छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं
बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।।
यहाँ इस शहर में बहुत मॉल नज़र आते हैं
कृत्रिमता युक्त चेहरे सौम्य न लग पाते हैं,
खो गयीं निमकौरियाँ पावन सी अमराइयाँ
पसीने से सरोबार कई चेहरे याद आते हैं।
छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं
बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।1।
खेत की पगडण्डियाँ फिर हमें बुलाते हैं
नंगे पैर चलने की अनुभूतियाँ जगाते हैं
वर्षा की रिमझिम व मिट्टी की सुगन्धियाँ
आज भी हम को मौन रह कर बुलाते हैं।
छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं
बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।2
वो पुराने मञ्जर सुख -दुःख याद दिलाते हैं ,
भूलने की कोशिश की पर भुला न पाते हैं,
वो मेले, वो प्यारे दंगल और वो कबड्डियाँ
आज भी जेहन को खुशनुमा पल लौटाते हैं।
छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं
बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।3।
अब ना किसी मैदान में हम पतँग उड़ाते हैं
गुल्ली डण्डा, आइस पाइस कल की बातें हैं
खो गया सब कुछ वो चौपाल की कहानियाँ
टॉकीज में बैठ भी वो सब दिन याद आते हैं
छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं
बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।4।
वो रैले, वो झमेले, वो तबेले याद आते हैं
वो सरसों के पीत पुष्प क्यों हमें बुलाते हैं
नहीं भूल पाते चूल्हे चक्की वाली रोटियाँ
ओवन, ए० सी०, फ्रिज कत्तई न भाते हैं।
छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं
बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।5।
धीरे – धीरे हम सब यूँ ही बड़े हुए जाते हैं,
वो डालें, वो झूले, नहीं अब हमें बुलाते हैं
वो बरगद, पीपल, शीशम की परछाइयाँ
वो वृक्ष अपने साथी थे बहुत याद आते हैं।
छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं
बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।6।
वो लोरियाँ वो सावन गीत झुरझुरी जगाते हैं,
निःस्वार्थ उपजे अनमोल रिश्ते याद आते हैं,
किसी घर में घुस खाई हुई प्यारी चपातियाँ
उस ममता समता से अब अलग हुए जाते हैं।
छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं
बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।7।
गेंदतड़ी चोरसिपाही सब खेल याद आते हैं,
बगिया में लबासादिया हम भुला न पाते हैं
वो नहर में तैरना और भोली सी बदमाशियाँ
खो गए वो सारे दिन अब साये नज़र आते हैं
छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं
बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।8।
बचपन मोबाइल में व्यस्त अब हम पाते हैं,
दौड़ धूप के खेल मोबाइल में खेल पाते है,
बहुत कुछ छूटता इनसे आती हैं बीमारियाँ,
पसीने की कहानियाँ ए ० सी ० में सुनाते हैं।
छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं
बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।9।
आज भी कुछ फूल पत्ते किताबों में पाते हैं
ये सब किस्से, यादों की बारात ले आते हैं,
आज भी याद हैं कुछ दीवाने व दीवानियाँ,
पत्नी के गुस्से के कारण हम बाँट न पाते हैं।
छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं
बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।10।
बचपन की किताबों की यूँ बहुत सी बातें हैं
वो सारी यादगार आज भी बाँट नहीं पाते हैं
बुजुर्ग सुनाते थे निज बचपन की कहानियाँ
हम नहीं कह पाते, अन्तर दिल जलाते हैं।
छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं
बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।11।
आजकल बिन बात के भी हम मुस्कुराते हैं,
बचपन के ठहाके मगर बहुत याद आते हैं,
वो कञ्चे, रस भरी वो सब्जी वाले, वालियाँ
जिन्हें हम भूलना चाहें वो जमकर याद आते हैं।
छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं
बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।12।