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शिक्षा

INCLUSIVE EDUCATION

May 3, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

समावेशी शिक्षा

समावेशी शिक्षा से विस्तृत परिक्षेत्र सम्बद्ध है यहाँ अधोलिखित तीन बिन्दुओं पर मुख्यतः विचार करेंगे।

1 – समावेशन की अवधारणा और सिद्धान्त /Concept and principles of inclusion

2 – समावेशन के लाभ / Benefits of inclusion

3 – समावेशी शिक्षा की आवश्यकता / Need of inclusive education

समावेशन की अवधारणा और सिद्धान्त /Concept and principles of inclusion –

जब हम समावेशन की बात करते हैं तो यह जानना परमावश्यक है कि यह किनका करना है। समाज में बहुत से लोग हाशिये पर हैं शिक्षण संस्थाओं में अधिगम करने वाले विविध वर्ग हैं कुछ में शारीरिक, कुछ में मानसिक क्षमताएं, अक्षमताएं  विद्यमान हैं। हमारे विद्यालयों में अध्यापन करने वाला व्यक्ति समस्त अधिगमार्थियों से उनकी क्षमतानुसार अधिगम क्षेत्र उन्नयन हेतु पृथक व्यवहार कर सभी का समावेशन करना चाहता है।

समावेशन वह क्रिया है जो विविधता युक्त व्यक्तित्वों में निर्दिष्ट क्षमता समान रूप से स्थापन करने हेतु की जाती है।

गूगल द्वारा समावेशन सिद्धान्त तलाशने पर ज्ञात हुआ –       

“समावेशी शिक्षण और शिक्षण सभी छात्रों के सीखने के अनुभव के अधिकार को पहचानता है, जो विविधता का सम्मान करता है, भागीदारी को सक्षम बनाता है, बाधाओं को दूर करता है और विभिन्न प्रकार की सीखने की आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं पर विचार करता है।“

“Inclusive teaching and learning recognizes the right of all students to a learning experience that respects diversity, enables participation, removes barriers and considers a variety of learning needs and preferences.”

समावेशन का यह प्रयास विविध क्षेत्रों में विविध प्रकार से हो सकता है लेकिन यदि हम केवल शिक्षा के दृष्टिकोण से इस पर विचार करें तो प्रसिद्द शिक्षाविद श्री मदन सिंह जी(आर लाल पब्लिकेशन) का यह विचार भी तर्क सङ्गत है –

“शिक्षा के क्षेत्र में समावेशी शिक्षा का अर्थ है – विद्यालय के पुनर्निर्माण की वह प्रक्रिया जिसका लक्ष्य सभी बच्चों को शैक्षणिक और सामाजिक अवसरों की उपलब्धता से है। ” 

“In the field of education, inclusive education means the process of restructuring of schools aimed at providing educational and social opportunities to all children.”

समावेशी शिक्षा की प्रक्रियाओं  में अधिगमार्थी की उपलब्धि, पाठ्य क्रम पर अधिकार, समूह में प्रतिक्रया, शिक्षण, तकनीक, विविध क्रियाकलाप, खेल, नेतृत्व, सृजनात्मकता आदि को शामिल किया जा सकता है।

समावेशन के लाभ / Benefits of inclusion –

चूँकि हम शैक्षिक परिक्षेत्र में सम्पूर्ण विवेचन कर रहे हैं अतः समावेशी शिक्षा के लाभों पर मुख्यतः विचार करेंगे। इस हेतु बिन्दुओं का क्रम इस प्रकार संजोया जा सकता है।

01- स्वस्थ सामाजिक वातावरण व सम्बन्ध / Healthy social environment and relationships

02- समानता (दिव्याङ्ग व सामान्य) / Equality

03- स्तरोन्नयन / Upgradation

04 – मानसिक व सामाजिक समायोजन / Mental and social adjustment

05- व्यक्तिगत अधिकारों का संरक्षण / Protection of individual rights

06- सामूहिक प्रयास समन्वयन / Coordination of collective efforts

07- समान दृष्टिकोण का विकास / Development of common vision

08- विज्ञजनों के प्रगति आख्यान / Progress stories of experts

09- समानता के सिद्धान्त को प्रश्रय / Support the principle of equality

10- विशिष्टीकरण को प्रश्रय / Support for specialization

11- प्रगतिशीलता से समन्वय / Progressive coordination 

12- चयनित स्थानापन्न / Selective  placement

समावेशी शिक्षा की आवश्यकता / Need for inclusive education –

जब समावेशी शिक्षा की आवश्यकता क्यों ? का जवाब तलाशा जाता है तो निम्न महत्त्वपूर्ण बिन्दु दृष्टिगत होते हैं –

01- सौहाद्रपूर्ण वातावरण का सृजन /  Creation of harmonious environment

02- सहायता हेतु तत्परता / Readiness for help

03- परस्पर आश्रयता की समझ का विकास / Development of understanding of mutual support

04- जैण्डर सुग्राह्यता / Gender sensitivity

05- विविधता में एकता / Unity in diversity

06- सम्यक अभिवृत्ति विकास / Proper attitude development

07- अद्यतन ज्ञान से सामञ्जस्य / Alignment with updated knowledge

08- विश्व बन्धुत्व की भावना को प्रश्रय / Fostering the spirit of world brotherhood

09- हीनता से मुक्ति / Freedom from inferiority

10- मानसिक प्रगति सुनिश्चयन  / Ensuring mental progress

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शोध

Report Writing

July 6, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

रिपोर्ट लेखन

शोध की दुनिया अपने आप में परिश्रम और लगन के विविध आयामों को अपने आप में समेटकर विशिष्ट कहानी का सृजन करती है। यह बताती है कि समस्त परिकल्पना, उद्देश्य, विश्लेषण, संश्लेषण, गणनाएं किसी शीर्षक के इर्द-गिर्द  क्यों परिभ्रमण कर रही थीं और ज्ञान के समुद्र मंथन से क्या प्राप्त हुआ है? जो आने वाले कल में भविष्य को दिशा निर्देश देने में सक्षम है। इस कार्य को सम्पादित करता है रिपोर्ट लेखन।

एक कहावत है जंगल में मोर नाचा किसने देखा, इसका आशय है कि यदि किसी अच्छे कार्य को देखने वाला कोई  नहीं तो इसका कोइ मतलब नहीं दूसरे शब्दों में यदि कोई उपलब्धि किसी के संज्ञान में नहीं आ रही तो महत्वहीन है। शोध रिपोर्ट या रिपोर्ट लेखन का यह दायित्व है कि वह किये गए कार्य की महत्ता प्रतिपादित करे तथा सबके संज्ञान में लाये।

रिपोर्ट लेखन,  शोधकार्य के अंतिम चरण के रूप में स्वीकार किया जाता है और यह विशिष्ट कौशल के द्वारा सम्पादित होता है इसे लिखने में अत्याधिक सावधानी की अपेक्षा रहती है। इसीलिए इस उद्देश्य पूर्ति हेतु विशेषज्ञों की राय व निर्देशन महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इसका उद्देश्य शोध के लाभ को उन तक पहुंचाना है जिनके लिए यह किया गया है शब्द और लेखन का ढंग ऐसा हो जो बोध ग्राह्य हो।

रिपोर्ट लेखन के विविध चरण / Various steps of report writing –

यह शोध कार्य का अंतिम चरण होने के नाते श्रम साध्य और समस्त कार्य का प्रतिनिधित्व करने वाला मुखड़ा है जो विशेष सावधानी की अपेक्षा रखता है इसीलिये अधिगम के दृष्टिकोण से इसके विविध चरणों को इस प्रकार व्यवस्थित कर सकते हैं। –

01 – समग्र का संश्लेषणात्मक तार्किक विश्लेषण / Synthetic logical analysis of the whole

02 – अन्तिम परिणति की तैयारी /Preparing for the final outcome

03 – कच्चा मसौदा/ Rough draft

04 – शुद्धिकरण और पुनः लेखन / Correction and rewriting

05 – ग्रन्थ सूची की तैयारी / Preparation of Bibliography

06 – अन्तिम परिमार्जित रिपोर्ट लेखन / final revised report writing

रिपोर्ट लेखन हेतु रिपोर्ट लेखक के आवश्यक गुण /Essential qualities of a report writer for report writing-

शोध कर्त्ता या रिपोर्ट लेखक इतनी ठोकरें शोध कार्य के दौरान खा चुका होता है कि इस हेतु आवश्यक गुण उसमें विकसित हो जाते हैं लेकिन सामान्य रूप से इन गुणों का होना गरिमायुक्त स्वीकार किया जाता है।

01 – सम्यक स्वनियन्त्रक / Proper self control

02 – त्वरित निर्णयन क्षमता / Quick decision making ability

03 – सम्यक कौशल विकास / Proper skill development

04 – तथ्यों के प्रति तटस्थ / Neutral to facts

05 – शोध मूल्यांकन में सक्षम / Capable of research evaluation

06 – सम्यक प्रबंधकीय गुण / Proper managerial skills

07 – यथार्थवादी / Realistic

08 – क्षमता को उत्कृष्टता में बदलने को तत्पर / Willing to transform potential into excellence

शोध रिपोर्ट हेतु सावधानियाँ /Precautions for research report –

यद्यपि विश्व विद्यालय द्वारा प्रदत्त प्रारूप से बँधकर कार्य किया जाता है और विविध मानकों का भी ध्यान रखा जाता है फिर भी रिसर्च रिपोर्ट को अधिक प्रभावी बनाने हेतु कुछ सावधानियाँ अपेक्षित हैं –

01 – शोध रिपोर्ट के आकार का निर्धारण /Determining the size of a research report

02 – रुचिपूर्ण / Interesting

03 – चार्ट, ग्राफ और तालिकाओं का सम्यक प्रयोग /Judicious use of charts, graphs and tables

04 – मौलिकता व तार्किक विश्लेषण / Originality and logical analysis

05 – शुद्ध व सम्यक प्रारूप / correct and proper format

06 – परामर्शित स्रोतों की स्पष्ट ग्रन्थ सूची / Clear bibliography of sources consulted

07 – परिशिष्टों का सूचीकरण / Listing of Appendices

08 – विश्वसनीय / Reliable

09 – जटिलताओं से मुक्त / Free from complications

10 – आकर्षक, स्पष्ट,स्वच्छ मुद्रण / Attractive, clear, clean printing

अन्त में यह कहना तर्क संगत होगा के बदलते परिवेश के साथ नित्य प्रति परिवर्तनों का दौर जारी है इस लिए हमें वक़्त के साथ कदम ताल करना होगा और समय के साथ नवीनतम परिवर्तित रिपोर्ट लेखन के साथ तालमेल बैठाना होगा।

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विविध•समाज और संस्कृति

चातुर्मास के सृष्टि सञ्चालक -महाकाल

by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

06 जुलाई 2025 अर्थात अषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी (देव शयनी एकादशी) से सृष्टि का सञ्चालन महाकाल के हाथ में आ जाता है और सम्पूर्ण चातुर्मास भगवान् भोले, हमारे महादेव सृष्टि सञ्चालक की भूमिका का निर्वहन करते हैं।

चातुर्मास – जिन चार महीनों की अवधि चातुर्मास कहलाती है उसका प्रारम्भ देव शयनी एकादशी अर्थात अषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष एकादशी से होता है और कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी तक चलता है ये चार माह ही चातुर्मास कहलाते हैं। इसमें सोलह्कला सम्पूर्ण भगवान् श्री विष्णु विश्राम की अवस्था में रहते हैं।

देव शयनी एकादशी –

सनातन हिन्दू धर्म की दिव्यता विविध अनुष्ठानों त्यौहारों दिवसों के माध्यम से भी परिलक्षित होती है। एकादशी का हिन्दू धर्म में विशिष्ट स्थान है। प्रत्येक वर्ष 24 एकादशी होती हैं इनकी संख्या 26 तब होती है जब मलमास या अधिक मास आता है अषाढ़ मास  के शुक्ल पक्ष की एकादशी देवशयनी एकादशी के नाम से जानी जाती है। यह भगवान विष्णु की विश्राम अवधि विविध शास्त्रों में वर्णित है।

            विविध विचारक इसे योग निद्रा अवधि या ऊर्जात्मक विश्राम भी कहते हैं ,जब भगवान विष्णु जगत के पालन कर्त्ता योग निद्रा में होते हैं तब सृष्टि सञ्चालन महाकाल भगवान् शिव में केन्द्रित हो जाता है। पद्म नाभा या देवशयनी एकादशी आध्यात्मिक रूप से महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है।

चार माह का संयम और माहात्मय –

इन चार माह में शुभ कार्य सम्पादित करने से बचा जा सकता है विवाह,गृह,प्रवेश, मुण्डन, यज्ञोपवीत संस्कार आदि इस समय वर्जित रहते हैं। इस समय ध्यान, साधन, व्रत, स्वानुशासन व आत्म संयम पर दिया जाता है।

देव शयनी एकादशी के बारे में कहा गया है की इस दिन भगवान् विष्णु का पूजन करने व व्रत रखने से त्रिदेवों की आराधना का पूण्य फल प्राप्त होता है। चातुर्मास में चूँकि सृष्टि सञ्चालन भगवान् भोले बाबा के हाथ होता है अतः शिव उपासना करने पर विष्णु उपासना के भी सभी फल प्राप्त होते हैं।

साधना समय, व्रत व भोजन व्यवस्था –

देवशयनी एकादशी से प्रारम्भ होने वाला यह कालखण्ड जिसे विष्णु शयनी एकादशी भी कहा जाता है पद्म पुराण में इसकी सम्यक विवेचना मिलती है इसमें व्रत रखकर प्रत्येक दिन सूर्योदय के समय स्नान ध्यान आदि से निवृत्त होकर श्री हरि विष्णु भगवान् की आराधना करते हैं। अपने अपने क्षेत्रों और विश्वास के अनुसार भगवान् भोले को स्मरण किया जाता है देवशयनी एकादशी के साथ ही चातुर्मास में नियम संयम से रहने का शुभ संकल्प लिया जाता है। शिव उपासना के पीछे तर्क यहभी है कि यह सम्पूर्ण काल खण्ड भगवान् शिव को अत्यन्त मनोहर लगता है इस बीच काँवड़िये भगवान् शिव की आराधना उपासना कर विष्णु उपासना का फल भी अर्जित करते हैं।

इन चार महीनों में दिन में एक बार भोजन करने का विधान है वैज्ञानिक व आध्यात्मिक दृष्टिकोण से उत्तम स्वास्थय बनाये रखने के लिए सावन के महीने में साग, भाद्र पद माह में दधि या दही का निषेध है। इसी तरह आश्विन मास में दूध तथा कार्तिक मॉस में दाल का सेवन उचित नहीं माना जाता है। प्राचीन ऋषि मनीषियों विज्ञान वेत्ताओं ने उत्तम स्वास्थय को दृष्टिगत रखते हुए यह विधान दिया है। समस्त चराचर की निर्विघ्न विकास यात्रा में चातुर्मास का विशेष स्थान है। इन दिनों तामसिक भोजन ग्रहण न कर और संयमित जीवन यापन के माध्यम से स्वयं को स्वस्थ रखने का प्रयास हो।

भगवान् भोले नाथ सबको आलम्ब प्रदान कर प्रगति उन्मुख करें और भारतीय संचेतना के इन शब्दों को पोषण प्रदान करें व कृपा दृष्टि बनाएरखें।

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।

           

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शोध

RESEARCH INTEGRITY

July 4, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

शोध अखण्डता

Meaning of research integrity / शोध अखण्डता से आशय

आज पूरा विश्व विकास के दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर नित्य नए विकास के आयाम गढ़ने के लिए अग्रसर है और विकास के ये सोपान शोध की मज़बूत नींव पर ही खड़े होते हैं। ऐसी स्थिति में शोध अखण्डता अत्याधिक महत्त्व पूर्ण हो जाती है। शोध अखण्डता, शोधकर्त्ता के शोध कार्य के प्रति दृष्टिकोण पर निर्भर करती है। और उम्मीद करती है कि शोध कर्त्ता कर्त्तव्य निष्ठ, ईमानदार, जिम्मेदार और कार्य को पारदर्शी ढंग से परिपूर्ण करने वाला होगा वह अपने शोधकार्य के प्रति इतना समर्पित होगा कि उसका कार्य विश्वसनीयता के मानदण्डों पर खरा उतरे। इसीलिये शोध अखण्डता को स्पष्ट करते हुए कहा जा सकता है की शोध अखण्डता से आशय है कि – शोध कार्य को पूर्ण करने में पेशेवर सिद्धांतों के पालन के साथ नैतिक मानदण्डों को प्रश्रय देना।

Essential elements for research integrity/शोध अखण्डता हेतु आवश्यक तत्व –

निम्न तत्वों को सम्मिलित कर शोध अखण्डता को उच्चस्तर का बनाये रखा जा सकता है। –

01 – वस्तुनिष्ठता / Research objectivity

 02 – विश्वसनीयता / Reliability

03 – निष्पक्षता युक्त पारदर्शिता / Transparency with fairness

04 – साहित्यिक चोरी से अलगाव / Non-plagiarism

05 – जिम्मेदारी युक्त जवाबदेही / Meaning of accountability with responsibility

06 – स्वतन्त्रता / Independence   

07 – उपयुक्त लचीला पन / Appropriate flexibility

08 – सम्यक गोपनीयता / Appropriate confidentiality 

09 – उच्च नैतिक मानदण्ड / High ethical standards

10 – निष्कर्षों की जिम्मेदारी / Responsibility for findings

उक्त तथ्यों का ईमानदारी से परिपालन करके शोध अखण्डता को प्रश्रय दिया जा सकता है, शोध अखण्डता व्यक्तिगत शोधकर्त्ताओं को सामाजिक जिम्मेदारी का अहसास कराती है शोध समुदाय और शोध जगत हेतु शोध अखण्डता नींव की मज़बूत आधारशिला है। इससे जिम्मेदार आचरण निर्देशित होता है शोध प्रतिभागियों को गरिमा युक्त सम्मान प्राप्त होता है। सत्य, निष्पक्षता को आलम्ब मिलता है।

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शोध

IMPACT FACTOR

by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

प्रभाव कारक

काल चक्र परिभ्रमण के साथ पत्रिकाओं का अस्तित्व हमेशा से रहा है और रहेगा। विविध जर्नल में से कोई जर्नल प्रतिष्ठित की श्रेणी में आता है तो उसका आधार बनता है इम्पैक्ट फैक्टर (IMPECT FACTOR) . यह एक तरह से उस जर्नल की प्रभाव और प्रतिष्ठा की माप है। इससे यह ज्ञात होता है कि इसमें उपस्थित लेखों को कितनी बार उद्धृत किया गया है।इम्पैक्ट फैक्टर (IMPACT FACTOR) की गणना/ Calculation of IMPACT FACTOR

 – इसकी गणना के माध्यम से जर्नल की सापेक्षिक गुणवत्ता व महत्त्व को प्रदर्शित किया जाता है इसकी गणना एक निर्धारित वर्ष में जर्नल में प्रकाशित लेखों को पिछले दो वर्षों में उद्धृत किये जाने वाले औसत अंक के रूप में जो संख्या प्राप्त होती है उसे उसका इम्पेक्ट फैक्टर कहा जाता है।

उदाहरण के लिए यदि किसी जर्नल का 2024 का इम्पैक्ट फैक्टर 3.0 है, तो इसका मतलब है 2022 और 2023 में पब्लिश्ड लेखों को 2024 में औसतन 3 बार उद्धृत किया गया। यहाँ यह जानना भी आवश्यक है कि इम्पैक्ट फैक्टर की गणना सामान्यतः जॉर्नल साइटेशन रिपोर्ट (JSR) में प्रकाशित की जाती है।

इम्पैक्ट फैक्टर (IMPACT FACTOR) का महत्त्व/ Importance of IMPACT FACTOR,  –

01 – श्रम साध्य लेखन को दिशा / Direction for laborious writing

02 – जर्नल हेतु उपयुक्त मानक / Appropriate standards for the journal

03 – प्रकाशकों को दिशा बोध / Direction for publishers

04 – जर्नल को प्रसिद्धि / fame to the journal

05 – नए शोध कर्त्ताओं को प्रेरणा / Inspiration to new researchers

06 – लेखकों की मान्यता स्थापन / Establishment of recognition of authors

07 – अभिप्रेरक /Motivator

इम्पैक्ट फैक्टर (IMPACT FACTOR) की सीमाएं/ Limitations of IMPACT FACTOR,  –

01 – समग्र प्रभाव का आकलन /Assessment of overall impact

02 – व्यक्तिगत लेखों की गुणवत्ता आकलन में विफल / Fails to assess the quality of individual articles

03 – बेईमानी को प्रश्रय / Encouraging dishonesty

04 – शोध मूल्यांकन हेतु इस पर आश्रय उचित नहीं / It is not appropriate to rely on it for research evaluation

05 – पक्षपात पूर्ण /Biased

अन्ततः यह स्वीकार किया जा सकता है कि यह एक महत्त्वपूर्ण मानक है लेकिन केवल इसी पर निर्भरता उचित नहीं। अतः शोध मूल्यांकन में इसे मात्र मानदण्ड न माना जाए।

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विविध

शुभांशु शुक्ला अन्तरिक्ष से …..

June 29, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

आज कुम्भ राशि के जातक शुभांशु शुक्ला को अधिकाँश भारतीय बुद्धिजीवी जानते हैं। माता आशा शुक्ला और पिता शम्भु दयाल शुक्ला के तीसरे बच्चे के रूप में इनका जन्म हुआ, प्रारंभिक शिक्षा लखनऊ के सिटी माण्टेसरी स्कूल से प्रारम्भ हुई, राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA)से स्नातक करने के उपरान्त भारतीय विज्ञान संस्थान (IISC) बैंगलोर से M.Tech की उपाधि प्राप्त की। कालान्तर में इन्होने दन्त चिकित्सक कामना मिश्रा से विवाह किया।

2006 में भारतीय वायु सेना में शामिल होने वाला यह नौजवान आज 2000 घंटे की उड़ान भर चुका है और Su -30 MKI, मिग-21, MIG -29, जगुआर, हॉक, डोर्नियर और AN -32 उड़ाने का अनुभव प्राप्त कर चुका है शुभांशु शुक्ला ग्रुप कैप्टन मार्च 2024 में बने।

10 अक्टूबर 1985 को जन्मे इस बालक ने 2019 में रूस के यूरी गॉगरिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेण्टर से अंतरिक्ष यात्री का प्रशिक्षण प्राप्त किया।

इन्हें गगन यान कार्यक्रम हेतु इसरो के द्वारा चयनित किया गया और आज ये एक निजी तौर पर वित्तपोषित एक्सिओम मिशन -4 (X -4 )के पायलट के रूप में सुर्ख़ियों में हैं इस मिशन को एक्सिओम स्पेस व NASA के सहयोग से आयोजित किया गया है अन्तर्राष्ट्रीय अन्तरिक्ष स्टेशन (ISS ) की यह यात्रा परम शुभ रहे। 140 करोड़ भारतीयों ने ये दुआ और कामना की है।

भारतीय प्रधान मन्त्री और शुभांशु की बातों का सार संक्षेप –

28 जून 2025 को यशस्वी भारतीय प्रधान मन्त्री श्रीयुत नरेन्द्र मोदी जी और ग्रुप कैप्टन शुभांशु की बातचीत का सार बताने से पहले यह बताना उचित होगा कि इनकी  माँ जी और दादीजी दोनों का ही नाम आशा है और आज शुभांशु भारतीय आशा का अवलम्ब व मानक है –  

आज से 41 वर्ष पूर्व भारत के राकेश शर्माजी अन्तरिक्ष में गए थे और तत्कालीन प्रधान मन्त्री महोदया से उनकी बात हुई थी। आज इतिहास उसे दोहरा कर आगे की पटकथा लिख रहा है – जब भारतीय प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदीजी ने अन्तर्राष्ट्रीय अन्तरिक्ष स्टेशन से वीडिओ लिंक के माध्यम से बात चीत की तो शुभांशु ने बताया। –

“यहां से भारत बहुत भव्य और बड़ा दिखता है। अनेकता में एकता का भाव साकार होता दिखता है। “

लगभग 1020 सेकण्ड की वार्ता में पीछे लगा भारतीय राष्ट्रीय चक्रध्वज आने वाले सशक्त भारत की आहात को हरदम महसूस करा रहा था। उत्साह से परिपूर्ण शुभांशु ने कहा -“बहुत नया  अनुभव है ऐसी चीजें हो रही हैं, जो दर्शाती हैं कि हमारा भारत किस दिशा में जा रहा है।”

ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ल ने अपनी अन्तरानुभूति को साझा करते हुए कहा की पृथ्वी से ऑरबिट तक 400 किलोमीटर की छोटी यात्रा सिर्फ मेरी नहीं मेरे देश भारत की भी यात्रा है। उन्होंने आगे कहा यह मेरे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है और मैं गर्व महसूस कर रहा हूँ कि मैं यहाँ अपने देश का प्रतिनिधित्व कर पा रहा हूँ।

इस भारतीय लाल ने अन्तरिक्ष से 28000 Km /H  की गति से उड़ते हुए यह अति महत्त्वपूर्ण तथ्य इंगित किया –

“पृथ्वी बिलकुल एक दिखती है, कोई सीमा रेखा दिखाई नहीं देती। ” 

भारतीय वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को पोषित करने वाला यह वाक्यांश दिल को छू गया इसके आलोक में यह अक्षर स्वर्णिम आभा से दमकते हुए महसूस किये जा सकते हैं। –

सर्वे  भवन्तु सुखिनः,सर्वे सन्तु निरामयाः।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत।

अपना एक और विश्लेषण प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा –

हम भारत को मैप पर देखते हैं बाकी देशों का आकार कितना बड़ा है और भारत का कितना ? वह सही नहीं होता, क्योंकि हम 3D ऑब्जेक्ट को 2D पेपर पर उतारते हैं। उनके शब्द –

“भारत सच में बहुत भव्य और बड़ा दीखता है जितना हम मैप पर देखते हैं उससे कहीं ज्यादा बड़ा। अनेकता में एकता का भाव साकार होता है। ”

ऐसा लगा जैसे अथर्ववेद का पुनः उद्घोष हुआ हो –

अथर्ववेद में भी विविधता में एकता के सिद्धांत का उल्लेख है- “जनं बिभ्रति बहुधा विवाचसं नानाधर्मान् पृथिवी यथौकसम्।”

इसका अर्थ है, “पृथ्वी अनेक भाषाओं और धर्मों वाले लोगों को एक घर की तरह धारण करती है।”

अन्तरिक्ष यात्री भारतीय लाल ने सूर्यास्त और सूर्योदय को लेकर कहा कि वे दिन में 16 बार सूर्य को उदय और अस्त होते हुए देख  रहे हैं अपने पैरों के बंधे होने की बात बताते हुए उन्होंने प्रत्युत्तर में गाजर और मूँग दाल हलवे तथा आम रस का जिक्र भी किया।

बिना गुरुत्वाकर्षण के स्थिति कितनी जटिल होगी इसका अहसास हुआ छत, जमीन, या दीवार कहीं भी बमुश्किल सोया जा सकता है। गुरुत्वाकर्षण के अभाव में छोटी छोटी चीजें कितनी मुश्किल होंगी अनुभव करने वाला ही जान सकता है।

शुभांशु – मोदी जी – भारतीय सपना –

यह एक सुखद उम्मीद जगी है। दैनिक जागरण ने एक बॉक्स इसे सुन्दर ढंग से परिलक्षित किया और शीर्षक दिया। –

“हमें खुद का अन्तरिक्ष स्टेशन बनाना है” –

कृतज्ञता युक्त आभार के साथ दैनिक जागरण में छपे शब्द यहाँ प्रस्तुत हैं –

पी एम के कहने पर उन्होंने युवा पीढ़ी के लिए सन्देश दिया की भारत आज जिस दिशा में जा रहा है,हमने बहुत साहसिक और ऊंचे सपने देखे हैं उन सपनों को पूरा करने  लिए हमें आप सभी की जरूरत है। अन्त में पी एम मोदी ने भारत के संकल्प उनसे साझा किये और कहा कि हमें मिशन गगन यान को आगे बढ़ाना है। हमें अपना खुद का अंतरिक्ष स्टेशन बनाना है चन्द्रमा पर भारतीय की लैण्डिंग भी करानी है। इन सारे मिशनों में आपके अनुभव बहुत काम आने वाले हैं। भारत दुनिया के लिए अंतरिक्ष की नई सम्भावनाओं के द्वार खोलने जा रहा है। अब भारत सिर्फ उड़ान नहीं भरेगा ,बल्कि भविष्य में नई उड़ानों के लिए मञ्च तैयार करेगा।

अन्त में शुभांशु और हमारे प्रधान मंत्रीजी ने भारत माता की जय कहकर वार्ता को विराम दिया और Education Aacharya भी यह कह  कर विराम लेगा –

भारत माता की जय

धन्यवाद

जयहिन्द, जय भारत।

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वाह जिन्दगी !

स्वप्न दृष्टा बनें और बनाएं।/Be a dreamer and create it.

June 25, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

स्वप्न दृष्टा बनें और बनाएं। / Be a dreamer and create it.

सपना होता क्या है ? क्यों आता है ? कैसे आता है ?ऐसे बहुत सारे प्रश्न जब मानव मस्तिष्क को झिंझोड़ते हैं तब यह बात साफ़ हो जाती है कि इन्हें दो हिस्से में बाँट सकते हैं

i – बन्द आँखों से देखा जाने वाला सपना।

ii – खुली आँखों से देखा जाने वाला सपना।

यहाँ हम मुख्य रूप से जो विचार करने जा रहे हैं वह आँखों की खुली स्थिति में देखे जाने वाले सपनों से है। हमारे परम प्रिय श्रद्धेय ऋषि व राष्ट्रपति ए ० पी ० जे ० अब्दुल कलाम ने कहा भी था –

“सपना वह नहीं है जो आप सोते समय देखते हैं, बल्कि यह वह है जो आपको सोने नहीं देता।”

आँग्ल अनुवाद

“A dream is not what you see while sleeping, it is what does not let you sleep.”

सपना और हिम्मत / Dream and Courage –

सपना किसी भी प्रकार का हो उनका सम्बन्ध कहीं न कहीं हमारी इच्छाओं से होता है। फ्रायड सपनों को दमित वासनाओं का प्रतिफल मानें तो मानें। भारतीय ऋषिकुल परम्परा हमेशा व्यापक सकारात्मक दृष्टिकोण की हामी रही है। हमारे दृष्टिकोण के अनुसार उनकी व्यापकता बढ़ जाती हैं। बहुत से लोगों के सपने इतने अलग होते हैं हैं या गुप्त होते हैं कि जिन्हें वह अपने करीबी दोस्तों से भी साझा नहीं कर पाते। जाग्रत स्थिति में देखे जाने वाले सपने को लिपिबद्ध कर उसके लिए रणनीति बना कर प्रयास करने वालों के बारे में कहा जा सकता है कि उनके पास सचमुच हिम्मत है।

इसी लिए गूगल हमें लैंग्स्टन ह्यूजेस के शब्द दिखाता है –

सपनों को मजबूती से थामे रहो,

क्योंकि अगर सपने मर जाते हैं तो

जीवन टूटे पंखों वाला पक्षी है

जो उड़ नहीं सकता। 

सपनों को मजबूती से थामे रहो,

क्योंकि जब सपने चले जाते हैं तो

जीवन

बर्फ से जमी एक बंजर जमीन बन जाती है।जाग्रत स्वप्नदृष्टा कौन ?/ Who is the waking dreamer? –

वह व्यक्ति जो अपनी काल्पनिक इच्छाशक्ति को यथार्थ का जामा पहनाने की शक्ति रखता है। पलायनवादी सोच के ठीक विपरीत जब कोई यथार्थ के कठोर ठोस धरातल पर खुली आँखों सपना देख उन्हें फलीभूत करने का योजनाबद्ध ढंग से प्रयास करता है तो उसे ही जाग्रत स्वप्नदृष्टा कहा जाता है। मैंने अपनी कविता “बैठ चिता पर हवन न होते हैं में कहा –

“खुली आँखों देखकर सपना लक्ष्य संजोते हैं

लक्ष्य प्राप्त करने की धुन में जुनूनी होते हैं

स्थाई जीवन की चाह में, न रोते – धोते हैं

सफलता हेतु लगन व निष्ठा साथी होते हैं।

कुछ जाग्रत सपने संयुक्त रूप से पूरे होते हैं जैसे घर संजोने का युगल द्वारा या ग्रुप द्वारा ध्येय का, अध्यापक और शिक्षार्थी द्वारा, इसी सम्बन्ध में मैंने अपने गीत -“लक्ष्य पर पूरा समर्पण में लिखा –

आचार्य ये कहता नहीं कि मैं भी रुकना जानता हूँ

क्योंकि अपने शिष्य का हर एक सपना जानता हूँ

उसके सपनों में हैं शामिल उसकी आशाएं सभी,

उसकी आशाओं में गहरा रंग भरना जानता हूँ

ये बता सकता नहीं कि थकना कहते हैं किसे

लक्ष्य पर पूरा समर्पण और मिटना जानता हूँ।

स्वप्न दृष्टा क्यों बनें बनायें ?/Why become a dreamer and create one?-

वाल्ट डिजनी महोदय ने कहा –

“अगर आप सपना देख सकते हैं तो आप उसे पूरा भी कर सकते हैं।”

“If you can dream it, you can achieve it.”

23 वें पोप जॉन के ये शब्द भी महत्ता रखते हैं –

“अपने डर के बारे में नहीं, बल्कि अपनी उम्मीदों और सपनों के बारे में सोचें। अपनी निराशाओं के बारे में नहीं, बल्कि अपनी अधूरी संभावनाओं के बारे में सोचें। इस बात पर ध्यान न दें की आपने क्या प्रयास किया और असफल रहे, बल्कि इस बात पर ध्यान दें कि आप के लिए अभी भी क्या संभव है।”   

“Think not of your fears, but of your hopes and dreams. Think not of your disappointments, but of your unfulfilled possibilities. Focus not on what you have tried and failed, but on what is still possible for you.”

स्वप्न दृष्टा क्यों बनें बनायें के समर्थन में निम्न वास्तविक तथ्य दिए जा सकते हैं। 1 – सृजनात्मक शक्ति के विकास हेतु/ For the development of creative power

 एलेनोर रूजवेल्ट – “भविष्य उन लोगों का है जो अपने सपनों की सुंदरता में विश्वास रखते हैं.”

“The future belongs to those who believe in the beauty of their dreams.”

2 – आत्मबल की वृद्धि हेतु / To increase self-confidence एक विद्वान् के शब्द रास्ता किस जगह नहीं होता सिर्फ हमको पता नहीं होता छोड़ दें डरकर  ही हम ये कोइ रास्ता नहीं होता।3 – समस्या समाधान योग्यता अभिवृद्धि / Problem solving ability enhancement

कोबे यामादा – “अपने सपनों का पीछा करो, वे रास्ता जानते हैं। “

 “Follow your dreams, they know the way.” 4 – भय मुक्ति व शक्ति विकास / freedom from fear & power development

नॉर्मन वॉन –

“बड़े सपने देखो और असफल होने का साहस रखो।” / “Dream big and have the courage to fail.”

5 – आत्म गौरव व आत्म विश्वास में वृद्धि

मेरी के ० एश –

“जब आप किसी बाधा पर पहुंचते हैं तो उसे अवसर में बदल दें। आपके पास एक विकल्प है। आप उस पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।”

“When you come to an obstacle, turn it into an opportunity. You have a choice. You can overcome it.”

6 – कौशल विकास

7 – तनाव से मुक्ति

8 – अनिद्रा समाधान

अन्त में अम्बेडकर नगर, उत्तर प्रदेश के राम बृक्ष बहादुर पुरी की बात से अपने विचारों को विराम देता हूँ –

आँख खोल कर

 देखो सपने

नींद कहाँ फिर

रातें गिन लो।

सपने बुन लो

गुन लो धुन लो।

हर एक सपना

 ऊँचा देखो

ऊँचा ऊँचा

सोंच समझ कर

खुद ही चुन लो

सपने बुन लो

गुन लो धुन लो।   

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काव्य

कविता में राग ………..

June 23, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

  कर्म योगी था पहला कवि

श्रम जल छलकाया होगा,

कथनी करनी में साम्य रहे

भाव यह चढ़ आया होगा।1 

श्रम से सबकुछ मिलता है

कहीं यह सुन आया होगा,

श्रमकण हरदम जीवन्त रहें

भाव यह गहराया होगा ।2।

जन्म मरण के चक्कर में

प्रारब्ध बोध आया होगा,

इस बार न कोई कमी रहे

यही समझ आया होगा ।3।

दैन्य, दीन निरख निज छवि

ज्ञान, यह मन आया होगा,

कर्म में रत निष्ठा से रहें

मानस ने समझाया होगा ।4।

सत रज तम मंथन से रवि

मनवा में उग आया होगा,

भाव लावा अनवरत बहे

इस लिए गीत गाया होगा।5।

सीमित शब्दों में कहने का

ये ढंग निकल आया होगा,

जिसे बारम्बार गाते ही रहे

ये सौम्य नज़र आया होगा ।6।

बातों बातों में बहस का क्रम

द्वन्द तक, बढ़ आया होगा,

जन गण में सामन्जस्य रहे

मन लय से भाव गाया होगा।7।

तन मन धन सहित निज छवि

का उचित साम्य पाया होगा,

‘नाथ’ कहीं कोई कमी न रहे

कविता में राग गाया होगा ।8।       

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विविध

गांधीजी के तीन बन्दर और आज का मानव

June 16, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

Gandhiji’s three monkeys and today’s human

आज लगभग सर्व स्वीकार्य कथन आपके बीच रखने का मन है वह यह है कि – “अच्छा जहाँ से मिले स्वीकार करना चाहिए।”  – चाहे वह विचार हो, सिद्धान्त हो, प्रेरक वाक्य हो, प्रेरक व्यक्तित्व हो, यथार्थ हो, कड़वा लेकिन सच तथ्य हो, आँख खोलने वाला प्रसंग हो, विशिष्ट भेंट हो आदि आदि। इसी क्रम में हमारे श्रद्धेय गांधीजी को चीन के प्रतिनिधि मण्डल से भेंट स्वरुप तीन बन्दरों की आकृति प्राप्त हुई जो जापान के थे और वहाँ की संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते थे।

तीनों बन्दरों के नाम व आशय / Names and meanings of the three monkeys –

1 – MIZARU / मिज़ारू – बुरा न देखो का पावन सन्देश देते हुए यह बन्दर अपनी आँखों को बन्द किए हुए है।

2 – KIKAZARU / किकाजारु – ‘बुरा न सुनो’ का सन्देश सम्प्रेषित करने वाला यह बन्दर अपने कान बन्द किए हुए है।

3 – IWAZARU / इवाजारु – ‘बुरा न बोलो’ का महत्त्व पूर्ण सन्देश प्रदान करते हुए यह बन्दर अपना मुख बन्द किये हुए है।

गांधीजी को यह बन्दर अत्याधिक प्रिय थे और अपने सिद्धान्तों के निकट प्रतीत होते थे। अतः उन्होंने इन्हे अपने गुरु स्वरुप मानकर जीवन भर संजों कर रखे। गांधीजी के सत्य अहिंसा और बुराई से दूर रहने के विचारों को उक्त बन्दरों के संदेशों से प्रश्रय मिला।

MIZARU, KIKAZARU, IWAZARU और आज का मानव –

आज सूचनाएं विद्युत् की गति से उड़ रही हैं और सम्पूर्ण विश्व एक वैश्विक परिवार सा महसूस होता है यदि हम शोध, विज्ञान,दर्शन,उच्च शिक्षा, उच्च तकनीकी आदि विशिष्ट ज्ञान से हटकर सामाजिक परिदृश्य सम्बन्धी दृश्य श्रव्य सामग्री व प्रदर्शित चित्र आदि का विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि समाज पतन के गर्त की और जा रहा है जो सन्देश गांधीजी के उक्त तीनों बन्दरों ने दिए उसके विपरीत कार्य कर रहा है और इसमें हमारे हर आयु वर्ग के लाल और ललनाएँ शामिल हैं। तथाकथित बुद्धिजीवी भी बिगड़ते परिदृश्य के जिम्मेदार हैं अकेले शासन व्यवस्था पर दोष मढ़ना तर्क सांगत नहीं है। वह शर्म, हया, गलती का डॉ मानों किताबी बातें हो गई हों यथार्थ नहीं।

यहाँ हम वृहत परिदृश्य पर बात न कर केवल श्रव्य दृश्य सामग्री का विश्लेषण गांधीजी के तीन बन्दरों और आज के परिदृश्य पर कर रहे हैं –

[i]   – MIZARU  और हम

[ii]   – KIKAZARU और हम

[iii] – IWAZARU और हम

निष्कर्ष / Conclusion –

यदि आज की मानवीय पीढ़ी स्वयं को संरक्षित करते हुए भविष्य को सचमुच सकारात्मक दिशा देना चाहती है तो उसे गांधीजी के तीनों बन्दरों का विशिष्ट आचरण धारण करना होगा।

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विविध

शनि उपासना

June 13, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

शनि उपासना

यह एक अत्याधिक महत्त्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है यह मुख्य रूप से शनि देव को प्रसन्न करने और उनके कृपा पात्र बने रहने हेतु किया जाता है इस प्रक्रिया को पूजा मन्त्र जाप व दान द्वारा पूरित किया जाता है।

शनि व्रत की अथ व इति –

व्रत का प्रारम्भ सावन माह के शनिवार या शुक्ल पक्ष के शनिवार से करना विशेष रूप से शुभ है। वैसे किसी भी निर्दोष शनिवार से व्रत शुरू कर सकते हैं। कम से कम शनि व्रत 7 शनिवार का किया जाना चाहिए। और जो भी लोग इसे प्रारम्भ करें इसका उद्द्यापन अवश्य करें।

शनि देव व इनकी उपासना विधि –

हिन्दू धर्म में इन्हे न्याय का देवता कहा जाता है ये सूर्य और छाया के पुत्र हैं इनकी पत्नी चित्र रथ की पुत्री थीं। इन्हें कर्म फल प्रदाता कहा जाता है ये मकर व कुम्भ राशि के स्वामी हैं और तुला राशि में उच्च के होते हैं। शनि देव की पूजा से जीवन में आने वाली परेशानियाँ कम होती हैं व शुभ फल प्राप्त होते हैं। इसमें इन बिंदुओं पर ध्यान अपेक्षित है। –

01 – सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान

02 – स्नानोपरान्त शनि पूजन सङ्कल्प

03 – मूर्ति या चित्र स्थापन

04 – जल तेल फूल काले तेल का अर्पण

05 – शनि देव का मन्त्राभिषेक करें –

ऊँ शं शनैश्चराय नमः

06 – भोग लगाएं – तिल के लड्डू,  गुड़, कोई फल  

07 – आरती उपरान्त पूजन समापन

08 – दान -तेल, काला तिल, वस्त्र

09 – कथा श्रवण व ध्यान से भी शनि देव की कृपा प्राप्त होती है।

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विविध

अपराजिता

June 7, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

अपराजिता

अपराजिता एक लता है यह दो तरह की मिलती है एक पर सफ़ेद और दूसरी पर नीला फूल आता है। अपराजिता नाम हिंदी व बंगाली में लोकप्रिय है वैसे कई हिंदी भाषी क्षेत्रों में इसे कोयल नाम से भी जानते हैं। इसका पत्ता आगे चौड़ा और पीछे सिकुड़ी सी स्थिति में रहता है। काली मंदिरों में इसी लगाना विशेष शुभ समझा जाता है।

अपराजिता की वल्लरी को विष्णु कान्ता, गो कर्णी, कोयल, काजली, अश्व खुरा आदि नामों से भी जाना जाता है। मुख्यतः वर्षा ऋतू में इस पर फूल व फलियाँ आती हैं। आजकल इसे सौन्दर्य वर्धन हेतु विविध वाटिकाओं में लगाया जा रहा है इसके औषधीय गुण भी मानव का बहुत हित करते हैं।इसके बीजों का रंग काला होता है।

अपराजिता के सामान्य गुण –

अपराजिता के पौधे को घर में लगाने से धन समृद्धि में वृद्धि होती है यह वायु शोधक है इसे ईशान कोण में लगाया जाना मङ्गलकारी माना जाता है। यह महाकाल को अत्यन्त प्रिय है इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचरण होता है। इसके फूलों को भगवान शिव की पूजा में विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है।

दोनों प्रकार की अपराजिता कण्ठ को पोषण प्रदान करने के साथ मेधा के विकास में महती भूमिका का निर्वहन करती हैं। यह शीतल, नेत्र विकार से बचाव में सक्षम, बुद्धि वर्धक तथा कुष्ठ, सूजन, त्रिदोष व विष के प्रभाव का शमन करती है।

अपराजिता के विविध भागों का उपयोग –

01 – अपराजिता के पत्तों का प्रयोग बालों पर लगाने व चाय के रूप में किया जाता है।

02 – अपराजिता के बीजों को खाया जा सकता है व चाय के रूप में प्रयोग में लाया जा सकता है।

03 – अपराजिता के फूलों से त्वचा को विशेष पोषण मिलता है व इसकी चाय स्फूर्ति प्रदाता है।

अपराजिता के औषधीय लाभ –

 इसके लाभ बहुत सारे हैं उनमें से कुछ को यहां देने का प्रयास है जिन्हे बार बार सिद्ध होते देखा गया है।

01 – मानसिक स्वास्थ्य – बीज – एकाग्रता व ध्यान संकेन्द्रण में मदद

02 – हृदय का सशक्तीकरण – कोलस्ट्रॉल नियन्त्रण व नियमित रक्त संचरण

03 – पाचन सहायक – बीज – पेट में जलन व अपच में सहायक, उदरमित्र 

04 – प्रतिरोधी क्षमता वृद्धि – बीज – रोग प्रतरोधक क्षमता वृद्धि, सजगता में वृद्धि

05 – त्वचा हेतु – फूल – एण्टी ऑक्सीडेंट से युक्त – चहरे पर चमक – स्वस्थ त्वचा – सूजन में कमी।

06 – केश वृद्धि व केश को झड़ने से बचाने हेतु – पत्ते – केश वृद्धि व झड़ने से रोकने में मददगार।

विविध व्याधियों में प्रयोग –

सिर दर्द – फली का 10 बूँद रस नाक में टपकाने से आराम , जड़ के रस का नस्य सूर्योदय से पहले खाली पेट देने से भी आराम मिलता है।

कुक्कुर खाँसी – जड़ का मिश्री युक्त शर्बत चटाने से लाभ

गर्भ स्थापन – श्वेत अपराजिता की 5 ग्राम छाल या पत्तों को बकरी के दूध में पीसकर व शहद मिश्रित कर देने का जादुई परिणाम देखने को मिला है।

इसकी जड़ 1-1 ग्राम दिन में दो बार  बकरी के दूध में पीसकर व शहद मिश्रित कर कुछ दिन देना गिरते गर्भ को रोकने की क्षमता रखता है।

अण्डकोष वृद्धि व सूजन निवारक – इसके बीजों को पीसकर गरम कर लेप करने से सूजन मिटटी है व लाभ होता है।

सुख प्रसव – कमर पर इसकी बेल लपेटने से आराम आता है लेकिन प्रसवोपरान्त इसे तुरंत हटा देना चाहिए।

अपराजिता के नुकसान –

1 – इसका अधिक सेवन एसिडिटी, त्वचा पर रैशेज, एलर्जी, गैस्ट्राइटिस का कारण बन सकता है।

2 – कम हीमोग्लोविन वाले, गर्भवती व स्तनपान कराने वाली महिलाओं को इसका या इससे बनी चीजों का प्रयोग नहीं करना है।

3 – अपराजिता का अधिक सेवन से शरीर में अतिरिक्त पानी जमा हो सकता है।

4 – अधिक पित्त व रक्त की कमी वाले लोग इसका सेवन न करें।

नोट – योग्य चिकित्सक या विशेषज्ञ के निर्देशानुसार उपयुक्त मात्रा में सेवन करना चाहिए।

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