सोना मैं भी चाहता था नींद भी भारी बहुत थी

पर प्रगति चाह थी जो नींद पर भारी बहुत थी

यह हमारा देश है, बहु भाँति विविध विशेष है

काम अब भी शेष है, हाँ काम अब भी शेष है।।

मुझे झपकी सी लगी थी भगवद्गीता गा रही थी

सिखा सांख्ययोग दर्शन कर्मयोग बता रही थी

यह कर्म का सन्देश है, अनवरत भाव अशेष है ।

काम अब भी शेष है, हाँ काम अब भी शेष है।।

अनासक्ति भाव के संग ज्ञानयोग बता रही थी

रागद्वेष को धताबता कर्म योग समझा रही थी

ज्ञान का पुरा अवशेष है व निग्रह मन विशेष हैं

 काम अब भी शेष है हाँ काम अब भी शेष है।।

मथ ज्ञान विज्ञान को अक्षर ब्रह्म सिखा रही थी

भक्ति प्रभुता संग आध्यात्मिकता बढ़ा रही थी

ज्ञान प्रभाव विशेष है निष्काम भाव परिवेश है ।

काम अब भी शेष है, हाँ काम अब भी शेष है।।

राजविद्या पढ़ा रही योगविभूति मिला रही थी

दर्शन विश्व रूप दिखा, भक्ति पथ बना रही थी

विभाग योग क्षेत्रज्ञ है, सत, रज, तम विशेष है । 

काम अब भी शेष है, हाँ काम अब भी शेष है।।  

योग पुरुषोत्तम व शास्त्र सम्मति सिखा रही थी

श्रद्धात्रय जोड़ नाथ ॐ तत्सत् तक आ रही थी

संयास मोक्ष सन्देश है गीता महात्म्य भी शेष है

काम अब भी शेष है, हाँ काम अब भी शेष है।।

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