Education Aacharya - एजुकेशन आचार्य
  • शिक्षा
  • दर्शन
  • वाह जिन्दगी !
  • शोध
  • काव्य
  • बाल संसार
  • विविध
  • समाज और संस्कृति
  • About
    • About the Author
    • About Education Aacharya
  • Contact

शिक्षा
दर्शन
वाह जिन्दगी !
शोध
काव्य
बाल संसार
विविध
समाज और संस्कृति
About
    About the Author
    About Education Aacharya
Contact
Education Aacharya - एजुकेशन आचार्य
  • शिक्षा
  • दर्शन
  • वाह जिन्दगी !
  • शोध
  • काव्य
  • बाल संसार
  • विविध
  • समाज और संस्कृति
  • About
    • About the Author
    • About Education Aacharya
  • Contact
वाह जिन्दगी !

केवल गुरु पद पा लेने से कोई गुरू नहीं होता।

September 4, 2019 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

विद्यालय आने भर से गुरुता का वरण नहीं होता

जब अन्तः तम नहीं मिटे, ज्ञानावतरण नहीं होता।

आज गुरु बनने को कुछ तो तुच्छ मार्ग अपनाते हैं।

टी 0 वी 0 पर चिल्लाने से कोई महान नहीं होता।

केवल गुरु पद पा लेने से कोई गुरू नहीं होता।1।

वेदपाठी मात्र लिख देने से वेदों का ज्ञान नहीं होता।

जीवन खप जाता है फिर भी सच्चा ध्यान नहीं होता।

वाह्य आडम्बर के द्वारा  कुछ खुद को गुरू बताते हैं।

जब तक अन्तर्मन में नहीं घटे कोई गुरू नहीं होता।

केवल गुरु पद पा लेने से कोई गुरू नहीं होता ।2। 

मात्र नेम प्लेट लगवाने से भी कोई गुरू नहीं होता।

हो गुरुता मानस में तन संस्कार विहीन नहीं होता।

लोग गुरू कहलाने को स्वयम को ही भटकाते हैं।

भटके लोगों का निर्देशन पा  बेड़ा पार नहीं होता।

केवल गुरु पद पा लेने से कोई गुरू नहीं होता ।3। 

 कैसे होगा कोई गुरू जब संस्कृति संज्ञान नहीं होता।

संस्कृति उन्नयन छोड़ो, खुद का परिमाण नहीं होता।

ढोल नगाड़ा साथ में ले, कुछ लोग मण्डली लाते हैं।

संस्कृतिहीन जो खुद ही हैं उनसे उत्थान नहीं होता।

केवल गुरु पद पा लेने  से कोई गुरू नहीं होता ।4। 

मूल्य किसे कहते जग में जब तक ये भान नहीं होता।

कौन मूल्य कब आवश्यक ये हमको ज्ञान नहीं होता।

क्यों कर झूठे आडम्बर हम घटिया जाल बिछाते हैं।

मूल्य विहीन मानवता का कभी कल्याण नहीं होता।

केवल गुरु पद पा लेने से से कोई गुरू नहीं होता ।5। 

केवल नौकरी हथिया लेना गुरुता लक्ष्य नहीं होता।

नौकर,नौकर ही होता उससे बड़ा कार्य नहीं होता।

वो निज वेतन के चक्कर में बस दिन पूरे कर जाता है।

जो ज्ञान जागरण कर न सके कोई गुरू नहीं होता।

केवल गुरु पद पा लेने से कोई गुरू नहीं होता ।6। 

गुरु, गुरुता हित तिल तिल स्वअस्तित्व मिटा जाता।

जो कुछ सीखा है जीवन में वह भी सभी बता जाता।

गुरु द्वारा तो बस दे देने के प्रतिमान बनाये जाते हैं।

कालिमा व्यापक कितनी भी है मार्ग बताया जाता।

केवल गुरु पद पा लेने से से कोई गुरू नहीं होता ।7। 

गुरु मन तो आगत पर सर्वस्व न्यौछावर कर जाता।

उत्तम शिष्यों की खातिर वो जी जाता औ मरजाता।

उसकी क्षमता से निश्चित दिनमान ओज उग आते हैं।

इस दिनमान शृंखला द्वारा ही सद्मार्ग बनाया जाता।

केवल गुरु पद पा लेने से कोई गुरू नहीं होता ।8। 

गुरू परि-पाटी मिटने की नहीं दिखावा चल पाता।

शिष्य तपे इससे पहले  गुरु ज्ञानाग्नि में तप जाता।

गुरुता गुरु द्वारा जग को सद् मार्ग दिखाये जाते हैं ।

जो सद् पात्र होता जग में वह है उसपर चल पाता।

केवल गुरु पद पा लेने  से कोई गुरू नहीं होता ।9। 

Share:
Reading time: 1 min
वाह जिन्दगी !

एकाक्षर,रुद्रप्रिय आओगे विश्वास करता हूँ।

September 2, 2019 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

गौरी नन्दन मन से तुम्हें प्रणाम करता हूँ।

सच कहूँ गौरी-सुत,  एहतिराम करता हूँ।।

दर्शन की तमन्ना है सो इन्तज़ार करता हूँ।

शुभम भाव से क्षमता भर कार्य करता हूँ।।

दोस्तों, दुश्मनों, विघ्नों मध्य मैं विचरता हूँ।

विघ्नविनाशक हैं साथ सो मैं दम्भ भरता हूँ।।

विद्या के मन्दिर में जा,जाकर मैं सँवरता हूँ।

विद्यावारिधि आशीष से ही  मैं निखरता हूँ।।

एकदन्त अपनेआप को कुर्बान करता हूँ।

ईशान पुत्र तेरा ध्यान, बारम्बार करता हूँ।।

कार्य पूर्व प्रथमेश्वर का अवलम्ब रखता हूँ।

दूर्जा कृपा से कार्य सिद्धि बिम्ब रखता हूँ।।

मङ्गलमूर्ति से मंगल का खजाना भरता हूँ।

रिक्त नहींहोता कितनाभी रिक्त करता हूँ।।

शिवपुत्र ,वक्रतुण्ड हरवर्ष प्रयास करता हूँ।

एकाक्षर,रुद्रप्रिय आओगे विश्वास करता हूँ।।   

Share:
Reading time: 1 min
बाल संसार

दादी कितनी अच्छी थीं।

August 28, 2019 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

इक छोटी सी ठठरी थीं,

यहाँ पर  बैठी रहती थीं,

लोगअभिवादन करते थे,

वो नेह संजोए रखती थीं।  

छोटा मुख भोलीभाली थीं,

मुस्कान सजाए रखतीं थीं,

लोग  सलवटें  निरखते थे,

अनुभवी पिटारी लगती थीं।

धीमे लघु पद चलती थीं,

धवल वसन में रहती थीं,

उनको दादीजी कहते थे,

बहुत ही प्यारी लगती थीं।

पोपले मुँह की हस्ती थीं,

अनुभव साझा करती थीं,

उनकी आँखें  लखते  थे,

चश्मे से झाँका करती थीं।

वो गीता पढ़ती रहती थीं,

कृष्ण,कृष्ण ही कहती थीं,

लोग पद वन्दन  करते थे,

वह  निहाल हो जाती थीं।

गुजर गईं, वो सच्ची  थीं,

चौकी पर बैठी रहती थीं,

अब तो तस्वीर देखते हैं,

दादी कितनी अच्छी थीं।     

Share:
Reading time: 1 min
काव्य

मैय्या प्यारी सी लगती हो।

August 25, 2019 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

कभी सूरज सी लगती हो,

कभी चन्दा सी  लगती हो,

कभी बहती नदी सी  तुम,

अलकनन्दा सी लगती हो।

कभी तुम सौम्य लगती हो,

कभी  तुम रौद्र लगती  हो,

कभी बिन बात झगड़ों का,

पुलिन्दा वजनी  लगती हो।

कभी तुम फूल लगती हो,

कभी काँटों सी लगती हो,

कभी  हो  नेह की बरखा,

कभी  चिंगारी  लगती हो।

कभी उथली सी लगती हो,

कभी तुम  गहरी लगती हो,

कभी तुम ममतामयी मूरत,

भारतीय नारी सी लगती हो।

कभी तुम धूप  लगती हो,

कभी छाया सी लगती हो,

दोपहर की तीव्र तपन में,

अक्षय-वट सी लगती हो।

कभी शारदा सी लगती हो,

कभी लक्ष्मी  सी लगती हो,

जब  गीता सार सुनाती हो,

पावन गङ्गा सी लगती हो। 

कभी तुम दिया लगती हो,

कभी तुम बाती लगती हो,

आपके चरण जब छूता हूँ,

वतन की माटी लगती हो।

कभी तुम ये क्यों लगती हो,

कभी तुम वो क्यों लगती हो,

कभी दुर्गा और  कभी सीता,

 कभी भद्रकाली  लगती हो।

कभी तुम ऐसी लगती हो,

कभी तुम वैसी लगती हो,

सभी दृष्टि-कोण हमारे हैं,

मैय्या प्यारी सी लगती हो।

Share:
Reading time: 1 min
Uncategorized•वाह जिन्दगी !

मथुरा में कृष्णमवन्देजगद्गुरु जन्म होता है।

August 24, 2019 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

सुना है सूर्य में नाभिक का विखण्डन संलयन होता है,

एवम इसी प्रक्रिया में वह असीम ऊर्जा युक्त होता है,

प्रकृति का विविध रूपों में विखण्डन संलयन होता है,

इसीलिए मथुरा में कृष्णमवन्देजगद्गुरु जन्म होता है।

सूर्य व्योम में पृथ्वी का, अद्भुत तेजोमय प्रतिनिधि है,

इसी से पृथ्वी पर गति उत्पादन मौसम व जलनिधि है,

महाभारत काल पृथ्वी पर अविस्मरणीय कालावधि है,

उस काल का प्रणेता वह है जिसे प्रिय माखन दधि है।

कृष्ण जन्माष्टमी है जगद्गुरु के वचनांश  बांच लेते हैं,

अध्ययन सुविधार्थ इसे अठारह अध्यायों में बाँटलेते हैं,

इन अध्यायों को महाभारत के मुख्य अंश रूप लेते हैं,

इतने सरल सहज हैं ये वसुधा को निरन्तर ज्ञान देते हैं।

सांख्य,कर्म,ज्ञान,आत्म संयम ज्ञानविज्ञान योग थाती है,

अक्षरब्रह्म,राज विद्या,विभूति विश्वरूप दर्शन कराती है,

भक्ति,क्षेत्र,गुणत्रय विभाग,पुरुषोत्तम योग करामाती है,

सखा विषाद,देवासुर,श्रद्धात्रय सन्यास मोक्ष दिलाती है।

इतना ही नहीं ये सभी योगों के सम्बन्धों को बताती है,

आज जो बन्धन खड़े किए हैं ये उनके भेद  मिटाती है,

जितनी समस्याएं इस युग की सबसे परिचय कराती है,

परिचय तक सीमित नहीं रहे यह समाधान करवाती है।

माखनमाटी,ग्वालागोपी,गजराधोती संज्ञान दिलाती है,

वंशी,वंशीधर,कालिया नाग,पूतना व कंस दिखाती है,

था इस युग से वह भिन्न नहीं  नव अर्थों में सिखाती है,

विकल्प वंशीका चक्रसुदर्शन है हमको ये समझाती है।

 

Share:
Reading time: 1 min
वाह जिन्दगी !

ये बाप की विवशता है कि तुम उस से दूर जाती हो।

August 13, 2019 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

इतनी सी हो तुम केवल पर कितना याद आती हो।

यादों में और जेहन में, तुम दिन भर मुस्कुराती हो।

मेरी बेटी, मेरी चाहत मेरा वजूद सब तुम से ही है।

हँसाना चाहता जब मैं तुम कितना खिलखिलाती हो।

नन्हें से प्यारे  मुखड़े पर, यूँ मासूमियत सजाती हो।

नन्हीं निर्दोष आँखों से समभाव का जादू जगाती हो।

मेरी लाड़ो ,मेरी छुटकी मेरी ये  दुनियाँ तुमसे ही है।

ये बाप की विवशता है कि तुम उस से दूर जाती हो ।।  

चेन्नम्मा,हजरत महल,लक्ष्मी बाई बनकर आती हो।

भीकाजी, सरोजिनी,सुचेता सा हौसला दिखाती हो।

ये धरती तुमसे वाकिफ है ये अम्बर भी तुम्हीं से है।

तुम भावना, अवनी,मोहना लड़ाकू यान उड़ाती हो।।

कृष्णा,मन्नू,महादेवी बन कलम का जादू चलाती हो।

अरुणा,मेधा,किरण वेदी बनकर  चेतना जगाती हो।

लक्ष्मी सहगल और झलकारी ये उजाला तुम्हीं से है।

मैरीकॉम,पूनिया,ऊषा बन खेलों में नाम कमाती हो।।

अबतो गिनना मुश्किल है तुम सबकुछ करजाती हो।

लेखिका, खिलाड़ी,  सेनानी बनकर धर्म निभाती हो।

पिता की नजरों में, केवल तुम बेटी ही कहलाती हो।

समाजसेविका,नेता हो,अन्तरिक्ष में तुम छाजाती हो।। 

सादाजीवन,उच्चविचार का पर्याय जब बनजाती हो।

तब पिता की चौड़ी छाती में,सिंहों सा बल लाती हो।

क्या क्या बोलूँ बेटी मेरी संसारी मुस्कान तुम्हीं से है।

कर्म की प्रतिमूर्ति तुम,चन्द्रयान से भी जुड़ जाती हो।।

Share:
Reading time: 1 min
काव्य

हम भी कश्मीर आ रहे हैं।

August 12, 2019 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

अब तो हम भी जग चुके हैं देखो वो भी उछल रहे हैं।

तीन सौ सत्तर भुला चुके हैं इमरान कैसे कुदक रहे हैं।

शाह की बातें पुरअसर हैं, कश्मीर अंगड़ाई ले रहा है।

शाम मद मस्त हो चली  है शिकारे फिर से चल रहे हैं ।।

मिलन जादुई हो चुका है, अरमाँ बरबस  मचल रहे हैं।

भाई जो अबतक जुदा थे रिश्ते उन सबसे संभल रहे हैं।

आतंकी कुचले  जा रहे हैं, जन्नत फिर से चमक रहा है।

नया उजाला हो चुका है, सब ही नजरिया बदल रहे हैं।।

स्याह इबारत मिटा चुके हैं, नयी इबारत लिख  रहे हैं।

दहशतों से जो घिर चुके थे,देखो उससे निकल रहे हैं।

तिरंगा झण्डा फहर रहा है,पाकिस्तान नंगा हो रहा है।

भाल फितरत बदल चुका है कॉलेज फिरसे खुल रहे हैं।।

धमकी ढेरसारी सुनचुके हैं नया सा किस्सा सुना रहे हैं।

वादीअँधेरों से घिरचुकी थी उजाले उनके घर जा रहे हैं।

राष्ट्रवाद पोषित हो रहा है और काश्मीर चंगा हो रहा है।

नूतन जवानी आ चुकी है युवा अब  फिर से सँवर रहे  हैं ।।

अँधेरे तो वजूद खो चुके हैं, रौशन मञ्जर निखर रहे हैं।

कुछ लोग चारा बने हुए थे, अब भाईचारे पनप रहे हैं।

जो लोग बाधा बने हुए थे बन्द उनका धन्धा हो रहा है।

मार्तण्ड ऊपर चढ़ चुका है खुशी के तराने  गा रहे हैं ।।   

वर्तमान रौशन लिख चुके हैं अँधियारी परतें हटा रहे हैं।

जलने वाले तो जल रहे हैं सब लोग उन पर हॅंस रहे हैं।

पश्मीना फिर से बनरहा है बाजार फिर से खुल रहा है।

नवसम्बन्ध तुमको बुलारहे हैं हम भी कश्मीर आ रहे हैं ।।     

Share:
Reading time: 1 min
वाह जिन्दगी !

मासूम लबों पर हम थरथराते हैं।

August 3, 2019 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

प्रेम और स्नेह के प्रगटन में शब्दों की भाषा मूक हो शारीरिक भाषा में बदल जाती है शब्द लरज कर होठों में थरथराहट पैदा करते हैं उसी गात भाषा का प्रगटन हैं ये पंक्तियाँ :-

जब उनके मासूम लब सहज ही थरथराते हैं,

चमकते नयनों से दृग-बिन्दु  निकल आते हैं,

इन आँसुओं से इक दरिया का जन्म होता है,

ये सब दरिया मिलजुलकर समन्दर बनाते हैं।  

लोगबाग समन्दर की गहराई अनन्त बताते हैं,

कई लोग बस कल्पना करके  ही डर जाते हैं,

जिन लोगों को ये समन्दर खूबसूरत लगता है,

उनमें से कई तो बस तट पर ही ठहर जाते हैं।

कुछ ऐसे  भी हैं, जो समन्दर में उतर जाते हैं,

लेकिन उन्हें सीप शंख मोती ही नज़र आते हैं,

पर प्रेम पराकाष्ठा पर बरबस द्वैत खो जाता है,

धीरे-धीरे उस उच्चता में वे समन्दर हो जाते हैं।

ये समन्दर वाष्प बन आदतवश बरस जाते हैं,

और ये ही जज्बाती दिलों में प्रेम रस बनाते हैं,

जिनलोगों को प्रेम केवल बवण्डर ही लगता है,

उन्हें कहो कि मासूम लबों पर हम थरथराते हैं।

Share:
Reading time: 1 min
वाह जिन्दगी !

यादों पर छा जाते हैं वो बचपन वाले पल।

July 27, 2019 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

बहुत आते हैं याद, वो बचपन वाले पल,

बिसरा नहीं पाते हैं, लड़कपन वाले दल,

स्लेट,बत्ती,खड़िया और तख्ती वाले रण,

तख्ती का बैट बनाते नटखटपन के क्षण।

               यादों पर छाजाते हैं वो बचपन वाले पल।

काजल तेल फुलेल व गणवेशों वाले पल,

कॉपी,कलम,स्याही गेंदतड़ियों वाले क्षण,

बोलसमन्दर,विषअमृत आइसपाइस दल,

चोर सिपाही और कबड्डी कुश्तीवाले बल।

               यादों पर छाजाते हैं वो बचपन वाले पल।

चम्मच,लंगड़ी,जलेबी,कुर्सी दौड़ों वाला कल,

राष्ट्रीयपर्वों का मीठा जन्माष्टमी का कुल्हड़,

हर क्षण उत्साहों से भर जाता था तन मन,

कदमताल,लेजम,दिल्ली की जन गण मन।

                यादों पर छाजाते हैं वो बचपन वाले पल।

सब्जी वाली नानी को छेड़ने वाले चञ्चल,

झूठे टोटके, गाली सुनने के अद्भुत क्षण,

सोतेसाथी को खाट सहित लेजाने के पल,

उसके हड़बड़ाने की राह तकता दलबल।

                यादों पर छाजाते हैं वो बचपन वाले पल।

कॉपी में कॉमिक्स छिपा पढ़ने को विकल,

जोक कहानी अन्त्याक्षरियों में होता रमण,

बाबा,चाचा व बुआ की कहानियों के तल,

झूठ उड़ी अफवाहों संग कौतूहल के क्षण।

                 यादों पर छाजाते हैं वो बचपन वाले पल।

फुटबॉल,क्रिकेट,टी0टी0 के साथबीते पल,

एकसाथ ही फिल्म देखना भूल पिटाई डर,

जादू के खेल के मध्य करते थे जब हुल्लड़,

बात बात पर शर्त लगाना कहाँ गए वो पल।

                  यादों पर छाजाते हैं वो बचपन वाले पल।

जामुन,मीठा,रेवड़ी,मूँगफली की तड़तड़,

दूधपीना दण्ड लगाना हर सवाल का हल,

अटक लड़ाई ले भिड़जाना याद है वो पल,

चन्दा करके खेल कराना गुजर गए वो पल।

                 यादों पर छाजाते हैं वो बचपन वाले पल।

बरसातों में खूब भीगकर आने वाले पल,

होली क्रिसमस ईद व दिवाली वालाकल,

देर रात तक गन्ना खाते स्वांग रचाते पल,

कैसा भी हो समारोह रहते थे, हम तत्पर।

Share:
Reading time: 1 min
काव्य

नशा छोड़ देते हैं लोग।

July 24, 2019 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

कैसे अपनी जिन्दगी ही नर्क बना लेते हैं लोग,

सुबह उठते ही मुँह में खैनी दबा लेते हैं लोग,

खैनी खाना खुद को खाने का ही आमन्त्रण है,

जानबूझकर खुद की दावत उड़ा लेते हैं लोग।  

अब तो बाली उम्र में गुटका चबा लेते हैं लोग,

पूरा पाउच मुँह में पलट के दिखा देते हैं लोग,

गुटका खाना क्षय रोगों को खुला निमन्त्रण है,

वैधानिक चेतावनी, हवा में उड़ा देते हैं लोग।  

शराब पीना नारियों को भी सिखा देते हैं लोग,

अपने हाथ घर द्वार में अगन लगा लेते हैं लोग,

पता नहीं मद्यपान में दिखता क्या आकर्षण है?

महफ़िल में मय में डूब कैंसर बुला लेते हैं लोग।

ब्राउनसुगर चस्का युवाओं में लगा देते हैं लोग,

नवोदित नक्षत्रों को राख राख बना देते हैं लोग,

ये गलत लत बल, वीर्य, ओज का तीव्र क्षरण है,

क्यों नवयौवन,ऊर्जस्वी जीवन मिटा देते हैं लोग?

हुक्का बीड़ी सिगरेट का सुट्टा लगा लेते हैं लोग,

साथ ही भाँग, गाँजा हमसफर बना लेते हैं लोग,

क्या जिन्दगी के धुआँ होने में कोई आकर्षण है,

फिरभी बैठे ठाले जिन्दगी को रुठा देते हैं लोग।  

मार्फीन,कोकीन,धतूरा क्या क्या खा लेते हैं लोग,

कई रोगों को जान बूझ घर का पता देते हैं लोग,

जानते हुए रोग युक्त होना जीवन का प्रत्यर्पण है,

तो भी इस प्रत्यर्पण में जिन्दगी खपा देते हैं लोग। 

अफीम सुलफा चरस की लत लगा लेते हैं लोग,

बीयर से शुरू हो शुद्ध एल्कोहल ले लेते हैं लोग,

ये आफतों का खुशनुमा जिन्दगी  में संक्रमण है,

इससे संक्रमित हो के जिन्दगी मिटा लेते हैं लोग। 

खुलीआँखों अन्धेपन का स्वाँग रचा लेते हैं लोग,

खुद के हाथों खुद को निवाला बना लेते हैं लोग,

आधुनिक दुनियाँ में विविध कैंसर का प्रसारण है,

तड़पन लख खुद को क्यों नहीं बचा लेते हैं लोग। 

दृढ़ता से नशामुक्ति को कदम बढ़ा देते हैं लोग,

कलुषित भावना में खुद आग लगा  देते हैं लोग,

नकारात्मकता छोड़ना सकारात्मक परिवर्तन है,

नशा छोड़ के जिन्दगी को गले लगा लेते हैं लोग। 

विकल्पों में निर्विकल्प हो नशा छोड़ देते हैं लोग,

नशीली दुनियाँ से हट उजाला खोज लेते हैं लोग,

धुआँ होती जिंदगी में संभलना प्रकाश विवर्तन है,

धन्य हैं जो स्वजीवट से अलख जगा देते हैं लोग।     

Share:
Reading time: 1 min
Page 31 of 40« First...1020«30313233»40...Last »

Recent Posts

  • शुभांशु शुक्ला अन्तरिक्ष से …..
  • स्वप्न दृष्टा बनें और बनाएं।/Be a dreamer and create it.
  • कविता में राग ………..
  • गांधीजी के तीन बन्दर और आज का मानव
  • शनि उपासना

My Facebook Page

https://www.facebook.com/EducationAacharya-2120400304839186/

Archives

  • June 2025
  • May 2025
  • April 2025
  • March 2025
  • February 2025
  • January 2025
  • December 2024
  • November 2024
  • October 2024
  • September 2024
  • August 2024
  • July 2024
  • June 2024
  • May 2024
  • April 2024
  • March 2024
  • February 2024
  • September 2023
  • August 2023
  • July 2023
  • June 2023
  • May 2023
  • April 2023
  • March 2023
  • January 2023
  • December 2022
  • November 2022
  • October 2022
  • September 2022
  • August 2022
  • July 2022
  • June 2022
  • May 2022
  • April 2022
  • March 2022
  • February 2022
  • January 2022
  • December 2021
  • November 2021
  • January 2021
  • November 2020
  • October 2020
  • September 2020
  • August 2020
  • July 2020
  • June 2020
  • May 2020
  • April 2020
  • March 2020
  • February 2020
  • January 2020
  • December 2019
  • November 2019
  • October 2019
  • September 2019
  • August 2019
  • July 2019
  • June 2019
  • May 2019
  • April 2019
  • March 2019
  • February 2019
  • January 2019
  • December 2018
  • November 2018
  • October 2018
  • September 2018
  • August 2018
  • July 2018

Categories

  • Uncategorized
  • काव्य
  • दर्शन
  • बाल संसार
  • मनोविज्ञान
  • वाह जिन्दगी !
  • विविध
  • शिक्षा
  • शोध
  • समाज और संस्कृति
  • सांख्यिकी

© 2017 copyright PREMIUMCODING // All rights reserved
Lavander was made with love by Premiumcoding