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वाह जिन्दगी !

स्ववित्त पोषित संस्थानों का………….

August 3, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

स्ववित्त पोषित संस्थानों का घाव दिखाने लाए हैं

उच्च शिक्षा के गुरुओं का दुःख, दर्द बताने आए हैं

कुछ गुरु भूखे और अध नंगे, दृश्य दिखाने लाए हैं

कुलदीपक बुझने वाले हैं हम अन्तिम साँसे लाए हैं ।1।

सर्वाधिकार सम्पन्न हो तुम हम दर्द दिखाने लाए हैं

कितना मसला कुचला हमको, यही बताने आए हैं

सरकारी संस्था से कई गुने छात्रों को पढ़ाते आए हैं

प्रतिफल में पाया बहुत अल्प  लाज बचाते आए हैं ।2।

आपके चन्द संस्थानों से कई गुने का बोझ उठाए हैं

सिरपर घनघोर अनीति का हम दर्द छिपाते आए हैं

आपके  तीर, तलवारों का शिकार हम होते आए हैं

आपकी आँख में शर्म नहीं हम मर्यादा ढोते आए हैं ।3।

स्ववित्त पोषित संस्थानों से, वे नज़र चुराते आए हैं

दोहरी नीति रखता है तन्त्र, ये सौतेले रिश्ते लाए हैं

प्राणों का संकट शासन है ये दवा नहीं कोई लाए हैं

केवल मुहरा, पासा  समझा, ये हमें पटकते आए हैं ।4।

वो कहते हम हैं सबसे अच्छे अलबेली नीति लाए हैं

फिर कहेंगे नीति तो अच्छी परिणाम ना मन भाए हैं

ये नहीं देखते अधिकाँश गुरु भूखे मरते अकुलाए हैं

गुरु अस्तित्व संकट में है, भविष्य पर काले साए हैं ।5।

सारे शासन देखे  हमने, सबकी फितरत के साए हैं

फिर मत कहना कुलघाती हैं व आग लगाने आए हैं

हम जल जल कर अँगार हुए हाँ कुछ अँगारे लाए हैं

तुमने अब तक विष बीज बोए फलित हुए वे आए हैं ।6।

स्ववित्त पोषित संस्थानों का घाव दिखाने लाए हैं

उच्च शिक्षा के गुरुओं का दुःख, दर्द बताने आए हैं….

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वाह जिन्दगी !

रक्षा बन्धन/RAKSHA-BANDHAN

August 2, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

पावन पावस मधुरिम बन्धन,

मनभावन सावन रक्षा बन्धन।।

मन के भावों का आलिङ्गन

भ्राता, भगिनी मन आनन्दम

जीवन का सुन्दरतम बन्धन

बँधना चाहे तत्क्षण यह मन।।

कच्चे धागों का पक्का बन्धन

तन मन भावन है अभिनन्दन

बस मन भाता है रोली चन्दन

कितना पावन, पावस बन्धन।।

अगणित जन्मों का यह बन्धन

प्रमुदित बचपन यौवन जीवन

सद् भावों का अद्भुत संगम

ना देखे जाति पाति औ धरम।।

सद्भाव जनित जीवन चन्दन

सुरभित हुलसित लाली नन्दन

सच सुन्दरतम मानस बन्धन

तन मन बँधता सुन्दर बन्धन ।।

दीप, फूल, मधु संग सानन्दम

सुन्दर चितवन ज्यों रघुनन्दन

स्मित समुचित मन वृन्दावन

मन  पीर  हरें  जसुदानन्दन ।।

मन से मिटता सारा क्रन्दन

त्रि -तापों में दिखता मन्दन

आशीष भाव व अभिनन्दन

धागों भावों सुस्मित बन्धन ।।

पावन पावस मधुरिम बन्धन,

मनभावन सावन रक्षा बन्धन।।

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काव्य

गरीबी एक घुन ही है।Garibi Ek Ghun Hi Hai.

July 19, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

गरीबी एक घुन ही है

विरहा राग सुनाती है

सब टूटे हैं इसमें सपने

सोच में आग लगाती है ।

मेहनत मूल्य खुशहाली है

बात समझ नहीं आती है ।1।

ये सामजिक घुन ही है

इससे बदहाली आती है

शोषक को खून दिया तुमने

जीवित चिता जलाती है।

मेहनत मूल्य खुशहाली है

बात समझ नहीं आती है ।2।

बेहोशी का चिन्ह ही है

दरिद्री भाव  जगाती है

निज शक्ति न पहचाने

ये तुम्हें बाँटती जाती है ।

मेहनत मूल्य खुशहाली है

बात समझ नहीं आती है ।3।

श्रम का भाग्य ऋण ही है

हर पीढ़ी को खा जाती है

नवपीढ़ी कैसे समृद्ध बने

यह नीति ऋणी बनाती है ।

मेहनत मूल्य खुशहाली है

बात समझ नहीं आती है ।4।

कर्मवीरों का खून ही है

डकार नहीं आ पाती है

भाग्य छीन खाया किसने

ये पोल नहीं खुल पाती है।

मेहनत मूल्य खुशहाली है

बात समझ नहीं आती है ।5।

देश को अभिशाप ही है

नैतिकता भुलाई जाती है

सबके सपने छीने जिसने

लक्ष्मी उसके घर आती है।

मेहनत मूल्य खुशहाली है

बात समझ नहीं आती है ।6।

गरीबी एक घुन ही है……

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काव्य

अब नागपञ्चमी आई है …..

by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

अब नागपञ्चमी आई है

नागों को दूध पिलाते हैं

शब्दों पर ही मत जाओ

भावों का राग सुनाते हैं ।।

ये सावन की अंगड़ाई है

शिव का साज सजाते हैं

बेबात मत बाहर जाओ

मानस के भाव जगाते हैं ।।    

बारिश की बूँदें आईं हैं

घनी घटा को बुलाते हैं 

इन बूँदों पर मत जाओ

घनघोर बारिश लाते हैं ।। 

बहना की राखी आई है

भावों में भीग के गाते हैं

कीमत पर यूँ मत जाओ

ये पावन भाव जगाते हैं।।

पावस पर्व ऋतु आई है

सब ही तो इन्हें मनाते हैं

अरे कहीं पर मत जाओ

हर वर्ष तो आते जाते हैं।।

ये साल कोरोना लाई है

आऐं इसको निपटाते हैं

चीनी शै पर मत जाओ

ये त्रासद गीत सुनाते हैं।।    

अब नागपञ्चमी आई है

नागों को दूध पिलाते हैं….

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वाह जिन्दगी !

मन प्रीत छोटे भाईयों के नाम करता हूँ .

July 16, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

ममन प्रीत छोटे भाईयों के नाम करता हूँ

मैं हूँ बड़ा बस इसलिए आराम करता हूँ

तुम्हारा रुक कर पढ़ना वो याद है मुझे

उन विगत अग्रजों को राम राम करता हूँ ।1

याद गली मुहल्लों को बारम्बार करता हूँ

जिन वृक्षों ने खिलाया, धन्यवाद करता हूँ

तुम्हारी हर शरारत अब भी याद है मुझे

लोगों के प्रेम जज्बे को सलाम करता हूँ ।2

हर बात पर हास्य, कला याद करता हूँ

बन्द आँखकर ईश से फरियाद करता हूँ

वो अमरुद,आम,जामुन सब याद हैं मुझे

खट्टी मीठी उन यादों में हर वक़्त रमता हूँ ।3

मनस बरसाती स्नान से सानन्द भरता हूँ  

मौसमी बदलावों पर बस, आह भरता हूँ

नाव की हर सवारी अब भी याद है मुझे

त्यौहारी उन रंगों को आँखों में भरता हूँ ।4 

होती आँख नम तुम्हें जब आज लखता हूँ

जिम्मेदारी व दुश्वारियों से आज थकता हूँ

वो जिंदादिली के किस्से सभी याद हैं मुझे

दायित्व डूबे खून में आँसूओं से लिखता हूँ ।5

बेकली बेबसी में अब दिनरात फँसता हूँ

तुम्हारी बात याद कर जब तब हँसता हूँ

माँ पितृ युगल डाँटें अब भी याद हैं मुझे

क्या करूँ दिन में कई कई बार मरता हूँ ।6

मन प्रीत छोटे भाईयों के नाम करता हूँ

मैं हूँ बड़ा बस इसलिए आराम करता हूँ …….    

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काव्य

मैं अज्ञ हूँ ……. / Main Agy Hoon.

July 7, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

मैं अज्ञ हूँ, तुम विज्ञ हो,

अल्पज्ञ मैं,  सर्वज्ञ तुम। 

मैं अंश हूँ, तुम पूर्ण हो,

मैं बूँद हूँ सागर हो तुम ।1।

मैं अनाथ हूँ तुम नाथ हो

मैं दीन, दीना नाथ तुम।

मैं कृति,  तुम उद्गार हो,

मैं आत्म हूँ परमात्म तुम ।2।

मैं क्षेत्र, तुम क्षेत्रज्ञ हो,

मैं गीत हूँ गायक हो तुम,

मैं पथिक तुम प्रकाश हो,

मैं शिल्प हूँ शिल्पी हो तुम ।3।

मैं गात हूँ, तुम चेतना,

मैं दीप हूँ ज्वाला हो तुम।

मैं रुण्ड हूँ तुम मुण्ड हो,

मैं अर्थी हूँ सारथी हो तुम।4।

मैं अज्ञ हूँ तुम विज्ञ हो,

अल्पज्ञ मैं, सर्वज्ञ तुम।।…….   

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काव्य

पितृ प्रेम का सारा परिचय……………

June 21, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

पितृ प्रेम का सारा परिचय एक दिवस से जुड़ आया।

उसी दिवस के कुछ लम्हों  में, पिता उन्हें याद आया ।

वही पिता जिसने सर्वस्व जीवन का हरपल बिखराया।

वक़्त ने निज चाल बदल ली बदला बदला क्षण आया ।।

पितृ और मातृशक्ति ने मिलजुल करके नीड़ बनाया।

उसी नीड़ की छाया में तन मन टुकड़ों को सरसाया।

इक दूजे का हाथ थाम दृढ़ता व प्रेम का पाठ पढ़ाया।

नईनवेली शिक्षा ने दोनों हित अलग से दिवस बनाया।।

ऐसा लगता रात्रि बिन दिन का अस्तित्व उभर आया।

धूप का शुभअस्तित्व बना तभी तो प्रिय लगती छाया।

बच्चों ने अपने हृदयों  में, जिनको न कभी अलग पाया।

उन्हें अलगथलग करने का कुचक्र नया चलता पाया ।।

ये सब खेल बाज़ारों का है बहुत देर में समझ आया।

कार्ड,उपहार,कृत्रिम साधन हैं हमने तोअमूल्य पाया।

एक दिवस में ना सिमटेगा भारतीय मन ने समझाया।

मातृ पितृ ऋण चुक जाए जीवन इस हित छोटा पाया।। 

जीवन में जो पढ़े आज तक उससे यही समझ आया।

कृतज्ञता भाव महिमा अपार, हमसे कुछ ना हो पाया।

ईश्वर ने मातृ पितृ रूप में दे दी ‘ नाथ ‘ अद्भुत छाया।

यह जीवन है उन्हें निछावर जिसने ये अस्तित्व दिलाया।।

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वाह जिन्दगी !

अकुलाना छोड़ दे। Akulana Chhor De.

June 9, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

सपने देख कर बड़े बड़े नज़रें चुराना छोड़ दे।

ना होंगे पूरे पड़े पड़े इसलिए इतराना छोड़ दे।

ख़ुदी हो इतनी बुलन्द कि वो घबराना छोड़ दे।

पसीना बहा क्षमता भर आलस्य लाना छोड़ दे।

छोटे रस्ते मत ले चल ईमानदारी की डगर पर।

तड़प सपनों के लिए बस दुनिया दारी छोड़ दे।

दिन हो चाहे रात हो हाँ नज़र हो बस ध्येय पर।

मौसम, महीना देख मत सब ही बहाने छोड़ दे।

विविध जन बताएंगे कि ऐसा कर वैसा न कर।

मेहनत ही औजार हो जिन्दादिली को जोड़ दे।

नाथ संशय छोड़ दे व कण्टक पथ की राह धर।

सफलता अनुचर बनेगी अब अकुलाना छोड़ दे।    

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वाह जिन्दगी !

मुझसे कितना दूर भागता मेरा मन ? 

June 1, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

मेरा बिलकुल कहा न करता मेरा मन,

क्या यह सम्भव है दोनों में अन बन पन ?

बहु बन्धन में बस बँध जाता मेरा तन,

पर बिल्कुल, स्वच्छन्द घूमता मेरा मन।

मुझसे कितना दूर .. .. .. ..

अन्तर्मुखता से जुड़ता जाता है यह तन,

पर बहिर्मुखी बनता जाता है, मेरा मन।

कर्त्तव्यपथ पर बढ़ने को तत्पर यह तन,

पर केवल अधिकार चाहता है ये मन।

मुझसे कितना दूर .. .. .. ..           

गुत्थम – गुत्था होता रहता है तन मन,

ऐसा लगता नहीं किसी से कोई कम।

जीवन यापन को प्रस्तुत होता है तन,

कल्पना जगत में रह जाता बेचारा मन।

मुझसे कितना दूर .. .. .. ..

समझ समस्या सुलझाने को तत्पर तन,

पर मन उड़ता लेने को आकाश कुसुम।

आवारागर्दी से मन की, तपता है तन ,

पर बाज नहीं आता फितरत से मेरा मन।

मुझसे कितना दूर .. .. .. ..

सभी विवशताओं से विवश होता है तन,

लेकिन सारी डोर काट, उड़ जाता मन।

धरातलीय ठोकर खाने को प्रस्तुत तन,

पर सब तथ्यों को हल्के में लेता है मन।   

मुझसे कितना दूर .. .. .. ..

ऐसा कब तक द्वन्द चलेगा ऐ तन मन ,

दोनों में अब संगत करवा दे अन्तर्मन।

जीवन के चलने तक चलता है ये तन,

तन के साथ ‘ नाथ ‘ हरण होता है मन।

मुझसे कितना दूर .. .. .. ..

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वाह जिन्दगी !

संग्राम तय करना पड़ेगा ।Sangram Tay Karna Padega,

May 27, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

शाश्वत नियम है परिवर्तन सहज हो वरना पड़ेगा ।

जड़त्व, ठहराव, स्थिरता मोह तज चलना पड़ेगा ।।

गर इस चक्कर में पड़े तो समय तुम्हें पिछड़ा कहेगा ।

प्रगति हमराह को बदलता ताललय सुनना पड़ेगा ।1।

देखना नव प्रभात में, दिन मान पुनः ऊपर उठेगा।

आशा का दामन पकड़ विश्वास से कोपल खिलेगा।

विश्वास को तुम साध लेना फिर मनस ऊँचा उठेगा।

पुरातन इस धरातल पर, नव शुभ्र सा उगने लगेगा।2।

वेदना का मर्म जान कर नव कारवाँ जुड़ने लगेगा।

मर्माशय भेद का समझ मर्मज्ञ मनस बनने लगेगा।

सारे भावों को समझ यह मन मनन करना लगेगा।

सुशासन समागम पर शुभ लाभ नव जुड़ने लगेगा ।3।

नेपथ्य में कुछ शोर है, नेतृत्व सहज करना पड़ेगा।

भीड़ सारी दिशा हीन, दिशाबोध से जुड़ना पड़ेगा।

पत्तियों को जल दिया तो, फर्क भूतल क्या पड़ेगा।

सोच कर सब बातें हवाई जमीन से जुड़ना पड़ेगा।4।

सोचना ये सब छोड़ दें कौन कबकब क्या कहेगा।

आत्मबल केवल सद्कर्म कर संग तेरे रैला चलेगा।

सच से बिल्कुल मत भटकना धैर्य से बढ़ना पड़ेगा।

धैर्य, संयम, वीरता संग उत्साह मेल करना पड़ेगा ।5।

छोड़ दो दुर्भावना सब राष्ट्रवाद अब गढ़ना पड़ेगा।

धीमी गति कुछ नहीं अब, तीव्रता से बढ़ना पड़ेगा।

सीख है इतिहास की, कौशल बदल चलना पड़ेगा।

‘ नाथ ‘ डर कर कुछ नहीं संग्राम तय करना पड़ेगा ।6।

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