मानव स्वयम को जगत का सर्वोत्कृष्ट प्राणी मानता है। विभिन्न सन्त,महन्त,धर्म गुरु इस खिताब को मानव के पक्ष में रख कर श्रेष्ठ तन के रूप में व्याख्यायित करते हैं लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य के जघन्यतम अपराध यही मानव तो कर रहा है ऐसी स्थिति में कुछ महत्वपूर्ण सवाल चिन्तन को झकझोरते हैं
[ खड़े होकर व लेट कर किए जाने वाले सरलतम व्यायाम(अन्तिम भाग)]
महत्वपूर्ण लाभ (MAIN ADVANTAGE)-
ये समस्त लाभ TIP TO TOP EXERCISE (1 ) वाले हैं सुविधा की दृष्टि से पुनः दे रहे हैं –
01 – 6 फुट लम्बे व 4 फुट चौड़े स्थल अर्थात कम जगह में अपने घर पर इन्हें कर कर सकते हैं।
02 – शरीर के जोड़ सक्रिय रखने में सहायक है।
03 – शरीर में जकड़न की समस्या नहीं होती।
04 – लम्बी आयु तक शरीर सक्रिय रहता है।
0 5 – शारीरिक चुस्ती फुर्ती बनी रहती है।
0 6 – मोटे तगड़े लोग भी इन्हें मेरी तरह आराम से सुविधानुसार कर सकते हैं।
0 7 – दिनचर्या व्यवस्थित करने में सहायक है।
0 8 – यह आरोग्य की ओर बढ़ाया सरल कदम है।
0 9 – इसे सुविधानुसार हर आयु वर्ग के लोग कर सकते हैं।
10 – कम समय और बिना किसी साधन के किए जाना सम्भव है।
क्रिया विधि (PROCEDURE)-
प्रातः शौच आदि से निवृत्त होकर फर्श ,तखत, दरी या अधिक घनत्व वाले गद्दे पर इन्हे किया जा सकता है। क्रम इस प्रकार रख सकते हैं –
(01)-खड़े होने के उपरान्त पैर की अँगुलियों को आगे पीछे मोड़ें।
(02)-पैर के पूरे पंजे को आगे, पीछे,घड़ी की दिशा व विपरीत दिशा में घुमाएं।
(03)- पैर के घुटने के व्यायाम हेतु इन पर दबाव बनाते हुए बैठने व उठने का उपक्रम अपनी क्षमता के अनुसार करें।
(04)- खड़े होकर कमर को क्लॉक वाइज व एन्टी क्लॉक वाइज चलाने का प्रयास करें।
(05)- हाथ की अँगुलियों से लड्डू बनाने की तरह आकृति बार बार बनाएं इससे अँगुलियों के हिस्सों को आराम मिलेगा।
(06)- कलाइओं के व्यायाम हेतु इसे भी क्लॉक वाइज व एण्टी क्लॉक वाइज घुमाएं।
(07)- हाथ की कोहनी को बार बार क्षमतानुसार मोड़कर धीमी गति से व्यायाम करें।
(0 8)- खड़े हो कर कन्धे के व्यायाम हेतु दाएं व बाएं हाथ से बड़े शून्य की आकृति क्लॉक वाइज व एन्टीक्लॉक वाइज बनाएं।
(09)- गले की माँस पेशियों के सम्यक व्यायाम हेतु अपने मुण्ड को क्लॉक वाइज व एण्टी क्लॉक वाइज क्षमतानुसार घुमाएं। यदि घूमाने में दिक्कत है तो ऊपर नीचे व दाएं बाएं भी घुमाया जा सकता है।
(10)- बड़े शून्य की आकृति लेटकर दाहिने व बाएं पैरों से बनाने पर भी जांघ व पैर का सञ्चालन सुव्यवस्थित होता है।
(11)- हाथों को परस्पर रगड़कर सिर में मसाज की तरह अँगुली चलाएं।
(12)- पुनः हाथों को परस्पर रगड़कर मुख व गर्दन के आगे पीछे मालिश की तरह हाथ चलाएं।
नोट –
* इन समस्त क्रियाओं को YOU TUBE पर Education Aacharya नाम से तलाश कर देखा व सब्सक्राइब किया जा सकता है। जिससे इस तरह के समस्त वीडिओ आप तक पहुँच सकें।
* गाल व कमर के व्यायाम पूर्व TIP TO TOP EXERCISE -1 की तरह ही होंगे।
* तत्सम्बन्धी चिकत्स्कीय परामर्श व्यायाम पूर्व योग्य चिकित्सक से अवश्य लें।
जीवन अपना जैसा भी है
प्रारब्धों का ही दरपन है।
सत्कर्म किए हमने जो भी
परिणामों का प्रत्यक्षण है।
सद्भावों से जुड़ते जाना
जीवन का सुन्दर लक्षण है ।।
भारत मेरा जैसा भी है,
दैदीप्यमान आकर्षण है।
परिवर्तन इसमें हैं जो भी,
सब भारत को अर्पण हैं।
सद्भावों से जुड़ते जाना
जीवन का सुन्दर लक्षण है ।।
लोकतन्त्र जैसा भी है
सद् भावों का संघर्षण है।
लोगों ने भाव रखे जो भी
उन भावों का प्रत्यर्पण है।
सद्भावों से जुड़ते जाना
जीवन का सुन्दर लक्षण है ।।
जन जीवन जैसा भी है
मूल्यों से नहीं विकर्षण है।
लोगों के मूल्य हुए जो भी
सुन्दर शिव का सत्यर्पण है।
सद्भावों से जुड़ते जाना
जीवन का सुन्दर लक्षण है ।।
अब का जगत जैसा भी है,
कल के कर्मों का वर्षण है।
घटनाक्रम घटित हुए जो भी
उनके फल का लोकार्पण है।
सद्भावों से जुड़ते जाना
जीवन का सुन्दर लक्षण है ।।
सिद्धान्त क्षरण जैसा भी है,
उसका फल सबको अर्पण है।
रक्षा के प्रयास हुए जो भी
मानव के मन का तर्पण है।
सद्भावों से जुड़ते जाना
जीवन का सुन्दर लक्षण है ।।
न आएं राह में रोड़े, मजा क्या है, फिर जीने में,
मुश्किलें करवटें बदलें, मजा है गम को पीने में,
एक रसता सी रहती है आनन्द फिर कहाँ रहता,
बड़ा आनन्द आता है हरा ग़म को फिर जीने में।
चलो नव लक्ष्य चुनते हैं नव वर्ष के नव महीने में।।
न हों पथ में अगर काँटे, रहे सब कुछ करीने में,
हौसलों का फिर क्या होगा, रहेंगे सिर्फ सीने में,
समस्या सोई रहती है तो जज़्बा फिर कहाँ रहता,
जज्बा जब उमड़ता है, धड़कता दिल है सीने में।
चलो नव लक्ष्य चुनते हैं नव वर्ष के नव महीने में।।
परीक्षा जिन्दगी लेती, मजा आता है, जीने में ,
मजा बिल्कुल नहीं आता, गर न भीगें पसीने में,
न होतीं मुश्किलें कोई, फिर ये दिल कहाँ रहता,
कोई न संगदिल कहता, खुशी क्या नगनगीने में।
चलो नव लक्ष्य चुनते हैं नव वर्ष के नव महीने में।।
अन्तर कैसे फिर करते, दयालु में, कमीने में,
भला फिर कोई क्यों कहता मजाआता है पीने में,
सज्जन और दुरजन में ,अन्तर फिर कहाँ रहता,
किडनी, गुर्दे और ये दिल, रखे रहते करीने में।
चलो नव लक्ष्य चुनते हैं नव वर्ष के नव महीने में।।
जल – जले भूल जाते हम, दिनों में या महीने में,
गर समरस से दिन होते ख़ास क्या फिर पतीले में,
पर्व भी रंगत खो देता, ईष्ट भी फिर कहाँ रहता,
फिर तुम भी कहाँ मिलते, दावत में, वलीमे में।
चलो नव लक्ष्य चुनते हैं नव वर्ष के नव महीने में।।
मजा फिर कुछ नहीं रहता, मेले में, सनीमें में,
बड़ी मुर्दानगी छाती, मजा ना आता, जीने में,
सब बेकार हो जाता फिर दर्दे दिल कहाँ रहता,
मुश्किल, दर्द, गम, काँटे सभी आ जाओ सीने में।
चलो नव लक्ष्य चुनते हैं नव वर्ष के नव महीने में।।
Tमहत्वपूर्ण लाभ (MAIN ADVANTAGE)
1 – 6 फुट लम्बे व 4 फुट चौड़े स्थल अर्थात कम जगह में अपने घर पर इन्हें कर कर सकते हैं।
2 – शरीर के जोड़ सक्रिय रखने में सहायक है।
3 – शरीर में जकड़न की समस्या नहीं होती।
4 – लम्बी आयु तक शरीर सक्रिय रहता है।
0 5 – शारीरिक चुस्ती फुर्ती बनी रहती है।
0 6 – मोटे तगड़े लोग भी इन्हें मेरी तरह आराम से सुविधानुसार कर सकते हैं।
0 7 – दिनचर्या व्यवस्थित करने में सहायक है।
0 8 – यह आरोग्य की ओर बढ़ाया सरल कदम है।
0 9 – इसे सुविधानुसार हर आयु वर्ग के लोग कर सकते हैं।
10 – कम समय और बिना किसी साधन के किए जाना सम्भव है।
क्रिया विधि (PROCEDURE)-
प्रातः शौच आदि से निवृत्त होकर फर्श ,तखत या अधिक घनत्व वाले गद्दे पर इन्हे किया जा सकता है। क्रम इस प्रकार रख सकते हैं –
(01)-बैठने के उपरान्त पैर की अँगुलियों को आगे पीछे मोड़ें।
(02)-पैर के पूरे पंजे को आगे, पीछे,घड़ी की दिशा व विपरीत दिशा में घुमाएं।
(03)- पैर के घुटने के व्यायाम हेतु लेटकर पैरों से सायकिल के पैडिल चलाने की स्थिति का अनुकरण करें। पैरों को घड़ी चलने की दिशा व विपरीत दिशा मे चलाएं।
(04)- बैठकर जाँघों को कम्पित करें।
(05)- बैठकर चक्की चलाने की दिशा में व विपरीत दिशा क्षमतानुसार चलाएं और कमर का सम्यक व्यायाम सुनिश्चित करें।
(06)- कन्धे के व्यायाम हेतु कन्धों पर हाथ का अँगूठा टेककर घडी की सुईयों के चलने की दिशा व विपरीत दिशा में चलाएं।
(07)- रीढ़ की हड्डी के आराम हेतु लेटकर एक एक पैर को थोड़ा उठायें व कम्पन होने पर नीचे रखें इसी क्रिया को दोनों करवट ले कर करें।
(0 8)- कन्धे के व्यायाम हेतु हाथों से बड़े शून्य की आकृति क्लॉक वाइज व एन्टीक्लॉक वाइज बनाएं यह व्यायाम लेटकर पैरों से करने पर भी जांघ व पैर का सञ्चालन सुव्यवस्थित होता है।
(09)- हाथ की अँगुलियों से लड्डू बनाने की तरह आकृति बार बार बनाएं इससे अँगुलियों के हिस्सों को आराम मिलेगा।
(10)- कलाइओं के व्यायाम हेतु इसे भी क्लॉक वाइज व एण्टी क्लॉक वाइज घुमाएं।
(11)- हाथ की कोहनी को बार बार क्षमतानुसार मोड़कर धीमी गति से व्यायाम करें।
(12)- गले की माँस पेशियों के सम्यक व्यायाम हेतु अपने मुण्ड को क्लॉक वाइज व एण्टी क्लॉक वाइज क्षमतानुसार घुमाएं।
(13)- गाल की माँस पेशियों के व्यायाम हेतु प्राण वायु खींचकर मुँह फुलाकर अन्दर से दवाब बनाने का प्रयास करें।
(14)- हाथों को परस्पर रगड़कर सिर में मसाज की तरह अँगुली चलाएं।
(15 )- पुनः हाथों को परस्पर रगड़कर मुख व गर्दन के आगे पीछे मालिश की तरह हाथ चलाएं।
नोट –
* इन समस्त क्रियाओं को YOU TUBE पर Education Aacharya नाम से तलाश कर देखा व सब्सक्राइब किया जा सकता है। जिससे इस तरह के समस्त वीडिओ आप तक पहुँच सकें।
*तत्सम्बन्धी चिकत्स्कीय परामर्श व्यायाम पूर्व योग्य चिकित्सक से अवश्य लें।
वो जो समस्याओँ का अम्बार है,
वही तो मेरे हौसलों का आधार है।
आप लोग क्यों डरे डरे रहते हो
हौसला है तो निश्चित बेड़ा पार है।
निशानी जख्म की वीर का श्रृंगार है ।।
समस्या ही समाधान का आधार है,
इक ओर शीतलता दूजा अँगार है।
भयावह सोच से डरे सहमे रहते हैं,
अँगारों की, तपिश में भी प्यार है।
निशानी जख्म की वीर का श्रृंगार है ।।
इस जहाँ में प्यार है,रार है,तकरार है,
डर मत हिम्मत रख फिर बेड़ा पार है।
खुशी हो या गम हम स्वीकार करते हैं,
जिन्दगी के संग जिन्दादिली से प्यार है।
निशानी जख्म की वीर का श्रृंगार है ।।
तुम्हारे अन्तर-तम में क्यों गुबार है,
क्यों कर बसाया मन में अंधकार है।
क्यों हमेशा आप एकाकी से रहते हो,
समय के साथ चलने की दरकार है ।
निशानी जख्म की वीर का श्रृंगार है।।
जीवन में उन्नत शिखरों से गर प्यार है,
तो फालतू में डरकर रहना बेकार है।
तुम झंझावातों से भागे भागे रहते हो,
लड़कर कहो संघर्षों से ही प्यार है।
निशानी जख्म की वीर का श्रृंगार है।।
जिंदगी खेल है कभी जीत कभी हार है,
जो जूझता है उनकी जय जय कार है।
लड़ कर ही तो जय का वरण करते हो,
खुद से हारे हुए मन में तो अन्धकार है।
निशानी जख्म की वीर का श्रृंगार है।।
मीठी मीठी यादों को कुरेदकर जगाते हैं।
बीताकल आनेवाली दुनियाँ को बताते हैं।
भारत में विवाह, पावन संस्कार बताते हैं।
पण्डित मन्त्रोच्चारण से अलख जगाते हैं।
विवाह की पच्चीसवीं वर्ष गाँठ मनाते हैं।।
शहनाई बजती है व कुछ रस्में निभाते हैं।
संग साथ प्रिय जन के प्रीति भोज पाते हैं।
सम्बन्धित जन साथ में खुशियाँ मनाते हैं।
वरवधु इकदूजे को जय माल पहनाते हैं।
विवाह की पच्चीसवीं वर्ष गाँठ मनाते हैं।।
सात सात वचनों से दोनों को बँधवाते हैं।
गठ बन्धन का दीर्घावधि पर्व ये मनाते हैं।
चुहलबाजी चलती है, विदा क्षण आते हैं।
बहुतों के नयनों में दृगबिन्दु भर आते हैं।
विवाह की पच्चीसवीं वर्ष गाँठ मनाते हैं।।
दो भिन्नजीव इक प्रेमडोर से बँधजाते हैं।
दो पथिक एक होकर निजजग बनाते हैं।
धीरे धीरे कर्तव्यपथ पर डग धरे जाते हैं।
शुरूआती वर्ष जाने कब गुजर जाते हैं।
विवाह की पच्चीसवीं वर्ष गाँठ मनाते हैं।।
इस बीच परिवार में नव सदस्य आते हैं।
नन्हेंमुन्ने नव आगत सभी को भरमाते हैं।
चलने वाले दोनों जीव उनमें खो जाते हैं।
खोनेवाले दोनों जीव माँ बाप कहलाते हैं।
विवाह की पच्चीसवीं वर्ष गाँठ मनाते हैं।।
जिम्मेदारी बढ़ती है सपने रंग दिखाते हैं।
खुद के सपने भूला, बच्चों में रम जाते हैं।
नवशिशु बड़े होकर विद्यालय में जाते हैं।
माता पिता निज दुलार, लाड़ बरसाते हैं।
विवाह की पच्चीसवीं वर्ष गाँठ मनाते हैं।।
धीरे धीरे इन बच्चों के व्यय बढ़ जाते हैं।
मातापिता हिम्मत से कर्म करते जाते हैं।
इस सब व्यवस्था में बच्चे पढ़ते जाते हैं।
बच्चों के सपने, अब अपने बन जाते हैं।
विवाह की पच्चीसवीं वर्ष गाँठ मनाते हैं।।
बैठकर विचार करें गत पृष्ठ यादआते हैं।
धीरे धीरे ही सही इतने वर्ष बीत जाते हैं।
वर्ष पच्चीस बीते इकदिन बच्चे बताते हैं।
नींद जैसे खुल गई हो, हम जाग जाते हैं।
विवाह की पच्चीसवीं वर्ष गाँठ मनाते हैं।।
सूर्य अस्त हो चुका तिमिर गहराया है।
बारिश ने टिपटिप का शोर मचाया है।
रात के अन्धेरे में चाँद निकल आया है।
चाँदनी से चाँद ने संदेशा भिजवाया है।
खून में उबाल का श्रेष्ठ समय आया है।।
तीन प्रहर बीते हैं चौथा प्रहर आया है।
करते क्यों जागरण घनाशीत छाया है।
तीव्र शीत लहर ने ये कहर बरपाया है।
तेज बारिश होने का मौसम बनाया है।
खून में उबाल का श्रेष्ठ समय आया है।।
कालिमा अज्ञान चीर ज्ञान ने सुझाया है।
करते रहो जागरण राष्ट्रऋण बकाया है।
आज की पीढ़ी ने व्याकुल तन्त्र पाया है।
कर्त्तव्य भाव ने श्रमवीर को उकसाया है।
खून में उबाल का श्रेष्ठ समय आया है।।
हमेशा रहो जागे राष्ट्र धर्म ने चेताया है।
राष्ट्रधर्म वीरों ने यह करके दिखाया है।
एक दुनियाँ जागे है एक को सुलाया है।
सब ने मिलजुल स्वयुग धर्म निभाया है।
खून में उबाल का श्रेष्ठ समय आया है।।
जागने का स्वर्णिम, मौका पासआया है।
स्वश्रेष्ठ देने का जिसने, बीड़ा उठाया है।
सुनो युग शिक्षार्थी काल अजब आया है।
क्रमबद्ध कार्य करो लक्ष्य पास आया है।
खून में उबाल का श्रेष्ठ समय आया है।।
आवाहन राष्ट्र का क्यों ये भ्रम छाया है।
कर्मगति तीव्र करो राष्ट्र का बकाया है।
जागो युवा तेज चलो सूर्य चढ़ आया है।
जगगुरु बनने का मौका हाथ आया है।
खून में उबाल का श्रेष्ठ समय आया है।।
मिलजुल देश गढ़ो सिद्धिमन्त्र आया है।
दुनियाँ को श्रेष्ठ दो सही समय आया है।
‘नाथ’ ने तुम्हें सही समय पर चेताया है।
हर काल शुभ है उठो देश ने उठाया है।
खून में उबाल का श्रेष्ठ समय आया है।।
कैसे पढ़े लिखे हो भाई,
फटे हाल मैं घूम रहा हूँ,
एम बी ए वाले खुश हो,
पोल तुम्हारी खोलरहा हूँ।
मैं हूँ एक किसान देश का,
खलिहानों से बोल रहा हूँ।
करते हो तुम कैसी व्यस्था
तन पर कपड़े नहीं बचे हैं,
आओ गाँव हमारे देखो,
किन हालों से गुजर रहा हूँ
मैं हूँ एक किसान देश का,
खलिहानों से बोल रहा हूँ।
खुद को हम भूखा रखते हैं,
पेट तुम्हारा हम भरते हैं
तुम अपने को शिक्षक कहते
समय तुला पर तौल रहा हूँ
मैं हूँ एक किसान देश का,
खलिहानों से बोल रहा हूँ।
फिर भी इस हलधर को देखें,
सबकी खातिर उपजाता है,
लालकिला अक्सर कहता है
तेरे हित में सोच रहा हूँ
मैं हूँ एक किसान देश का,
खलिहानों से बोल रहा हूँ ।
मौसम की मारों को सहते,
हम भी बेबस हो जाते हैं,
क्या हरहाथ को काम मिलेगा
तिलतिल जलकर सोच रहा हूँ
मैं हूँ एक किसान देश का,
खलिहानों से बोल रहा हूँ।
कल कारखाने भारत वाले
अभियन्ता श्रम से चलवाते हैं,
मिल उत्पादन भी कहता है,
शुभ माल प्रदाता देख रहा हूँ।
मैं हूँ एक किसान देश का
खलिहानों से बोल रहा हूँ।
हम पशुसंग दिनभर श्रम कर
घी, दूध, दही भिजवाते हैं,
इनसे बनने वाली निधि से
निज दूरी बढ़ती देख रहा हूँ।
मैं हूँ एक किसान देश का
खलिहानों से बोल रहा हूँ।
देश में रहने वाले सोचो,
न्यायपूर्ण श्रम हिस्सा दे दो,
मैं स्वधर्म से नहीं डिगूंगा,
सत्य वचन मैं बोल रहा हूँ।
मैं हूँ एक किसान देश का
खलिहानों से बोल रहा हूँ।
क्या कहूँ और क्या लिखूँ, संस्कार हैं पिता श्री,
मेरे घर की दुनियाँ के प्राणआधार हैं पिता श्री,
जिस घर में हरदम मुश्किलें झाँका करतीं थीं,
उन समस्त परेशानियों पर, प्रहार हैं पिता श्री।
बाबा कहते मुस्कुराकर, कर्णधार हैं पिता श्री,
हम सब की ख्वाहिशों में कर्जदार हैं पिता श्री,
दादी जब बीमार हो करवटें बदला करती थीं,
दवादारु छोड़दो सब मात्र उपचार हैं पिता श्री।
काम घर,बाहर के जीहाँ कामगार हैं पिता श्री,
झगड़े टंटे हम सबके बस राजदार हैं पिता श्री,
तात श्री के जाने पर जब बहनें रोया करती थीं,
जानते हैं और मानते हैं कि घरद्वार हैं पिता श्री।
समस्याएं कैसी भी हों, पर दरकार हैं पिता श्री,
गलती हम किसी की हो, जिम्मेदार हैं पिता श्री,
मेरेआँगन त्यौहारों में रसधार जो बहाकरती थी,
उस बहती अविरल धार के सूत्रधार हैं पिता श्री।
हम सभी भाई बहनों हित, मजेदार हैं पिता श्री,
गहन वेदना और तपन में, जलधार हैं पिता श्री,
मेरे मन की नौका तो मँझधार में रहा करती थी,
माँझी बन सङ्कट हरण में, मददगार हैं पिता श्री।
माँ कहे आदर सम्मान के, हकदार हैं पिता श्री,
दरकते पुराने घरद्वार के जीर्णोद्धार हैं पिता श्री,
मर्यादा प्रतिमूर्ति माँ शुभचिन्ह धारके कहती थीं,
मेरेमन बगिया उपवन के शुभश्रृंगार हैं पिता श्री।
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