जिसमें हो सुकून वही राह ढूँढते हैं,
जो भी हो पसन्द वो खुशबू सूँघते हैं,
सम्बन्धों की खैर तो छोड़िए ज़नाब,
वो हमें औ हम उन्हें कहाँ पूछते हैं ?
जिसमें हो सुकून वही राह ढूँढते हैं,
जो भी हो पसन्द वो खुशबू सूँघते हैं,
सम्बन्धों की खैर तो छोड़िए ज़नाब,
वो हमें औ हम उन्हें कहाँ पूछते हैं ?
प्रकाश का पावन- पर्व आया है ,
रंगोली से आँगन, सजाया है,
नफरतों के जलने से हुई रोशनी
उस रोशनी में प्रेम से नहाया है।
तम का यौवनदर्प तोड़ मुस्काया है,
अमावस को पूनम सा चमकाया है,
अँधेरा कायम रहने की सोच पर,
नव-चिन्तन का बज्राघात आया है।
रजकणों ने मिलके दिया बनाया है,
जीवन-बाती तेल यहाँ की माया है,
सम्बन्धों के खेलों ने भरमाया है,
ऐसा लगता नया-उजाला आया है।
क्या मन ने तम का किया सफाया है,
या तो मन पर अन्धकार का साया है,
कर लो पावन सुन्दर- मौका आया है,
भरलो प्रकाश अवसर ने कहवाया है।
साफ हुआ घर मनका नम्बरआया है,
पूर्व मलिनताओं की लगती छाया है ,
तजो कट्टरता पावस अवसर आया है,
नव- दीवाली, नव -सन्देशा लाया है।
त्यौहारों का गुच्छ बना कर लाया है,
लक्ष्मी स्वागत करो, ये कहलाया है,
मन पर पड़े कहीं से काली छाया है,
आशा दीप चेतन ज्योति लेआया है।
चेतनता का महा-दीप है, ईश्वर ही,
हर चेतन ने प्रकाश वहीं से पाया है,
माया के भ्रम ने हमको भरमाया है,
निज से वार्तालाप नहीं हो पाया है।
जज्बातों का नया सा रेला आया है ,
भारत के हर गाँव में मेला लाया है,
जागो भारत, मौसम भी हर्षाया है,
नवजगमग ने अन्तर्मन हुलसाया है।
सिर्फ रैली निकालने से नहीं होगा,
किया है काम तो खुद ही बोलेगा ,
तुम समाज तोड़ने का खेल खेलोगे,
इकदिन सिर पकड़ कर रो लोगे।
सच्चाई परतों से बाहर आती है ,
झूठ की बदबू भी सूँघी जाती है।
आवाम सरलता में मारी जाती है,
पता है कि,गलती तुमने क्या की है।
कब तलक उसे यूँ ही भरमाओगे,
याद रखो कि किए की सजा पाओगे।
धन- दौलत जो भी तुम बनाओगे,
यहाँ से कुछ नही साथ ले जा पाओगे।
कर्म -फल ही साथ तेरे जाएंगे,
आँसू रख लो तुम्हारे काम आएंगे।
पछता,पछताकर जब तुम इधर देखोगे,
अपने दुष्कृत्यों के काले मञ्जर देखोगे।
करोगे याद और हर बात याद आएगी,
तुम्हारे दुष्कर्मों से कौम भी शर्माएगी ,
काश ये अपने वंश में न पैदा होता ,
या कि मर जाता जब ही ये पैदा होता।
इसलिए काम नेक करने का ठेका ले लो,
बुरे कर्मों से बुराई से तौबा कर लो ,
अच्छे कर्मों की गर दौलत तुम कमा लोगे,
स्वर्णिम अक्षर में इतिहास में अमर होगे।
आज का आदमी जो जीवन जीता है,
क्यों लगता है कि वो खोखला सा है।
वो हँसी, वो ठिठोली आज गुम सी है,
आज जिन्दगी ठहरी हुई नदी सी है।
नदी ठहरती है तोअस्तित्व खो देती है,
विगत को स्मरण कर रो देती है।
फोटो से वो आनन्द नहीं मिलता है ,
नहाने का झरने में जब वो झरता है।
वाद्य यंत्रों के शोर में खुशी ढूंढते हैं,
गीत जो हैं नहीं उनमें संगीत ढूंढते हैं।
पूँजी वाले सम्बन्धों में मीत ढूंढते हैं,
दिखावटी दुनियाँ, सच्ची प्रीत ढूंढते हैं,
कह कर नहीं कर के दिखाना होगा,
नागरिकों को खुद को सुधारना होगा।
तब सच्चाई का वह आयाम आएगा,
उदासी हारेगी और मानव मुस्कुराएगा।
उलझन में घिर गया हूँ, निदान चाहता हूँ।
घनघोर समस्या का, समाधान चाहता हूँ।
गन्दगी रोके वो, पायदान चाहता हूँ।
देश को समझे, वो कद्रदान चाहता हूँ।
साफ़-सुथरा छोटा सा मकान चाहता हूँ।
बच्चे पढ़ें सचमुच, वो मुकाम चाहता हूँ।
आवश्यक मूल-भूत ही सामान चाहता हूँ।
सादा-जीवन, उच्च – विचार चाहता हूँ।
खूब श्रम करके, थकान चाहता हूँ।
कभी- कभी घर में मेहमान चाहता हूँ।
नेक- नीयत लगन औ ईमान चाहता हूँ।
इन्सानों की सूरत में इन्सान चाहता हूँ।
माता -पिता सबका, सम्मान चाहता हूँ।
ऊर्जा की सकारात्मक पहचान चाहता हूँ।
सशक्त हो, समृद्ध हो, तेजस्वी हो भारत,
भारत की विश्व-भर में पहचान चाहता हूँ।
जिन्दादिली से जिन्दगी के काम चाहता हूँ।
भारत में गुणवत्ता का सम्मान चाहता हूँ।
युवाभारत में युवाओं को मिले जो रोजगार
आराम है हराम, यह गुणगान चाहता हूँ।
अधिकार नहीं कर्त्तव्य निर्वाहन चाहता हूँ।
अनुशासन का देश में शासन चाहता हूँ।
भारतीयता का देश में आवाहनचाहता हूँ।
रावण को नही चाहता सद्ज्ञान चाहता हूँ।
वो सियासत के बाज हैं और हम तो बस शिकार हैं,
वो खून से हैं रंगे हुए और हम तो बहती धार हैं,
मौत का कारण हैं वो, हम जिन्दगी की किताब हैं,
वो जीत का प्रतीक हैं और हम तो इन्कलाब हैं।
शोधकर्त्ता के हाथ में परिकल्पना एक ऐसा साधन है जो शोध का दिशा निर्धारक व प्रणेता है। वास्तव में परिकल्पना निम्न कार्यों को स्वयं में समाहित कराती है –
परिकल्पना का महत्वपूर्ण कार्य शोधकर्त्ता को उचित दिशा निर्देश उपलब्ध कराना है इससे संदिग्धता व भ्रम की स्तिथि समाप्त हो जाती है एवं सम्यक तथ्यों व आंकड़ों के संकलन को सही दिशा मिल जाती है जिसकी तत्सम्बन्धी शोध हेतु आवश्यकता होती है।
परिकल्पना द्वारा यह स्पष्ट हो जाता है कि कार्य हेतु उपयुक्त तरीका व उत्तम क्रियाविधि क्या होनी चाहिए इससे अनावश्यक भटकाव नहीं होता।
इससे समस्या सम्बन्धी तथ्यों का चयन सरल हो जाता है क्योंकि समस्या का दायरा तय हो जाने से तत्सम्बन्धी आंकड़ों का संग्रहण निश्चित हो जाता है चरों का निर्धारण हो जाने से शोध को सम्यक दिशा प्राप्त हो जाती है।
शोध निष्कर्षों का मूल्यांकन विश्वसनीयता व वैद्यता की कसौटी पर कसा जाता है यह विश्वसनीयता व वैद्यता बार बार मुल्यांकनोपरांत सुनिश्चित होता है अतः शोध कार्य में पुनरावृत्ति सम्भव है जोकि परिकल्पना के अभाव में सम्भव नहीं है।
परिकल्पनाओं की स्थिति के विश्लेषणोपरान्त उसकी स्वीकृति या अस्वीकृति तय होती है जो समस्या के चयन,परिकल्पना उद्देश्य निर्धारण ,उपकरण चयन समंक संग्रहण व विश्लेषण की वैज्ञानिक प्रक्रिया से गुजरती है इस प्रकार प्राप्त तथ्यात्मक परिणाम के विवेचन से शोध सार प्राप्त करते हैं जो परिकल्पना अभाव में संभव नहीं।
चूंकि इससे ज्ञान को दिशा मिलाती है इसलिए नवीन ज्ञान तक पहुँचना व उससे जुड़ना सरल हो जाता है जिसे स्वीकारते हुए फ्रेड एन करलिंगर कहते हैं –
अनुसंधान कार्यों की संरचना समझना और समझाने योग्य बनाना व सम्यक व्याख्या में परिकल्पना महत्वपूर्ण योग है जैसा कि चैपलिन महोदय ने कहा –
परिकल्पना जहां पूर्व कल्पित एवं विचारपूर्ण कथ्य होता है वहीं भविष्य के शोध हेतु निर्देशन कार्य भी करता है सी0 वी 0 गुड तथा डी 0 ई 0 स्केट्स के शब्दों से स्पष्ट है।
परिकल्पना एक महत्वपूर्ण कारक इसलिए भी है क्योंकि इससे आनुभविक या प्रायोगिक परिकल्पना के सत्यापन में मदद मिलती है जैसा कि एम वर्मा के शब्दों से स्पष्ट है :-
अनुसन्धान परिमाणोन्मुख होता है परिणामों को उचित दिशा व विश्वसनीय बनाने में परिकल्पना के स्तर का विशिष्ट योगदान होता है अनुसन्धानकर्त्ता अपनी समझ विवेक आवश्यकता व उद्देश्य के आधार पर परिकल्पना बनाता है लेकिन अच्छी परिकल्पना निर्माण शोध को निश्चित ही सम्यक दिशाबोध कराता है एक अच्छी परिकल्पना में निम्न गुणों का समावेशन देखने को मिलता है :-
एक अच्छी परिकल्पना शोध समस्या को उपयुक्त हल सुझाती है एक समस्या के निदान हेतु विभिन्न उपकल्पनाएँ हो सकती हैंपर समस्या की विभिन्न विमाओं के अध्ययनोपरान्त उपयुक्त हल सुझाने वाली परिकल्पना का चयन करना ही उत्तम होगा।
समस्या में प्रयुक्त चरों के बीच सम्बन्धों को स्पष्ट करने में परिकल्पना को सक्षम होना चाहिए, बोधगम्य परिकल्पना के होने पर शोध को उपयुक्त गरिमा स्तर प्राप्त होगा।
परिकल्पना की सरलता प्रयोग को सरल बना देती है इससे उसकी वैधता सरल मापनीय बन जाती है। भ्रम का अन्देशा नहीं रहता इसलिए सुगम बोधगम्य ,स्पष्ट परिकल्पना अपने आप में विशिष्ट होती है।
परीक्षणीय होना परिकल्पना की महत्वपूर्ण विशेषता है परिकल्पना के रूप में मापनीय कथन का प्रयोग होने से आनुभविक परीक्षण भी सम्भव हो जाता है।
यह परिकल्पना की महत्वपूर्ण विशिष्टता है एक अच्छी परिकल्पना विशिष्ट क्षेत्र स्पष्ट निर्देशन व वर्णन में सक्षम होती है अत्याधिक विस्तृत परिक्षेत्र वाली परिकल्पना का परीक्षण दुष्कर हो जाता है।
एक अच्छी परिकल्पना को अधिक व्यय साध्य न होकर मितव्ययी होना चाहिए यह अभाव में प्रभाव दिखाने वाली लघुस्पष्ट व बोधगम्य हो।
एक अच्छी परिकल्पना तार्किक रूप से बोध गम्यताव व्यापकता का गुण स्वयं में सन्निहित रखती है इसके द्वारा सभी महत्वपूर्ण पक्षों के समावेशन का प्रतिनिधित्व तार्किक रूप से दीख पड़ता है।
एक अच्छी परिकल्पना समय के साथ भी अच्छा सामञ्जस्य रखती है यह उस समय तक ज्ञात तथ्यों सिद्धान्तों नियमों से संगतता रखती है और निगमनात्मक चिन्तन पर आधारित होती है।
अच्छी परिकल्पना को बनाना श्रम साध्य है उक्त विशेषता युक्त परिकल्पनाएं अच्छी परिकल्पना की श्रेणी में रखी जा सकती हैं।
बलिदानों की मिट्टी से रज-कण चन्दन हो जाता है,
शीश गिरे जब सीमा पर माँ का वन्दन हो जाता है,
चढ़े जभी अरिछाती पर,अरिघर क्रन्दन हो जाता है,
वरण हमें जय करती है,माँ अभिनन्दन हो जाता है।
सर्व राक्षस सङ्घाना राक्षसा ये च पूर्वजाः। अलमेकोअपि नाशाय वीरो वालिसुतः कपिः।।
उक्त पंक्तियों में गीता प्रेस ,गोरख पुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण ,द्वितीय खण्ड के एकोनषष्टितमः सर्गः के 14वें श्लोक में हनुमान जी की परिकल्पना है कि :- सम्पूर्ण राक्षसों व उनके पूर्वजों को भी यमलोक पहुँचाने हेतु वाली के वीर पुत्र कपिश्रेष्ठ अङ्गद ही पर्याप्त हैं।
वास्तव में परिकल्पना अन्तिम उत्तर न होकर सुझाया गया कथन या प्रस्ताव ही है।