds by the participation of the individual in the social consciousness of the race.”

ये किसी भी पूर्व प्रतिपादित सिद्धान्त अथवा ज्ञान को तब तक स्वीकार नहीं करते जब तक वह प्रयोग की कसौटी पर खरा न उतर जाए। ये प्रयोग को अच्छी शिक्षण विधि स्वीकार करते हैं क्योंकि इसमें अवलोकन / observation, क्रिया / action, स्वानुभव / Self experience, तर्क /Reasoning, निर्णयन / Decision making और परीक्षण सभी शामिल होता है।इसी वजह से ये करके सीखना और स्वानुभव द्वारा सीखने पर सर्वाधिक बल देते हैं। इससे प्रभावित होकर ही इनके शिष्य किल पैट्रिक ने प्रोजेक्ट मेथड (Project method) का सृजन किया। शिक्षण विधि के सम्बन्ध में डीवी के ये शब्द बहुत महत्त्वपूर्ण हैं  –     “विधि का तात्पर्य पाठ्यक्रम की उस अवस्था से है जो उसको सर्वाधिक उपयोग के लिए व्यवस्थित करती है। ……… विधि पाठ्य वस्तु के विरुद्ध नहीं होती बल्कि वह तो वांछित परिणामों की ओर पाठ्यवस्तु निर्देशन है।”

“Method means that arrangement of subject matter which makes it most effective in use …… Method is not antithetical to subject matter, it is the effective direction of subject matter to desired results.”-Dewey

शिक्षक / Teacher –  यद्यपि ये भौतिकता से ओतप्रोत थे लेकिन गुरु के सम्मान को अपना पूर्ण समर्थन देते हैं और स्वीकार करते हैं कि वह समाज सुधारक, समाज सेवक, सम्यक सामाजिक वातावरण का निर्माता है और ईश्वर का सच्चा प्रतिनिधि है। डीवी महोदय के अनुसार –

“शिक्षक सदैव परमात्मा का सच्चा पैगम्बर होता है। वह परमात्मा के राज्य में प्रवेश कराने वाला होता है। “

“The teacher is always a prophet of true God. He leads  to the kingdom of God.” 

ये स्वीकार करते हैं कि अध्यापक अपने विद्यार्थी का पथ प्रदर्शक और मित्र होता है इसी भावना के आधार पर जी० एस० पुरी लिखते हैं –

“शिक्षक बालक का मित्र तथा पथ प्रदर्शक है। वह अपने छात्रों को सूचनाएं या ज्ञान प्रदान नहीं करता बल्कि वह उनके लिए ऐसी स्थिति या अवसरों को प्रदान करता है जो इन्हें सीखने में सहायता देती है। “

“The teacher is to be friend and a guide to the child .He is not transmit any information or knowledge to his pupils but he has only arrange the situation and opportunities which may enable them to learn.”

विद्यार्थी / Student – वे विद्यार्थी केन्द्रित शिक्षा व्यवस्था के पक्षधर थे इन्होने अपनी शिक्षा योजना में सब कुछ बाल केन्द्रित रखा है बच्चों की पूर्ण स्वतन्त्रता व चयन की पूरी छूट देते हुए ही अपना आदर्श व मूल्य निर्धारण की पूर्ण स्वतन्त्रता प्रदान करते हैं। बाल केन्द्रित शिक्षा व्यवस्था व बाल केन्द्रित पाठ्यक्रम इसी के उदाहरण हैं।

अनुशासन / Discipline – ये शिक्षा को समाजोन्मुखी बनाकर चारित्रिक दृढ़ नागरिक का निर्माण करना चाहते हैं। ये बालक के सहयोग द्वारा उसमे आज्ञा पालन, अनुशासन, विनम्रता आदि गुणों का विकास करना चाहते हैं सहयोग व रूचि के आधार पर अनुशासन स्थापन चाहते हैं प्रजातन्त्र की सुदृढ़ता हेतु सहयोग, आत्म निर्भरता के पद चिन्ह बनाकर अनुशासन  स्थापन का कार्य होना चाहिए।

डीवी के शिक्षा दर्शन की विशेषताएं /Features of Dewey’s educational philosophy –

01 – ;साध्य के ऊपर साधन की महत्ता                                                                   

02 – सत्य परिवर्तनशील

03 – कर्म प्रधान चिन्तन द्वित्तीयक

04 – समस्या (parikalpanaa,kriya nirdhaaran)

05 – योजना पद्धति 

06 – प्रजातन्त्र सर्वश्रेष्ठ

07 – नैमेत्तिक वाद

08 – प्रयोग पर बल

09 – आगमन प्रमुख ,निगमन द्वित्तीयक

10 – प्रयोजनहीन कला व्यर्थ

11 – धर्म सम्बन्धी धारणा

डीवी के शिक्षा दर्शन की सीमाएं  /Limitations of Dewey’s educational philosophy –

01 – साधनको प्रमुख मानना उचित नहीं

02 – विचार द्वित्तीयक कैसे सम्भव

03 – समस्त सत्य स्थापन की प्रायोगिक जाँच सम्भव नहीं

04 – कला सम्बन्धी विचार अव्यावहारिक

05 -धर्म के प्रति संकुचित दृष्टिकोण

06 -आगमन व निगमन दोनों से सत्य स्थापन

07 -सत्य परिवर्तनशील

08 -परिवर्तन को सत्य मानाने पर लक्ष्य निर्धारण सम्भव नहीं

09 – योजना पद्धति अधिक खर्चीली

            उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचन यह स्पष्ट करता है कि तत्कालीन रूढ़िवादी समाज को प्रगतिशील बनाने में उसका अपूर्व योगदान है उसने भौतिकता की लब्धि को ध्यान में रखकर शिक्षा को नया आयाम प्रदान करने की कोशिश की लेकिन धर्म के प्रति उसका दृष्टिकोण उचित नहीं कहा जा सकता। सत्य के निर्धारण में उसकी सोच पर आज के परिप्रेक्ष्य में पुनः विचार मन्थन इतना आवश्यक है कि इसके बिना भटकाव की स्थिति आ जायेगी। सत्य निरंतर परिवर्तनशील मानने के कारण इन सिद्धांतों में परिवर्तन आना ही है।

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शिक्षा

VARIABILITY / विचलनशीलता

September 21, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

विचलन शीलता

जब केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप का अध्ययन किया जाता है तो अंक वितरण के मध्यमान के बारे में अधिगमित होता है परिणामों में विचलन भी देखने को मिलता है कुछ वितरणों में अंक मध्यमान के निकट और कुछ में दूर तक फैले दीख पड़ते हैं। जब किसी अंक वितरण के विविध अंक अपेक्षाकृत अपने मध्यमान के निकट रहते हैं तो विचलन शीलता (Variability) कम होती है लेकिन जब अंकों का विस्तार मध्यमान से अपेक्षाकृत दूर-दूर तक फैला होता है अर्थात विचलित रहता है तब  अंक वितरण की विचलन शीलता (Variability) अधिक होती है।

lindiquist लिन्डक्यूस्टि महोदय विचलनशीलता के सम्बन्ध कहते हैं –

“Variability is the extent to which the scores tend to scatter or spread above and below the average.”

“विचलनशीलता वह अभिसीमा है, जिसके अन्तर्गत अंक अपने मध्यमान से नीचे व ऊपर की ओर वितरित या विचलित रहते हैं।” 

स्पीगेल महोदय विचलनशीलता के सम्बन्ध में कहते हैं। –

“वह सीमा जहां तक आंकड़े अपने मध्यमान मूल्य के दोनों ओर प्रसार की प्रवृत्ति रखते हैं, आंकड़ों का विचलन कहलाती है।”

अनुवाद “The extent to which data tend to spread on either side of its mean value is called variability of data.”

गैरट  महोदय विचलनशीलता के सम्बन्ध में कहते हैं। –

“विचलनशीलता से तात्पर्य आँकड़ों के वितरण या प्रसार से है यह वितरण आंकड़ों की केन्द्रीय प्रवृत्ति के चारों ओर होता है।”

अनुवाद ” Variability refers to the distribution or spread of data. This distribution is around the central tendency of the data.”

Methods Of Measuring Variability

विचलनशीलता को मापने की विधियाँ –

विचलनशीलता को मापने की विधियों को दो प्रमुख भागों में विभक्त कर सकते हैं।

[A] – निरपेक्ष माप /  Absolute Measures of Dispersion

i  – प्रसार / Range

ii – चतुर्थाङ्क विचलन/ Quartile Deviation

iii – माध्य विचलन/ Mean Deviation

iv – मानक विचलन/ Standard Deviation

[B] – सापेक्ष माप / Relative Measures of Dispersion

i  – प्रसार गुणाँक / Coefficient of Range

ii – चतुर्थक विचलन गुणाँक / Coefficient of Quartile Deviation

iii – माध्य विचलन गुणाँक / Coefficient of Mean Deviation

iv – विचलन गुणाँक / Coefficient of Variance

विचलनशीलता ज्ञात करने के उद्देश्य / Objectives of determining deviation – विचलनशीलता सांख्यिकीय परिक्षेत्र में महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है इससे हम परिणामों की सटीक स्थिति समझने में सक्षम हुए हैं, सुविधाजनक अध्ययन हेतु विचलनशीलता के अधोलिखित उद्देश्य कहे जा सकते हैं –

1 – मध्यमान की विश्वसनीयता हेतु / For reliability of mean – सांख्यिकीय विश्लेषण में विश्वसनीयता एक महत्त्वपूर्ण कारक है यही समूची गणना का दिशा निर्धारक है  अगर किसी श्रंखला में विचलन कम है तो कहा जाता है कि यह मध्यमान अंक वितरण का सही प्रतिनिधित्व करता है इसके विपरीत यदि श्रंखला में अधिक विचलन दृष्टिगत होता है तो इससे आशय है कि यह मध्यमान अंक वितरण का सही  प्रतिनिधित्व करने में अक्षम है। इस प्रकार मध्यमान की विश्वसनीयता पुष्ट होती है।

2 – यथार्थ से निकटता हेतु / To be closer to reality – मध्यमान एक प्रतिनिधिकारी शक्ति है और इसका यथार्थ बोध सत्य के निकट लाता है इसके मापन द्वारा ही यह जाना जाता है कि कौन सा परिणाम सत्य के अधिक निकट है, विचलनशीलता का यह मापन अन्य विविध गणितीय विश्लेषण का आधार बनता है और उन्हें ज्ञात करना सरल,सुबोध व लाभकारी हो जाता है ।

3 – विविध श्रृंखलाओं के तुलनात्मक अध्ययन हेतु / For comparative study of various series –   विचलनशीलता का अध्ययन ही दो या अधिक श्रंखलाओं के तुलनात्मक अध्ययन में सक्षम बनाता है यदि विचलनशीलता उच्च कोटि की है तो यह स्वीकार किया जाता है कि यहां आँकड़ों  का सामंजस्य उच्च नहीं है जबकि विचलनशीलता के निम्न कोटि के होने से आशय है कि श्रृंखला में आँकड़े सही समायोजित हैं।

            कुल मिलकर यह कहा जा सकता है विचलन शीलता के अध्ययन ने सांख्यिकीय विश्लेषण के क्षेत्र में हमें अधिक विश्वसनीय और पुष्ट बनाया है इससे परिणाम यथार्थ के अधिक निकट पहुँचे हैं।

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दर्शन

Dr. Radha Krishnan

September 5, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

डॉ ० राधा कृष्णन

(05/ ०9 /1888 – 17 /04/ 1995)

डॉ ० राधा कृष्णन सम्बन्धी सामान्य विविध तथ्य

अध्ययन स्थल -स्कूली शिक्षा बेल्लोर

                    उच्च शिक्षा –मद्रास

विविध कृतियाँ –

1 – The Ethics of Vedant Philosophy- 1908

2 – The Essential of Philosophy -1911

3 – The Philosophy of Rabindr Nath Tagore – 1918

4 – Indian Philosophy (first) -1923

5 – The Hindu view of Life -1926

6 –  Indian Philosophy (Second) -1927

7 – The Religion we need -1928

8 – East and West -1955

9 – Recovery of Ved – 1956

मृत्यु उपरान्त प्रकाशित ग्रन्थ 

1 – Living with Purpose

2 – True Knowledge

कुल 44 ग्रन्थ और 15 व्याख्यान संग्रह प्रकाशित हैं।

कार्य वृत्त –

मद्रास प्रेसीडेन्सी कॉलेज में प्राध्यापक

आन्ध्र विश्व विद्यालय में दर्शन शास्त्र प्रोफेसर

1929 में ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में – ‘तुलनात्मक धर्म ‘ पर व्याख्यान

1931 में आन्ध्र विश्व विद्यालय के उपकुलपति

1931 में ही महामना मदन मोहन मालवीय ने इन्हे बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय के कुलपति के रूप में  नियुक्त किया।

1948 – 49 में विश्व विद्यालय आयोग के अध्यक्ष

1949 में सोवियत रूस में भारत के राजदूत

1952 – भारत के उप राष्ट्रपति

1962 – 67  भारत के राष्ट्रपति

1967 में भारत रत्न की उपाधि

भाषा, धर्म, दर्शन, साहित्य, समाज राष्ट्र की सेवा में रत सरस्वती पुत्र शिक्षक का देहावसान -17अप्रैल  1995 

शैक्षिक चिन्तन (Educational Thought)

प्रथम पुस्तक शिक्षा से सम्बन्धित – EDUCATION, POLITICS AND WALR -1944

शिक्षा के उद्देश्य –

1 – शारीरिक विकास

2 – मानसिक तथा बौद्धिक विकास

3 – चारित्रिक व नैतिक विकास

4 – यथोचित व्यक्तित्व निर्माण

5 – राष्ट्रवाद पोषण – गोखले, तिलक, गाँधी, विवेकानन्द

6 – विश्व कल्याण

7 – आध्यात्मिक उत्कर्ष

शिक्षा के अंगों पर आपका दृष्टिकोण 

1 – पाठ्यचर्या

2 – शिक्षण विधि

3 – अध्यापक

4 – शिक्षार्थी

5 – अनुशासन

विविध

1 -स्त्री शिक्षा

2 – व्यावसायिक शिक्षा

3 – जन शिक्षा

विद्यालय – नीर क्षीर विवेक जाग्रति स्थल

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वाह जिन्दगी !

उठ जाग मुसाफिर भोर भई ………

September 2, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

प्रातः काल उठने से प्रकृति के अनुपम सौन्दर्य के दर्शन होते हैं जो लोग प्रकृति की गोद में निवास कर रहे हैं वे प्रकृति की प्रातः कालीन सुषमा की जादुई शक्ति को भलीभाँति अनुभव कर चुके हैं। प्रातः काल में पक्षी कलरव, पुष्प,कली, मञ्जरियाँ, हरीतिमा, प्राची दिशा से मार्तण्ड भगवन का उद्भव,उनकी सुखद रश्मियाँ हमारे शरीर के रोम को पुलकित कर देती हैं। प्रातः कालीन मन्द बयार जीवन का सुखद आधार है। सचमुच प्रातःकालीन प्रदत्त शक्तियों को पैसे द्वारा नहीं खरीदा जा सकता। भोर के अनुपम सौन्दर्य के साथ प्राणवायु की गुणवत्ता का स्तर भी इस समय सर्व श्रेष्ठ होता है। सभी इन लाभों को अर्जित करना भी चाहते हैं लेकिन विविध कारक इसमें बाधा (Barrier) का कार्य करते हैं।

प्रातः कालीन जागरण के समक्ष समस्याएं (Problems facing morning awakening) –

सुबह उठने में बहुत से लोग दिक्कत का अनुभव करते हैं और इन कारणों को अव्यावहारिक नहीं कहा जा सकता। आइये इन पर क्रमशः विचार करते हैं –

01 – देर रात्रि तक जागरण / Staying awake till late night

02 – रात्रि कालीन सेवाएं / Night Services

03 – घर से कार्य / Work from home

04 – रात्रि जागरण आदत / Night waking habit

05 – घरेलू वातावरण / home environment

06 – आलस्य / Laziness                                                                    

07 – तथाकथित आधुनिकता / So-called modernity

08 – अनुपयुक्त गरिष्ठ भोजन व पेय / Inappropriate heavy food and drink

09 – स्वास्थय सम्बन्धी परेशानी / Health problems

10 – शिक्षण संस्थानों की संस्कृति पोषण से विरक्ति /

       Disinterest in nurturing the culture of educational institutions.

प्रातः जागरण समस्या समाधान –

किसी विद्वतजन ने कितना सुन्दर कहा है – ‘मन के हारे हार है मन के जीते जीत’। यदि हम अपने मानस को तैयार करें तो अपने शरीर का रिमोट अपने हाथ में आ जाएगा जिसे हम आवश्यकतानुसार निर्देशित कर सकेंगे।स्वामी अमर नाथ जी ने अपने प्रवचन में स्पष्ट रूप से कहा –

कोई मुश्किल नहीं ऐसी है जो आसान न हो।

आदमी वह है जो मुसीबत में परेशान न हो।।

मानस को साध इन व्यवस्थाओं को करने से इस समस्या का भी समाधान सम्भव हो सकेगा।

01 – समय व्यवस्थापन / time management

02 – जल्दी सोयें जल्दी जागें  / Early to bed early to rise

03 – अवकाश सदुपयोग / Utilization of leisure time

04 – आलस्य त्याग / Give up laziness

05 – शारीरिक स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान / Special attention to physical health

06 – रात्रि कालीन सेवा समायोजन / Night service adjustment

07 – जहाँ चाह वहाँ राह / where there is a will there is a way

08 – शिक्षण संस्थानों की जागरूकता / Awareness of educational institutions

09 – माता, पिता, अध्यापकों का सम्यक आदर्श / Proper role model of mother, father, teachers

10 – स्वस्थ आदत निर्माण / Healthy habit formation

प्रातः जागरण के लाभ /

Benefits of waking up in the morning –

कुछ तथ्य निर्विवाद सत्य है और प्रातः जागरण के लाभों से इन्कार नहीं किया जा सकता। केवल अपने देश में ही नहीं बल्कि सारे विश्व में प्रातः भ्रमण, प्रातः प्राणायाम, व्यायाम आदि को स्वास्थय हित में स्वीकार किया गया और इस लिए भोर में जागरण परमावश्यक है। इसके लाभों को इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है।    

01 – समय नियोजन में सरलता / Ease of time planning

02 – पूर्ण नींद की उचित व्यवस्था / Proper sleep arrangement

03 – व्यायाम, प्राणायाम, भ्रमण की सम्यक व्यवस्था /

       Proper arrangements for Exercise, Pranayama, Travel

04 – आँखों की सम्यक देखभाल / Proper eye care

05 – जीवन की औसत आयु में वृद्धि / Increase in average age of life

06 – सम्पूर्ण स्वस्थ जीवन हेतु आवश्यक / Necessary for a completely healthy life

07 – आध्यात्मिक उच्चता सम्भव / Spiritual heights possible

08 – सांस्कृतिक विरासत संरक्षण / Cultural heritage protection

उक्त सम्पूर्ण चिन्तन मन्थन हमें गम्भीरता से सचेत करता है विकल्पों में निर्विकल्प होकर हमें प्रातः उठकर उन्नति की नई पट कथा लिखनी होगी। यह प्रातः जागरण, जीवन जागरण का आधार बन सकेगा। भारतीय चिन्तन, मंथन, विश्लेषण, बलिष्ठ होकर विश्व को सम्यक दिशा दे सकेगा। अवधी भाषा में श्रद्धेय वंशीधर शुक्ल ने बहुत सुन्दर लिखा है –

उठ जाग मुसाफिर भोर भई,

अब रैन कहाँ जो सोवत है।

जो सोवत है, सो खोवत है,

जो जागत है सोई पावत है।।

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