कपाल भाति / KAPAAL BHATI
कपाल भाति प्राणायाम एक अत्याधिक ऊर्जा युक्त उच्च उदर प्राण आयाम है। कपाल का अर्थ संस्कृत में होता है ललाट या माथा और भाति का आशय है तेज। कपाल भाति को मुख मण्डल पर आभा, ओज या तेज लाने वाले प्राणायाम के रूप में स्वीकार किया जाता है। इसे योग परिक्षेत्र में षट्कर्म (हठ योग) की एक क्रिया के रूप में मान्यता प्राप्त है। जब हम भाति को स्वच्छता के रूप में स्वीकार करते हैं तो कपाल भाति को मष्तिष्क को स्वच्छ करने या मस्तिष्क की कार्य प्रणाली को दुरुस्त रखने वाले प्राणायाम के रूप में स्वीकार करते हैं।
कपाल भाति के लाभ /Benefits of Kapal Bhati –
कपाल भाति के लाभ /Benefits of Kapal Bhati –
यूँ तो कपाल भाति आन्तरिक शुद्धि का एक महत्त्वपूर्ण साधन है लेकिन यह सम्पूर्ण जीवन और व्यक्तित्व को बदलने की क्षमता रखता है
इससे होने वाले लाभों को इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है।
01 – आन्तरिक शोधन में सहायक / Helps in internal purification
02 – अवसाद में कमी / Reduction in depression
03 – शारीरिक भार नियन्त्रण / Body weight control
04 – ओज में वृद्धि / Increase in glow
05 – वजन में कमी / Weight loss
06 – पाचन सहायक / Digestive aid
07 – पेट की चर्बी पर नियन्त्रण / Control belly fat
08 – उच्च रक्त चाप नियन्त्रण / High blood pressure control
09 – मानसिक स्वास्थ्य का महत्त्वपूर्ण उपादान /Important Component for Mental Health
10 – कोलस्ट्रोल नियन्त्रण /Cholesterol control
11 – हार्मोन असन्तुलन में सुधार / Improves hormone imbalance
12 – नींद हेतु गुणवत्ता सुधार / Improve sleep quality
13 – आँख के नीचे के काले घेरे दूर करना / Removing dark circles under the eyes
14 – विषाक्त पदार्थों का निस्तारण /Disposal of toxic substances
15 – अस्थमा नियन्त्रण / Asthma control
16 – गैस व एसिडिटी दूर करने में सहायक/ Helpful in removing gas and acidityसावधानियाँ /Precautions –01 – यह प्राणायाम खाली पेट ही करना है। यदि कुछ खाया है तो उसके 4-5 घण्टे बाद इसे करें। 02 – उच्च रक्तचाप और गैस से पीड़ित होने पर धीमी गति से इस प्राणायाम को करना है। 03 – गर्भावस्था व मासिक चक्र के समय इससे बचें। 04 – पेट घटाने के चक्कर में इसे पूरे दिन बार बार न करें। 05 – कब्ज की स्थिति में इसे न करें जब तक कब्ज से निजात न पा लें। 06 – ज्वर, दस्त या गम्भीर रोग की स्थिति में इसे न करें। 07 – धूल, धूएं, गर्द-गुबार, आँधी आदि में इसे न करें। 08 – गर्म वातावरण में भी इसे न कर सामान्य तापमान पर करना अधिक उत्तम है। 09 – कोई परेशानी या दिक्कत होने पर योग्य योगाचार्य या चिकित्सक देख रेख में इसे करें। 10 – अस्थमा के रोगी धीमी व नियन्त्रित गति से इसे करें ।प्राणायाम हेतु विधि –01 – आरामदायक कुचालक आसान का प्रयोग करें। 02 – सिद्धासन, पद्मासन, आलती पालती मारकर बैठ जाएँ। 03 – सर व रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें। 04 – शरीर को ढीला छोड़कर आँख बंद कर सकते हैं। 05 – इस प्राणायाम में केवल श्वांस को बारम्बार बाहर छोड़ना है 06 – पूर्ण विश्वास से प्राणायाम की पूर्णता पर शान्ति अनुभव कर ईष्ट शक्ति के प्रति कृतज्ञता भाव रखें। 07 – धीरे धीरे प्राणायाम की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि करते जाएँ। 08 – श्वांस छोड़ने के क्रम में बार बार तेज स्ट्रोक न लगाएं।