मैं  लघु  हूँ, वृहद से मिलाने चला हूँ।

सघन अन्तः तम को मिटाने चला हूँ। 

क्या हूँ मैं, क्या और लाने चला हूँ

मनस को मनस से मिलाने चला हूँ

छोड़ो जाति बन्धन छोड़ो बेड़ियाँ तुम

चलो आज अन्तर. मिटाने चला हूँ ।

आत्म हूँ मैं, तन यह तपाने चला हूँ

सुधारस इसजग को पिलाने चला हूँ 

तोड़ो सारे बन्धन छोड़ो वेदना तुम

तुम्हीं को, तुम्हीं से मिलाने चला हूँ।

चेतना हूँ मैं सत्पथ को लाने चला हूँ

कृत्रिम सारे बन्धन, मिटाने चला हूँ

छोड़ोसारे अन्धेरे, व अज्ञानता तुम

ज्ञानपथ पर चलो, ये बताने चला हूँ।

अज्ञ हूँ विज्ञजन से मिलाने चला हूँ

अन्तस के अन्तर, मिटाने चला हूँ

छोड़ो भेद सारे, तोड़ो रूढ़ियाँ तुम

रूढ़ियों को मिटा ज्योति लाने चला हूँ।

मैं हूँ कतरा, समन्दर बुलाने चला हूँ

अनन्त विस्तार परिचय बताने चला हूँ

छोड़ो वर्ण अन्तर, तोड़ो दायरे तुम  

दायरों को मैं जड़ से हटाने चला हूँ।

मैं मानव हूँ, मानवता लाने चला हूँ 

मानव मानव का अन्तर मिटाने चला हूँ

छोड़ो सब कलुषता तोड़ो दम्भघट तुम

दम्भ पथ ‘नाथ’ तपन से जलाने चला हूँ।

मैं  लघु  हूँ, वृहद से मिलाने चला हूँ ।

सघन अन्तः तम को मिटाने चला हूँ ।

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