चन्द पैसे क्या मिले वह घर से रिश्ता तोड़ आया।
मैं तो सज़दे में था जब घर बिलखता छोड़ आया।
हम सब हुए अवाक थे इस जमाने की रफ़्तार से
मेरा बेटा अपने घर से सम्बन्ध सिरे से तोड़ आया।
कुछ दमड़ियाँ मिलगईं गाँव से शहर दौड़ आया।
मैं पसीने से तरबतर था अम्मी से बस बोल आया।
तबियत कुछ नासाज़ थी बोल कुछ बिगड़े हुए से।
अब्बू ने पैदा किए हैं सो उनके जिम्मे छोड़ आया।
पाँच भइयों चार बहनों से था वो रुख मोड़ आया।
वह अकेला होगया पर खुश है मैं यह बोल आया।
हम को चिन्ता हो रही थी, क्या खायेगा बाज़ार से।
पर उसे चिन्ता नहीं थी घर छोड़ वो जो दौड़ आया।
वो अपने जहाँ में खुश, मुफ़लिसी का दौर आया।
मैं कमजोर होगया सो मुनीमियत भी छोड़ आया।
बच्चे ऑ हम गुजर रहे थे, फाकाकशी के दौर से।
मैं खुदा से कह रहा था, ख़ुदाया क्या कहर ढाया।
कुछ दिनों में सेठ ने, मुझे दुकाँ पर फिर बुलाया।
जुम्मन मियाँ घर न बैठो तुमपर है विश्वास आया।
काम हम करने लगे ऑ सीखे बहुत कुछ दौर से।
जो बेटा घरसे गया था वह टाँग अपनी तोड़ आया।
घर वो अपने आ गया था नहीं उसे हमने बुलाया।
या खुदा तेरा शुकर है, जिन्दगी में दिन ये लाया।
बेटा बहुत सा सीखआया निकलकर तन्हाइयों से।
यारब तेरा शुक्रिया है जो पूरेघर को फिर मिलाया।