पाठ्यक्रम मूल्याङ्कन
काल चक्र के परिभ्रमण के साथ जो पाठ्यक्रम बनाया जाता है उसके मूल्यांकन द्वारा ही यह औचित्य सिद्ध होता है कि यह प्रासंगिक है अथवा नहीं। पाठ्यक्रम मूल्याङ्कन में यह जानने का प्रयास निहित है कि जिन व्यवहार गत परिवर्तनों, उद्देश्यों, निर्देशनों, दिशाओं और मार्ग दर्शन की अपेक्षा पाठ्यक्रम से की गयी थी वह कहाँ तक प्राप्त हुए हैं विविध स्तरों पर विविध विद्यालयी पाठ्यक्रम समाज, राष्ट्र, व्यक्ति, नैतिकता, मूल्य आदि को ध्यान में रखने के साथ ज्ञान के बोधात्मक स्तर के विकास को ध्यान में रखकर बनाये जाते हैं और अन्त में पाठ्यक्रम मूल्यांकन में इन्हे ही जानने का प्रयास किया जाता है कि उक्त उद्देश्य किस स्तर तक प्राप्त हुए हैं। इसी आधार पाए उत्तीर्ण और अनुत्तीर्ण की अवधारणा का विकास हुआ।
आशय व परिभाषा (Meaning and definition) –
पाठ्यचर्या विकास का एक महत्त्वपूर्ण नितान्त आवश्यक चरण है पाठ्यचर्या मूल्याङ्कन। इसके माध्यम से ही यह ज्ञात किया जाता है कि पाठ्यक्रम अपना उद्देश्य प्राप्त कर पा रहा है या नहीं। साथ ही यह अधिगम में कितना सहयोगी सिद्ध हो रहा है यह भी मूल्याङ्कन से ही ज्ञात होता है। डेविस 1980 ने बताया –
“It is the process of delineating obtaining, and providing information useful for making decisions and judgement about curricula.”
“यह पाठ्यक्रम के बारे में निर्णय लेने और निर्णय लेने के लिए उपयोगी जानकारी प्राप्त करने और प्रदान करने की प्रक्रिया है।“
एक अन्य विचारक मार्श (2004) ने बताया –
“It is the process of examining the goals, rationale and structure.”
“यह लक्ष्यों, तर्क और संरचना की जांच करने की प्रक्रिया है।“
Criteria and process of Good Curriculum Evaluation / अच्छे पाठ्यचर्या मूल्यांकन के मानदण्ड और प्रक्रिया-
यद्यपि पाठ्यचर्या मूल्यांकन के परिक्षेत्र में बहुत कार्य होना शेष है फिर भी यह स्वीकार किया जा सकता है कि पाठ्यचर्या मूल्यांकन में निम्न मानदण्डों को ध्यान में रखना चाहिए तथा मूल्याङ्कन प्रक्रिया हेतु इन्हीं बिन्दुओं को तरजीह दी जानी चाहिए।
01 – निर्धारित उद्देश्य प्राप्यता / Attainment of set objective
02- वस्तुनिष्ठता / Objectivity
03- क्रम बद्धता / Sequentiality
04- विश्वसनीयता / Reliability
05- वैधता /Validity
06- व्यापक दृष्टिकोण / Broad perspective
07- दूरदर्शिता / Foresight
08- व्यावहारिकता / Practicality
09 – सहभागिता / Participation
पाठ्यक्रम मूल्याङ्कन के प्रकार / Types of curriculum evaluation
पाठ्यक्रम मूल्याङ्कन मुख्य रूप से तीन प्रकार का कहा जा सकता है जो इस प्रकार हैं –
1 – निर्माणात्मक मूल्यांकन / Formative evaluation –
यह पाठ्यक्रम विकास के दौरान होता है। इसका उद्देश्य शैक्षिक कार्यक्रम के सुधार में योगदान देना है। किसी कार्यक्रम की खूबियों का मूल्यांकन उसके विकास की प्रक्रिया के दौरान किया जाता है। मूल्यांकन परिणाम प्रोग्राम डेवलपर्स को गति प्रदान करते हैं और उन्हें प्रोग्राम में पाई गई खामियों को ठीक करने में सक्षम बनाते हैं।
2- योगात्मक मूल्यांकन / Summative evaluation –
योगात्मक मूल्यांकन में किसी पाठ्यक्रम के अंतिम प्रभावों का मूल्यांकन उसके बताए गए उद्देश्यों के आधार पर किया जाता है। यह पाठ्यक्रम के पूरी तरह से विकसित होने और संचालन में आने के बाद होता है।
3- नैदानिक मूल्यांकन / Diagnostic evaluation –
नैदानिक मूल्यांकन दो उद्देश्यों की ओर निर्देशित होता है या तो छात्रों को निर्देशात्मक स्तर (जैसे माध्यमिक विद्यालय) की शुरुआत में उचित स्थान पर रखना या अध्ययन के किसी भी क्षेत्र में छात्रों के सीखने में विचलन के अंतर्निहित कारण की खोज करना।