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वाह जिन्दगी !

कहो कैसे हो मन कैसा है ?

August 20, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

लोग पूछते हमसे अब, कहो कैसे हो मन कैसा है।

उत्तर बनते पुनः प्रश्न सत्य समय सापेक्ष है जैसा है।।

मेरी साँसों की सरगम में, अनहद नाद ये कैसा है,

क्या अब मैं कर रहा प्रयाण यहाँ अवसाद कैसा है,

मैं कौन हूँ, कहाँ से हूँ, कहाँ अब  मुझको जाना है,

है काल चक्र का परिवर्तन, मगर ये काल कैसा है।

लोग पूछते हमसे अब, कहो कैसे हो मन कैसा है।

उत्तर बनते पुनः प्रश्न सत्य समय सापेक्ष है जैसा है।।

सम्बन्धों का ताना बाना ये नूतन भ्रम जाल कैसा है

जन्मने और मरने का यह अजब क्रमजाल कैसा है,

आवागमन का चक्कर क्या क्यों यह आना जाना है,

कैसी लीला किसकी लीला सारा ये चक्कर कैसा है।

लोग पूछते हमसे अब, कहो कैसे हो मन कैसा है।

उत्तर बनते पुनः प्रश्न सत्य समय सापेक्ष है जैसा है।।

यह तेरा, मेरा उसका है सारा यह चक्कर कैसा है,

जन्ममरण क्यूँ कर होते ये सब घनचक्कर कैसा है,

कभी दीखता शुभ, शुभ कभी अशुभों का आना है,

ये धरती और जगत है क्या ये मौसम कैसा कैसा है।

लोग पूछते हमसे अब, कहो कैसे हो मन कैसा है।

उत्तर बनते पुनः प्रश्न सत्य समय सापेक्ष है जैसा है।।

सृजन है क्यों? प्रलय है क्या? ये विश्वमेला कैसा है,

कौन इसको चलाता क्यों कौन कहता सब पैसा है,

हम सब यूँ ही झगड़ते हैं, यह खेल सारा बेगाना है,

यह ऐसा है, वह वैसा है, हम ना जाने सब कैसा है।

लोग पूछते हमसे अब, कहो कैसे हो मन कैसा है।

उत्तर बनते पुनः प्रश्न सत्य समय सापेक्ष है जैसा है।।

जो है, जैसा है, वैसा है बस यह प्रश्न रहेगा कैसा है,

बुद्धि में बल नहीं जो सुलझाए कि कब क्यों ऐसा है,

झड़ी प्रश्नों की लगी मन में व्यथित मन अकुलाना है,

प्रश्न भी मेरे उत्तर भी मेरे हम क्या बतलायें कैसा है।

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वाह जिन्दगी !

जय जय श्री कृष्णा होता है ।

August 11, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

बृज धाम के गली मोहल्ले में बस जय श्री कृष्णा होता है।

खुशियाँ हर ओर महकती हैं जय जय श्री कृष्णा होता है ।।

आज ही तो वह शुभ दिन है कान्हा जन्म उत्सव होता है,

आकाश में बादल घिरते हैं, खुशियों का समागम होता है,

जो कुछ था अब तक निराकार, साकार रूप में होता है,

होते हैं जीवन सफल कई जब कृष्ण का आगम होता है ।

बृज धाम के गली मोहल्ले में बस जय श्री कृष्णा होता है।

खुशियाँ हर और महकती  हैं जयजय श्री कृष्णा होता है ।।

दिगदिगन्त है वृहद शोर बस शुभवर्षा का नर्तन होता है,

हर मन से भागता विषाद परमशुभ का पदार्पण होता है,

प्रकृति का हर कण झूमे है मन भावन परिवर्तन होता है,

हर जगह ही दिखता है उल्लास जसुदा के लाला होता है।

बृज धाम के गली मोहल्ले में बस जय श्री कृष्णा होता है।

खुशियाँ हर ओर महकती  हैं जय जय श्री कृष्णा होता है ।।

भादौं की अष्टमी तिथि ही है, ईश्वर का आगमन होता है,

असुर प्रकृति घिरती तम से सात्विक मन रोशन होता है,

प्रभु की लीला अनुपम होती भक्तों घर जागरण होता है,

जब रात के बारह बजते हैं कान्हा का जन्म तब होता है।

बृज धाम के गली मोहल्ले में बस जय श्री कृष्णा होता है।

खुशियाँ हर ओर महकती  हैं जय जय श्री कृष्णा होता है ।।

यमुना करती जब मधुर किलोल प्रभु का प्रगटन होता है,

प्रकृति भी करती है श्रृंगार,  बृज मन आह्लादन  होता है,

सौन्दर्य न बँधता शब्दों में उसका तो बस दर्शन होता है,

श्यामरात्रि की श्यामघटा से घनश्याम निरूपण होता है।

बृज धाम के गली मोहल्ले में बस जय श्री कृष्णा होता है।

खुशियाँ हर और महकती हैं जयजय श्री कृष्णा होता है ।।  

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वाह जिन्दगी !

स्ववित्त पोषित संस्थानों का………….

August 3, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

स्ववित्त पोषित संस्थानों का घाव दिखाने लाए हैं

उच्च शिक्षा के गुरुओं का दुःख, दर्द बताने आए हैं

कुछ गुरु भूखे और अध नंगे, दृश्य दिखाने लाए हैं

कुलदीपक बुझने वाले हैं हम अन्तिम साँसे लाए हैं ।1।

सर्वाधिकार सम्पन्न हो तुम हम दर्द दिखाने लाए हैं

कितना मसला कुचला हमको, यही बताने आए हैं

सरकारी संस्था से कई गुने छात्रों को पढ़ाते आए हैं

प्रतिफल में पाया बहुत अल्प  लाज बचाते आए हैं ।2।

आपके चन्द संस्थानों से कई गुने का बोझ उठाए हैं

सिरपर घनघोर अनीति का हम दर्द छिपाते आए हैं

आपके  तीर, तलवारों का शिकार हम होते आए हैं

आपकी आँख में शर्म नहीं हम मर्यादा ढोते आए हैं ।3।

स्ववित्त पोषित संस्थानों से, वे नज़र चुराते आए हैं

दोहरी नीति रखता है तन्त्र, ये सौतेले रिश्ते लाए हैं

प्राणों का संकट शासन है ये दवा नहीं कोई लाए हैं

केवल मुहरा, पासा  समझा, ये हमें पटकते आए हैं ।4।

वो कहते हम हैं सबसे अच्छे अलबेली नीति लाए हैं

फिर कहेंगे नीति तो अच्छी परिणाम ना मन भाए हैं

ये नहीं देखते अधिकाँश गुरु भूखे मरते अकुलाए हैं

गुरु अस्तित्व संकट में है, भविष्य पर काले साए हैं ।5।

सारे शासन देखे  हमने, सबकी फितरत के साए हैं

फिर मत कहना कुलघाती हैं व आग लगाने आए हैं

हम जल जल कर अँगार हुए हाँ कुछ अँगारे लाए हैं

तुमने अब तक विष बीज बोए फलित हुए वे आए हैं ।6।

स्ववित्त पोषित संस्थानों का घाव दिखाने लाए हैं

उच्च शिक्षा के गुरुओं का दुःख, दर्द बताने आए हैं….

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वाह जिन्दगी !

रक्षा बन्धन/RAKSHA-BANDHAN

August 2, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

पावन पावस मधुरिम बन्धन,

मनभावन सावन रक्षा बन्धन।।

मन के भावों का आलिङ्गन

भ्राता, भगिनी मन आनन्दम

जीवन का सुन्दरतम बन्धन

बँधना चाहे तत्क्षण यह मन।।

कच्चे धागों का पक्का बन्धन

तन मन भावन है अभिनन्दन

बस मन भाता है रोली चन्दन

कितना पावन, पावस बन्धन।।

अगणित जन्मों का यह बन्धन

प्रमुदित बचपन यौवन जीवन

सद् भावों का अद्भुत संगम

ना देखे जाति पाति औ धरम।।

सद्भाव जनित जीवन चन्दन

सुरभित हुलसित लाली नन्दन

सच सुन्दरतम मानस बन्धन

तन मन बँधता सुन्दर बन्धन ।।

दीप, फूल, मधु संग सानन्दम

सुन्दर चितवन ज्यों रघुनन्दन

स्मित समुचित मन वृन्दावन

मन  पीर  हरें  जसुदानन्दन ।।

मन से मिटता सारा क्रन्दन

त्रि -तापों में दिखता मन्दन

आशीष भाव व अभिनन्दन

धागों भावों सुस्मित बन्धन ।।

पावन पावस मधुरिम बन्धन,

मनभावन सावन रक्षा बन्धन।।

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काव्य

गरीबी एक घुन ही है।Garibi Ek Ghun Hi Hai.

July 19, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

गरीबी एक घुन ही है

विरहा राग सुनाती है

सब टूटे हैं इसमें सपने

सोच में आग लगाती है ।

मेहनत मूल्य खुशहाली है

बात समझ नहीं आती है ।1।

ये सामजिक घुन ही है

इससे बदहाली आती है

शोषक को खून दिया तुमने

जीवित चिता जलाती है।

मेहनत मूल्य खुशहाली है

बात समझ नहीं आती है ।2।

बेहोशी का चिन्ह ही है

दरिद्री भाव  जगाती है

निज शक्ति न पहचाने

ये तुम्हें बाँटती जाती है ।

मेहनत मूल्य खुशहाली है

बात समझ नहीं आती है ।3।

श्रम का भाग्य ऋण ही है

हर पीढ़ी को खा जाती है

नवपीढ़ी कैसे समृद्ध बने

यह नीति ऋणी बनाती है ।

मेहनत मूल्य खुशहाली है

बात समझ नहीं आती है ।4।

कर्मवीरों का खून ही है

डकार नहीं आ पाती है

भाग्य छीन खाया किसने

ये पोल नहीं खुल पाती है।

मेहनत मूल्य खुशहाली है

बात समझ नहीं आती है ।5।

देश को अभिशाप ही है

नैतिकता भुलाई जाती है

सबके सपने छीने जिसने

लक्ष्मी उसके घर आती है।

मेहनत मूल्य खुशहाली है

बात समझ नहीं आती है ।6।

गरीबी एक घुन ही है……

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काव्य

अब नागपञ्चमी आई है …..

by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

अब नागपञ्चमी आई है

नागों को दूध पिलाते हैं

शब्दों पर ही मत जाओ

भावों का राग सुनाते हैं ।।

ये सावन की अंगड़ाई है

शिव का साज सजाते हैं

बेबात मत बाहर जाओ

मानस के भाव जगाते हैं ।।    

बारिश की बूँदें आईं हैं

घनी घटा को बुलाते हैं 

इन बूँदों पर मत जाओ

घनघोर बारिश लाते हैं ।। 

बहना की राखी आई है

भावों में भीग के गाते हैं

कीमत पर यूँ मत जाओ

ये पावन भाव जगाते हैं।।

पावस पर्व ऋतु आई है

सब ही तो इन्हें मनाते हैं

अरे कहीं पर मत जाओ

हर वर्ष तो आते जाते हैं।।

ये साल कोरोना लाई है

आऐं इसको निपटाते हैं

चीनी शै पर मत जाओ

ये त्रासद गीत सुनाते हैं।।    

अब नागपञ्चमी आई है

नागों को दूध पिलाते हैं….

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वाह जिन्दगी !

मन प्रीत छोटे भाईयों के नाम करता हूँ .

July 16, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

ममन प्रीत छोटे भाईयों के नाम करता हूँ

मैं हूँ बड़ा बस इसलिए आराम करता हूँ

तुम्हारा रुक कर पढ़ना वो याद है मुझे

उन विगत अग्रजों को राम राम करता हूँ ।1

याद गली मुहल्लों को बारम्बार करता हूँ

जिन वृक्षों ने खिलाया, धन्यवाद करता हूँ

तुम्हारी हर शरारत अब भी याद है मुझे

लोगों के प्रेम जज्बे को सलाम करता हूँ ।2

हर बात पर हास्य, कला याद करता हूँ

बन्द आँखकर ईश से फरियाद करता हूँ

वो अमरुद,आम,जामुन सब याद हैं मुझे

खट्टी मीठी उन यादों में हर वक़्त रमता हूँ ।3

मनस बरसाती स्नान से सानन्द भरता हूँ  

मौसमी बदलावों पर बस, आह भरता हूँ

नाव की हर सवारी अब भी याद है मुझे

त्यौहारी उन रंगों को आँखों में भरता हूँ ।4 

होती आँख नम तुम्हें जब आज लखता हूँ

जिम्मेदारी व दुश्वारियों से आज थकता हूँ

वो जिंदादिली के किस्से सभी याद हैं मुझे

दायित्व डूबे खून में आँसूओं से लिखता हूँ ।5

बेकली बेबसी में अब दिनरात फँसता हूँ

तुम्हारी बात याद कर जब तब हँसता हूँ

माँ पितृ युगल डाँटें अब भी याद हैं मुझे

क्या करूँ दिन में कई कई बार मरता हूँ ।6

मन प्रीत छोटे भाईयों के नाम करता हूँ

मैं हूँ बड़ा बस इसलिए आराम करता हूँ …….    

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काव्य

मैं अज्ञ हूँ ……. / Main Agy Hoon.

July 7, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

मैं अज्ञ हूँ, तुम विज्ञ हो,

अल्पज्ञ मैं,  सर्वज्ञ तुम। 

मैं अंश हूँ, तुम पूर्ण हो,

मैं बूँद हूँ सागर हो तुम ।1।

मैं अनाथ हूँ तुम नाथ हो

मैं दीन, दीना नाथ तुम।

मैं कृति,  तुम उद्गार हो,

मैं आत्म हूँ परमात्म तुम ।2।

मैं क्षेत्र, तुम क्षेत्रज्ञ हो,

मैं गीत हूँ गायक हो तुम,

मैं पथिक तुम प्रकाश हो,

मैं शिल्प हूँ शिल्पी हो तुम ।3।

मैं गात हूँ, तुम चेतना,

मैं दीप हूँ ज्वाला हो तुम।

मैं रुण्ड हूँ तुम मुण्ड हो,

मैं अर्थी हूँ सारथी हो तुम।4।

मैं अज्ञ हूँ तुम विज्ञ हो,

अल्पज्ञ मैं, सर्वज्ञ तुम।।…….   

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काव्य

पितृ प्रेम का सारा परिचय……………

June 21, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

पितृ प्रेम का सारा परिचय एक दिवस से जुड़ आया।

उसी दिवस के कुछ लम्हों  में, पिता उन्हें याद आया ।

वही पिता जिसने सर्वस्व जीवन का हरपल बिखराया।

वक़्त ने निज चाल बदल ली बदला बदला क्षण आया ।।

पितृ और मातृशक्ति ने मिलजुल करके नीड़ बनाया।

उसी नीड़ की छाया में तन मन टुकड़ों को सरसाया।

इक दूजे का हाथ थाम दृढ़ता व प्रेम का पाठ पढ़ाया।

नईनवेली शिक्षा ने दोनों हित अलग से दिवस बनाया।।

ऐसा लगता रात्रि बिन दिन का अस्तित्व उभर आया।

धूप का शुभअस्तित्व बना तभी तो प्रिय लगती छाया।

बच्चों ने अपने हृदयों  में, जिनको न कभी अलग पाया।

उन्हें अलगथलग करने का कुचक्र नया चलता पाया ।।

ये सब खेल बाज़ारों का है बहुत देर में समझ आया।

कार्ड,उपहार,कृत्रिम साधन हैं हमने तोअमूल्य पाया।

एक दिवस में ना सिमटेगा भारतीय मन ने समझाया।

मातृ पितृ ऋण चुक जाए जीवन इस हित छोटा पाया।। 

जीवन में जो पढ़े आज तक उससे यही समझ आया।

कृतज्ञता भाव महिमा अपार, हमसे कुछ ना हो पाया।

ईश्वर ने मातृ पितृ रूप में दे दी ‘ नाथ ‘ अद्भुत छाया।

यह जीवन है उन्हें निछावर जिसने ये अस्तित्व दिलाया।।

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वाह जिन्दगी !

अकुलाना छोड़ दे। Akulana Chhor De.

June 9, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

सपने देख कर बड़े बड़े नज़रें चुराना छोड़ दे।

ना होंगे पूरे पड़े पड़े इसलिए इतराना छोड़ दे।

ख़ुदी हो इतनी बुलन्द कि वो घबराना छोड़ दे।

पसीना बहा क्षमता भर आलस्य लाना छोड़ दे।

छोटे रस्ते मत ले चल ईमानदारी की डगर पर।

तड़प सपनों के लिए बस दुनिया दारी छोड़ दे।

दिन हो चाहे रात हो हाँ नज़र हो बस ध्येय पर।

मौसम, महीना देख मत सब ही बहाने छोड़ दे।

विविध जन बताएंगे कि ऐसा कर वैसा न कर।

मेहनत ही औजार हो जिन्दादिली को जोड़ दे।

नाथ संशय छोड़ दे व कण्टक पथ की राह धर।

सफलता अनुचर बनेगी अब अकुलाना छोड़ दे।    

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