सोलह कला सम्पूर्ण भगवान श्री कृष्ण चन्द्र भगवान के बारे में उठी जिज्ञासा का समाधान बड़ी बहन कैसे कर रही है ? योगिराज मुरलीवाले के जन्मोत्सव की शुभ कामनाओं के साथ इन दोनों बहनों की बाल लीला का भी आनन्द लें। राधे राधे ……..।
सोलह कला सम्पूर्ण भगवान श्री कृष्ण चन्द्र भगवान के बारे में उठी जिज्ञासा का समाधान बड़ी बहन कैसे कर रही है ? योगिराज मुरलीवाले के जन्मोत्सव की शुभ कामनाओं के साथ इन दोनों बहनों की बाल लीला का भी आनन्द लें। राधे राधे ……..।
मानव स्वयम को जगत का सर्वोत्कृष्ट प्राणी मानता है। विभिन्न सन्त,महन्त,धर्म गुरु इस खिताब को मानव के पक्ष में रख कर श्रेष्ठ तन के रूप में व्याख्यायित करते हैं लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य के जघन्यतम अपराध यही मानव तो कर रहा है ऐसी स्थिति में कुछ महत्वपूर्ण सवाल चिन्तन को झकझोरते हैं प्रस्तुत प्रारम्भिक चार पंक्तियों में जो सवाल मानसिक द्वन्द ने खड़े किये शेष पंक्तियों में भारतीय परिवेश में समाधान देने का प्रयास है,रखता हूँ आपके पावसआँगन में:-
पर्यावरण में दो शब्द निहित हैं परि +आवरण अर्थात जो हमें हर ओर से ढके हो। इसमें किसी प्रकार का असन्तुलन ही प्रदूषण का परिचायक है जहाँ वस्तुएं ,जल ,वायु ,आकाश हमें प्रभावित करता है वहीं विचार भी पथ भ्रष्ट हो नैतिक प्रदूषण का कारक बनाते हैं। कोई विचार या वाद किस तरह से प्रदूषण का कारक बन सकता है यह इस लेख में स्पष्ट नजर आता है :-
मानव उत्थान के क्रम में ज्ञान का प्रस्फुटन विविध स्वरूपों में हुआ ,ज्ञान ने अध्यात्म से युक्त होकर तीव्र प्रवाह धारण कर विश्व को आप्लावित किया। चरमोत्कर्ष के इस काल को आदि गुरु शंकराचार्य का वरद हस्त मिला और ज्ञान की निर्झरिणी वेदान्त दर्शन के रूप में बह निकली,वेदान्त दर्शन के सिद्धान्तों को गेय रूप में देने का अदना सा प्रयास ही है इस प्रस्तुति के माध्यम से :–
जीवन एक अनोखी यात्रा है मानव यायावर है ,मानव हृदय कभी उत्थान हेतु तरंगित होता है तो कभी अवसाद युक्त हो हार के कगार पर जा बैठता है प्रस्तुत पंक्तियाँ मानव को उत्साह और जीवटता से युक्त रखने को प्रेरित करती हैं और जीवन में विविध रंगों को भरने हेतु जागरण का भाव जगाती हैं जो लोग थक हार कर निराशा के गर्त में गिरने को उद्यत हैं उनमें जाग्रति संचरण कर बताती हैं कि – ‘कुछ और अभी बाकी है ‘
भारत के शौर्य कलश चमक रहे हैं हमने विषम परिस्थितियों में विजय के कालजयी सोपान लिखे हैं। वर्तमान में देश के बाहर के दुश्मनों के अलावा देश के अन्दर के गद्दारों को भी धूल चटानी है। मैं सभी देश प्रेमियों का आह्वान करता हूँ और कहना चाहता हूँ:-
वर्तमान भारतीय परिप्रेक्ष्य में जिस व्यावहारिक दर्शन की आवश्यकता पारिलक्षित हो रही है उसके बीज डॉ 0 भीम राव अम्बेडकर के शिक्षा दर्शन में दीख पड़ते हैं ,आज हम सभी को उनके शिक्षा के प्रति दृष्टिकोण से परिचित होना परम आवश्यक है प्रस्तुत है सरलतम शब्दों में उस महान व्यक्तित्व का शिक्षा दर्शन-
बाल संसार एक अनोखा ही संसार है,इसमें कहीं कल्पना की उड़ान है ,कहीं मनुहार, कहीं बाल हठ दीख पड़ता है बाल लीलाएं मन मोह लेती हैं। प्रस्तुत शब्दों में ऐसी ही जिद है। हठ कर बैठी बिटिया मेरी, माता से यूँ बोली–
काले बादल, ठण्डी हवा ,महाविद्यालय से वापसी का समय ,अनायास मेरी निगाह ऊपर उठी और लगा कि बादलों के रूप में एक समुद्र ऊपर से झाँक रहा है बादल फटने का दृश्य मेरे जेहन में कौंध उठा ,जब मैंने उन यादों को झटकना चाहा तो मेरी कड़कड़ाती ठण्ड में हुई ‘मैदान से वार्ता’ जीवन्त हो उठी। प्रस्तुत हैं स्मृति पटल से उस वार्ता के प्रमुख अंश
शोध कार्य की परिणति जब लघुशोध (Dissertation) या शोधग्रन्थ (Thesis) के रूप में हो जाती है तो कार्य पूर्ण नहीं हो जाता तथा कम शब्दों में सम्पूर्ण शोध कार्य को “शोध सार” के रूप में बोधगम्य बनाया जाता है जिससे कम समय में तत्सम्बन्धी कार्य क्षेत्र के बुद्धिजीवी उसे समझ सकें।