मूल्य का अर्थ (Meaning of value) –
मूल्य शब्द अंग्रेजी के value शब्द का समानार्थी है यह लैटिन भाषा के Valare शब्द से बना है और इसका अर्थ है योग्यता या महत्त्व। इसे संस्कृत में इष्ट कहा जाता है इष्ट का अर्थ है “वह जो इच्छित है।” वास्तव में मूल्य वह मानदण्ड हैं जिसके द्वारा लक्ष्यों का चुनाव किया जाता है मूल्य एक व्यवस्था है मूल्य यथार्थ तथा आदर्श के विभेद के मध्य संयोजक की भूमिका का निर्वहन करते हैं मूल्यों का बोध विवेक शक्ति उत्पन्न होने पर ही सम्भव होता है। मूल्य चाहे व्यावहारिक हों या आदर्शवादी, पारमार्थिक हों या नैतिक। यह सभी मानव को नैतिक जीवन जीने में सहायक होते हैं।
मूल्य सम्बन्धी भारतीय दृष्टिकोण –
भारतीय मनीषियों ने मानवीय मूल्यों की विवेचना के कल्याण की कामना करते हुए की है हमारा आदर्श है गरुण पुराण के यह शब्द –
सर्वे भवन्तु सुखिनः।
सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु।
मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥
भारतीय मनीषियों ने मूल्य के लिए पुरुषार्थ शब्द का प्रयोग किया है इनके आधार पर मूल्य इस प्रकार हैं –
भारतीय मूल्य
(1) – आध्यात्मिक मूल्य(Spiritual Value) मोक्ष Self Perfection
(2) – लौकिक मूल्य (Empirical value)- धर्म (Virtue), अर्थ (Wealth), काम(Pleasure)
यहाँ यह कहना प्रासंगिक होगा कि अर्थ और काम वही नैतिक जो धर्मयुक्त हो।
मनु स्मृति धर्म पथ को मूल्य अनुगमन स्वीकारती है इनके अनुसार धर्म के गुणों का धारण करने वाला ही मूल्य संरक्षक है इनके अनुसार-
इसे सुनें
धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचं इन्द्रियनिग्रहः। धीर्विद्या सत्यं अक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ।
अर्थात्:— धर्म के ये दस लक्षण होते हैं:- धृति (धैर्य), क्षमा, दम (मन को अधर्म से हटा कर धर्म में लगाना) अस्तेय (चोरी न करना), शौच (सफाई), इन्द्रियनिग्रह, धी (बुद्धि), विद्या, सत्य, अक्रोध (क्रोध न करना)।
इन दस गुणों से युक्त व्यक्ति धार्मिक है शिक्षोपरान्त आचार्य शिष्य को उपदेश देता था –
सत्यं वद धर्मं चर स्वाध्यायान्मा प्रमदः
अर्थात सामाजिक गृहस्थ जीवन में सत्य बोलो, धर्म का आचरण करो, स्वाध्याय में आलस्य मत करो।और इस प्रकार मूल्यों को दिशा दी गयी है।
यद्यपि चार्वाक दर्शन सुखवादी है। वह साधन और साध्य में अन्तर नहीं मानता। वह साध्य को सदैव सुख मानता है चार्वाक अर्थ और काम दो ही मूल्य मानता है। खाओ पीओ और मौज करो यही उसके मूल्य हैं जब कि अन्य दार्शनिक काम को निम्न कोटि का मूल्य मानते हैं।
पाश्चात्य दृष्टिकोण –
प्लेटो के अनुसार
1 – मूल्य बुद्धि ग्राह्य है न कि इन्द्रिय ग्राह्य पदार्थ
2 – मूल्य और सात का मौलिक अभेद है
3 – मूल्य निरपेक्ष, नित्य स्वरुप सत विषय है
4 – ज्ञान का परायण क्षेय और क्षय में श्रेष्ठता का सम्पर्क अथवा प्रमाण
5 – भौतिक और सामाजिक स्तर पर वस्तु का द्योतक वस्तु की नियत रूपता एवम् उसके घटकों का परस्पर अवरोध मूल्य है।
ह्यूम और सिजविक ने “मनुष्य के नैतिक जीवन को द्वन्दात्मक प्रवृत्तियों का विकास निरूपित कर स्वार्थ और परमार्थ के सहज बोध को मूल्य की संज्ञा दी है।”
अर्बन के अनुसार – “मूल्य वह है जो मानव इच्छाओं की तुष्टि करे। ”
जेम्सवार्ड ने मूल्य को इच्छाओं की सन्तुष्टि करने वाली वस्तु बताया है इच्छा की पूर्ति से सुख का अनुभव होता है इस प्रकार सुखानुभूति में मूल्य की अनुभूति होती है।
हॉफ डिंग के अनुसार -“मूल्य वस्तु या विचार में निहित वह गुण है जिससे हमें तात्कालिक सन्तुष्टि मिलती है या उस संतुष्टि के लिए साधन मिलता है। ”
मूल्यों का सङ्कट (VALUE CRISIS )
आज मूल्य परक अवधारणा में बदलाव आ रहा है पुराने भारतीय मूल्य लुप्त हो रहे हैं हमारी मान्यताएं परम्पराएं और प्राथमिकताएं बदल रही हैं हम आध्यात्मिकता को नकार कर पाश्चात्य जगत के जीवन मूल्यों और उनकी भौतिकवादी सभ्यता को अपनाते जा रहे हैं हमारे जीवन मूल्यों का क्षरण हो रहा है प्रसिद्द अर्थशास्त्री ग्रेशम का नियम है कि
“खोटा सिक्का अच्छे सिक्के को चलन से बाहर कर देता है। ”
हमारे मूल्यों पर ग्रेशम का नियम पूरी तरह लागू हो रहा है इन मूल्यों के क्षरण के पीछे निम्न कारण उत्तरदाई हैं। –
1 – आधुनिकता का प्रभाव
2 – पाश्चात्य सभ्यता का अन्धानुकरण
3 – भौतिकता वादी सभ्यता के प्रति अप्रत्याशित मोह
4 – अनीश्वरवादी प्रवृत्ति
5 – तर्क प्रधान चिन्तन
6 – वैज्ञानिक प्रवृत्ति का अधकचरा विकास
क्षरण की इस प्रवृत्ति के बावजूद मानवीय मूल्यों का ह्रास हुआ है नाश नहीं। अवश्य ही वे दब गए हैं परन्तु नष्ट नहीं हुए। भारतीय संस्कृति आज भी जीवित है जबकि यूनान मिश्र और रोम की संस्कृतियां विलुप्त हो गईं। भारतीय संस्कृति अपनी प्राचीन धरोहर के रूप में मूल्यों को आज भी संचित किये हुए है।
उभरते सामाजिक सन्दर्भ में मूल्य (Values in Emerging Social Context) –
आज देश को अपने सामाजिक ढाँचे को मजबूत करने की सर्वाधिक आवश्यकता महसूस हो रही है देश द्रोही शक्तियां येन केन प्रकारेण इसमें सेंध लगाकर मूल्यों को छिन्न भिन्न करने का हर सम्भव प्रयास कर रही हैं। उभरते सामाजिक सन्दर्भ में निम्न आधारित मूल्यों का सृजन व संरक्षण करना होगा।
1 – समता आधारित
2 – ममता आधारित
3 – दया, करुणा आधारित
4 – समय आधारित
5 – संविधान आधारित
6 – राष्ट्रवाद आधारित
7 – आदर्श स्थापन
8 – विवेक आधारित