जिन्दगी मैंने चाहा कि एक भोज रखूँ,

मौत को तेरे प्रयोग का निमन्त्रण दे दूँ,

सब कुछ संसार का तेरी नज़र कर दूँ,

बुराइयों की,सब्जी होगीआमंत्रण दे दूँ।

 

मौत  तय दिन औ समय तुझे आना है,

मेरी ही मैं को आकर मुझसे चुराना है,

सभी पार्षदों व गणों को, साथ लाना है,

स्वागत है यम, आकर के  दिखाना  है।

 

बलशाली भारी बम से स्वागत कराएँगे,

बच्चा चोरों को  पीस, कालीन  बनाएंगे,

गरमगोश्त के चहेतों की, पुंगी बजायेंगे,

कभी राग मल्हार तो कभी भैरवी गाएंगे।

 

दावत में मानव के दुर्गुण परोसे जाएंगे,

लोभ, मोह,पाखण्ड की चटनी बनाएंगे,

दानवता,क्रतघ्नता का रायता खिलाएंगे,

हत्यावृत्ति जातिभेद के मसाले मिलाएंगे

 

यानी  रौनके बज़्म में,बहुत कुछ होगा,

विविध शस्त्रों-अस्त्रों  का जखीरा होगा,

बर्बादी का लहू, खिदमते इनायत होगा,

ऐ मौत तेरी औकात का परीक्षण होगा।

 

तुझे सारी बुराइयों को  निगल जाना है,

निगलना है औ, अच्छी तरह पचाना है,

गमन पूर्व दुर्गुणों का, मुखवास लेना है,

रक्त की अन्तिम बूँद से टीका होना है।

 

मेरे यम ये भोज, कितना अच्छा  होगा,

यह संसार खुशियों का गुलदस्ता होगा,

भेदकारी विभाजक दीवारें ढह जाएंगी,

विश्व प्रेमराग समरसता का गुच्छा होगा।

 

तब हम सब सच्चा प्रकाश पर्व मनाएंगे,

भारत वाले  प्रेम से खील बताशे खाएंगे,

भारत ही नहीं सारी पृथ्वी चन्दन करेंगे,

शारदे कृपा से, माँ लक्ष्मी वन्दन करेंगे।

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