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शिक्षा

INCLUSIVE EDUCATION

May 3, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

समावेशी शिक्षा

समावेशी शिक्षा से विस्तृत परिक्षेत्र सम्बद्ध है यहाँ अधोलिखित तीन बिन्दुओं पर मुख्यतः विचार करेंगे।

1 – समावेशन की अवधारणा और सिद्धान्त /Concept and principles of inclusion

2 – समावेशन के लाभ / Benefits of inclusion

3 – समावेशी शिक्षा की आवश्यकता / Need of inclusive education

समावेशन की अवधारणा और सिद्धान्त /Concept and principles of inclusion –

जब हम समावेशन की बात करते हैं तो यह जानना परमावश्यक है कि यह किनका करना है। समाज में बहुत से लोग हाशिये पर हैं शिक्षण संस्थाओं में अधिगम करने वाले विविध वर्ग हैं कुछ में शारीरिक, कुछ में मानसिक क्षमताएं, अक्षमताएं  विद्यमान हैं। हमारे विद्यालयों में अध्यापन करने वाला व्यक्ति समस्त अधिगमार्थियों से उनकी क्षमतानुसार अधिगम क्षेत्र उन्नयन हेतु पृथक व्यवहार कर सभी का समावेशन करना चाहता है।

समावेशन वह क्रिया है जो विविधता युक्त व्यक्तित्वों में निर्दिष्ट क्षमता समान रूप से स्थापन करने हेतु की जाती है।

गूगल द्वारा समावेशन सिद्धान्त तलाशने पर ज्ञात हुआ –       

“समावेशी शिक्षण और शिक्षण सभी छात्रों के सीखने के अनुभव के अधिकार को पहचानता है, जो विविधता का सम्मान करता है, भागीदारी को सक्षम बनाता है, बाधाओं को दूर करता है और विभिन्न प्रकार की सीखने की आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं पर विचार करता है।“

“Inclusive teaching and learning recognizes the right of all students to a learning experience that respects diversity, enables participation, removes barriers and considers a variety of learning needs and preferences.”

समावेशन का यह प्रयास विविध क्षेत्रों में विविध प्रकार से हो सकता है लेकिन यदि हम केवल शिक्षा के दृष्टिकोण से इस पर विचार करें तो प्रसिद्द शिक्षाविद श्री मदन सिंह जी(आर लाल पब्लिकेशन) का यह विचार भी तर्क सङ्गत है –

“शिक्षा के क्षेत्र में समावेशी शिक्षा का अर्थ है – विद्यालय के पुनर्निर्माण की वह प्रक्रिया जिसका लक्ष्य सभी बच्चों को शैक्षणिक और सामाजिक अवसरों की उपलब्धता से है। ” 

“In the field of education, inclusive education means the process of restructuring of schools aimed at providing educational and social opportunities to all children.”

समावेशी शिक्षा की प्रक्रियाओं  में अधिगमार्थी की उपलब्धि, पाठ्य क्रम पर अधिकार, समूह में प्रतिक्रया, शिक्षण, तकनीक, विविध क्रियाकलाप, खेल, नेतृत्व, सृजनात्मकता आदि को शामिल किया जा सकता है।

समावेशन के लाभ / Benefits of inclusion –

चूँकि हम शैक्षिक परिक्षेत्र में सम्पूर्ण विवेचन कर रहे हैं अतः समावेशी शिक्षा के लाभों पर मुख्यतः विचार करेंगे। इस हेतु बिन्दुओं का क्रम इस प्रकार संजोया जा सकता है।

01- स्वस्थ सामाजिक वातावरण व सम्बन्ध / Healthy social environment and relationships

02- समानता (दिव्याङ्ग व सामान्य) / Equality

03- स्तरोन्नयन / Upgradation

04 – मानसिक व सामाजिक समायोजन / Mental and social adjustment

05- व्यक्तिगत अधिकारों का संरक्षण / Protection of individual rights

06- सामूहिक प्रयास समन्वयन / Coordination of collective efforts

07- समान दृष्टिकोण का विकास / Development of common vision

08- विज्ञजनों के प्रगति आख्यान / Progress stories of experts

09- समानता के सिद्धान्त को प्रश्रय / Support the principle of equality

10- विशिष्टीकरण को प्रश्रय / Support for specialization

11- प्रगतिशीलता से समन्वय / Progressive coordination 

12- चयनित स्थानापन्न / Selective  placement

समावेशी शिक्षा की आवश्यकता / Need for inclusive education –

जब समावेशी शिक्षा की आवश्यकता क्यों ? का जवाब तलाशा जाता है तो निम्न महत्त्वपूर्ण बिन्दु दृष्टिगत होते हैं –

01- सौहाद्रपूर्ण वातावरण का सृजन /  Creation of harmonious environment

02- सहायता हेतु तत्परता / Readiness for help

03- परस्पर आश्रयता की समझ का विकास / Development of understanding of mutual support

04- जैण्डर सुग्राह्यता / Gender sensitivity

05- विविधता में एकता / Unity in diversity

06- सम्यक अभिवृत्ति विकास / Proper attitude development

07- अद्यतन ज्ञान से सामञ्जस्य / Alignment with updated knowledge

08- विश्व बन्धुत्व की भावना को प्रश्रय / Fostering the spirit of world brotherhood

09- हीनता से मुक्ति / Freedom from inferiority

10- मानसिक प्रगति सुनिश्चयन  / Ensuring mental progress

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विविध

GURU JAMBHESHWAR UNIVERSITY, MURADABAAD

September 1, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

गुरु जम्भेश्वर विश्व विद्यालय, मुरादाबाद

गुरु जम्भेश्वर विश्व विद्यालय, मुरादाबाद सन 2025 में अस्तित्व में आया है जो महात्मा ज्योतिबा फुले विश्वविद्यालय, बरेली के दो भागों में बँटने से अस्तित्व में आया है। गुरु जम्भेश्वर विश्व विद्यालय, मुरादाबाद को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा  विश्वविद्यालय अनुदान आयोगअधिनियम की धारा 2 (F) व धारा 12 (B) के तहत मान्यता प्रदान की गई है। इसमें बिजनौर, मुरादाबाद, सम्भल, अमरोहा, रामपुर के 372 महाविद्यालय सम्बद्ध किये गए हैं।

यह एक नवीन राज्य विश्वविद्यालय है जो मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश) के हरदाद पुर में स्थित है। विश्नोई समुदाय के परम पूज्य सन्त व संस्थापक गुरु जम्भेश्वर के नाम पर इस विश्वविद्यालय का नाम रखा गया है। इस नाम का एक और विश्वविद्यालय गुरु जम्भेश्वर विश्वविद्यालय ऑफ़ साइंस एन्ड टेक्नोलॉजी ,हिसार, हरियाणा में स्थित है जिसे NAAC द्वारा A प्लस ग्रेड प्रदान किया गया है। गुरु जम्भेश्वर जी की सामाजिक और पर्यावरणीय दायित्व निर्वहन की शिक्षाएं विशेष लाभप्रद हैं।

इस विश्वविद्यालय ने प्रवेश प्रक्रिया को सरल व सुव्यवस्थित व डिजिटल बनाने हेतु समर्थ ई – गवर्नेस प्रवेश पोर्टल [2025 – 26 ] हेतु प्रयोग किया है वास्तव में यह विविध संस्थानों व आवेदन हेतु पारदर्शी व सरल अन्ततः सिद्ध होगा। बहुत बड़ा ग्रामीण परिक्षेत्र भी विश्वविद्यालय की परिधि में है अतः थोड़ी लोच के साथ इससे कुशलता पूर्वक प्रवेश सुनिश्चित होंगे। किसी भी कार्य के प्रारम्भ में दृष्टिकोण विकसित करने की सीमित समस्या रहती है।

वर्तमान समय में इसे गवर्नमेण्ट पॉलीटेक्निक कैम्पस से परिचालित किया जा रहा है इसीलिये वर्तमान में इसका पता है –

गुरु जम्भेश्वर विश्व विद्यालय, मुरादाबाद

कैम्प ऑफिस– गवर्नमेण्ट पॉलीटेक्निक कैम्पस

कांठ रोड , मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश (244001)

इसमें प्रवेश हेतु [email protected] तथा विश्वविद्यालय हेतु [email protected]  नामक मेल का प्रयोग किया जा सकता है एक हेल्प लाइन नम्बर 05912976525 का भी प्रयोग किया जा सकता है ।

 विविध विषयों में स्नातक, स्नातकोत्तर, के साथ विविध प्रशिक्षण पाठ्यक्रम भी इसके द्वारा सञ्चालित किये जा रहे हैं। प्राचीन महाविद्यालयों के विञजनों से युक्त अपेक्षाकृत नया विश्व विद्यालय शीघ्र ही अपनी विशेषताओं के बलबूते नए आयाम छू सकेगा।शोध कार्य के गुणात्मक स्तर में सकारात्मक वृद्धि हेतु भी सभी का मिलाजुला प्रयास सार्थक सिद्ध होगा।  शीघ्र ही विविध पदों पर नियुक्ति होने जा रही हैं। इन नियुक्तियों की प्रक्रिया पूर्ण होने पर समस्त क्रियाओं में तेजी परिलक्षित होगी।

गुरु जम्भेश्वर : सामान्य परिचय :-

गुरु गोरख नाथ जी के परमप्रिय शिष्यों में से एक थे जम्भेश्वर जी, इनके बचपन के बारे में कहा जाता है कि इन्होने सात वर्ष तक मौन रहकर साधना की इसीलिये इन्हें गूँगा व धनराज नाम से भी जाना जाता था। इनका जन्म 1451 में नागौर के पीपासर गाँव में पँवार राजपूतों के परिवार में हुआ। ये हंसा देवी व लोहट पंवार की एक मात्र सन्तान थे। बचपन में सात वर्ष का मौन यह दिखाता है कि ये अन्तर्मुखी प्रवृत्ति के थे। जाट क्षत्रिय वंश में जन्म लेने के बाद भी इनका सम्पूर्ण ध्यान भगवान् कृष्ण के प्रति समर्पित था। ये दीर्घकाल तक गौ सेवा  से भी जुड़े रहे। 

बिश्नोई समाज के परम पूज्य गुरु जम्भेश्वर का साहित्य “शब्द वाणी ” नाम से ख्याति प्राप्त है। शब्द वाणी में उनकी शिक्षायें और विविध उपदेश सम्मिलित हैं जिन्हें काव्यात्मक रूप में सँजोया गया है। इस बिश्नोई समाज के विशिष्ट धार्मिक ग्रन्थ में उनके 29 नियमों को स्थान मिला है इसमें धर्म, पर्यावरण संरक्षण, नैतिकता व विविध मानव मूल्यों से युक्त विविध शिक्षाओं को सम्मिलित किया गया है।

 इस साहित्य को जाम्भाणी साहित्य के नाम से भी जाना जाता है यह साहित्य मुख्य रूप से उनके अनुयायिओं और शिष्यों द्वारा गुरु की वाणी, सिद्धान्तों और बहुमूल्य चरित्र से प्रेरणा लेकर सृजित किया गया है। इनकी शिक्षाएँ कालजयी हैं जिनसे आज भी प्रेरणा ली जा सकती है। 

 

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मनोविज्ञान•शिक्षा

APTITUDE

August 30, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

अभिरुचि

What is aptitude?

यह दुनियाँ तरह तरह के लोगों से बनी है इसमें लोग एक जैसे नहीं हैं बल्कि उनमें वैभिन्न्य है और यह विभिन्नता उनकी आदतों, रुचियों, अभिरुचियों के कारण है। विविध लोगों का विभिन्न क्षेत्रों में कार्य स्तर भी भिन्न होता है अगर हमारी रूचि किसी कार्य में होती है तो वह हमें पसन्द आता है उसमें मन लगता है, लेकिन उस क्षेत्र में अभिरुचि होने पर हम विशिष्ट होने लगते हैं और उस क्षेत्र के बहुत सारे कौशल हमसे जुड़ने लगते हैं। अभिरुचि होने पर वांछित स्तर परिवर्तित होकर सफलता दिलाता है। अतः ऐसी विशिष्ट योज्ञता को जो सामान्य बौद्धिक योग्यता से पृथक है अभिरुचि कहलाती है यह किसी भी व्यक्ति को उसके वांछित स्तर की निपुणता प्रदान करने में मदद करती है।

अभिरुचि सम्बन्धी परिभाषाएं / Definitions of Aptitude –

किसी विशिष्ट क्षेत्र में कौशल अधिगम, ज्ञान प्राप्ति या कार्य सम्पादन की जन्मजात या अर्जित क्षमता अभिरुचि कहलाती है। अभिरुचि को विविध विज्ञजनों ने इस प्रकार पारिभाषित किया है।बिंघम (Bingham) महोदय कहते हैं। –

“अभिरुचि व्यक्ति के व्यवहार के उन विशिष्ट गुणों की और संकेत करती है जो यह बताते हैं कि वह व्यक्ति किन्ही विशिष्ट प्रकार की समस्याओं का किस प्रकार सामना करेगा और उन्हें कैसे हल करेगा।”

“Aptitude refers to those qualities characterising a person’s way of behaviour which serves to indicate how well he can learn to meet and solve certain specified kinnds of problem. 1937, p.21

फ्रीमैन (Freeman) के अनुसार –

“अभिरुचि कुछ विशेषताओं का मिश्रण है जो प्रशिक्षण द्वारा कुछ कुछ विशिष्ट ज्ञान कौशल या संगीत अनुक्रियाओं के समूह को प्राप्त करने की व्यक्ति की योग्यता की ओर संकेत करता है, जैसे भाषा को बोलने की योग्यता, संगीतकार बनने की योग्यता, मशीनी काम करने की योग्यता आदि। “

“An aptitude is a combination of characteristics indicative of an individual’s capacity to acquire some specific knowledge, skills or set of organised responses, such as the ability to speak a language, to become a musician, to do mechanical work.” 

उक्त परिभाषाओं के विश्लेषणात्मक अध्ययन से स्पष्ट है कि यह किसी मानव की उस क्षमता को प्रदर्शित करती है जो उसे एक विशेष कौशल में विशिष्टता प्राप्त करने में मदद करती है बशर्ते उसे यथायोग्य वातावरण और प्रशिक्षण मिले।

Types of Aptitude / अभिरुचि के प्रकार:-

जिस प्रकार धुप को मुट्ठी में बन्द नहीं कर सकते, कार्य क्षेत्रों को नियत नहीं कर सकते उसी तरह अभिरुचियाँ भी किसी सीमा में बाँधी नहीं जा सकतीं। लेकिन शिक्षा, मापन, व्यावसायिक क्षेत्रों में उपादेयता के आधार पर उनके प्रमुख प्रकारों को इस प्रकार वर्णित किया जा सकता है।

A – जीविकोपार्जन अभिरुचियाँ / Earning a a living Aptitudes –

  1. वैज्ञानिक अभिरुचि (Scientific Aptitude)

2- इन्जीनिरिंग अभिरुचि (Engineering Aptitude)

3 – मेडिकल अभिरुचि (Medical Aptitude)

4 -खेलकूद अभिरुचि (Sports Aptitude)

5 – वाणिज्यिक अभिरुचि (Commercial Aptitude)

B – संवेदनात्मक अभिरुचियाँ (Sensory Aptitude)

C – कलात्मक अभिरुचियाँ (Artistic Aptitude) –

1 – संगीतात्मक अभिरुचियाँ /Musical Aptitude

2 – कवितात्मक अभिरुचियाँ / Poetic Aptitude

3 – रेखात्मक अभिरुचियाँ / Linear Aptitude

4 – नृत्यात्मक अभिरुचियाँ / Dance Aptitude

5 – फोटोग्राफिक अभिरुचियाँ / Photographic Aptitude

D – मैकेनिकल अभिरुचियाँ (Mechanical Aptitude)    

E – व्यावसायिक अभिरुचि (Professional Aptitudes) –

1 – शिक्षण अभिरुचि / Teaching Aptitude

2 – वकालत अभिरुचि / Legal Aptitude

3 – लिपिकीय अभिरुचि / Clerical Aptitude

4 – विमान चालक अभिरुचि / Aircraft Aptitude

अभिरुचि की विशेषताएं / Characteristics of aptitude –

इसकी विशेषताएं समय समय पर परिलक्षित होती रही हैं शब्दों में बांधने का छोटा सा प्रयास है।

1 -जन्मजात क्षमता / Innate ability

2 -अर्जित क्षमता/ Acquired ability

3 -वातावरण से योग्यता विकास / Capability development from environment

4 -प्रशिक्षण से क्षमता विकास / Capacity development through training

5 -ज्ञान से विश्लेषणात्मक बोध / Analytical understanding through knowledge

6 -आत्म प्रेरणा का आधार / Basis of self-motivation

7 – अधिगम सहायक / Learning assistant

अभिरुचि का मापन / Measurement of Aptitude –

अभिरुचि का मापन MKS प्रणाली, CGS प्रणाली या FPS प्रणाली से बहुत पृथक है इसे मापने के लिए मनोवैज्ञानिक विधियों का प्रयोग करना पड़ता है जिस तरह इसके विविध क्षेत्र हैं उसी तरह  इसको विभिन्न क्षेत्रों में अलग अलग ढंग से मापने हेतु टेस्ट विकसित किये गए हैं इसे समझने में Traxler (ट्रेक्सलर)के ये विचार दे सकते हैं उन्होंने कहा –

“अभिरुचि व्यक्ति की एक स्थिति है एक गुण या गुणों का समूह है जो उस समय सीमा की ओर संकेत करता है जहाँ तक वह व्यक्ति उचित प्रशिक्षण द्वारा किसी ज्ञान कुशलता या ज्ञान समूह को प्राप्त कर सकता है जैसे -कला, सङ्गीत, मशीन सम्बन्धी योग्यता, गणित सम्बन्धी योग्यता, किसी विदेशी भाषा को पढ़ने या बोलने की योग्यता आदि।”

“Aptitude is a condition, a quality or a set of qualities in an individual which is indicative of the probable extent to which he will be able to acquire under suitable training some knowledge, skill or composite of knowledge, understanding and skill such as ability to contribute to art or music, mechanical ability, mathematical ability or ability to read and speak a foreign language…1957,p49       

            इतनी सारी योग्यता विकसित करने वाली अभिरुचि के बाद भी आदि शब्द का प्रयोग करना पड़ा। इसीलिये विविध क्षेत्रों में मापन हेतु परीक्षण विकसित हुए यथा –

शैक्षणिक अभिरुचि परीक्षाएं (Scholastic Aptitude Tests) – शैक्षणिक परिक्षेत्र में बहुत से अभिरुचि परीक्षण विकसित हुए  उनमें से कुछ इस प्रकार हैं –

1 – सागर विश्व विद्यालय के जय प्रकाश व आर ० पी ० श्रीवास्तव कृत शिक्षण अभिरुचि परीक्षा

2 – शाह कृत शिक्षण अभिरुचि परीक्षा

3 – मॉस, एफ ० ए ० की शिक्षण अभिरुचि परीक्षा 

4 – विविध विद्वानों द्वारा विकसित शिक्षण अभिरुचि परीक्षाएं

व्यावसायिक अभिरुचि परीक्षाएं (Professional Aptitude Tests) – इसी प्रकार विविध विषयों से सम्बंधित व्यावसायिक परिक्षेत्र में बहुत से अभिरुचि परीक्षण विकसित हुए  उनमें से कुछ इस प्रकार हैं –

1 – वैज्ञानिक अभिरुचि परीक्षा (NIE Delhi)

2 – मॉस शैक्षणिक अभिरुचि परीक्षा (मेडिकल के छात्रों हेतु )

3 – टेल लीगल अभिरुचि परीक्षा (Tale Legal Aptitude Test)

4 – Ferguson and Stoddard’s Law Aptitude Test

5 – Pre Engineering ability Test

संगीतात्मक अभिरुचि परीक्षण (Musical Aptitude Test) –

इस क्षेत्र में संगीतात्मक प्रतिभा की सीशोर परीक्षा बहुत प्रसिद्ध है इसमें स्वर की तीव्रता, कम्पन, भारीपन, स्वरात्मक स्मृति, लय और समय अन्तराल से सम्बन्धित कथन हैं।

लिपिक सम्बन्धी अभिरुचि परीक्षाएं ( Clerical Aptitude Test )  –

इस परिक्षेत्र की कुछ प्रसिद्ध अभिरुचि परीक्षण इस प्रकार हैं –

1 – Detroit Clerical Aptitude Test (DCAT)

2 – मिनिसोटा व्यावसायिक परीक्षा (लिपिकों हेतु)

3 – लिपिकीय योग्यता परीक्षा (मैसूर विश्वविद्यालय, मनोविज्ञान विभाग)

4 – Clerical Aptitude Test Battery (CATB) हिन्दी और अँग्रेजी दोनों में उपलब्ध

मैकेनिकल अभिरुचि परीक्षाएं (Mechanical Aptitude Tests) –

मैकेनिकल अभिरुचि जानने के लिए जिस व्यक्ति पर यह परीक्षण किया जाता है उसे प्रतिक्रिया देनी होती है यह अभिरुचि परीक्षाएं कई भागों में बनी होती है। वर्तमान में कतिपय प्रसिद्ध मैकेनिकल अभिरुचि परीक्षाएं इस प्रकार हैं –

1 – मिनिसोटा परिष्कृत पेपर फार्म बोर्ड (1948)

2 – मिनिसोटा मैकेनिकल संग्रह परीक्षा

3 – L.J.O. Rourke’s Mechanical Aptitude Tests( Part 1 & 2 )

4 – बिनेट कृत मैकेनिकल बौद्धिकता परीक्षाएं

5 – S.R.A. Mechanical Aptitude Test  

 वास्तव में मेकेनिकल अभिरुचि परीक्षाएं बहुत से विमाओं का परीक्षण करती  है। इस सम्बन्ध में फ्रीमैन के विचार इसे और अधिक स्पष्ट करते हैं। –

“मैकेनिकल अभिरुचि एक अकेली क्रिया नहीं बल्कि यह ऐन्द्रिक योग्यता, गत्यात्मक योग्यता, स्थानों सम्बन्धी बोध गम्यता, मैकेनिकल बातों के सम्बन्ध में सूचना एकत्रित करने की योग्यता और मैकेनिकल सम्बन्धों को समझने की योग्यता का सम्मिश्रण है।”

“The capacity designed by the term ‘mechanical aptitude’ is not a single, unitary function. It is a combination of sensory and motor capacities plus perception of spatial relation, the capacity to acquire information about mechanical relationships. – 1971, p. 444    

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काव्य

स्वतन्त्रता दिवस

August 14, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

स्वतन्त्रता दिवस

स्वतन्त्रता दिवस पर ये मेले चल रहे हैं

तुम भी मचल रहे हो हम भी मचल रहे हैं

हमको बदल दिया है संस्था के बन्धनों ने

जज्बात पूर्वजों के मुख से निकल रहे हैं ।1।

स्वतन्त्रता दिवस है जज्बे उछल रहे हैं ।

स्वतन्त्रता दिवस है जज्बे उछल रहे हैं ।।   

बलिदानियों की गाथा भारतीय सुन रहे हैं

कुछ सुन के गुन रहे हैं कुछ बहस कर रहे हैं

बलि ने बदल दिया है न बदला वन्दनों ने

कृतज्ञ हिन्दुस्तान  स्वर निकल रहे हैं। ।2।

स्वतन्त्रता दिवस है जज्बे उछल रहे हैं ।

स्वतन्त्रता दिवस है जज्बे उछल रहे हैं ।।   

जो दे गए हो लड़के सो दिल धड़क रहे हैं

वन्दन है आप सब का शोले भड़क रहे हैं

हमको व्यथित किया है भटकों ने क्रन्दनों ने

तुम सब समझ रहे हो,हम भी समझ रहे हैं। ।3।

स्वतन्त्रता दिवस है जज्बे उछल रहे हैं ।

स्वतन्त्रता दिवस है जज्बे उछल रहे हैं ।।   

अब सुन लो देश मेरा हर क्षण बदल रहा है

कुछ चल रहे हैं चालें हम हुंकार भर रहे हैं

करना तुम क्रान्ति पूजा जगाया है बंधनों ने

यह शीश है वतन का हम ले के चल रहे हैं।।4।

स्वतन्त्रता दिवस है जज्बे उछल रहे हैं ।   

स्वतन्त्रता दिवस है जज्बे उछल रहे हैं ।।   

हैं चन्द देश – द्रोही, अवरोध बन रहे हैं

जय चन्द जो बने हैं, हम वो मसल रहे हैं

बदलो न अपने तेवर जो दिए अभिनंदनों ने

‘नाथ’ क्रान्ति लौ जलाओ शोले दहक रहे हैं। ।5।

स्वतन्त्रता दिवस है जज्बे उछल रहे हैं ।

स्वतन्त्रता दिवस है जज्बे उछल रहे हैं ।।   

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विविध

रक्षा बन्धन

August 8, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

रक्षा बन्धन

सन् 2025 में वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार 09 अगस्त को रक्षा बन्धन पर्व मनाया जाएगा। श्रावण माह की पूर्णिमा 08 अगस्त को दोपहर 12 बजे से शुरू होगी और 09 अगस्त को अपरान्ह एक बजकर चौबीस मिनट पर समाप्त होगी।

रक्षा बन्धन पर्व का प्रारम्भ –

प्राचीन लोकप्रिय कथाओं में वर्णन मिलता है कि द्रोपदी ने भगवान् कृष्ण की घायल हो चुकी अँगुली पर अपनी साड़ी की एक चीयर बाँध दी। मातृ शक्ति द्रौपदी के इस भाव व्यवहार से प्रभावित होकर सोलह कला सम्पूर्ण भगवान् श्री कृष्ण ने उनकी रक्षा का वचन दिया और निर्वहन किया। इसी समय से इस परम्परा का प्रारम्भ हुआ।

दुर्लभ महा संयोग –

इस बार रक्षा बन्धन पर भद्रा का साया नहीं है। और 95 वर्ष के उपरान्त सौभाग्य योग के साथ अन्य कई मङ्गलमई योग बन रहे हैं। इसलिए इसे विशेष शुभ मन जा रहा है। इस बार रक्षा बन्धन को उत्तम मानने का एक कारण यह भी है कि इस दिन श्रवण नक्षत्र होगा चन्द्रमा मकर राशि में होंगे जिसके स्वामी भी शनि हैं अतः त्रियोग (श्रवण + शनिवार + शनि ) अत्यन्त लाभकारी व शुभ बन पड़ेगा। सर्वार्थ सिद्धि योग व द्वि पुष्कर योग का भी निर्माण हो रहा है। धनिष्ठा नक्षत्र के साथ सौभाग्य योग व शोभन योग का शुभ संयोग भी देखने को मिलेगा। निश्चित समयावधि में राखी बाँधने व लक्ष्मी नारायण की उपासना करने से साधक को विशिष्ट अक्षय फल की प्राप्ति होगी तथा घर में खुशहाली, समृद्धि और सुख की वृद्धि होगी।

राखी बाँधने के परम्परागत नियम –

हर साल श्रावण माह की पूर्णिमा को यह भाई बहन का पावस पर्व रक्षा बंधन मनाया जाता है तिथि का प्रारम्भ होने पर जिस दिन सूर्योदय होता है उस दिन उड़ाया तिथि के अनुसार यह पर्व भी मनायेंगे। सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान ध्यान व भगवान् को राखी अर्पित करने के बाद इसे परम्परागत रूप से मनाने के लिए कुछ नियमों का परिपालन करना शुभ स्वीकार किया जाता है।

01 – बहिन भाई की दाहिनी कलाई पर पावस कच्चे धागे को बाँधती है और सामान्यतः इसमें तीन गाँठें लगाना शुभ माना जाता है प्रथम गाँठ लगाते समय भाई की लम्बी उम्र ,द्वित्तीय गाँठ लगाते समय स्वयं अपनी लम्बी उम्र व तृतीय गाँठ लगाते समय रिश्तों में दीर्घकालिक मिठास की कामना की जाती है।

02 – तिलक लगाने  के सम्बन्ध में नियम यह है कि अनामिका अँगुली से ललाट पर शुभ तिलक लगाने के उपरान्त उसे अंगूठे से ऊँचा किया जाता है तत्पश्चात अक्षत लगाकर भाई की दीर्घायु की कामना बहिन करती है जीवन में मिठास घुली रहे यह मानकर मिष्ठान्न से भाई का मुँह मीठा कराती है इसके बाद भाई अपनी क्षमतानुसार बहिन को उपहार प्रदान करते हैं। 

03 – दिशा के सम्बन्ध में कहा जाता है कि रक्षा सूत्र बांधते समय बहिन का मुख पश्चिम की और होना शुभ स्वीकार किया जाता है जबकि भाई का मुख यदि उत्तरपूर्व की और रहे तो यह सम्यक व शुभ स्वीकार किया जाता है। बहुत से घरों में दिशा सम्बन्धी नियमों को दृढ़ता से परिपालन सुनिश्चित किया जाता है।

04 – देशी घी के दीपक से भ्राता की आरती का भी विधान है अन्त में छोटी बहने बड़े भाई से आशीष की कामना करती हैं और छोटे भाइयों को बड़ी बहनों से आशीष लेना चाहिए।

(कुछ स्थानों पर क्रिया विधि व विश्वासों में अंतर भी होता है )

ब्राह्मण देवता द्वारा अपने यजमानों को रक्षा सूत्र बांधते समय इस मन्त्र का उच्चारण सामान्यतः किया जाता है –

ऊँ  “येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल माचल।।”

 इसका आशय है कि जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवों के राजा बलि को बांधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं, हे रक्षे! तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो।

आप सभी को रक्षा बंधन का पावन पर्व शुभ हो जीवन में मङ्गल ही मङ्गल हो। यही पावस शुभेक्षा है।

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विविध

तुलसी लौट आएंगी।

August 3, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

Tulsi will return.

भारत अपने आध्यात्मिक धरातल पर खड़ा है यहाँ जिससे भी हमें कुछ प्राप्त होता है उसके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना परमावश्यक मानते हैं। इसी क्रम में भारतीय संस्कृति तुलसी को पावन मानती है और इसका वन्दन करती है यह जहाँ हम भारतीयों द्वारा पूजित होती है वहीं भारतीय इसके आध्यात्मिक महत्त्व व औषधीय गुणों से भी परिचित हैं। इसे दन्त रोग, खाँसी, जुकाम, सर्दी,श्वाँस सम्बन्धी रोग व आन्तरिक ऊर्जा वृद्धि हेतु उपयोगी माना जाता है।

तुलसी की विविध प्रजातियाँ / Various varieties of basil – हमारे यहाँ मुख्य रूप से रामा तुलसी और श्यामा तुलसी को लोग अच्छी तरह जानते हैं, रामा तुलसी को ही श्री तुलसी भी कहा जाता है इसकी पत्तियां हरी होती हैं जबकि श्यामा तुलसी की पत्तियाँ श्याम वर्ण की जिसमें बैंगनी रंग की आभा दीखती है। वास्तव में ये दोनों ही ऑसीमम सैक्टम के अन्तर्गत आती हैं इसे भारत में पावस स्वीकारते हैं। कुछ सामान्य प्रजातियों को इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है –

01 – ऑसीमम ग्रेटिसिकम ( वन तुलसी या अरण्य तुलसी )

02 – ऑसीमम अमेरिकम ( काली तुलसी )

03 – ऑसीमम किलिमण्डचेरिकम ( कपूर तुलसी)

04 – ऑसीमम वैसिलिकम (मरुआ तुलसी)

05 – ऑसीमम वेसिलिकम मिनिमम

06 – ऑसीमम विरिडी

07 – ऑसीमम सैक्टम  

विकीपीडिया के अनुसार –

ऑसीमम सैक्टम  एक द्विबीजपत्रीय तथा शाकीय औषधीय पौधा है। तुलसी का पौधा हिन्दू धर्म में पवित्र माना जाता है और लोग इसे अपने घर के आँगन या दरवाजे पर या बाग़ में लगाते हैं।

तुलसी का महत्त्व या लाभ / Importance or benefits of Tulsi –

कुछ वनस्पतियाँ ऐसी हैं जिनका वर्णन प्रकृति की अनूठी क्षमता व ममता को व्ययाख्यायित करता मालूम होता है। ऐसी ही दिव्य कीर्ति से युक्त है तुलसी।

इससे मानव को मिलने वाले कुछ लाभों को यहाँ एक ख़ास क्रम में वर्णित करने का प्रयास कर रहा हूँ  –

01 – रोग प्रति रोधक क्षमता वृद्धि / Increases immunity

02 – चोट लगने पर / In case of injury

03 – जलन से निजात हेतु / For relief from irritation

04 – तनाव में कमी हेतु / For reduction in stress

05 – सर्दी जुकाम में / In case of cold and cough

06 – बुखार हेतु / For fever

07 – ध्यान संकेन्द्रण में /For meditation concentration

08 – चरणामृत या प्रसाद हेतु / For charanamrit or prasad

09 – ऊर्जा हेतु हर्बल चाय हेतु / For herbal tea for energy

10 – मोबाइल विकिरण रोकथाम / Mobile radiation prevention

11 – एलोपैथी, यूनानी, होम्योपैथी में विविध औषधि निर्माण /   

         Manufacture of various medicines in Allopathy, Unani and Homeopathy –

12 – मृत्यु के समय / At the time of death

            असल में तुलसी में खनिज और विटामिन की प्रचुर मात्रा है इसमें कैल्शियम, जिंक, विटामिन C , क्लोरोफिल और आयरन मिलता है इसके अतिरिक्त इसमें सिट्रिक एसिड, टारटरिक व मैलिक एसिड भी मिलता है। जो विविध रोगों के निवारण हेतु उपयोगी है।

स्थापन स्थल / Installation site –

सामान्यतः यह घर के आँगन में विराजित होता था लेकिन आजकल घरों का स्वरुप बदलने से इसे बालकनी या उसकी खिड़की पर भी लगाया जा सकता है घर के दरवाजे पर भी इसे लगाते हैं। इसे पर्याप्त धुप हवा मिले इसलिए इसे पूर्वाभिमुख करना अच्छा रहता है। इसे नियमित जल व स्वच्छता की आवश्यकता होती है इसे दक्षिण दिशा, अँधेरे स्थल या बेसमेन्ट में नहीं लगाना चाहिए। जहाँ इसे पूर्व में शुभ मानते हैं वहीं ईशान कोण भी स्थापन हेतु शुभ है उत्तर दिशा इस हेतु धन व समृद्धि की दिशा के रूप में स्वीकारी जाती है। इसे एक या विषम संख्यात्मक मान में लगाएं।

उपहार स्वरुप प्रदत्तीकरण / presentation as a gift –

इसको दूसरों को लगाने हेतु देना भी शुभ लक्षण है। रविवार और एकादशी को इसे देना उचित नहीं माना जाता। घर की तुलसी नहीं देनी चाहिए नया पौधा सम्यक व्यक्ति को देना उचित माना जाता है। आपके द्वारा किसी को तुलसी देना उसके प्रति आपके सम्मान व स्नेह का सूचक है। यह ऊर्जा का वाहक है और लेने वाले के यहॉँ समृद्धि लाता है।

सीमित समय में अति विशिष्ट तुलसी चर्चा दुष्कर है फिर भी यह कहना समीचीन होगा कि भगवान् विष्णु को प्रिय यह पौधा माँ लक्ष्मी का ही एक स्वरुप है जिस घर में यह हरा भरा रहता है यह उनके सौभाग्य व समृद्धि का सूचक है। माँ लक्ष्मी की कृपा आप पर बनी रहे अतः सही स्थल पर सम्यक रूप से अपने यहां इसका स्थापन कर लाभ उठायें। यदि आप सम्यक रूप से गमले में इसे लगाएंगे व इनका यथेष्ट ध्यान रखेंगे तो तुलसी लौट आएंगी।

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Uncategorized•शिक्षा

Objectives of higher education

July 31, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

[उच्च शिक्षा के उद्देश्य]

अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के पश्चात अपने सपने, अपने उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए हम उच्च शिक्षा से जुड़ते हैं। यह शुद्ध ज्ञानात्मक शिक्षा या कोई प्रशिक्षण या तकनीकी शिक्षा हो सकती है। व्यक्ति की स्वशिक्षा के उद्देश्य उसमें निहित होते हैं और ठीक इसी तरह उच्च शिक्षा के अपने कुछ उद्देश्य हैं इन उद्देश्यों को हम इस प्रकार वर्गीकृत कर सकते हैं।

[A] – व्यक्तिगत बौद्धिक और नैसर्गिक विकास / Personal intellectual and emotional development

(i) –  विश्लेषणात्मक चिन्तन /Analytical thinking

(ii) – ज्ञान अधिगमन / Knowledge acquisition

(iii) – जीवन पर्यन्त अधिगम / Lifelong learning

(iv) – व्यक्तिगत क्षमता वृद्धि / Personal capability enhancement

(v) – चारित्रिक विकास / Character development –

[B] – सामाजिक पेशेवर योगदान / Social professional contribution –

(i) – सामाजिक कौशल विकास / Social skills development

(ii) – क्षेत्रीय आर्थिक विकास / Regional economic development

(iii) – सामाजिक क्षमता अभिवृद्धि / Social capacity enhancement

(iv) – वृहत विकास में योगदान / Contribution to macro development

(v) – सांस्कृतिक जागरूकता / Cultural awareness

[C] –स्व परिक्षेत्र में विशिष्ट उद्देश्य / Specific objective in self domain

(i) – विज्ञान व तकनीकी परिक्षेत्र / Science and Technology Zone

(ii) – मानविकी परिक्षेत्र / Humanities Zone

(iii) – पेशेवर परिक्षेत्र / Professional Zone      

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शिक्षा

मैकाले शिक्षा का अग्रदूत नहीं।

July 18, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

Macaulay is not a pioneer of education.

1813 के आज्ञापत्र और प्राच्य पाश्चात्य विवाद के समय एक नाम बहुत प्रसिद्द हुआ लेकिन मैकाले को शिक्षा का अग्रदूत कहना उचित नहीं है। जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत चरितार्थ हुई। प्राच्य दल के नेता लार्ड प्रिन्सेप इतिहास की काल कोठरी में गुम हो गया। जो तथ्य मैकाले महोदय को शिक्षा के अग्रदूत के रूप में मानने को तैयार नहीं उसे इस प्रकार क्रम दे सकते हैं।

[01] – राजाराम मोहन राय व उनके सहयोगियों के प्रयास से भारत में अंग्रेजी शिक्षा के पहले माहौल बन चूका था। इसमें ईसाई मिशनरियों व कम्पनी के कर्मचारियों तथा प्रगतिशील भारतीयों का भी योगदान रहा। इसलिए मैकाले को आधुनिक शिक्षा का अग्रदूत मानना उचित नहीं है।

[02] – वेद, पुराण, उपनिषद, अरबी, फारसी साहित्य व संस्कृत साहित्य को मैकाले महत्त्वहीन मानता था उसने बिना इनका अध्ययन किये ही इनकी कटु आलोचना की और यूरोप के अच्छे पुस्तकालय की एक आलमारी से तुलना कर अपनी अज्ञानता ही सिद्ध की।

[03] – मैकाले की अज्ञानता, संकीर्णता व अशिष्टता ने उसे भारतीय दर्शन, इतिहास, ज्योतिष व चिकत्सा शास्त्र का उपहास करने को बाध्य किया लॉर्ड एक्टन  ने इस सम्बन्ध में कहा –

“Hi knew nothing respectable before the seventeenth century, nothing of foreign History, Religion, Philosophy, Science, and Art.

 – Lord  Action. Quoted by Mayhew . The Education of India.

“वह सत्रहवीं शताब्दी के पूर्व के विषय में वस्तुतः कुछ नहीं जानता था और न ही विदेशी इतिहास, धर्म, दर्शन, विज्ञान और कला के विषय में कुछ जानता था।”

[04] – वह भारत में एक ऐसे वर्ग का निर्माण करना चाहता था जो रूचि, विद्वता व विचार में अंग्रेज हो एवम् रक्त व वर्ण में भारतीय। वह पाश्चात्य सभ्यता व संस्कृति को हिन्दुस्तान पर लादकर यहां की सभ्यता व संस्कृति को नष्ट करना चाहता था।   

[05] – ये महोदय भारत की धार्मिक एकता को विखण्डित करना चाहता था और धर्म निरपेक्षता की आड़ में ईसाई मिशनरियों को बढ़ावा देना चाहता था जैसा की 1936 में उसके द्वारा अपने पिता को लिखे पात्र की इन पँक्तियों से स्पष्ट है। –

“No Hindu who has received English education never remains attached to his religion. It is my firm belief that if our plans of education are followed up there will not be a single idolater among the respectable classes in Bengal thirty year hence.”

Quoted by C.E.Trevelyn ‘Life and letters of lord Macaulay 1. 455

हिन्दी अनुवाद

“कोई भी हिन्दू ऐसा नहीं है जो अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त करके अपने धर्म के प्रति ईमानदारी से लगाव रखता हो। मेरा दृढ़ विश्वास है कि यदि हमारी शिक्षा योजना को व्यावहारिक रूप प्रदान कर दिया गया तो 30 वर्ष पश्चात बंगाल के उच्च वर्ग में कोई भी मूर्ति पूजक शेष नहीं रह जाएगा।”

[06] – भारतीय प्राच्य भाषाओँ की पूर्ण उपेक्षा कर केवल अँग्रेजी भाषा को शिक्षा माध्यम बनाना किसी दृष्टिकोण से उचित नहीं था जैसा कि एस ० एन ० मुकर्जी ने लिखा –

“His recommendation about the use of English as the only medium of instruction can not be justified.”

– S.N.Mukerji op.cit.p.81

“शिक्षा के माध्यम के रूप में केवल अँग्रेजी भाषा के उपयोग की उसकी संस्तुति औचित्यपूर्ण नहीं हो सकती है।”

[07] – पाश्चात्य ज्ञान विज्ञान के प्रचार प्रसार ने भारतीय जनता को इतना प्रभावित किया कि उन्हें अपना व देश का ध्यान ही न रहा। जिससे भारत अधिक समय तक गुलाम बना रहा।

[08] – भारतीय भाषा व साहित्य की उपेक्षा कर भारतीय ज्ञान और विज्ञान पर उसने एक छद्म आवरण डाल दिया जब कि भारत के श्री मद्भागवद्गीता जैसे ग्रन्थ का बाद में विश्व की अनेक भाषाओँ में अनुवाद हुआ। 1904 में लार्ड कर्जन ने कहा। –

“Ever since the cold breath of Macaulay’s rhetoric passed over the field of Indian language and the Indian text books the elementary

education of the pupils in their own tongue shrivelled and pinned.” Lord Curzon in India.p.316

“जब मैकाले की अलंकृत भाषा (अंग्रेजी) की शीत लहर भारतीय भाषाओँ और पाठ्य पुस्तकों के क्षेत्र से होकर गुज़री, तबसे अपनी स्वयं की भाषा में छात्रों की प्रारम्भिक शिक्षा की बेलें कुम्हला गईं और कराहने लगीं।”

[09] – मैकाले, कम्पनी के शासन हेतु सुयोग्य व बफादार कर्मचारी तैयार करना चाहता था उसका उद्देश्य भारत में श्क़्श का प्रसार नहीं था उसने स्वयं लिखा –

“We must at present do our best to form a class, who may be interpreters between us and the millions whom we govern.”

-Macaulays Minute

”हमें इस समय एक ऐसे वर्ग का निर्माण करना चाहिए जो हमारे और उन लाखों व्यक्तियों के मध्य द्विभाषिया बन सकें जिन पर हम शासन करते हैं।”

वस्तुतः मैकाले भारतीय भाषाओँ, संस्कृति व जनसाधारण की शिक्षा के प्रसार में बाधक बना उसे भारत में आधुनिक शिक्षा की प्रगति का पथ प्रदर्शक अथवा पाश्चात्य शिक्षा का अग्रदूत कहना उचित नहीं। इस सम्बन्ध मेंJames महोदय ने ठीक ही कहा है –

“His pronouncements are too glib, too confident too unqualified and some times error against good taste.”

-H.R.James ; Education and Statmanship in India.

“उसकी घोषणाएं व्यर्थ बकी बकवासों अपने आप पर अपार विश्वास तथा अहम् मान्यताओं से परिपूर्ण थीं कभी कभी उनमें सुरुचि का अभाव प्रस्फुटित होता है।” 

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शिक्षा

Personal and social development

July 17, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

व्यक्तिगत व सामाजिक विकास

व्यक्तिगत विकास से आशय –

व्यक्तिगत विकास में अपनी स्वयं की क्षमता पहचानना, उन्हें विकसित करना व खुद को समाज के उपयोगी सदस्य के रूप में स्थापित करना समाहित है।

हुमायूँ कबीर महोदय कहते हैं –

“यदि व्यक्ति को समाज का सृजनशील सदस्य बनना है तो उसे न केवल स्वयं का विकास करना चाहिए वरन समाज के प्रति भी कुछ योग दान करना चाहिए।”

“If one is to be creative member of society, one must not only sustain one’s own growth but contribute something to the growth of society.”

टी पी नन (T.P.Nunn ) महोदय का मानना है –

“वैयक्तिकता केवल ऐसे वातावरण में विकसित होती है, जहाँ सांझी रुचियों और साँझी क्रियाओं से अपना पोषण कर सकती है। “

“Individuality develops only in a social atmosphere where it can feed on common interests and common activities.”

अतः कहा जा सकता है कि व्यक्तिगत विकास में सामाजिक विकास के बीज भी संरक्षित रहते हैं।

सामाजिक विकास से आशय / Meaning of social development –

व्यक्ति समाज की इकाई है और व्यक्तियों का समूह समाज है हर समाज के अपने नियम, मर्यादाएं,परम्पराएं ,संस्कृति,आदर्श मूल्य और प्रतिमान होते हैं जिनमें शिक्षा के द्वारा सकारात्मक परिवर्तन आता है इससे समाज का व्यवहार निर्देशित होता है। यह सकारात्मक परिवर्तन विकास को परिलक्षित करता है।

मैकाइवर और पेज महोदय कहते हैं। –

“समाज रीतियों तथा कार्य प्रणालियों की अधिकार तथा पारस्परिक सहयोग की, अनेक समूहों और विभागों की, मानव व्यवहार के नियंत्रणो और स्वतंत्रताओं की एक व्यवस्था है। इस सतत परिवर्तनशील व्यवस्था को हम समाज कहते हैं।”

“Society is a system of uses and procedures of authority and mutual and of many groupings and subdivisions of control of human behavior and of liberties. This ever changing complex system, we call society.”

Unacademy के अनुसार

“सामाजिक विकास का सीधा तात्पर्य गुणात्मक परिवर्तनों से है जीएसके माध्यम से समाज अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर सके और अपने कार्यों को स्वयं आकार दे सके।”

“Social development directly means qualitative changes through which society can discharge its responsibilities and shape its own actions.”

BY JU’S के अनुसार –

“सामाजिक विकास का तात्पर्य समाज के प्रत्येक व्यक्ति की भलाई में समग्र सुधार से है ताकि वे अपनी पूरी क्षमता तक पहुँच सकें।”

“Social development refers to the overall improvement in the well-being of every individual in a society so that they can reach their full potential.”

व्यक्तिगत विकास / Personal development –

01 – व्यक्तिगत कौशल विकास /personal skill development

02 – ज्ञान व क्षमता विकास / knowledge and capacity development

03 – आत्म सुधार / Self Improvement

04 – आत्म जागरूकता / self awareness

05 – जीवन पर्यन्त विकास / Lifelong development

06 – अधिकतम क्षमता प्रयोग / Maximum Potential Utilization

07 – सकारात्मक आत्म परिवर्तन / Positive Self Change

08 – आत्म सम्मान / Self esteem

 09 – प्रगतिशीलता / Progressive

10 – मानसिक स्वास्थय परिमार्जन / Mental health improvement

सामाजिक विकास / Social development –

01 – शिक्षा व्यवस्था / Education system

02 – सामाजिक स्वास्थय /Social health

03 – पर्यावरण / Environment

04 – सामाजिक सुरक्षा / Social security

05 – आर्थिक प्रगति / Economic progress

06 – सांस्कृतिक संरक्षण व परिमार्जन / Cultural preservation and refinement

07 – सामाजिक सहभागिता विकास / Social participation development

08 -रोजगार अवसर उपलब्धि / Employment opportunities availability

09 – समस्त सामाजिक वर्ग सशक्तिकरण / Empowerment of all social classes

10 – निरन्तर प्रगतिशीलता / Continuous progressiveness

11 – तकनीक सुग्राह्यता / Technology sensitivity

12 – प्रगतिशील दृष्टिकोण विकास / Progressive approach development

उक्त सम्पूर्ण विवेचन यह सिद्ध करता है की व्यक्तिगत व सामाजिक विकास एक दूसरे के पूरक हैं दोनों में एक दूसरे के पल्लवन के बीज संरक्षित हैं। जैसा की रायबर्न महोदय कहते हैं। –

“समाज की उन्नति प्रत्येक व्यक्ति की होती है। समाज को चाहिए कि वह व्यक्ति के विकास के लिए ऐसे अवसर प्रदान करे जिससे वह समाज को अपना विशेष योगदान दे सके।”

आँग्ल अनुवाद

“The progress of society is dependent on every individual. Society should provide such opportunities for the development of the individual so that he can make his special contribution to the society.

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विविध

पनीर/Cheese

July 12, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

पनीर का उद्भव –

पनीर आज भारत में बहुत लोकप्रिय है। ‘पेनिर’ शब्द फारसी है इसका तुर्की और फ़ारसी में इसका आशय पनीर है। पनीर को संस्कृत में क्षीरज या दधिज कहते हैं। इसे प्रनीरम् कहा जाता है कुछ ग्रन्थों में इसे तक्र पिण्डक भी कहा गया है। पनीर को अंग्रेजी में कॉटेज चीज़ कहा जाता है ,इसे स्पेनिश में Queso कहते हैं। यहाँ हम सहज सम्प्रेषण हेतु पनीर शब्द ही प्रयोग करेंगे।

भारत में प्रमुखतः बिकने वाला पनीर / Mainly sold cheese in India  –

भारत पनीर का बहुत बड़ा बाजार है और यहाँ पनीर की माँग में लगातार इजाफा हो रहा है। मुख्य रूप से यहाँ बिकने वाले पनीर को तीन श्रेणी में रख सकते हैं।

01 – असली पनीर / Real Paneer –

02 – एनालॉग पनीर /Analog Paneer –

03 – नकली पनीर / Fake Paneer –

पनीर उत्पादन व खपत / Cheese production and consumption –

भारत में हर साल 5 लाख टन पनीर की खपत का अनुमान है। यह भारत का एक महत्त्वपूर्ण उद्योग है और भारत में उत्पन्न दूध की कुल मात्रा में 7 % का प्रयोग पनीर बनाने में किया जाता है 5 किलोग्राम दूध से लगभग एक किलोग्राम पनीर बनता है। भारत में 5 शीर्ष दुग्ध उत्पादक राज्य मिलकर 54 % दुग्ध उत्पादित करते हैं वे  हैं – उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अपने भारत के लोग पनीर को प्रोटीन का प्रमुख स्रोत मानते हैं और इस पर 65 हजार करोड़ प्रति वर्ष वर्तमान में खर्च कर रहे हैं और सन 2033 तक यह खर्चा 2 लाख करोड़ तक पहुँच सकता है। भारत में खपत लगभग 5 लाख टन पनीर प्रतिवर्ष  है जो कि 250 करोड़ लीटर दूध से बन सकेगा। एक आँकड़े के अनुसार 7 % पनीर दूध से बनता है बाकी का अन्दाजा आप लगा ही सकते हैं।

भारतीय पनीर से सम्बन्धित कुछ चौंकाने वाले तथ्य / Some surprising facts related to Indian Paneer –

आप अगर नित्य प्रति का समाचार पत्र ध्यान से देखें तो आये दिन नकली पनीर की खबर से रूबरू होंगे। कुछ समय पूर्व देश की राजधानी से निकट नॉएडा में पुलिस ने 1400 किलो नकली पनीर पकड़ा जो काफी चर्चित रहा। यह उत्तर प्रदेश की अलीगढ स्थित फैक्ट्री में खतरनाक केमिकल की मदद से बनाया गया जिसे पुलिस ने सील भी कर दिया। इससे पहले भी नॉएडा और ग्रेटर नॉएडा के फ़ूड डिपार्टमेण्ट ने 122 पनीर के सैम्पल की जाँच की इसमें 83 % में तो मिलावट पाई गई और 40 % में ऐसे तत्व थे जिन्हें खाने से गंभीर बीमारी का खतरा था। इसी तरह कर्नाटक में पनीर के 163 सैम्पल की जांच करने पर  चार ही पास हुए बाकी फेल। लखनऊ में भी पनीर के 50 % नमूने फेल हुए। कुल मिलाकर ये स्वीकार करने के बहुत से कारण हैं कि हमें मिलाने वाला पनीर घोर शंका से घिरा है।

विगत वर्षों का पनीर उत्पादन और खपत वृद्धि के कारण / Cheese production over the past years and reasons for consumption growth –

विविध आँकड़े ये दर्शाते हैं कि पनीर उत्पादन में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है रिपोर्ट्स बताती हैं कि 2014 से 2019 तक उत्पादन वृद्धि  प्रति वर्ष 2.2 % थी। 2014 -15 दुग्ध उत्पादन 146. 3 मिलियन टन था जो 5. 62 % की वृद्धि दीखता हुआ 2023-24 में 239 .30 मिलियन टन पर पहुँच गया। FOOD SPECTRUM के अनुसार 2024 में भारतीय पनीर बाजार का मूल्य 107.54 बिलियन रुपये था जो 2033 तक 593 .47 बिलियन रुपए तक पहुँचाने की उम्मीद है। यहाँ पनीर उत्पादन वृद्धि के जो कारण हैं उन्हें इस प्रकार दिया जा सकता है।

01 – डेयरी उद्योग

02 – पनीर उत्पादन

03 – आय वृद्धि

04 – उपभोक्ता की माँग

05 – सुविधाजनक

06 – प्रोटीन सम्बन्धी विश्वास

07 – पैकेजिंग

08 – बनाने में सरल, सुविधाजनक 

09 – सहज उपलब्धता

वर्तमान परिदृश्य पनीर की माँग में लगातार वृद्धि का है आवश्यकता इसके शुद्धतम स्वरुप के उत्पादन व विपणन की है। आशा है भविष्य में वे तरीके निकाले जाएंगे जिससे पनीर किसी की सेहत को नुकसान न पहुँचा सके। आज की स्थिति को देखकर जनमानस इसे सर्वाधिक मिलावटी खाद्य पदार्थ का दर्जा दे तो कोइ अतिश्योक्ति न होगी। आगामी राष्ट्रीय पनीर दिवस 12 जून तक क्या परिवर्तन होगा यह भविष्य के गर्त में है।

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शोध

Report Writing

July 6, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

रिपोर्ट लेखन

शोध की दुनिया अपने आप में परिश्रम और लगन के विविध आयामों को अपने आप में समेटकर विशिष्ट कहानी का सृजन करती है। यह बताती है कि समस्त परिकल्पना, उद्देश्य, विश्लेषण, संश्लेषण, गणनाएं किसी शीर्षक के इर्द-गिर्द  क्यों परिभ्रमण कर रही थीं और ज्ञान के समुद्र मंथन से क्या प्राप्त हुआ है? जो आने वाले कल में भविष्य को दिशा निर्देश देने में सक्षम है। इस कार्य को सम्पादित करता है रिपोर्ट लेखन।

एक कहावत है जंगल में मोर नाचा किसने देखा, इसका आशय है कि यदि किसी अच्छे कार्य को देखने वाला कोई  नहीं तो इसका कोइ मतलब नहीं दूसरे शब्दों में यदि कोई उपलब्धि किसी के संज्ञान में नहीं आ रही तो महत्वहीन है। शोध रिपोर्ट या रिपोर्ट लेखन का यह दायित्व है कि वह किये गए कार्य की महत्ता प्रतिपादित करे तथा सबके संज्ञान में लाये।

रिपोर्ट लेखन,  शोधकार्य के अंतिम चरण के रूप में स्वीकार किया जाता है और यह विशिष्ट कौशल के द्वारा सम्पादित होता है इसे लिखने में अत्याधिक सावधानी की अपेक्षा रहती है। इसीलिए इस उद्देश्य पूर्ति हेतु विशेषज्ञों की राय व निर्देशन महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इसका उद्देश्य शोध के लाभ को उन तक पहुंचाना है जिनके लिए यह किया गया है शब्द और लेखन का ढंग ऐसा हो जो बोध ग्राह्य हो।

रिपोर्ट लेखन के विविध चरण / Various steps of report writing –

यह शोध कार्य का अंतिम चरण होने के नाते श्रम साध्य और समस्त कार्य का प्रतिनिधित्व करने वाला मुखड़ा है जो विशेष सावधानी की अपेक्षा रखता है इसीलिये अधिगम के दृष्टिकोण से इसके विविध चरणों को इस प्रकार व्यवस्थित कर सकते हैं। –

01 – समग्र का संश्लेषणात्मक तार्किक विश्लेषण / Synthetic logical analysis of the whole

02 – अन्तिम परिणति की तैयारी /Preparing for the final outcome

03 – कच्चा मसौदा/ Rough draft

04 – शुद्धिकरण और पुनः लेखन / Correction and rewriting

05 – ग्रन्थ सूची की तैयारी / Preparation of Bibliography

06 – अन्तिम परिमार्जित रिपोर्ट लेखन / final revised report writing

रिपोर्ट लेखन हेतु रिपोर्ट लेखक के आवश्यक गुण /Essential qualities of a report writer for report writing-

शोध कर्त्ता या रिपोर्ट लेखक इतनी ठोकरें शोध कार्य के दौरान खा चुका होता है कि इस हेतु आवश्यक गुण उसमें विकसित हो जाते हैं लेकिन सामान्य रूप से इन गुणों का होना गरिमायुक्त स्वीकार किया जाता है।

01 – सम्यक स्वनियन्त्रक / Proper self control

02 – त्वरित निर्णयन क्षमता / Quick decision making ability

03 – सम्यक कौशल विकास / Proper skill development

04 – तथ्यों के प्रति तटस्थ / Neutral to facts

05 – शोध मूल्यांकन में सक्षम / Capable of research evaluation

06 – सम्यक प्रबंधकीय गुण / Proper managerial skills

07 – यथार्थवादी / Realistic

08 – क्षमता को उत्कृष्टता में बदलने को तत्पर / Willing to transform potential into excellence

शोध रिपोर्ट हेतु सावधानियाँ /Precautions for research report –

यद्यपि विश्व विद्यालय द्वारा प्रदत्त प्रारूप से बँधकर कार्य किया जाता है और विविध मानकों का भी ध्यान रखा जाता है फिर भी रिसर्च रिपोर्ट को अधिक प्रभावी बनाने हेतु कुछ सावधानियाँ अपेक्षित हैं –

01 – शोध रिपोर्ट के आकार का निर्धारण /Determining the size of a research report

02 – रुचिपूर्ण / Interesting

03 – चार्ट, ग्राफ और तालिकाओं का सम्यक प्रयोग /Judicious use of charts, graphs and tables

04 – मौलिकता व तार्किक विश्लेषण / Originality and logical analysis

05 – शुद्ध व सम्यक प्रारूप / correct and proper format

06 – परामर्शित स्रोतों की स्पष्ट ग्रन्थ सूची / Clear bibliography of sources consulted

07 – परिशिष्टों का सूचीकरण / Listing of Appendices

08 – विश्वसनीय / Reliable

09 – जटिलताओं से मुक्त / Free from complications

10 – आकर्षक, स्पष्ट,स्वच्छ मुद्रण / Attractive, clear, clean printing

अन्त में यह कहना तर्क संगत होगा के बदलते परिवेश के साथ नित्य प्रति परिवर्तनों का दौर जारी है इस लिए हमें वक़्त के साथ कदम ताल करना होगा और समय के साथ नवीनतम परिवर्तित रिपोर्ट लेखन के साथ तालमेल बैठाना होगा।

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