अन्दर से टूट गया था मन,
ये टूटन आखिर क्यूँ कर है ?
धुंआ क्यों भरता अन्तर्मन
नयनों में तड़प ये क्यूँ कर है ?
गालों पर ढलकते अश्रु कण,
यह निर्मल जल फिर क्यूँ कर है ?
किन यादों में गुम सा है मन,
ये पीड़ा आखिर क्यूँ कर है ?
लीला अद्भुत,अद्भुत है चलन,
पर लीला आखिर क्यूँ कर है।
क्यों आते जाते रहते हम,
ये दर्दो ग़म फिर क्यूँ कर है ?
उत्तर खोते प्रश्नों को नमन,
बुद्धि की सीमा क्यूँ कर है ?
कैसे ढूंढें वह सत्पथ हम,
पथ गुम आखिर फिर क्यूँ कर है ?
बुद्धि पर भारी पड़ता मन,
इन्द्रिय चक्कर ये क्यूँ कर है,
उत्तर सारे बन जाते प्रश्न,
ये चक्कर आखिर क्यूँ कर है ?
मिलने से बिछुड़ने तक का क्रम,
हे ‘नाथ’ कहो ये क्यूँ कर है।
जिन सम्बन्धों से बँधते हम,
बिछुड़न उनसे फिर क्यूँ कर है ?