होलिका दहन में ही दग्ध करलो चिन्ता का,
मन में सदभावों का संचरण होना चाहिए।
रंग फैंकने से पूर्व आप भी विचार लो,
कि रंग डालने की कैसी रीति होनी चाहिए।
जोर जबरदस्ती की भावना प्रधान हो,
या गरिमा युक्त भाव का स्थान होना चाहिए ।
भावना का समन्दर है आदमी की जिन्दगी,
किसी की भावना को न ठेस लगनी चाहिए।
आस्था में रंग जाना तो स्वभाव है इन्सान का,
पर आस्था के साथ भी अनुशासन होना चाहिए।
होली तो त्यौहार है प्रेम का सद्भाव का,
इसलिए खुद का ही मन पर प्रशासन होना चाहिए।
गुझिया पापड़ दही बड़ा है आकर्षण त्यौहार का,
पर तन का अपने आप ही ख्याल रखना चाहिए।
बुरा न मानो होली है ये नारा है इस पर्व का,
अपने व बेगानों को शुभ कामना देना चाहिए।
जी हाँ ये त्यौहार है हँसी का ठिठोली का,
पर मूलतः तो भावना पवित्र होनी चाहिए।
जी भर रंग खेलना परम्परा है भारत की,
पर फाग में भारतीयता प्रधान होनी चाहिए।
अजब अजब रंग लगाने लगे हैं लोग,
एक रंग पर कई रंग चढाने लगे हैं लोग।
प्रेम औ सद्भाव के खो गए हैं बहु रंग,
फ़रेब औ झूठ के रंग दिखाने लगे हैं लोग।
मानस को छोड़ तन को रँगने लगे हैं लोग,
अपनी ही मस्तियों में रमने लगे हैं लोग।
यूँ तो जमाने ने बिखेरे हैं कई रंग,
रंग मतलब के अपने अपने चुनने लगे हैं लोग।
जेबों में कई रंग ले चलने लगे हैं लोग,
फाग में बिरहा का रंग भरने लगे हैं लोग।
मेहनत औ ईमान के खो गए कई रंग,
रंग आलस और प्रमाद का भरने लगे हैं लोग।
जीवन में नया जीवन लाने लगे हैं लोग ,
सुना है नगरों में मुस्कराने लगे हैं लोग।
संस्कार ,प्रेम ,एकता के मिल गए जब रंग,
खुशियों के रंग पाकर इठलाने लगे हैं लोग।
निश्चित रूपेण हम सबको मिल होली का सदअर्थ निकालना होगा,
होली को हुड़दंगियों से बचाकर,उपयुक्त नवसाँचे में ढालना होगा।
वर्तमान होलिका दहन से पूर्व प्रहलाद को गोद से निकालना होगा,
बुरी शक्ति का दहन सुनिश्चित कर, सृजनशक्ति को दुलारना होगा।
खुशियाँ मनाओ, लेकिन इसमें छिपी कुटिलता को दुत्कारना होगा।
वासना, प्रपञ्च,दुर्भावना जोर जबरदस्ती के भावों को जलाना होगा,
प्रेम का अनन्तसागर छिपा है,इसमें इसे मथ नेहरंग उड़ाना होगा,
कलुषता की कींच गन्दगी से बचा प्राकृतिक शोखरंग बनाना होगा।
खुश रहो,अच्छा खाओ,मस्त रहो पर मय छलकाने से बचना होगा,
वक़्ती झंझावातों से विकृत मष्तिष्क, कल्याण पथ पर डालना होगा।
पड़ोसी देश के छलावे से बच, स्वदेश प्रेम का रंग निखारना होगा,
कुछ भी,कुछ भी हो पर स्वदेशी रंग ही इक दूजे पर डालना होगा।
होली को बदले की कु दृष्टियों से बचा स्नेहिल गुलाल उड़ाना होगा,
हम सब एक ही ईश्वर के बन्दे हैं,इस भाव से अबीर लगाना होगा।
सामाजिक पारस्परिक सम्बन्धों को, पुनः मधुर प्रगाढ़ बनाना होगा,
आपस में सच्चे अनुबन्धों के स्थापन से, अलगाव को भगाना होगा
हरीतिमा युक्त पात, अन्न युक्त धरा गात को सप्रेम निहारना होगा,
इसमें छिपे बदलाव के सकारात्मक सन्देशों को पहचानना होगा।
अलगाववादी रंग के बिखराव पूर्व हमें सौहाद्र रंग निखारना होगा,
देश के दुश्मन रंग बदरंग करते हैं,उनको निश्चित ही मारना होगा।
मूल भूत आवश्यकता पूर्ति हेतु, उन्नत सशक्त साधन बनाना होगा,
हरएक हिन्दुस्तानी को देश हित सच्चा फाग तनमन से गाना होगा।
जो निवाले छिने हैं श्रमवीरों के उसे वापस उन तक पहुँचाना होगा,
होली है,होली है की मस्ती के संग देश को ऐक्यरंग से नहाना होगा।
संख्यात्मक मान सवाअरब है अब तो गुणात्मक मान बढ़ाना होगा,
देश तोड़ने की प्रत्येक साजिश को मुकम्मल ढंग से नकारना होगा।
जोश में होश खोने वाले हम वतनों, देश को फिरसे सँवारना होगा,
खुश रहें और खुश रहने दें, इस मौलिक भाव से रंग डालना होगा।
इससे पहले कि खून उतरे आँखों में हमें नेहभाव से निहारना होगा,
देशद्रोह की परिधि में आने वाले दुष्टों को हिन्दुस्तान से जाना होगा।
प्यारे हिन्दुस्तान की पावन मिट्टी से गद्दारी का रंग तो मिटाना होगा,
मानव कल्याण पथ प्रशस्ति हेतु,देश को प्रेम का रंग लगाना होगा।
विश्व, बाजार हो चला है हिन्दोस्ताँ वालों को यह सब जानना होगा,
देश के उद्योग धन्धों को संवर्द्धित कर सही रास्ता निकालना होगा।
सच में होली के आनन्द हेतु दबे कुचलों को निवाला दिलाना होगा,
तन अबतक रँगा है हमने,मन को सदरंग की पहुँच में लाना होगा।
जीवन भर गीली लकड़ी सा सुलगता रहा हूँ मैं, जमाने के सारे दर्दो – ग़ुबार समझता रहा हूँ मैं, आत्मघाती तत्वों के ताप से, पिघलता रहा हूँ मैं, फिर भी दुरुस्त होशोहवास में चलता रहा हूँ मैं ।
मानस-पटल पर छाई धुन्ध से लड़ता रहा हूँ मैं, सत्य की हिमायत हित सदा,तड़पता रहा हूँ मैं, ग़म मजदूर और किसानों के लखता रहा हूँ मैं, फिर भी जहरीले घूँट पी कर, जिन्दा रहा हूँ मैं।
लोभलालच के अन्धड़ों से उलझता रहा हूँ मैं, ईमान औ लगन की दौलत से,पलता रहा हूँ मैं, वक़्त के जन्जालों में, अन्य का मुहरा रहा हूँ मैं, फिर भी वक़्त की तब्दीलियाँ, सहता रहा हूँ मैं।
आँसू औ मुस्कान के फलसफे पढ़ता रहा हूँ मैं, युवा दिशाबोध का सार्थक प्रयास कर रहा हूँ मैं, जमाने की टीस, रुसवाईयों से रिसता रहा हूँ मैं, फिर भी फकीरी की मस्तचाल चलता रहा हूँ मैं।
पैमाइश,आजमाईश के दौर में तपता रहा हूँ मैं, हालात की दुरूह थापों पर, मटकता रहा हूँ मैं, बेरोजगारी,भूख के आलम में भटकता रहा हूँ मैं, फिर भी जला खुद को, मशाल बनाता रहा हूँ मैं।
पाकर आपका असीम दुलार, संवरता रहा हूँ मैं, मुख़्तलिफ़ दौर के विचारों से टकराता रहा हूँ मैं, कूप मण्डूक विचार जकड़न सेभिड़ता रहा हूँ मैं, फिर भी संकीर्ण कालिमा से निकलता रहा हूँ मैं।
समस्याएं इस दौरे दुनियाँ की लपकता रहा हूँ मैं, समाधान की सौम्य तलाश में, उलझता रहा हूँ मैं, देखकर बेबसी इस देश की, सिसकता रहा हूँ मैं, फिर भी पुष्प पंखुड़ी मानिन्द, बिखरता रहा हूँ मैं।
काल के कण्टकाकीर्ण पथ का,प्रवक्ता रहा हूँ मैं, गहन अँधेरे छाँटने के प्रयास में जलता रहा हूँ मैं, विश्वबन्धुत्व सिद्धान्त का हरदम कायल रहा हूँ मैं, फिर भी राष्ट्रवाद के उत्थान को, लड़ता रहा हूँ मैं।
रंग बदलते चेहरों का विज्ञान, तकता रहा हूँ मैं, कलुषता पर पावस लबादा, निरखता रहा हूँ मैं, खासअपनों से मिले जख्म को ढकता रहा हूँ मैं, फिर भी जिन्दादिली से जिन्दगी जीता रहा हूँ मैं।
आध्यात्मिक साधना की मुख्य रात आ गई, सद्गृहस्थ मानते हैं, शिव बारात आ गई। परम ऊर्जा साधना की अक्षय रातआगई, प्रकृति की शान्त आकर्षक सौगात आ गई। महाशिवरात्रि आगई,महाशिवरात्रि आगई।।
शक्ति व शिव मिलन की वर्ष गाँठ आ गई, शिवरात्रि सिरमौर महा शिव रात्रि आ गई। पावन कैलाश एकाकार वाली बात आ गई, ऋषि, ज्ञानी,औघड़ वाली शुरुआत आ गई। महाशिवरात्रि आगई, महाशिवरात्रि आगई।।
महामृत्युञ्जय की दिव्य गहन निशा छा गई, शिव पार्वती मिलन सुबेला प्रख्यात आ गई। पौराणिक,आध्यात्मिक काल-रात्रि आ गई, शम्भू शङ्कर की अलौकिक बारात आ गई। महाशिवरात्रि आगई, महाशिवरात्रि आगई।।
कोलाहल से फ़ुरसतों में नश्वर गात आ गई, गात प्रफुल्लित रखने शिव सौगात आ गई। योग विज्ञानों के प्रदाता की खैरात आ गई, सर्वे भवन्तु सुखिनः वाली बरसात आ गई। महाशिवरात्रि आगई, महाशिवरात्रि आगई।।
राष्ट्रवादियों की सुकल्याणी त्रियामा आ गई, मानवता के कल्याण वाली नवरैना भा गई। भारत में भारतवाली खास अब बात आ गई, राष्ट्रजागरण चिन्तन वाली मुख्यरात आ गई। महाशिवरात्रि आगई, महाशिवरात्रि आगई।।
शिव शंकर, भोला नाथ वाली बात भा गई, महा-काल जागरण की सुन गौरी लजा गई, बेल-पत्री से भूत नाथ का, मानस लुभा गई, श्रृंगार हितार्थ आदि देव के भस्मी लगा गई। महाशिवरात्रि आगई, महाशिवरात्रि आगई।।
सृष्टि का आधार सृजन और प्रलय है,जड़ जंगम,सागर,ग्रह उपग्रह ,समस्त भावनाओं,विनाश लीलाओं गर्वीले भाषण,युद्धोन्माद के आदि और अन्त का निरीक्षण हमें बताता है कि अन्ततः सब मिट्टी है।
परमात्म ने अनगढ़ पात्र में प्रेम रस उलीचा है,
पथ है यह कण्टकाकीर्ण या सुन्दर गलीचा है ?
प्रेमान्जलि है मातापिता की या सम्बन्ध रीता है?
जगत मध्य अवतीर्ण होना माया का पलीता है।
सम्बन्धों की परिणय बेल माया जनित थाती है,
बुद्धि को हमारी, मिथ्या संसार में उलझाती है,
जीवन है मृगतृष्णा अथवा वासनायुक्त पाती है?
जीवन सुख दुःख है पीड़ा है या मुक्ति बाती है ?
जीवन सुन्दर तनमन संगम या वैरागी साथी है?
गुच्छा है अभिलाषा का या फिर मुक्तिदात्री है ?
भौतिक आशा सञ्चय है या विरक्त सहयात्री है?
ये दलदल है जगती का या दिव्यात्म प्रजाती है?
कालचक्र परिभ्रमण हेतु जीवन नौका जाती है,
रहस्य है ये अनसुलझा कौन दिया को बाती है?
मिट्टी से बनती है काया मिट्टी में मिल जाती है,
काल की अवधारणा विचित्र जाल बिछवाती है।
जीवन धरण की मार्मिकताअबूझ हुई जाती है,
समाधान के विविधमार्ग दार्शनिकता बनाती है।
मृत्यु को तलाशना क्या जीवन की गहनरात्रि है?
या फिर जीवन में तलाशना ईष्ट अभी बाकी है?
जीवन विगत से आगत सम्बन्ध की परिपाटी है,
आशय की तलाश, प्रकृति पुरुष तक जाती है।
क्यों सरल जीवन यथार्थता समझ नहीं आती है?
जीवन सहज यात्रा है,परमात्मा से मिलवाती है।