भारत को फिर से गढ़ने में बहुतों को रीतना होगा।
भूले जो पाठ हैं परिश्रम का लगन से सीखना होगा।
दूजे को दिशा देने से पहले निजको सवाँरना होगा।
अपनी समस्या, प्रश्नों का हल खुद निकालना होगा।
न फँसे भौतिकता में हम, सादगी से विचारना होगा।
चकाचौँध जीवनोद्देश्य नहीं पीढ़ी को उबारना होगा।
धूम्रपान व मय प्याले में डूबे प्राणों को जगाना होगा।
क्या से क्या हो गया जीवन ये जगाकर बताना होगा।
खुद का जमीर गढ़, शेष जमीरों को जगाना होगा।
क्या अच्छा,क्या बुरा खुद सीखकर सिखाना होगा।
घनीभूत आग के दरिया से गुजर आगे जाना होगा।
झंझावातों से टकराने हेतु, मज़बूत तो बनना होगा।
सितमो ग़ुरबत की दुनियाँ में टूटने से बचाना होगा।
कैसे बचना, कैसे लड़ना है,तदबीर सिखाना होगा।
कैसे जीते हैं कद्दावर होके, खुद्दारी सिखाना होगा।
पैसा साधन है,साध्य नहीं हिकमत से बताना होगा।
रिश्ते जो टूटा है बाज़ारों में फिर से संभालना होगा।
सम्बन्धों के बिगड़ैल हाथी को खूँटे से बाँधना होगा।
शीशमहल की किरचों को सलीके से लगाना होगा।
जीना गर सिखा पाए नहीं तो, मरना सिखाना होगा।