बसंत पंचमी ऊर्जा युक्त दिवस है ,भारतीय इसे पूर्ण उल्लास के साथ मनाते हैं इस बार यह 02/02/2025 दिन रविवार को 11. बजकर 53 मिनट से लग रही है जो 03/02/2025 दिन सोमवार को प्रातः 9 बजकर 36 मिनट तक रहेगी। बसन्त पञ्चमी पूर्वान्ह कालिक व्यापिनी तिथि को मनाई जाती है। काशी के विद्वान् उदयातिथि व पूर्वान्ह कालिक व्यापिनी तिथि के हिसाब से इसे 03/02/2025 दिन सोमवार शास्त्र सम्मत स्वीकार कर रहे हैं। वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य प्रो ० चन्द्र मौलि उपाध्याय ने बताया कि ऋषिकेश पञ्चाङ्ग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का विश्व पञ्चाङ्ग या अन्य पारम्परिक पञ्चाङ्ग सबने बसन्त पञ्चमी का पर्व 03/02/2025 दिन सोमवारको ही स्वीकार किया है।
सरस्वती पूजा का प्रारम्भ –
माँ शारदे का बसन्त पञ्चमी के पूजन से सम्बन्धित बहुत सी कहानियाँ वर्णित की जाती हैं। कहा जाता है कि माँ शारदे का कृपा पात्र होने पर जिह्वा पर सरस्वती विराजमान हो जाती है और व्यक्ति नाम, यश, मान, सम्मान , विशिष्ट कीर्ति का अधिकारी हो जाता है। सर्व प्रथम माँ शारदे के पूजन के सन्दर्भ में ब्रह्म वैवर्त पुराण के प्रकृति खण्ड में सोलह कला सम्पूर्ण भगवान श्री कृष्ण चन्द्र जी द्वारा पूजित होने का विवरण मिलता है। बसन्त पञ्चमीको इस पूजा के विधान के बारे में यह सर्व स्वीकृत है कि माँ को बसन्ती रंग अत्यन्त प्रिय हैं। इसीलिए योगेश्वर कृष्ण की वैजयन्ती माला, मुकुट, और पीताम्बरी इससे प्रभावित है। श्री कृष्ण भगवान द्वारा सरस्वती को यह वरदान प्रदत्त किया गया कि प्रत्येक माघ शुक्ल की पञ्चमी के दिन ब्रह्माण्ड में तुम्हारा पूजन होगा। विद्यारम्भ के समय प्रेम, श्रद्धा गौरव के साथ पूर्ण आस्था से तुम्हारी पूजा होगी। उन्होंने इस तिथि हेतु कहा। –
“मेरे वर के प्रभाव से आज से लेकर प्रलय तक प्रत्येक कल्प में मनुष्य, देवता, मुनिगण, योगी, नाग, गन्धर्व और राक्षस सभी बड़ी भक्ति के साथ सोलह उपचारों द्वारा तुम्हारी पूजा करेंगे।”
कहा जाता है कि तभी से माघ शुक्ल पञ्चमी के दिन बसन्त पञ्चमी मनाते हैं और सरस्वती पूजन किया जाता है।
धर्म आधारित मान्यता –
यह दिन हाथों में पुस्तक, वीणा, माला, के साथ श्वेत कमल पर विराजित होकर वीणा वादिनी के प्रागट्य का है बसन्त पञ्चमी के इस विशिष्ट दिन से ही बसन्त ऋतु की प्रभावोत्पादकता देखने को मिलती है शास्त्रों में इनके प्रसन्न होने पर देवी काली और माँ लक्ष्मी की प्रसन्नता का भी विवरण मिलता है विधि विधान के साथ भी शारदे की उपासना बसन्त पञ्चमी को होती है और इसके 40 दिनों के बाद होली पर्व प्रारम्भ होता है।बसन्त को ऋतुराज अर्थात ऋतुओं का राजा भी कहा जाता है।
धार्मिक मान्यता यह भी है कि ये सङ्गीत, कला और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी है। इसी कारण इस शुभ दिन सरस्वती पूजा विशेष रूप से की जाती है।
संस्थानों में सरस्वती पूजा –
इस विशिष्ट दिन को घरों में प्रतिष्ठानों में, मंदिरों में, शिक्षा के मन्दिर अर्थात विद्यालयों में माँ सरस्वती का पूजा अनुष्ठान होता है। ज्ञान, कला और सङ्गीत की देवी की आराधना विधि विधान से इन संस्थाओं में करने के पीछे कृपा पात्र बनने की कामना भी है। बसन्त पञ्चमी का यह पर्व माघ माह के शुक्ल पक्ष की पञ्चमी तिथि को मनाकर जीवन में ऐश्वर्य, ज्ञान, समृद्धि और सकारात्मकता से जुड़ने का संस्थान को विशेष अवसर मिलता है। भौतिकता की अन्धी दौड़ में यह दिन आध्यात्मिक चिन्तन को आधार प्रदान करता है।
सरस्वती पूजन की वैयक्तिक विधि –
यथा योग्य पूजन सामग्री एकत्रित करने के पश्चात इस भाँति पूजन करना है –
01 – उदया तिथि में ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें।
02 – पीत वस्त्र धारण करें इसे शुभ माना गया है
03 – भगवान गणेश व माँ शारदे वीणा वादिनी का चित्र या मूर्ति स्थापित करें।
04 – पद्मासन में बैठकर माँ का ध्यान करें। मानसिक रूप से मौन के साथ माँ का ध्यान किया जा सकता है तथा इन शब्दों से माँ के विशद रूप का ध्यान किया जा सकता है।
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1
इसका आशय है कि जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली मां सरस्वती हमारी रक्षा करें।
05 – हल्दी, पीले मीठे चावल, पीले फूल,फल लड्डू आदि का भोग लगाएं।
06 – अन्त में गणेशजी व वीणा वादिनी की आरती कर प्रसाद वितरण करें।
पूजा, उपासना की उक्त विधि अधिक लोगों द्वारा इस तरीके को अपनाने के कारण बताई है वैसे आप अपने मानस के आधार पर किसी भी ढंग से माँ शारदे विद्या की देवी की उपासना कर सकते हैं।
माङ्गलिक कार्यों हेतु विशेष शुभ दिन –
समस्त माङ्गलिक कार्यों हेतु इसे विशेष दिन के रूप में मान्यता प्राप्त है यह दिन इतना शुभ मन जाता है कि गृह प्रवेश, मुण्डन, विवाह,नव प्रतिष्ठान प्रारम्भ व किसी भी नवीन कार्य के सम्पादन हेतु इस दिवस की प्रतीक्षा की जाती है।
ऐसा भी विदित है कि सूफी सन्तों ने इसकी शुभता को स्वीकार किया व चिश्ती सम्प्रदाय ने भी इसे मनाने का निर्णय किया। प्रसिद्द विचारक लोचन सिंह बख्शी के अनुसार –
“बसन्त पंचमी एक हिन्दू त्यौहार है जिसे १२वीं शताब्दी में कुछ भारतीय सूफियों द्वारा दिल्ली में निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह पर स्थित मुस्लिम सूफी सन्त की कब्र पर मनाने के लिए अपनाया गया और तबसे यह चिश्ती सम्प्रदाय द्वारा मनाया जाता है।“
उक्त आलोक में कहा जा सकता है कि इस शुभ दिन को सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक मान्यता प्राप्त है। यह प्रकृति की कायाकल्प के कारण भी शुभता का प्रभावी सन्देश देने में समर्थ है इस दिन पञ्चाङ्ग देखने,दिखाने की आवश्यकता नहीं होती पूर्ण समयावधि ही शुभ है।
दान सम्बन्धी धारणा –
इस दिन की दान सम्बन्धी धारणा भी बहुत व्यावहारिक है। लेखक, कवि, दार्शनिक, कहानीकार, साहित्यकार, शिक्षार्थी, शब्द शिल्पी और विविध सृजन से जुड़े लोगों का यह विशिष्ट दिन है। इसीलिये इनसे जुड़ी वस्तुओं यथा पुस्तक, कलम, पेन्सिल, स्याही,कागज़, चश्मा, आसन आदि का दान पात्रता देखकर सही व्यक्ति को दिया जाना चाहिए जरूरतमन्दों नोटबुक, विद्यादान में सहयोग की व्यवस्था बनाई जा सकती है।
बसन्त पंचमी व भोजन –
पीले मीठे पदार्थ और सात्विक भोजन गृहण करने का विधान है सात्विक भोजन करते समय गरिष्ठ भोजन गृहण करने से भी बचना चाहिए तामसिक भोज्य पदार्थों का भूलकर भी सेवन नहीं करना चाहिए यहाँ तककि लहसुन,प्याज का भी प्रयोग इस दिन वर्जित है। केवल उन पदार्थों का सेवन करें जिससे अधिगम में व्यवधान न हो। केसर गुड़ पीले चावल का इस दिन विशेष महत्त्व है। वास्तव में बसन्ती रंग सुख, समृद्धि, और ऊर्जा का प्रतीक मन जाता है रंग का पुष्प अर्पित करने के पीछे भी यही मान्यता कार्य करती है। फसल पकने ,हलके जायकेदार भोजन और खुशी का प्रगटन लोग पतङ्ग उड़ाकर करते हैं।
बसन्त पंचमी व इसका महात्मय –
इसके महात्मय इतना अधिक महत्वपूर्ण है कि विद्यारम्भ बिना सरस्वती पूजा के संपन्न नहीं होता। कहा जाता है कि जब व्यास जी ने बाल्मीकि जी से पुराण सूत्र के बारे में पूछा तो वे बताने में असमर्थ रहे इस स्थिति में व्यासजी ने जगदम्बा सरस्वती की स्तुति की और इनकी विशेष कृपा से बाल्मीकि जी को ज्ञान हुआ तत्पश्चात इन्होने सिद्धान्त को प्रतिपादित किया। माँ शारदे के वर से व्यासजी कवीश्वर बने व उन्होंने पुराणों की रचना की। माँ शारदे की उपासना से ही इन्द्र शब्द शास्त्र व उसका अर्थ समझने में समर्थ हो सके। ज्ञान से शब्द बोध होता है और अनुभव से उसका आशय स्पष्ट होता है। विद्या मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास हेतु है शारीरिक विकास हेतु भोजन व मानसिक उत्थान हेतु विद्या आवश्यक है। इस ज्ञान की प्राप्ति हेतु ज्ञान की देवी माँ सरस्वती की उपासना श्रेयस्कर है और बसंत पंचमी इस हेतु श्रेष्ठ दिन।