Dissertation या लघु शोध लगभग एम ० एड ० स्तर पर सभी जगह
चाहे वहाँ सैमेस्टर प्रणाली लागू हो या वार्षिक परीक्षा हो, पाठ्यक्रम का हिस्सा है। विविध विषयों में परा
स्नातक स्तर पर लघु शोध (Dissertation)
के साथ ही अस्तित्त्व में है। – लघुशोध और
मौखिक परीक्षा (Dissertation
and Viva Voce)
आज मुख्यतः इसके प्रभावी ढंग से निष्पादन के
विषय में कुछ तथ्य प्रस्तुत किये जाएंगे। यह लघु शोध ही अन्ततः हमारे शोध ग्रन्थ
को भी दिशा प्रदान करता है।
लघु शोध आधारित मौखिक परीक्षा को प्रभावी बनाने
वाले कारक
Factors that make
Dissertation Based Viva Effective
सम्पूर्ण रूप में Synopsis(रूप
रेखा ), Dissertation(लघु शोध), Research Summary (शोध सार) मिलकर शोध परिक्षेत्र को जाज्वल्यमान बनाते हैं। यही लघु
शोध आगे शोध ग्रन्थ लिखने में हमारी मदद करता है और इसीलिए इसकी मौखिक परीक्षा एक
वृहद दृष्टिकोण लिए होती है। यही शोध कार्य देश की प्रगति का आधार बनाते हैं।
लघुशोध आधारित मौखिक परीक्षा के प्रश्न लघुशोध पर आधारित होते हैं और इन्हे इन
बिन्दुओं का आधार लेकर सरलता से साधा जा सकता है –
1 – सामान्य प्रश्न (General question)
2 – समस्या कथन आधारित प्रश्न (Problem statement based questions)
3 – शोध के प्रकार (Types of research)
4 – चर, परिकल्पना, उद्देश्य आधारित तथ्य (Variables, Hypotheses, Objective
Based Facts)
5 – शोध उपकरण व परिकलन आधारित प्रश्न (Research Tools & Calculation
Based Questions)
6 – सम्बन्धित साहित्य के अध्ययन पर प्रश्न (Question on study of related
literature)
7 – शिक्षा परिक्षेत्र में आपके शोध का लाभ (Benefits of your research in the
field of education)
8 – ऐसे शोध के अभाव से देश को नुक्सान (Lack of such research damages the
country)
वर्तमान समय में परास्नातक स्तर पर लघु शोध के
स्तर में गिरावट देखने को मिली है बहुत कम विद्यार्थी सही ढंग से कार्य कर
पा रहे हैं। कारणों का एक मिथ्या पहाड़ है।
सुधार हेतु विद्यार्थी, प्राध्यापक, अभिभावक, उच्च शिक्षा
सभी को इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। शोधार्थियों की ओर देश की आशाभरी
नज़रें हैं। ईमानदारी से कार्य करें, मौखिक
परीक्षा स्वतः अच्छी व गरिमामयी होगी।
शिक्षण प्रशिक्षण का एक महत्त्वपूर्ण अंग है मौखिक परीक्षा अर्थात VIVA .यद्यपि इसके लिए अंक निर्धारित हैं लेकिन यह ही
भविष्य के साक्षात्कार [Interview]
का मुख्य आधार है जिस स्तर का VIVA होता है उस स्तर पर आपका कितना अधिकार है और आप
सर्वहित में इसका भविष्य में कैसे प्रयोग करेंगे, इसकी झलक इस मौखिक परीक्षा अर्थात VIVA से मिल जाती है। आइए B. Ed. स्तर पर अन्ततः होने वाले viva को प्रभावशाली बनाने के लिए हमारे लिए क्या
आवश्यक है इस पर विचार करते हैं।
बी० एड ० वायवा हेतु आवश्यक कारक
Factors Required for B.Ed. Viva
यद्यपि पूर्व निर्धारित प्रश्नों की कोई व्यवस्था नहीं होती है इसलिए
आपके व्यक्तित्व से लेकर अधिगम क्षमता व उनके व्यावहारिक प्रयोग की परीक्षा इसके
माध्यम से हो जाती है। इसे प्रभावशाली बनाने के लिए निम्न तथ्य महत्त्वपूर्ण
भूमिका अभिनीत करते हैं।
1- आधारभूत
ज्ञान [Basic knowledge]
2- तत्सम्बन्धी
फाइलें व आवश्यक सामग्री [Related
files and necessary material]
3- स्वनिर्मित
फाइल सम्बन्धी जानकारी [Self-contained
file information]
4- अप्राप्त
ज्ञान की स्व स्वीकारोक्ति [Self confession of unrealized knowledge]
5- झूठ
से परहेज [Abstaining
from lies]
6- बहानेबाजी
व बहस से दूरी [Distance
from excuses and arguments]
7- धारा
प्रवाहिता [Fluency]
8- आत्म
विश्वास [Self-confidence]
मौखिक परीक्षा के असंरचित (Unstructured) होने की वजह से इसका स्वरुप व्यापक हो जाता है लेकिन यह सत्य का एक
आवश्यक दर्पण भी होता है यदि गैर पक्षपात पूर्ण और योग्य व्यक्तित्व द्वारा इसका
सम्पादन होता है। यह आज की व्यवस्था का अनिवार्य अंग है इसे सहजता से लिया जाना
चाहिए यह आपकी परिपक्वता का द्योतक है।
अभिप्रेरणा
से आशय व परिभाषाएं (Meaning and definitions of motivation)-
अभिप्रेरणा जीव की वह आन्तरिक स्थिति है जो उसमें क्रियाशीलता
उत्पन्न करती है और अपनी उपस्थिति तक चलाती रहती है। यह वह जादू है जो मानव को
उसकी शक्तियों से साक्षात्कार कराता है यदि इसकी दिशा ठीक है तो यह एक ऐसा उपागम
है जो लक्ष्य की प्राप्ति सुगम कर देता है। अर्थात यह सीधे सीधे हमारे व्यवहार को
प्रभावित करता है। वुडवर्थ महोदय कहते हैं –
“A
motive is a state of the individual which disposes him for certain behaviour
and for seeking certain goals.”
“अभिप्रेरणा व्यक्तियों की दशा का वह समूह है जो
किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ती के लिए निश्चित व्यवहार को स्पष्ट करती है।”
जब
कि जॉनसन (Johnson)
महोदय का विचार
है कि –
“Motivation
is the influence of general pattern of activities indicating and directing the
behaviour of the organism.”
“अभिप्रेरण सामान्य क्रियाकलापों का प्रभाव है
जो मानव के व्यवहार को उचित मार्ग पर ले जाती है।”
गुड
महोदय का
अभिप्रेरणा के विषय में मत है –
“Motivation
is the process of arousing, sustaining and regulating an activity.” – Good
“अभिप्रेरणा किसी कार्य को प्रारम्भ करने, जारी रखने तथा सही दिशा में लगाने की प्रक्रिया
है।”
मैग्डूगल
(McDougall) महोदय का विचार है कि –
“Motives
are conditions physiological and psychological within the organism that
disposes it to act in certain ways.”
“अभिप्रेरणा वह शारीरिक तथा मनोवैज्ञानिक दशाएं
हैं जो किसी कार्य को करने के लिए प्रेरित करती हैं।”
एक
अन्य महत्त्व पूर्ण विचारक पी. टी. यंग
महोदय का विचार है –
“Motivation
is the process of arousing action sustaining the activities in progress and
regulating the pattern of activity.”
“प्रेरणा व्यवहार को जागृत करके क्रिया के विकास
का पोषण करने तथा उसकी विधियों को नियमित करने की प्रक्रिया है।”
उक्त
विचारकों के विचारों के विश्लेषण के आधार पर कहा जा सकता है कि अभिप्रेरणा या
प्रेरणा आवश्यकता से उत्पन्न मनोव्यावहारिक क्रिया है जो लक्ष्य प्राप्ति की दिशा
में कार्यों का सम्पादन कराती है।
अभिप्रेरणा के सिद्धान्त / Principles of motivation –
अभिप्रेरणा हेतु बहुत से सिद्धान्त व मान्यताएं विविध मनोवैज्ञानिकों
द्वारा बताये गए हैं इन सिद्धान्तों द्वारा विविध प्रकार से अभिप्रेरणा की
व्याख्या की गयी है। जिन्हें अपनी सुविधा के अनुसार इस प्रकार अनुक्रमित किया जा
सकता है –
1 – शारीरिक सिद्धान्त / Physiological Theory
–
शरीर की मनोदशा हमेशा एक जैसी नहीं होती इसमें समय समय पर विविध
परिवर्तन परिलक्षित होते हैं और इसी कारण शरीर में प्रतिक्रियाएं भी होती रहती हैं
और इस प्रतिक्रिया के मूल को यदि हम जानने का प्रयास करें तो वह अभिप्रेरणा ही है।
उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धान्त वह सिद्धान्त है जो व्यवहारवादियों
द्वारा प्रति पादित किया गया है यह सीखने के सिद्धांत पर ही आधारित है इनके अनुसार
मनुष्य का सम्पूर्ण व्यवहार शरीर द्वारा उद्दीपन के परिणाम स्वरुप होने वाली
अनुक्रिया है ये मानते हैं की अभिप्रेरणा की इसमें भूमिका नहीं है कोई भी
प्रतिक्रिया विशुद्ध रूप से विशिष्ट अनुक्रिया ही है।
इस मान्यता में विविध तथ्यों व अनुभव की अवहेलना की गयी है यद्यपि
उद्दीपकों द्वारा विविध अनुक्रियाएं होती हैं लेकिन किसी प्रतिक्रिया के होने में
मूलतः अभिप्रेरणा का हाथ होता है।
3 – मूल प्रवृत्यात्मक सिद्धान्त / Instinct Theory –
इस सिद्धान्त के अनुसार किसी
भी मानव का व्यवहार जन्मजात मूल प्रवृत्तियों द्वारा निर्धारित व संचालित होता है
इस सिद्धान्त का प्रतिपादन मैक्डूगल महोदय द्वारा किया गया लेकिन यह सिद्धान्त
अभिप्रेरणा की पूर्ण व्याख्या करने में
सक्षम नहीं है ।
4 – मनो – विश्लेष्णात्मक सिद्धान्त / Psycho-analysis Theory –
यह सिद्धान्त मनोवैज्ञानिक फ्रायड की देन
स्वीकारा जाता है यह सिद्धान्त बताता है कि मनुष्य का अभिप्रेरणात्मक व्यवहार दो
कारकों द्वारा संचालित होता है . जिनमें से एक तो मूल प्रवृत्तियाँ ही हैं और
दूसरा है अवचेतन मन। वह यह भी मानता है कि
दो ही मूल प्रवृत्तियाँ होती हैं जीवन मूल प्रवृत्ति और दूसरी मृत्यु मूल
प्रवृत्ति जो उसे क्रमशः सृजनात्मक व
विध्वंशात्मक व्यवहार हेतु प्रेरित करते हैं। मूल प्रवृत्ति सम्बन्धी यह विचार
मनोवैज्ञानिकों को मान्य ही नहीं और दूसरे अवचेतन मन के अलावा चेतन मन और
अर्ध चेतन मन के द्वारा भी व्यवहार संचालित होता है अतः फ्रायड महोदय भी पूर्ण
स्वीकार्य नहीं।
5-
अन्तर्नोद
सिद्धान्त / Drive
Theory –
यह सिद्धान्त प्रसिद्द मनोवैज्ञानिक हल महोदय
की देन है इन्होने यह बताया कि मनुष्य की आवश्यकताओं के कारण उसमें तनाव पैदा होता
हे जिसे मनोविज्ञान की भाषा में अन्तर्नोद उच्चारित करते हैं ये अन्तर्नोद ही उसके
विशिष्ट व्यवहार का कारण है कुछ समय पश्चात मनोवैज्ञानिकों ने शारीरिक आवशयकताओं
के साथ मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं को भी जोड़ लिया लेकिन फिर भी यह सिद्धान्त अपूर्ण
ही रहा क्योंकि यह मानव के उच्च ज्ञानात्मक व्यवहार की व्याख्या में सक्षम नहीं बन
सका।
6
– इच्छा
आधारित सिद्धान्त / Desire based theory –
इस मत के अनुसार मानव का व्यवहार इच्छा will
द्वारा निर्धारित होता है बौद्धिक मूल्यांकन
द्वारा सृजित इच्छा द्वारा अभिप्रेरणा को दिशा मिलाती है और संकल्प को बल मिलता है
लेकिन संवेग/Emotions व प्रतिवर्त/Reflexis तो इच्छा से अभिप्रेरित नहीं होते।
7 – कुर्ट लेविन सिद्धान्त / Kurt
Levin Theory –
यह सिद्धान्त एक महत्त्वपूर्ण अधिगम सिद्धान्त है जो यह मानता है कि
सीखने में अभिप्रेरणा महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है यह सिद्धान्त संयोग,
स्मृति, गतिशील प्रक्रिया,
व्याख्या, भग्नाशा, आकांक्षा स्तर सभी को समाहित करता है जो मूलतः
साक्षी पृष्ठभूमि पर आधारित है।
उक्त
विवेचन यह स्पष्ट करता है कि अभिप्रेरणा किसी एक कारक से निर्धारित नहीं होती
इसीलिये बॉल्स / Bolles
तथा फौफ्मैन
/ Pfaffman का पर्यावरण आधारित प्रोत्साहन सिद्धान्त व मैसलो/ Maslow का मांग सिद्धान्त भी अभिप्रेरणा के अपूर्ण
सिद्धान्त की श्रेणी में ही आते हैं।
अभिप्रेरणा के प्रकार / Types of motivation –
वास्तव में अभिप्रेरणा दो प्रकार की होती है
जिन्हे हम आन्तरिक अभिप्रेरणा व वाह्य अभिप्रेरणा में वर्गीकृत कर सकते हैं।
[A] – आन्तरिक अभिप्रेरणा / Internal Motivation –
इस प्रेरणा को धनात्मक, सकारात्मक, जन्मजात
प्राकृतिक, प्राथमिक अभिप्रेरणा के नाम से भी जाना जाता
है। आन्तरिक अभिप्रेरणा उसे कहा जाता है जो आन्तरिक अभिप्रेरकों / Internal Motives अर्थात भूख, प्यास, आत्म रक्षा, काम, आदि के कारण उत्पन्न होते हैं।इसमें मानव स्वयं
प्रेरित होकर अपनी इच्छा से कार्य करता है।
[B] – वाह्य अभिप्रेरणा / External Motivation –
इसे ऋणात्मक, कृत्रिम, सामाजिक, द्वित्तीयक
अर्जित, अभिप्रेरणा के नाम से भी जाना जाता है। वाह्य
अभिप्रेरणा उसे कहा जाता है जो वाह्य अभिप्रेरकों / External Motives अर्थात बाहरी स्थितियों आत्म सम्मान, उच्च सामाजिक स्थान, डॉक्टर, नेता, न्यायाधीश आदि बनने की इच्छा के कारण उत्पन्न
होते हैं। निन्दा, प्रशंसा, आलोचना, प्रतियोगिता, पुरस्कार आदि वाह्य अभिप्रेरक हैं।
अभिप्रेरणा के प्रकारों को बताने के लिए तरह तरह के वर्गीकरण प्रस्तुत किये जाते हैं
लेकिन यदि हम उनका निष्पक्ष विश्लेषण करें तो उक्त दो ही प्रकार के तहत ही उन्हें
रखा जा सकता है। एक और तथ्य विश्लेषण
योग्य है की अभिप्रेरणा हेतु प्रेरक आंतरिक हो या वाह्य उसका वास्तविक स्वरुप तो
आन्तरिक ही होता है उसे ऊर्जा तो आन्तरिक
शक्ति से अभिप्रेरण के रूप में मिलती है जो लक्ष्य प्राप्ति तक उसको उत्साहित रखती
है।
अधिगम में प्रेरणा की भूमिका / Role
of motivation in learning –
अधिगम में अभिप्रेरणा की भूमिका निर्विवाद है
यह वह शक्ति है जो सीखने की गति को तीव्र कर देती है प्रसिद्द मनोवैज्ञानिक वुड
वर्थ महोदय ने कहा –
उक्त समीकरण चीख चीख कर कह रहा है कि योग्यता
के साथ प्रेरणा होने पर ‘सोने पर सुहागा’ वाली कहावत चरितार्थ होती है।
वास्तव में प्रेरणा अध्यापक के हाथ में ऐसा
महत्त्वपूर्ण उपागम है जिससे देश का भविष्य, हमारे विद्यार्थियों का कल सँवारा जा सकता है
उनकी अन्तर्निहित क्षमता को उत्कृष्ट रूप से उभारा जा सकता है। राष्ट्र को समर्पित
सेवा भावी युवा तैयार किये जा सकते हैं। शैक्षिक उत्कृष्टता के प्रदत्त सोपान तय
किये जा सकते हैं अधिगम क्षेत्र में नए प्रतिमान गढ़े जा सकते हैं। तत्सम्बन्धी कुछ
बिन्दु इस प्रकार दिए जा सकते हैं –
01- उत्सुकता जागृति
02- ऊर्जा व्यवस्थापन
03- ध्यान संकेन्द्रण
04- अनवरतता
05- रूचि परिमार्जन
06- स्वस्थ आदतें
07- निर्णयन क्षमता
08- अधिगम इच्छा
09- आवश्यकता पूर्ति
सक्षमता
10- सम्यक मार्ग दर्शन
11 – सम्यक साधन चयन
12 – आशावादी भविष्य
विकास यात्रा में
अभिप्रेरणा ऐसा शक्तिशाली साधन है जो हमारे सपने, हमारे अभीप्सित, हमारे लक्ष्य हमें
दिला सकता है। एण्डरसन/Anderson महोदय ने उचित ही कहा है। –
“Learning
will proceed best if motivated.”
“सीखने की प्रक्रिया
सर्वोत्तम रूप से आगे बढ़ेगी यदि वह अभिप्रेरित होगी।”
अभिप्रेरणा कुशल अध्यापक के हाथ में शिक्षा
जगत का अमूल्य वरदान है स्किनर/Skinner महोदय तो अभिप्रेरणा को
सीखने का राज मार्ग बताते हैंउन्होंने कहा –
आधुनिक युग का वह पुरोधा जिसे हम श्रेष्ठ दार्शनिक, चिन्तक, शिक्षा शास्त्री के रूप में स्वीकारते हैं। इनके क्रान्तिकारी विचारों ने मानवता की दिशा निर्धारण का गम्भीर प्रयास किया मानव को विविध संकीर्णताओं से ऊपर उठा यथार्थ ज्ञान दर्शन का साक्षात्कार कराया और तत्कालीन मानवता को सरल दिशा बोध का सम्यक प्रयास किया।
जीवन की विसंगतियों से जूझते हुए ये थियोसोफिकल
सोसायटी की अध्यक्षा डॉ ० एनी बेसेन्ट के सम्पर्क में आये इनकी प्रतिभा को पहचान
कर उन्होंने इनकी शिक्षा दीक्षा का भार अपने ऊपर ले लिया और उच्च शिक्षा की
प्राप्ति हेतु इंग्लैण्ड भेजा। जब इन्हे 1922 में
अध्यात्म की अनुभूति हुयी तभी से इनके जीवन की दिशा मानव कल्याणार्थ चिन्तन के
धरातल पर उतरी। मानव को दुखों से छुटकारा दिलाने का मार्ग तलाशना ही जीवन का
उद्देश्य हो गया।
इन्होंने
बौद्धिक वर्ग के बीच अपनी बात रखने के लिए अमेरिका, आस्ट्रेलिया,
इंग्लैण्ड, भारत, हालेण्ड में व्याख्यान दिए। इनके विचारों में प्यार (Love)
पर विशेष ध्यान देने की ओर ध्यानाकर्षण किया गया। इन्होने कहा –
“यदि
आपके हृदय में प्यार है तो फिर किसी ईश्वर को तलाश करने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि प्यार ही ईश्वर है।”
प्यार हेतु ये
आत्म ज्ञान और आत्म शोध को आवश्यक तत्व स्वीकारते हैं।
शैक्षिक
चिन्तन (Educational thinking)-
इन्होंने
अपने विचारों के प्रसार हेतु व्याख्यान, पुस्तक
लेखन, व्याख्यान संग्रह प्रकाशन आदि को माध्यम बनाया आज इनकी
कैसेट्स भी उपलब्ध है इनका मूल कार्य अंग्रेजी में है लेकिन आज विविध भारतीय भाषाओँ
में इनका अनुवाद हो चुका है। हिन्दी में
अनुवादित कुछ रचनाओं को इस प्रकार क्रम दे सकते हैं –
संस्कृति का प्रश्न,स्कूलों
के नाम पत्र, हिंसा से परे, ज्ञान से मुक्ति, जीवन
की पुस्तक,प्रथम एवं अंतिम मुक्ति,जो
मनुष्य कुछ नहीं है वह सुखी है,
ध्यान,
आनन्द की खोज,दिमाग ही दुश्मन
है?, ईश्वर क्या है?, प्रेम क्या है?, मन क्या है?, शिक्षा क्या है?, जीवन
और मृत्यु, सत्य और यथार्थ, सोच
क्या है? आदि ।
शिक्षा से आशय /Meaning of education -
इनके द्वारा
स्थापित संस्था ‘कृष्णमूर्ति फाउण्डेशन’ आज
भी इनके विचारों के क्रियान्वयन कर रही है
इनके लेखन व विचारों से शिक्षा की प्रभाव शीलता स्पष्ट होती है इन्होने कहा
–
“शिक्षा द्वारा ही मनुष्य को जीवन का सही अर्थ समझाया जा सकता है और शिक्षा
द्वारा ही उसको गलत रास्ते से सही रास्ते पर लाया जा सकता है।”
इनका मानना हे कि शिक्षा विश्व को वस्तुगत रूप से देखना सिखाती है
इसीलिये जे ० कृष्णमूर्ति महोदय
स्पष्ट रूप से कहते हैं –
“शिक्षा का कार्य तुम्हें एक पूर्णतया मित्र बुद्धिमत्ता पूर्ण तरीके से
संसार का सामना करने में सहायता करना है।”
“The function of education is to help you to face
the world in a totally different intelligent way.”
अर्थोपार्जन को यह मात्र एक पक्ष के रूप में स्वीकारते
हैं और रटना, डिग्री प्राप्त करना, परीक्षा
पास करना आदि को शिक्षा नहीं मानते ये कहते हैं –
“अन्तः मन का ज्ञान ही शिक्षा है।”
शिक्षा के उद्देश्य /Aims of education –
बहुत से विद्वानों से भिन्न मत रखते हुए जे ० कृष्ण मूर्ति महोदय कहते हैं -
"To be really educated means not to confirm, not to imitate, not to do what millions and millions are doing. If you feel like doing that, do it, but be awake to what you are doing.''
"वास्तविक रूप से शिक्षित होने का अर्थ करोड़ों जो कर रहे हैं उससे अनुरूपता, उसका अनुसरण, उसे करना नहीं है। यदि तुम वह करना चाहते हो तो करो? परन्तु जो कुछ तुम कर रहे हो उसके प्रति जागरूक रहो। ''
जे ० कृष्ण मूर्ति एकीकृत मानव, समग्र या सम्पूर्ण मानव के प्रगटन हेतु शिक्षा को एक आवश्यक कारक के रूप में स्वीकार करते हैं और इसकी प्राप्ति हेतु शिक्षा के विभिन्न उद्देश्य इनके विचारों द्वारा स्पष्ट होने लगते हैं जिन्हे हम इस प्रकार क्रम दे सकते हैं -
1 - आत्म ज्ञान का उद्देश्य/Purpose of self-knowledge -
इनका मानना है कि प्रत्येक मानव स्वयं को जानने का प्रयास करे इनका अपने को
जाने से आशय चेतन आत्म तत्व को जानने से नहीं है बल्कि ये चाहते हैं कि शिक्षा यह जानने में मदद करे कि हम क्षण
क्षण क्या हैं अर्थात विभिन्न क्षणों में हम क्या सोचते, विचार
करते, अनुभव करते हैं हमें उसे जानने का प्रयास करना चाहिए। ऐसा
न हो कि जिस धर्म का उद्भव मानव से हुआ है वह उसका गुलाम बनकर न रह जाए।
2 - सृजन शीलता का विकास/Development of creativity -
इससे इनका आशय शरीर, आत्मा, मन
तीनों की सृजनशीलता से है। विद्यार्थियों को स्वतंत्र निर्णयन के अवसर प्रदान किये
जाएँ इनके ऊपर अपने विचार थोपने का प्रयास न किया जाए। यह भयमुक्त वातावरण
सृजनशीलता की वास्तविक पृष्ठ भूमि तैयार करेगा।
3 - वर्तमान महत्त्वपूर्ण/Importance ofPresent time -
ये कहते हैं कि काल की सत्ता नहीं है और शुद्ध चेतना मात्र का अस्तित्व है।
हमारे जीवन का वर्तमान क्षण ही प्रिय अप्रिय भूत या भविष्य से सम्बन्ध रखने वाला
हो सकता है इसीलिये ये जीवन में वर्तमान को महत्त्वपूर्ण मानते हैं। अतः शिक्षा
वर्तमान में जीना सिखाये।
4 - विज्ञान का यथोचित समावेशन /Reasonable inclusion of science-
ये विज्ञान व तकनीकी के विरोधी नहीं थे इनका मानना था की विज्ञान को मानव
के विकास का सहयोगी होना चाहिए। ये विज्ञान के सम्यक प्रयोग द्वारा मानव मात्र का
कल्याण करना चाहते थे।विज्ञान व तकनीकी को कोई ऐसा कार्य सम्पादित नहीं करना चाहिए
जो मानवता विरोधी हो।मानव मात्र के कल्याणार्थ अध्यात्म और विज्ञान का यथायोग्य
सम्मिलन भी होना चाहिए।
5 - संवेदनशीलता में वृद्धि /Increased sensitivity-
इनका मानना था कि बालकों को प्रतिस्पर्धा और भय मुक्त वातावरण मिले अनुशासन
के साथ संवेदनशीलता का गन अपरिहार्य है। बच्चों में प्रेम का ऐसा प्रस्फुटन हो
जिससे वे प्रकृति व मानव मातृ से प्रेम करना सीख सकें। वे इतने संवेदनशील बनें की
क्रोध, घृणा,
हिंसा,
द्वेष को भाव पूर्ण तिरोहित हो जाए।
6 -व्यावसायिक योग्यता का विकास/Development of professional competence-
यह नितान्त पलायनवादिता की जगह व्यावहारिकता से बालक को जोड़ना चाहते थे इसी
लिए बालक को व्यावसायिक निपुणता सिखाना चाहते थे क्योंकि जीवन यापन हेतु कोइ न कोइ
व्यवसाय प्रत्येक को करना ही होता है।शिक्षा को इंगित करते हुए मानव को एक विशेष
सन्देश देते हुए इन्होने कहा –
“Education must help in facing the world in a totally different,
intelligent way, knowing you have to earn a livelihood, knowing all the
responsibilities the miseries of it all.” Begning of Learning, p 171
“यह जानते हुए की तुमने जीविकोपार्जन करना है, सम्पूर्ण
जिम्मेदारियों को निभाना है उस सबका दुःख उठाना है। शिक्षा को तुम्हें एक पूर्णतया
मित्र, बुद्धिमत्ता पूर्ण तरीके से संसार का सामना करने में
सहायता करनी चाहिए। ”
7 - नवीन मूल्यों की वाहक संस्कृति का निर्माण/Creating a culture of new values-
इनका स्पष्ट रूप से मानना था कि विविध संस्कृतियों का प्रभाव हमारे
दृष्टिकोण को संकीर्ण कर देता है जबकि आवश्यकता है पूर्व धारणाओं व पूर्वाग्रहों
से मुक्त होने की। शिक्षा का उद्देश्य ऐसी अन्तः चेतना व आत्मिक उत्थान की पृष्ठ
भूमि बनाना है जो दृढ़तापूर्वक हमें पूर्वाग्रहों के खिलाफ खड़ा कर सके। तभी नवीन
मूल्यों व नव संस्कृति का उद्भवन सम्भव हो सकेगा।
पाठ्यक्रम Syllabus
जे ० कृष्णमूर्ति जी का मानना था कि पाठ्यक्रम ऐसा हो जो सम्पूर्ण मानव
बनाने में सहयोग प्रदान कर सके। इन्होने आर्थिक पक्ष की सबलता हेतु व्यावसायिक शिक्षा, भौतिक
विज्ञान, मानवोपयोगी विज्ञान तकनीकी के प्रयोग पर बल दिया। तथा
भावात्मक पक्ष के प्रबलन हेतु सृजनात्मकता, सौन्दर्य
बोध, कविता कला, सङ्गीत को
पाठ्यक्रम में स्थान देने की बात कही है।
शिक्षण विधियाँTeaching methods
इन्होंने अधिगम की प्रभावशीलता की वृद्धि हेतु निम्न विधियों का समर्थन
किया।
1 – निरीक्षण
विधि
2 – अनुभव
आधरित विधि
3 – स्वाध्याय
4 – परीक्षण
विधि
5 – श्रवण
6 – शान्ति
व मनन
7 – ध्यान
इन्होने ध्यान की महत्ता की गहन
अनुभूति की। जिससे उसके गूढ़ अर्थ निकलते हैं ये मानते हैं कि ध्यान इच्छा शक्ति, निष्प्रयोजन, और
चेष्टा विहीन होता है। जिससे एकाग्रता उद्भूत होकर आत्म ज्ञान के प्रति सचेष्ट
रखती है।
अध्यापक/Teacher
इन्होने बहुत स्पष्ट रूप से यह स्वीकार किया की गुरु एक एकीकृत मानव होना
चाहिए वह धैर्य की प्रतिमूर्ति हो और बच्चों के साथ उसका व्यवहार प्रेम पूर्ण हो।
अपनी इच्छा थोपने की जगह वह विद्यार्थियों की सीखने में मदद करने वाला हो। इस
प्रकार अच्छा अध्यापक वह होगा जो प्रेम के आधार पर बच्चों में लोकप्रिय होगा।
विद्यार्थी/Student
ये विद्यार्थियों को ऐसी चेतना से युक्त करना चाहते हैं जो उनमें वह शक्ति पैदा कर सके जिससे वे स्वयम्
मूल्य सिद्धान्त व नियमों का चयन कर सकें। वे यह बिलकुल नहीं चाहते की उनपर किसी
तरह के सामाजिक, राजनैतिक,
आर्थिक,
सांस्कृतिक,धार्मिक
पूर्वाग्रह थोपे जाएँ। इन्होने
विद्यार्थियों से स्पष्ट रूप से कहा –
“Education implies to live a life of
tremendous order in which obedience is under stood, in which it is seen
where conformity in necessary and where it is totally unnecessary, as to see
when you are imitating.” Ibid p.187
“वास्तविक शिक्षा एक जबरदस्त व्यवस्था का जीवन जीना
है जिसमें आज्ञापालन को समझ लिया जाता है, जिसमें
यह जान लिया जाता है कि कहाँ अनुरूपता आवश्यक है और कहाँ वह पूर्णतया अनावश्यक है, यह
देख लिया जाता है कि कब आप अनुकरण कर रहे हैं।”
अनुशासन/Discipline
ये विद्यार्थियों को आतंरिक व वाह्य दोनों प्रकार की स्वतन्त्रता देना
चाहते हैं। और आत्म अनुशासन के प्रचलित सिद्धान्तों को भी नहीं मानते। लेकिन साथ
हे यह भी कहते हैं की स्वतन्त्रता का अर्थ स्वछंदता नहीं है दूसरों का ध्यान रखा
जाए उनके प्रति विवेकशील,
नम्र व यथोचित व्यवहार किया जाए।
विद्यालय /School
यह प्रभावी अधिगम,
अध्यापन,
व्यवस्थापन हेतु विद्यालय की भूमिका को स्वीकार करते थे।
इन्होने विद्यालय सुसंचालन हेतु प्रशासन में अध्यापक व विद्यार्थियों की भागीदारी
की बात कही। ये चाहते थे कि विद्यालय में विद्यार्थियों की संख्या को सीमित रखा
जाए। विद्यालय की समस्याओं के निराकरण हेतु शिक्षक परिषद व छात्र परिषद का निर्माण
किया जाए। छात्र परिषद में भी शिक्षकों का प्रतिनिधित्व हो ,विद्यालय
की साफसफाई ,अनुशासन,
भोजन आदि की जिम्मेदारी विद्यार्थियों को दी जाए। ऐसे
पर्यावरण का निर्माण किया जाए जिससे विद्यार्थी अपनी शक्तियों को पहचान सकें और
स्वयम् समस्या निराकरण में सक्षम बन सकें।
अन्य आवश्यक पक्ष/Other necessary dimensions
1 – नैतिक व
धार्मिक शिक्षा
2 – जन शिक्षा
3 – स्त्री
शिक्षा
4 – व्यावसायिक
शिक्षा
शैक्षिक चिन्तन का मूल्याङ्कन/Assessment of academic thinking
जे ० कृष्णमूर्ति महोदय शिक्षा को साधारणतया जिन अर्थों में स्वीकार किया जाता
है उसके अनुसार ये पुनः विचार की विषय वस्तु है इन्होने कहा –
“Education generally used to mean learning out of
books, storing up information and using it either selfishly or a particular
cause or a particular sect, and marketing oneself important in that sect of
organisation.”
“साधारणतया शिक्षा का अर्थ पुस्तकों को पढ़ना, जानकारी
का संग्रह करना और उसे या तो स्वार्थ के लिए या किसी विशिष्ट कारण के लिए, किसी
विशेष सम्प्रदाय के लिए स्वयं को उस सम्प्रदाय में अथवा संगठन में महत्त्वपूर्ण
बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। ”
ये अन्तः चेतना के विकास की बात करते हैं जबकि सर्वांगीण विकास में प्रगति
के अधिक बीज संग्रहीत हैं।
उद्देश्यों के क्रम जो पूर्ण मानव के विकास की बात इनके द्वारा रखी गयी
उसके निर्माण हेतु सुझाये गए साधन और बताया गया पाठ्यक्रम अपर्याप्त है। यहां तक
स्पष्ट परिलक्षित होता है कि अन्तः चेतना विकास की यात्रा इस पाठ्य क्रम से होना
संभव नहीं है। शिक्षण विधियों में मनोवैज्ञानिकता अच्छी विचारधारा है पर कोई नई
विधि सुझाई नहीं गयी है। गुरु शिष्य सम्बन्धों को ये आवश्यक नहीं मानते और कहते
हैं –
“Disciple means one who learns but the generally
accepted meaning is that a disciple is one who follows someone, some guru, some
silly person. But both the follower and the one who follows are not learning,”
“शिष्य का अर्थ है जो सीखता है परन्तु शिष्य का साधारण स्वीकृत अर्थ वह है
जो किसी का, किसी गुरु का, किसी
बुद्धिहीन व्यक्ति का अनुसरण करता है,ऐसी
स्थिति में गुरु और शिष्य दोनों नहीं सीख रहे हैं।”
यदि निष्पक्षता के चश्मे से देखा जाए तो इसमें सत्य का अंश परिलक्षित होता
है। शिक्षण को प्रभावी बनाने हेतु जो कम संख्या विद्यालय से संयुक्त करने की बात
इन्होने की वह सैद्धांतिक दृष्टिकोण से अच्छी लगती है पर भारत जैसे अधिक जनसंख्या
वाले देश में व्यावहारिक नहीं है।
कुल मिलाकर इनके विचार नवपरिवर्तन की इच्छा से युक्त लगते हैं पर स्पष्ट
रूप रेखा के अभाव में मजबूत सम्बल नहीं मिल सका है। ध्यान, आत्म
ज्ञान ,आत्म शोध हेतु स्तर का अभाव दिखता है। परन्तु इनके
द्वारा स्थापित विद्यालय प्रेम,
सौंदर्य बोध, सहयोग की अपनी
विचार श्रृंखला के कारण ये हमेशा याद किये
जाएंगे।
भारतीय सन्दर्भ में आधुनिकीकरण के एक उपकरण के रूप में शिक्षा
भारत में शिक्षा का प्रादुर्भाव वैदिक काल से अब तक एक बहुत बड़ा सफर तय कर चुका है। बदलते परिवेश के साथ और तत्कालीन परिस्थितियों के साथ जन सामान्य पर पड़ने वाले प्रभाव का इतिहास गवाह रहा है इसने बोलने, आचार, व्यवहार, संस्कृति,
वेश भूषा, रहन सहन में होने वाले परिवर्तनों को बहुत अच्छी तरह से निरीक्षित किया है। इन तमाम परिवर्तनों के आधार पर यह पूर्वक कहा जा सकता है कि शिक्षा ही वह महत्त्वपूर्ण साधन है जो हमारे पूरे परिवेश, सम्पूर्ण समाज को वक्त के साथ चलना सिखा सकता है।शिक्षा ही वह महत्त्वपूर्ण उपकरण है जो हमें आधुनिकता से जोड़ सकता है।
आधुनिकी
करण क्या है?
What
is modernization?
आधुनिकीकरण वह
प्रत्यय है जो हमें समय के साथ कदमताल करना सिखाता है हर काल की अपनी
परम्पराएं, मर्यादाएं, मूल्य
होते हैं जो भारत में निरन्तर परिवर्द्धित
व परिवर्तित होते रहे हैं और भारतीयों ने इन्हे आवश्यकतानुसार अङ्गीकार किया है।
डॉ ० सत्यदेव सिंह ने आधुनिकीकरण के सन्दर्भ में कहा –
“आधुनिकीकरण एक ऐसी गत्यात्मक प्रक्रिया है
जिसमें कोई समाज नवीनतम वैज्ञानिक तकनीकियों का लाभ लेते हुए परम्परागत अथवा अर्ध
परम्परागत स्थिति से हटकर अपने संगठन संरचना, मूल्य,
अभिप्रेरणा, उद्देश्य तथा आकांक्षाओं में आवश्यक परिवर्तन
कर लेता है।”
“Modernization
is such a dynamic process in which a society moves from a traditional or
semi-traditional position, taking advantage of the latest scientific
techniques, to make necessary changes in its organizational structure, values,
motivation, objectives and aspirations.”
आधुनिकीकरण
की परिभाषा में व्यक्ति व उसकी ज्ञानात्मक स्थिति के अनुसार यद्यपि परिवर्तन
परिलक्षित होते हैं लेकिन कोठारी कमीशन ने भारतीय समाज के आधुनिकता से जुड़ने के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट रूप
से कहा –
“The
most distinct feature of modern society, in contrast with a traditional one, is
its adoption of a science-based technology.”
“आधुनिक समाज की सबसे विशिष्ट विशेषता, पारंपरिक समाज के विपरीत, विज्ञान आधारित प्रौद्योगिकी को अपनाना है।”
अर्थात
भारतीय परिप्रेक्ष्य में आधुनिकी करण से आशय बदलते समय के साथ बदलते प्रतिमानों, संसाधनों, वैज्ञानिक प्रगति और आवश्यक प्रगतिशील बदलाव के साथ अनुकूलन करने से
है।
Education as a tool of Modernization
आधुनिकीकरण
के एक उपकरण के रूप में शिक्षा-
वर्तमान
परिप्रेक्ष्य में जब हम भारत का आकलन करते हैं तो यह प्रत्यक्षतः अनुभूति होती है
कि शिक्षा केवल समस्या समाधान का ही उपकरण नहीं है बल्कि यह वह विशिष्ट उपागम है
जो हमें समय के साथ चलना सिखाता है वास्तविक आधुनिकता का सच्चा उपकरण शिक्षा है
इसे नकारा नहीं जा सकता। निम्न आधारों पर यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है –
1 – सामाजिक सकारात्मक परिवर्तन/ Positive Social
Change
2 – सांस्कृतिक परिवर्तन / Cultural change
3 – आर्थिक परिवर्तन / Economic change
4 – बौद्धिक परिवर्तन / Intellectual change
5 – मूल्यों व उद्देश्यों में परिवर्तन / Change in
values and objectives
6 – विज्ञान व तकनीकी की सहज स्वीकृति / Easy
acceptance of science and technology
7 – समन्वय व सामञ्जस्य की बदलती अवधारणा /
Concept of coordination and harmony
8 – कुरीति निवारण में सञ्चारी साधनों का प्रयोग / Use
of communicative means in the prevention of evil.
उक्त
आधार पर कहा जा सकता है कि शिक्षा वह साधन है जो हमें आधुनिकता से जोड़ता है व
अन्धानुकरण से बचाता है जो परम आवश्यक है। डॉ सत्य देव सिंह का विचार दृष्टव्य है
–
“यदि कोई समाज अन्य समाजों का अन्धानुकरण करता
है तो कालान्तर में अन्धानुकरण करने वाला समाज अपना आस्तित्व समाप्त कर सकता है।”
“If a society blindly imitates other societies,
then over a period of time the society which blindly imitates its
existence.”.
कॉमर्स वर्तमान समय का एक बहुत व्याहारिक विषय है। बहुधा इन विद्यार्थियों में अधिक व्याहारिक गुण होने की वजह से परिणाम पाने की शीघ्र इच्छा होती है।बाजार वाद व उत्तरोत्तर बढ़ती उपभोक्ता संस्कृति ने इसे आज के परिप्रेक्ष्य में गढ़ने हेतु नए आयाम उपलब्ध कराये हैं। इनमें से कुछ बच्चों के पुश्तैनी प्रतिष्ठान होते हैं तो कई विद्यार्थी अपने आप को स्थापित करना चाहते हैं। इण्टरमीडिएट परीक्षा परिणाम प्राप्त करने के बाद इनको भी यही समस्या घेरती है की अब क्या करें ?
कालान्तर
में व्यवस्थाएं परिवर्तित होती रहती हैं शीघ्र ही वह समय आएगा जब विभिन्न धाराओं
कला,
वाणिज्य, विज्ञान की जगह विद्यार्थी पसन्दीदा
विषय किसी भी ले सकेंगे। लेकिन आज के
परिप्रेक्ष्य में वाणिज्य के कुछ विद्यार्थी गणित विषय बारहवीं में रखते हैं और
कुछ नहीं। इससे भी अवसरों में कुछ अन्तर दिखाई देता है।
बारहवीं
में गणित के साथ कॉमर्स रखने वाले विद्यार्थी हेतु कोर्स–
Course for students having commerce with mathematics in class XII-
1 – C.A. (Charted Accountancy)
2 – B.C.A. (Bachelor of
Computer Applications) or IT and Software
3 – B.F.A. (Bachelor of
Finance and Accounting)
4 – B.Com. Honours
5 – B.E. (Bachelor of
Economics)
6 – B.I.B.S. (Bachelor
of International Business and Finance)
7 – B.J.M.S. (Bachelor
of Journalism and mass Communication)
8 – B.Sc. Hons
(Mathematics)
9 – B.Sc. Hons (Applied
Mathematics)
10- B.Sc. (Statistics)
बारहवीं
में गणित के बिना कॉमर्स रखने वाले विद्यार्थी हेतु कोर्स–
Course for students having
commerce without mathematics in class XII-
1 – B.Com (Bachelor of
Commerce)
2 – C.S. (Company
Secretary)
3 – B.B.A. (Bachelor of
Business Administration)
4 – Bachelors in
Hospitality
5 – Bachelors in Event
Management
6 – Bachelors of Management
Studies
7 – Bachelors in Travel
and Tourism
8 – Bachelors in Hotel
Management
9 – Bachelor of
Vocational Studies
10 – Bachelor of
Journalism
11 – Bachelor of
Foreign Trade
12 – Bachelor of Business
Studies
13 – Bachelor of Social
Work
14 – Bachelor of
Vocational Studies
15 – Bachelor of Interior
Designing
16 – BA LL.B
17 – BBA LL.B
18 – B.A
19 – B.A (Hons)
20 – B.Sc. Animation
and media
बारहवीं
कॉमर्स के पश्चात डिप्लोमा कोर्स
Diploma course after
12th commerce –
1 – Diploma in
Education
2 – Import Export
Diploma
3 – Digital Marketing Diploma
4 – Diploma in
Industrial Safety
5 – Diploma In Advance
Accounting
6 – Diploma in Computer
Application
7 – Diploma in
Financial Accounting
8 – Diploma in Business
Management
9 – Hospitality Diploma
10 – Diploma in Banking
and Finance
11 – Diploma in Retail
Management
12 – Diploma in Hotel
Management
13 – Diploma in Fashion
Designing
बारहवीं
कॉमर्स के पश्चात प्रोफेशनल कोर्स
Professional course
after 12th commerce –
यदि हम आज के
हिसाब से कुछ महत्त्वपूर्ण कोर्स देखना चाहें तो इन्हें इस प्रकार भी क्रमित किया
जा सकता है –
1 – GST Course
2 – Income Tax Course
3 – Content Marketing
4 – Digital Marketing
5 – Accounting and
Taxation
6 – Air Hostess
Training
7 – B.A., B. Com., BBA.
etc
8 – BA LL.B
9 – Bachlor of Business
Management
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि रास्ते
बहुत सारे हैं बस हमें बहुत सोच समझ कर फैसला करना है। फैसला हो जाने के बाद दृढ़ता
से अपनी मंजिल को हासिल करना है। भारत के उत्पादन क्षेत्र को बहुत विस्तृत करने की
आवश्यकता है। बाजारवाद का परिदृश्य बदलने हेतु व अपनी मौलिकता को बनाये रखने हेतु
वाणिज्य के विद्यार्थियों से देश को बहुत आशा है।
यह संसार सचमुच अद्भुत है जो कहीं न कहीं
विचारों से उद्भूत है इसी की अधिक सम्भावनाएं भारतीय दृष्टिकोण से भी परिलक्षित
होती हैं। यहाँ तककि हमारी आज की सोच हमारे कल का निर्माण करती है हम भारतीय कुछ
विचारों में एक दूसरे से अद्भुत साम्य रखते हैं कुछ आदतें व दृष्टिकोण जिन
परिणामों तक ले जाते हैं यह भी सामान्य शोध बताने में सक्षम हैं हमारी अपनी ही सोच
और उनका व्यवहार कैसे हमारी ही दुश्मन साबित होती है उनमें से पाँच का अध्ययन आप
प्रबुद्ध जनों के समक्ष प्रस्तुत है –
1 – सुनकर अनसुनी करना
(Ignore after
listening)
2 – देखकर अनदेखा करना (Ignore
after seeing)
3 – बहाने बाजी (Betting on excuses)
4 – असत्य सम्भाषण (False speech)
5 – नकारात्मक चिन्तन (Negative thinking)
आगे वर्णित तथ्य अनुभव व विविध जनों के
दृष्टांतों पर आधारित हैं स्पष्ट रूप से इन्हे दुर्गुणों की श्रेणी में रखा जा
सकता है।
1 – सुनकर अनसुनी करना(Ignore
after listening)–
एक बहुत ही सामान्य सी बात लगती है बचपन में इस
लत का शिकार बालक कालान्तर में अपने मस्तिष्क को यह सन्देश भेजने में सफल हो जाता
है कि उसने सचमुच कुछ सुना ही नहीं और यह बात उसको बहरेपन की और बढ़ा देती है फिर
वह सुनना चाहते हुए भी सुन नहीं पाता।
वह सेवक जोअपने से ऊपर के अधिकारियों की बात को
अनसुना करता है वह आलस्य,
कामचोरी, संशय, बहरेपन, कान
का अनायास बजना, कार्य क्षमता का ह्रास, शारीरिक कम्पन आदि विविध व्याधियों का शिकार
देर सबेर होता ही है। कुछ ऐसे लोगों के अध्ययन व लोगों के अनुभवों से आप यह सहज
बोध कर सकते हैं।
यदि यह आदत स्वयम् हमको लगती है तो हम स्वयम्
अपनी भी नहीं सुन पाते, सोचते रह जाना, कल्पना लोक में विचरण, समय
की बर्बादी हम सहज स्वभाव के वशीभूत हो करने लगते हैं। किसी का आर्त्तनाद हमें
सुनाई नहीं पड़ता या हम इतने कायर हो चुके होते हैं कि किसी की मदद को तत्पर ही नहीं
हो पाते परिणाम स्वरुप एकाकी पन और मानसिक अवसाद हमें घेरने लगता है। तनाव, अकारण भय, चिन्ता
हमारा मुकद्दर बनने लगता है। लक्ष्य हमसे दूर भागने लगते हैं। परिश्रम व लगन दूर
की कौड़ी लगने लगते हैं।
2 – देखकर अनदेखा करना (Ignore
after seeing)-
आँग्ल भाषा में में पहले और दूसरे उप शीर्षक
हेतु सामान्यतः एक शब्द Avoid
ही अधिकाँश प्रयोग में लाया जाता है लेकिन
हिन्दी में इसके अलग और गूढ़ अर्थ हैं
जिसे शब्द उच्चारण से ही समझा जा सकते है देखने और सुनने के लिए क्रमशः अलग
अलग इन्द्रियों चक्षु व कर्ण का प्रयोग होता है।
आजकल लोग अधिक व्यस्त हैं व बाजार वाद के
प्रभाव से ग्रस्त हैं कि बहुधा अनदेखा करते हुए स्वयम् सहित अन्य जन दिखाई पड़ते
हैं लेकिन जब समय, धर्म, विवेक, ज्ञान और अन्तरात्मा भी हमारी देख कर अनदेखा
करने की आदत का शिकार हो जाती है और चल चित्र की भाँति बहुत कुछ हमारे सामने से
गुजर जाता है और हम किंकर्त्तव्य विमूढ़ हो जाते हैं हमारी शक्तियों का क्षय होने
लगता है। हमारी सोच दुष्प्रभावित हो जाती है।
‘जैसी करनी वैसी भरनी’ के आधार पर ही हमें प्रतिफल मिलने लगता है। यह
स्थिति मानवता के लिए अत्यन्त घातक है हमें एक दूसरे की मदद मानस का विस्तार कर
करनी ही चाहिए। चाहे सामने दुश्मन ही क्यों न हो।
3 – बहाने बाजी (Betting on excuses) –
कभी कभी एक अद्भुत तथ्य सामने आता है कि हम
किसी कार्य को करने में या किसी वस्तु से किसी की मदद करने में या किसी सलाह
द्वारा मार्गदर्शन करने में हम पूर्ण सक्षम होते हैं फिर भी हम किसी बहाने का
सहारा ले उस विशिष्ट कर्त्तव्य से मुँह मोड़ लेते हैं और यह पारिलक्षित होता है की
अधिकाँश जनसंख्या इस दुर्गुण से ग्रसित है और हम अपने बच्चों को भी जाने अनजाने
में इस दुर्गुण से ग्रसित कर देते हैं। धीरे धीरे यह हमारी आदत और व्यवहार का
विशेष भाग हो जाता है।
गिने चुने लोग ही ऐसे होते हैं जो निस्वार्थ
सेवा भावी रहकर बहानेबाज़ी की छतरी नहीं लगाते। यह मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ
लोग होते हैं।इन विशिष्ट व्यक्तित्वों से ही मानवता को सद् पथ मिलता है। इस स्वभाव
से भागने पर हम सहज ही अनुशासन प्रियता से भी दूर हो जाते हैं। हम सहज ही अधर्म
मार्ग पर बढ़ चलते हैं राम चरित मानस में कहा भी है। –
परहित सरिस धर्म नहीं भाई।
पर पीड़ा सम नहीं अधमाई।।
यह बहाने बाजी हमें हमारी ही निगाह में गिरा
देती है और जब हम इस पर विचार करते हैं तो हमें ग्लानि की अनुभूति होती है। अपना
ही स्वार्थी चरित्र हमें मुँह चिढ़ाता हुआ लगता है। हम अपना प्रगति पथ स्वयं
अवरुद्ध कर लेते हैं।
4 – असत्य सम्भाषण (False
speech) –
यह अत्याधिक खतरनाक
दुर्गुण है और हममें से अधिकाँश से बुरी तरह चिपका है साथ ही यह नई पीढ़ी को तेजी
से अपनी गिरफ्त में ले रहा है। हम जब मोबाइल पर होने वाली बातचीत में अपने और
दूसरों द्वारा इसका अनायास और बेधड़क प्रयोग देखते हैं केवल परिवार से बाहर के
लोगों के साथ ही नहीं यह दुर्गुण आत्मीय सम्बन्धों यथा पिता-पुत्र, पिता – पुत्री, शिष्य -गुरु, माता -पिता, माता-पुत्र, माता -पुत्री, बहन -बहन, भाई-भाई और मित्रों पड़ोसियों जैसे सम्बन्धों में वजह बेवजह
घुसपैठ बना रहा है।
नैतिक दृष्टि से
अत्यन्त धक्का तब लगता है जब झूठ बेवजह, नकली शान दिखाने के
लिए, रॉब ग़ालिब करने के लिए, पुराने झूठ को समर्थन
देने के लिए आदतवश बोला जाता है। हद तो तब हो जाती है जब हम अपने झूठ में मासूम नव
पीढ़ी को भी शामिल कर लेते हैं। शैतान नवपीढ़ी तो बड़ों के सामने इस तरह झूठ बोलती है
जैसे नासमझों से बात कर रही है।
जिस देश में सत्यवादी
राजा हरिश्चन्द्र ने जन्म लिया।जिस देश के विशेष चिन्तक महात्मा गाँधी ने ‘सत्य ही ईश्वर है।’ का उद्घोष किया उस देश
में अकारण असत्य सम्भाषण अत्याधिक अटपटा लगता है। यह दुर्गुण सारे पवित्र
सम्बन्धों की नींव हिलाने में सक्षम है। किसी ने सच ही कहा हे कि –
हमीं गर्क करते हैं जब
अपना बेड़ा
तो बतलाओ फिर नाखुदा
क्या करेंगे।
जिन्हें दर्दे दिल से
ही फुर्सत नहीं है
वो दर्दे वतन की दवा
क्या करेंगे ?
5 – नकारात्मक चिन्तन (Negative
thinking) –
बाहर की दुनियाँ हमारे चिन्तन, मानसिक शान्ति, प्राकृतिक स्वभाव पर
हावी होती जा रही है। सुबह के अखबार से लेकर तमाम नोटिफिकेशन, टेलीविज़न के कार्य
क्रम, हिंसा, मारधाड़, चोरी, डकैती, बलात्कार, गबन, भ्रष्टाचार की बातें
शुद्ध सात्विक मन को नकारात्मकता में डुबो देती हैं। मानव अपने मूल स्वरुप को भूल
नकरात्मकता से जुड़ बुराई के आचरण को अंगीकार करने लगता है। यह नकारात्मकता
व्यक्तित्व को दुष्प्रभावित कर हमें सामान्य मानवीय गुणों की ग्राह्यता में भी
बाधक बन जाती है न शान्ति से सोने देती है न विकास के नए आयामों से जुड़ने देती है।
भय, चिन्ता,आक्रात्मकता, चिड़चिड़ापन, असहिष्णुता को सोते
जगते हमारे चिन्तन से जोड़ देती है। मानव का सहज,, शान्त, तेजस्वी ,दिव्य स्वरुप खोने
लगता है। जो बहुत बड़ी चिन्ता व मूल्य अवनमन का कारण है।
मैं यह कहना चाहूँगा
कि सुबह व रात्रि में सोने से पहले कम से कम
दो घण्टे मोबाइल, अखबार, टेलीविज़न, लेपटॉप स्क्रीन से दूर
रहें। आवश्यक पढ़ें अनावश्यक त्यागें। नकारात्मकता से दूर रहकर सकारात्मक विचारों, व्यक्तित्वों, चिन्तन से खुद को
जोड़ें।
आज यहाँ जिन पाँच
बिन्दुओं पर चर्चा हुई ये हमारे विनाश का कारण हैं यद्यपि इनमें सूक्ष्म अंतर है
लेकिन ये आन्तरिक रूप से मिलकर सम्पूर्ण मानवता का बेडा गर्क कर देते हैं। प्रत्येक
बुद्धिजीवी, राष्ट्रवादी, देश प्रेमी का
कर्त्तव्य है कि इस दुष्चक्र से खुद निकले और सामान्य जन मानस व नव पीढ़ी हेतु
प्रगति पथ तैयार करे। यदि हम सही दिशा दे
पाए तो नई पीढ़ी इसका आलम्बन ले अनन्त ऊँचाइयाँ तय करेगी। सभी अपनी क्षमता भर
प्रयास करें। हम निश्चित ही सफल होंगे। पूर्ण विश्वास है।
जब हम हाई स्कूल उत्तीर्ण कर इण्टरमीडिएट विज्ञान वर्ग में प्रवेश लेते हैं तो तरह तरह के सपने हमारे मनोमष्तिष्क में पल रहे होते हैं यह उम्र ही ऐसी है जो तनाव ,तूफ़ान, सांवेगिक संघर्ष और कल्पना लोकसे हमारा प्रत्यक्षीकरण कराती है लेकिन इण्टर मीडिएट करते करते जागरूक विद्यार्थी के चरण यथार्थ के धरातल को स्पर्श करने लगते हैं। यह काफी कुछ हमारे घर की आर्थिक स्थिति और हमारे मानसिक स्तर से निर्धारित होता है।विविध निरीक्षण बताते हैं कि विज्ञान वर्ग के विद्यार्थियों के साथ उनके मातापिता अन्य वर्ग के विद्यार्थियों की तुलना में अधिक चिन्तित रहते हैं कि अब क्या करें क्या न करें। बच्चे के भविष्य का सवाल है।
आप सभी की समस्या समाधान की ओर यह एक प्रयास है विश्वास है कि यह दिशा बोधक सिद्ध होगा। इण्टर मीडिएट विज्ञान अपने में जीवविज्ञान और गणित के दो दिशामूलक तत्त्व साथ लेकर चलता है। विज्ञान वर्ग से इण्टरमीडिएट करने के बाद डिप्लोमा कोर्स, कम्प्यूटर कोर्स,फार्मेसी, इन्जीनियरिंग, व चिकित्सा परिक्षेत्र के कई मार्ग खुलते हैं साथ ही मिलते हैं विविध सेवाओं में अवसर। जिन्हे इस प्रकार समझा जा सकता है। –
इण्टर मीडिएट विज्ञान के बाद डिग्री कोर्स (Degree Course after Intermediate
Science)-
विज्ञान वर्ग से इण्टर मीडिएट करने के बाद एक
वृहद पटल खुलता है जिन्हे यहाँ पर एक एक करके बताने का प्रयास करेंगे निम्नवत
डिग्री कोर्स अपनी रूचि, क्षमता, स्थिति
के अनुसार किये जा सकते हैं –
बैचलर ऑफ़ साइंस (B. Sc)
बैचलर ऑफ़ एग्रीकल्चर
बैचलर ऑफ़ फार्मेसी
बैचलर ऑफ़ टेक्नोलॉजी (B. Tech), बैचलर ऑफ़ इन्जीनियरिंग (B.E)
बैचलर ऑफ़ मेडिसिन एन्ड बैचलर ऑफ़ सर्जरी (MBBS)
बैचलर ऑफ़ डेण्टल सर्जरी (BDS)
बैचलर ऑफ़ फीज़ीओथेरेपी (BPT)
बैचलर ऑफ़ होम्योपैथिक मेडिसिन एन्ड सर्जरी (BHMS)
बैचलर ऑफ़ आयुर्वैदिक मेडिसिन एन्ड सर्जरी (BAMS)
बैचलर ऑफ़ यूनानी मेडिसिन एन्ड सर्जरी (BUMS)
माइक्रो बायोलोजी
बायो टेक्नोलॉजी
बायोइन्फॉर्मेटिक्स / Bioinformatics
जैनेटिक्स
सामान्यतः लम्बे अन्तराल तक यह माना जाता रहा
की इण्टर PCM के बाद बालक इन्जीनियरिंग के क्षेत्र में जायेगा उसे JEE Main की तैयारी करनी चाहिए और IIT की चाह रखने वालों को JEE Main के साथ JEE एडवान्स
भी निकालना का प्रयास करने का प्रयास करना होगा।
डिप्लोमा कोर्स से जुड़ने हेतु इलेक्ट्रिकल,
सिविल, मेकेनिकल, केमिकल इंजीनियरिंग आदि क्षेत्रों से जुड़ा
डिप्लोमा कोर्स किया जा सकता है।
दूसरी और चिकित्सा के क्षेत्र में स्थान बनाने
हेतु NEET परीक्षा पास करनी होगी और इसके स्कोर के आधार
पर MBBS, BDS, BHMS, या BUMS आदि
का स्थान मिलेगा।
लेकिन आज पैरा मेडिकल का एक आकाश भी शीघ्र
अर्थोपार्जन का जरिया बन सकता है।
12th PCB के बाद पैरामैडिकल कोर्स –
पैरामेडिकल
का एक बहुत बड़ा क्षेत्र है जो कक्षा 12 वीं के छात्रों के लिए सर्टिफिकेट, डिप्लोमा और डिग्री कोर्स प्रदान करता है।
पैरामेडिकल का यह क्षेत्र पैरामेडिकल
डिग्री वालों हेतु करियर का बहुत बड़ा आयाम प्रदान करता है है। इस कोर्स के लिए न्यूनतम योग्यता 50% अंकों के साथ PCB में 12 वीं पास है। 12th PCB के बाद प्रमुख पैरामैडिकल कोर्स बताने हेतु इस प्रकार
क्रमित किये जा सकते हैं यथा –
बी एस सी
इन मेडिकल इमेजिंग टेक्नोलॉजी
बी एस सी
इन एक्स-रे टेक्नोलॉजी
बी एस सी
इनडायलिसिस टेक्नोलॉजी
बी एस सी
इन मैडिकल रिकॉर्ड
बी एस सी
इन रेडिओग्राफी
बी एस सी
इन मेडिकल लैब टेक्नोलॉजी
बी एस सी
इन एनेस्थिया टेक्नोलॉजी
बी एस सी
इन ऑप्टोमेट्री
बी एस सी
इन ऑडियोलॉजी एण्ड स्पीच
बी एस सी
इन थिएटर टेक्नोलॉजी
इसके अलावा बहुत से परिक्षेत्र अपनी जगह बनाते
जा रहे हैं।
कम्प्यूटर कोर्स की
अपनी एक बहुत बड़ी श्रृंखला है जिन्हे
इण्टर मीडिएट के बाद किया जा सकता है ।
सर्व प्रथम आपको बधाई की आपने जीवन का महत्त्वपूर्ण पड़ाव पार किया है विश्व का बहुत बड़ा पटल आपका स्वागत करने को उत्सुक है। बहुत खुशी होती है की भटकाव की उम्र को धता बता आप जब म्हणत और लगन से इस पड़ाव को पार करते हैं और ऐसे ऐसे प्रश्न पूछते हैं की तबियत खुश हो जाती है लेकिन एक प्रश्न आप सबको चिन्तन के लिए विवश करता है कि अब क्या करें ?
इस
प्रश्न का उत्तर सबके लिए अलग अलग होता है क्योंकि सबकी आर्थिक स्थिति, परिस्थितियां, अधिगम स्तर,
ऊर्जा स्तर और सपने अलग अलग होते हैं।
इस
प्रश्न को सही व सार्थक उत्तर तक ले जाने के प्रयास में ही हुआ है आज का यह सृजन।
आपके लिए बहुत से मार्ग खुलते हैं जो आपको आपकी परिस्थिति के अनुसार आगे की पढ़ाई, प्रशिक्षण पाठ्यक्रम या सेवाकार्य से जोड़ते
हैं। विविध कार्यक्रम इस प्रकार हैं –
इण्टर आर्ट्स के बाद डिप्लोमा(Diploma after Inter Arts)-
अध्यापन
में डिप्लोमा,विदेशी भाषा में डिप्लोमा,चिकित्स्कीय परिक्षेत्र में डिप्लोमा
डिज़ाइनिंग के परिक्षेत्र में डिप्लोमा जैसे फैशन, ज्वैलरी, इंटीरियर, वेब
या ग्राफिक्स इनके अलावा भी आज बहुत से नए डिप्लोमा परिक्षेत्र विकसित हो रहे हैं
जो आपको शीघ्र कमाने योग्य बना सकते हैं। यथा डिप्लोमा इन 3D एनिमेशन,डिप्लोमा इन मल्टीमीडिया, डिप्लोमा इन एडवरटाइजिंग एंड मार्केटिंग, डिप्लोमा इन ट्रैवल एंड टूरिज्म,
डिप्लोमा इन इवेंट मैनेजमेंट, डिप्लोमा इन साउंड रिकार्डिंग आदि ।
इण्टर आर्ट्स के बाद डिग्री कोर्स (Degree course after inter arts)-
1- बैचलर ऑफ आर्ट्स(बीए)
2-बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स (बीएफए)
3-बैचेलर इन सोशल साइंस
4-बैचेलर इन ह्यूमेनिटी
5-बैचलर इन जर्नलिज्म
6-बैचलर ऑफ साइंस (होस्पिटेलिटी एंड ट्रैवल)
7-बीए एलएलबी
8-बैचलर ऑफ एलीमेन्ट्री एजूकेशन
9-बैचलर ऑफ डिजाइन (एनीमेशन)
10- विविध कला परिक्षेत्र के ऑनर्स डिग्री कोर्स आदि ।
इण्टर आर्ट्स के बाद सेवाएं (Services after Inter Arts)
शिक्षक /Teacher
वकील /Advocate
फैशन या टेक्सटाइल डिजाइनर/Fashion या textile designer
होटल मैनेजमेंट / Hotel Management
पत्रकार / Reporter
सरकारी नौकरी /Government job यथा एसएससी मल्टी टास्किंग स्टाफ, एसएससी ग्रेड C और ग्रेड D आशुलिपिक, रेलवे ग्रुप डी (आरआरबी / आरआरसी ग्रुप डी),एसएससी जनरल ड्यूटी कांस्टेबल, आरआरबी सहायक लोको पायलट, इंडियन आर्मी एग्जाम फॉर द पोस्ट ऑफ टेक्निकल एंट्री स्कीम, महिला कांस्टेबलों, सोल्जर्स, कैटरिंग के लिए जूनियर कमीशन अधिकारी।
स्वरोजगार के विविध अवसर (Various self employment opportunities) -
यदि आप नौकर बनने की जगह मालिक बनाना चाहते हैं तो अपने घर के पुश्तैनी कार्य या आपके लिए सम्भव किसी भी स्वरोजगार से स्वयं को जोड़ सकते हैं कोइ कार्य छोटा बड़ा नहीं होता हमारी सोच उसे छोटा बड़ा बनाती है। आप शीघ्र ही कई अन्य को रोजगार देने की स्थिति में आ जाएंगे।
आज सूचनाएं बिजली की गति से उड़ रही हैं जिन्हे कोई होम सिकनेस नहीं है वे इन अवसरों का लाभ उठा सकते हैं याद रखें एक चूका हुआ अवसर खोई हुई उपलब्धि है कभी हताश निराश नहीं होना है नित्य बदलता बहुत बड़ा आकाश हमारे सामने है। परम श्रद्धेय मैथिली शरण जी की पंक्तियों में सन्देश छिपा है आपके लिए -
संभलो कि सुयोग न जाय चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलंबन को
नर हो, न निराश करो मन को।