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काव्य

खूबसूरत रिश्ता बनाते हैं। (KHOOB SOORAT RISHTA BANAATE H.)

December 10, 2018 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

जाने क्यों लोग वाणी की मर्यादा भूल जाते हैं।

जहाँ बोलना ना चाहिए वहीं पर बोल जाते हैं।

जिस मातापिता की गोद में खेलकर बड़े हुए।

मदान्ध हो के उनसे भीअपशब्द बोल जाते हैं।

 

कुछ नया गुर सीखने गुरुओं के पास जाते हैं।

बचपन के खेल संग बहुत कुछ सीख जाते हैं।

धीरे धीरे हम बच्चे, दुनियादारी सीख जाते हैं।

बुजुर्गों से छिपकर  कतरा के निकल जाते हैं।

 

केवल निज स्वार्थ के समीकरण याद आते हैं।

सत मूल्य सत्यम,शिवम,सुन्दरम भूल जाते हैं।

नवसम्बन्धों की धुनमें अपनों को भूल जाते हैं।

सम्बन्धों में छले जानेपर सुधबुध भूल जाते हैं।

 

कुछ अकल बढ़ने पर विद्यालय नहीं जाते हैं।

मारे,मारे फिरते हैं और सारा वक़्त बिताते हैं।

कुछ इनसेभी चारकदम आगे निकलजाते हैं।

कॉपी किताब वाले पैसों से गुलछर्रे उड़ाते हैं।

 

यह आदत बर्बादी के मुकाम तक लेजाती है।

व्यावहारिक कार्यों  में नाकामी हाथ आती है।

नकली यार,दोस्त,साथी सभी छिटक जाते हैं।

विगत कुकर्मों वश दिन में तारे नज़र आते हैं।

 

जो बालक किशोर वय में संभल नहीं पाते हैं।

मातापिता की नसीहतें जो समझ नहीं पाते हैं।

अकर्मण्यता की चक्की में पिसते चले जाते हैं।

जीवन की झंझावातों में, सदमार्ग नहीं पाते हैं।

 

नया दौर नवपीढ़ी को बहुत कुछ सिखाता है।

अहम् व वहम की, दलदल में फँसा जाता है।

द्वन्दों में उलझा, वक़्त गति से निकल जाता है।

अक्सर उठापटक में कुछ हाथ नहीं आता है।

 

भारत का इक वर्ग केवल, गाल ही बजाता है।

सी0एम0,पी0एम0को दिशाज्ञान टपकाता है।

जो असल जिन्दगी में  कुछ बन नहीं पाता है।

औकात सबकी देखता खुद की भूल जाता है।

 

खेल व खिलाड़ी कीआलोचना में लगे रहते हैं।

पसीना गिराया नहीं, विवेचना में लगे रहते हैं।

खुद के नयनों का कीचड़, तक निकलता नहीं,

सारी दुनियाँ की दिशा दिखाने में लगे रहते हैं।

 

इन सबसेअलग कुछ ऐेसेभी  बालक होते हैं।

देख कर तब्दीलियाँ कभी हैरान नहीं होते हैं।

विकराल स्थिति को हँस हँस के झेल जाते हैं।

बकबक नहीं करते कामकरके दिखाजाते हैं।

 

बालक पुरुषार्थवश परिस्थितियाँ जान जाते हैं।

तालमेल,यथाआवश्यक नीति पहचान जाते हैं।

गाल नहीं बजाते, सत्कर्म  आदर्श रख जाते हैं।

विषम स्थिति में सर्वोच्च,राष्ट्र नाम कर जाते हैं।

 

जुझारू बच्चे,अभाव में प्रभाव दिखा जाते हैं।

खुद प्रेरणा अवतार हो,कर के दिखा जाते हैं।

सूखी रोटी, गाँव, मिट्टी की ताकत दिखाते हैं।

समूची  दुनियाँ से, खूबसूरत रिश्ता बनाते हैं।

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काव्य

सच्चा लोकतन्त्र कब आएगा ?[SACHHA LOKTANTR KB AAYEGA]

December 8, 2018 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

हिन्दुस्तान की आवाम क्यों जाग नहीं पाती है,

यथोचित  स्वगरिमा को पहचान नहीं पाती है,

आत्म के उन्नयन का सत्पथ क्यों भूलजाती है,

अन्नदाता के हिस्से में, क्यों फाँसी ही आती है।

 

साक्ष्य साक्षी,देश सहिष्णुता की सजापाता है,

बाहर वाला अनजाना ससम्मान बस जाता है,

चन्द रोज रहकर अपनी शक्ति को बढ़ाता है,

अतिथि-देवो-भव नीति को,धूल में मिलाता है।

 

पार्टी कोई हो, शिक्षा से न्याय ना कर पाती है,

मुख्यतः शिक्षाविदों को,खूनी आँसू रुलाती हैं,

नेतृत्व शक्ति ही,शैक्षिक अवरोधक बनाती है,

सरकार कोई हो, इस दायित्व से कतराती है।

 

जनता की भीरुता ही कायर बना भटकाती है,

धर्म के ठेकेदारों का, वो खिलौना बनजाती है,

लोकपरलोक के झूठे,द्वन्दों में उलझ जाती है,

परेशान खस्ता जनता कुचक्र में फँस जाती है।

 

बरबादी प्रजा की,पटकथा लिख दी जाती है,

आपस के झगड़े में सारी प्रगति रुकजाती है,

सुविधा सम्पन्नों के, संभाषण में फँस जाती है,

खूनी पँजों में उलझ,सपरिवार छटपटाती है।

 

लोकतन्त्रीय अर्थीपर क्यों प्रजा सुलाई जाएगी ?

क्यों केवल आवाम ही, हवन के काम आएगी ?

कब सद्ज्ञान का सूर्य, परवान चढ़ाया जाएगा ?

अपने भारत में, सच्चा लोकतन्त्र कब आएगा ?

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काव्य

ऊर्ध्वगमन पथ राष्ट्र का आलोकित करना है।[Urdhvgaman Path Rashtr Ka Aalokit Karanaa Hea.] 

December 7, 2018 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

यदि मानव हो मानवता वाला काम करना है,

जीवन भर करना काम, ना विश्राम करना है,

जटिल स्थिति हों मन में, ना नैराश्य भरना है,

विषम परिस्थिति में खुदपर विश्वास करना है।

 

अवलम्बन को अखिलेश्वर का ध्यान करना है,

इक दूजे के सब कष्टों को मिल-जुल हरना है,

परिस्थिति कैसी भी हो, हम सबको लड़ना है,

हर रात का निश्चित  प्रभात विश्वास  करना है।

 

जीवन संघर्षों का रण, हर-पल याद रखना है,

प्रकृति प्रदत्त मस्तिष्क से सद्प्रयास करना है,

जीवन यापन नियत  सभी को काम करना है,

अथक परिश्रम लायक शरीर तैयार करना है।

 

ब्रह्म मुहूर्त में तज आलस प्राणायाम करना है,

सम्भव यदि हो सके उचित व्यायाम करना है,

जीवट का कर सद्प्रयोग   चेतनता  भरना है,

वन्दन कर स्व ईष्ट का निश्चित काम करना है।

 

यथोचित सुन्दरअवसर की पहचान करना है,

प्रतिस्पर्धा में निजक्षमता पर विश्वास करना है,

राष्ट्र वाद के सुपोषण हित उपयुक्त बनना है,

ना हो भारत अवमान जाग्रत प्रहरी बनना है।

 

बदलते समय अनुसार, कदम-ताल करना है,

निश्चित होंगे कामयाब सहज विश्वास भरना है,

प्रतिकूल परिस्थितियों  में ना हमको डरना है,

इकदूजे की बन प्रेरणा हमको जय करना है।

 

केवल कल्पना-लोक में ना विचरण करना है,

यथार्थ के धरातल पर दृढ़ अटलपग धरना है,

वेद और वैदिकता का सच्चाअर्थ समझना है,

उत्कृष्टता भारत की जगत में सिद्ध करना है।

 

गर इन्सां हो इन्सानियत का पोषण करना है,

इक दूजे  पर ना मिथ्या दोषारोपण करना है,

स्व राष्ट्र-ध्वज का शान से आरोहण करना है,

ऊर्ध्वगमन पथ राष्ट्र का आलोकित करना है।

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काव्य

उपयुक्त  रण नीति से हासिल मुकाम होता है।

December 1, 2018 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

मध्यमवर्ग की जिन्दगी पटरी से उतर जाती है,

जब भी उस परिवार में हारी- बीमारी आती है,

बालबच्चों को पढ़ाने में जिन्दगी गुजर जाती है,

वो तबभी पिसता है,जब करकी बारी आती है।

 

स्तर बनाने में सारी तनख्वाह ही खप जाती है,

बामुश्किल मेहनत प्रतिष्ठा रक्षण कर पाती  है,

त्यौहार में सब रहीसही कसर निकल जाती है,

कभी मन्दी, कभी बन्दी दूकान को हिलाती है।

 

शादी ब्याह का खर्चा कभी उस को डराता है,

बच्चे के लिए रिश्वत का, जुगाड़ न  हो पाता है,

रिश्तेदारियाँ संभालना, मुश्किल हुआ जाता है,

मंहगाई का  दुष्चक्र भी इस वर्ग को डराता है।

 

जिम्मेदारियों का वजन, आवा-गमन बढ़ाता है,

पैतृक कर्जों का बोझ, मुश्किल को  बढ़ाता है,

कहीं कहीं पारिवारिक  झगड़ा यह  कराता है,

इससे  कोर्ट- कचहरी पर  खर्चा  बढ़ जाता है।

 

अतिथिआगमन पर उत्साह नहीं दिख पाता है,

महीने का अन्तिम सप्ताह अँखियाँ दिखाता है,

पारस्परिक ईर्ष्या की गलत, भावना जगाता है,

फालतू का द्वन्द सबका, हित नहीं   कराता है।

 

प्रॉब्लम सॉल्विंग का अब अलग मजा आता है,

जीवट वाला व्यक्ति, समस्या से  भिड़ जाता है,

जीवन भर लड़तेलड़ते कर्म योगी बन जाता है,

कर्म  है सद रास्ता भली- भाँति समझ जाता है।

 

प्रमाद को हटाने से, सफल हर काम  होता है,

समस्या कोई  भी हो,निश्चित समाधान  होता है,

परम्परा अन्धानुकरण कारण नुकसान होता है,

उपयुक्त  रण नीति से हासिल मुकाम होता है।

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Uncategorized•काव्य

मन मयूर झूम झूम जाता है।[MN MAYUR JHOOM JHOOM JATA H]

November 30, 2018 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

बचपन का गंगा मुहाना याद आता है,

उसका वो छेड़ा तराना याद आता है,

छूटा जो मौसम सुहाना याद आता है,

वर्षा में खुद भीग जाना याद आता है।

 

तख्ती,खड़िया व दावात यादआती है,

होल्डर,पेन की रौशनाई यादआती है,

टाट,पट्टी,कुर्सीआँखों में घूम जाती है,

छुट्टी के वक़्त की दौड़ याद आती है।

 

बचपन में पढ़ी, कविता गुदगुदाती है,

गुरूजी की शंटी पुरानी यादआती है,

भूली -बिसरी डगरिया याद आती  है,

आज भी नगरीनगरिया याद आती है।

 

मम्मी पापा कीअंगुलियाँ यादआती हैं,

दोस्तोंकी मनमोहिनी सूरत लुभाती हैं,

मदमस्त होलीदिवाली फिर बुलाती हैं,

गुरुपर्व और ईद के किस्से सुनाती हैं।

 

प्राइमरीशाला की घण्टी घनघनाती है,

प्रेयर,प्रतिज्ञा की सुरीली याद आती है,

पीटी,ड्रम, परेड जूनून इक जगाती है,

मिट्टी से स्याही सुखानी याद आती है।

 

बालपन स्मृति जेहन में कौंध जाती है,

यादों की बारात में बालसभा आती है,

नयी  गणवेश कॉलेज याद दिलाती है,

किशोरवय की सरगोशी यादआती है।

 

विगत की याद इक पीर सी जगाती है,

गुजरे लोगोंकी स्मृति टीससीउठाती है,

क्रीड़ा जगत की,प्रतिस्पर्धा  बुलाती  है,

वादविवाद विजेता छवि कौंध जाती है।

 

सोचता हूँ बीताकल क्यों यादआता है,

आगत खाका क्यों ना  खींचा जाता है,

आगत के पृष्ठों में खुशियाँ  लिखते  हैं,

आगे तो  बीते दिन सपने से दिखते हैं।

 

संगत का बीता ज़माना याद आता है,

यादों को खोया फसाना याद आता है,

जीवनसन्ध्या में बचपना याद आता है,

सोच कर मनमयूर झूम झूम जाता है।

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काव्य

एजुकेशन आचार्य को लगना होगा।Education Aacharya ko lagna hoga.

November 26, 2018 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

आलू का सोना बनाने से नहीं होगा,खुद को कुन्दन कर दिखाना होगा।

स्वप्न दिखाने से दर्शन तो नहीं होगा,भव्य श्री राम मन्दिर बनाना  होगा।

अब केवल जाग जाने से नहीं होगा,देश प्यारा है काम भी करना होगा।

दोस्तों बात करने से कुछनहीं होगा,आगेबढ़ सब करके दिखाना होगा।

अब सोचकर सो जाने से नहीं होगा,काम को अंजाम तक  लाना होगा।

केवल शिक्षण- शुल्क से नहीं  होगा,कोर्स करने कॉलेज में आना होगा।

सदा टिप -टॉप रह  घर नहीं चलता,मेहनत के गुर को,अपनाना  होगा।

हीरो दिखने से अब कुछ नही होता,पेशानी पे श्रम कण चमकाना होगा।

वासना में खोना है काम दरिन्दे का,इन्सां को ताजिन्दगी निभाना होगा।

गाल बजाने से अब कुछ नहीं होगा,जज़्बा है तो आदर्श दिखाना होगा।

खानदान वाले,जमाने अब  जा चुके,क़ुव्वत है तो मैदान में आना होगा।

प्यार से कहते हैं अब भी जागजाओ,नहीं तो झिंझोड़ कर जगाना होगा।

घबराकर छिटकजाने से नहीं होगा,जापान, चीन से सीख  बढ़ना होगा।

किसान एकबीज से बहुत करता है,उसेउसका हिस्सातो दिलाना होगा।

सिर्फ उत्पादन  बढ़ाने से नहीं होगा,उसे हाट  में ठीक से खपाना होगा।

मसखरी बहुत करी हिन्दोस्ताँ वालो,गम्भीरता से काम पर लगना होगा।

हमारे बुजुर्ग हमें यहाँतक खींच लाये,हमें कर्म की हद से गुजरना होगा।

जमाने में नकल से ही सबनहीं होगा,हिकमतेअक़ल से भी चलना होगा।

सपनों को सजाने से कुछ नहीं होगा,योग्य रण नीति को अपनाना होगा।

सिर्फ लिख कर बताने से नहीं होगा,एजुकेशन आचार्य को लगना होगा।

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वाह जिन्दगी !

जग में भारत वन्दन होगा।[JAG M BHARAT VANDAN HOGA]

November 25, 2018 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

कल के चक्कर में हम, आज क्यों गँवाते हैं,

जो भी हमें अच्छा लगे चलो राधेराधे गाते हैं,

दुनिया उत्थान को ही,साध्य गर हम पाते हैं,

तो हम नव दधीचि हैं चलो हड्डियाँ गलाते हैं।

 

सर्वे भवन्तु सुखिनः का राग फिर से गाते हैं,

अपनी हड्डियों से इक अमोघ वज्र बनाते हैं,

वृत्तासुर भुवन बीच विस्तार करता जाता है,

अतः नवदधीचियों संग्राम बड़ा हो जाता है।

 

घने अँधेरे में, अलमस्त सुबह लिखनी होगी,

जो अब तक ना हुई वही पहल करनी होगी,

देखो मत कालिमा कब तक ये यूँ फैलाएगा,

हुँकारभरो औ वारकरो निश्चित मारा जाएगा।

 

आगेबढ़ने हेतु अब मौलिक चिन्तन लाते हैं,

अपना दीपकबाती औअपना तेल जलाते हैं,

छोड़ द्वेष भावना भारत जय में लग जाते हैं,

देशविरोधी तत्वों को मिलकर मारभगाते हैं।

 

अधिकारछोड़ कर्त्तव्यओढ़आगे को बढ़ते हैं,

स्वार्थ,कामना,लोभ छोड़ सत्कर्मों पे डटते हैं,

श्रम का संयुक्त रूप ही नया उजाला लाएगा,

कर्म जब स्वधर्म बनेगा नवसूरज उग जाएगा।

 

सुन लो, भारत वासी देर करी अन्धेर मिलेगा,

तन-मन भारत पर वारोगे, तो उद्धार मिलेगा,

जाति-पाँति के बन्धन तोड़ो विकास तय होगा,

सनातनीउन्नयन से जग में भारत वन्दन होगा।

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बाल संसार

हम बारात ले आएंगे।[HM BARAT LE AAYENGE]

November 24, 2018 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

चुन्नू बोला मुन्नी से,गुड़िया का ब्याह रचाएंगे,

मुन्नी चहकी चुन्नू भैय्या गुड़िया देखने आएंगे,

आजाना,हाँ आ जाना कमी नहीं कुछ पाएंगे,

लिखीपढ़ी मेरी गुड़िया शानसे उसे दिखाएँगे।

 

गुड्डा चाहे है गुड़िया को रस्म निभाने आएंगे,

देखादेखी हो जाएगी हम पक्की कर आएंगे,

बाकी सारी रस्में, शादी के दिन करनी होंगी,

पर सारी तैयारी तो शादीसे पूर्व करनी होगी।

 

चिन्तासे बोला चुन्नू शादी दिनमें करनी होगी,

खर्चा भी बच जाएगा ना कोई दिक्कत होगी,

मुन्नी बोली ठीक कहा, गुड्डा  यही मानता है,

वैदिकयुग रीति को ही वह उचित मानता है।

 

शादी होती थीं दिनमें अच्छी तरह जानता है,

लोकदिखावा रीति को उचित नहीं मानता है,

गुड्डे गुड़िया हैं पढ़े लिखे वे युग धर्म निभाएंगे,

सुनलो चुन्नू करो तैयारी हम बारात ले आएंगे।

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शिक्षा

सूक्ष्म शिक्षण [Micro Teaching]

by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

सूक्ष्मशिक्षण का   अर्थ( Meaning of Micro Teaching):

 शिक्षण की सम्पूर्ण प्रक्रिया बहुत सारी कुशलताओं का सम्मलित ताना बाना है। इन कुशलताओं में से एक एक कौशल को सुधारने हेतु प्रत्येक शिक्षण कौशल पर पृथकतः ध्यान देने की आवश्यकता को शिद्दत से महसूस किया गया इस आवश्यकता की पूर्ति हेतु वर्तमान में प्रयुक्त सम्प्रत्यय है –सूक्ष्मशिक्षण

सूक्ष्म शिक्षण ,शिक्षण प्रशिक्षण की प्रयोगात्मक विधि है सूक्ष्म शिक्षण कम समय में अधिक लाभान्वित करने का तरीका है इसमें अध्ययन की एक इकाई और एक कौशल का प्रयोग कर अल्पअवधि तक विद्यार्थियों के एक छोटे समूह को पढ़ाता है जब प्रशिक्षाणार्थी पढ़ा लेता है तब प्रतिपुष्टि, पर्यवेक्षक द्वारा प्रदान की जाती है इस आधार पर पाठ में संशोधन कर पुनः पाठ योजना तैयार की जाती है उसी विषय वास्तु को पुनः पढ़ाया जाता है और पहली बार पढ़ाने में जो कमियां रह गयी थीं उनका निराकरण होता है और अगर दूसरी बार भी कमी रहती है तो पढ़ाने की प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद पर्यवेक्षक पुनः प्रतिपुष्टि देता है यही चक्र इस सूक्ष्म शिक्षण का आधार है।

उक्त आधार पर कहा जा सकता है कि :-

“सूक्ष्म शिक्षण अध्यापनके एक एक कौशल को कृत्रिम वातावरण में अल्पावधि में सीखने की सोद्देश्यपूर्ण  क्रिया है।”

सूक्ष्म शिक्षण की परिभाषा (Definitions of Micro Teaching) :

सूक्ष्म शिक्षण  विभिन्न परिभाषाओं को इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है :-

एलन(Allen)  व रायन( Ryan)के अनुसार  -“सूक्ष्म शिक्षण एक प्रशिक्षण सम्प्रत्यय है ,जो सेवापूर्व और सेवारत शिक्षकों के व्यावसायिक विकास में प्रयोग किया जा सकता है। सूक्ष्म शिक्षण शिक्षकों को शिक्षण अभ्यास के लिए एक ऐसी स्थिति प्रदान करता है ,जिसमें कक्षा कक्ष की सामान्य जटिलताएँ कम हो जाती हैं और जिसमें शिक्षक अपने निष्पादन( शिक्षण व्यवहार) पर वृहत मात्रा में प्रतिपुष्टि प्राप्त करता है। “

“Micro teaching is a training concept that can be applied to various preservice and inservice stages in professional development of teachers. Micro teaching provides teachers with a practical setting for instruction in which the normal complexities of the class room are reduced and in which the teacher receives a great deal of feedback on his performance.”

शिक्षा – विश्वकोष(The Encyclopedia of Education) के अनुसार -” सूक्ष्म शिक्षण वास्तविक निर्मित तथा अध्यापन अभ्यास का न्यूनीकृत अनुमाप है जो शिक्षण प्रशिक्अनुसन्धान में प्रयुक्त्त किया जाता है।”

“Micro-teaching is a real constructed,Scaled down,Teaching encounter which is used for teacher training curriculum development and research”

बी 0 के 0 पासी (B.K.Passi) के अनुसार – “सूक्ष्म शिक्षण एक प्रशिक्षण तकनीक है जो छात्र अध्यापक से यह अपेक्षा रखती है की वे किसी तथ्य को थोड़े से छात्रों को कम समय में किसी विशिष्ठ शिक्षण कौशल के माध्यम से शिक्षा दें।”

“Micro-Teaching is a training technique which requires student teacher to teach a single concept to a small number of pupils using specified teaching skills in a short duration of time.”

उक्त आधार पर कहा जा सकता है कि सूक्ष्मशिक्षण एक ऐसी तकनीक है जिससे अल्पावधि में नियत पाठ इकाई  के आधार पर एक कौशल पर सम्पूर्ण ध्यान केन्द्रित कर कृत्रिम कक्षा स्थितियों में अल्पावधि में सिद्धहस्त हुआ जा सकता है और पर्यवेक्षक के निर्देशन में त्रुटि निवारण भी सम्भव है।

सूक्ष्म शिक्षण चक्र (Micro Teaching Cycle)- 

पाठ योजना (Lesson Planning)-शिक्षण (Teaching)- प्रतिपुष्टि (Feedback)-पुनः पाठ योजना (Re-Lesson Planning)- पुनः शिक्षण (Re-Teaching)- पुनः प्रतिपुष्टि (Re-Feedback)

कौशल में सुधार हेतु यह क्रम जारी रहता है। इस चक्र से वांछित परिणाम प्राप्त किये जाते हैं।

सूक्ष्म शिक्षण का विकास  ( Development of Micro Teaching)-या सूक्ष्म शिक्षण का इतिहास  ( History of Micro Teaching )-  

आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है इस क्रम में साधन क्रिया को सरल बना देते हैं जब शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को सशक्त व प्रभावी बनाने हेतु कीथ ऐचीसन चिन्तन कर रहे थे उसी समय 1961 में एक जर्मन वैज्ञानिक द्वारा छोटे टेप रिकॉर्डर के आविष्कार के बारे में खबर छपी इस खबर को पढ़कर उन्होंने शिक्षण अभ्यास के समय सुपरविसेर के स्थान पर ध्वनि दृश्य टेप रिकॉर्डर का प्रयोग किया   इससे पाठ को पढ़ाने वाले ,प्रशिणार्थी अपने व्यवहारों में परिमार्जन करने करने लगे। एचिसन ने इस विचार को स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के इनके सहयोगी बुश और  एलन का समर्थन प्राप्त हुआ और 1964 से प्रतिपुष्टि प्रदान करने हेतु साधन का व्यावहारिक प्रयोग प्रारम्भ हुआऔर व्यवहार में वांछित परिवर्तन पारिलक्षित होने लगा, दी गयी प्रतिपुष्टि की प्रभावात्माकता सिद्ध होने लगी। स्टेनफोर्ड विश्व विश्वविद्यालय आसपास के प्रशिक्षण विद्यालयों के वीडिओ टेप  विवेचना कर उन्हें वापस कर देता था इससे अपेक्षित सुधार सुगम व निर्विवाद हो गया।

इसकी सफलता देख सेन जॉन्स स्टेट यूनिवर्सिटी ने इस सूक्ष्म शिक्षण को प्रभावशाली उपागम सिद्ध किया स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय ने शोधार्थी हेरीे गेमिसन के शोधाधार पर स्टेनफोर्ड शिक्षक सामर्थ्य मूल्यांकन गाइड सृजित की इस प्रकार एचीसन,एलन ,क्लेनवेश सेनजोश ,टकमैन आदि ने सूक्ष्म शिक्षण विकास यात्रा में अभूतपूर्व योगदान दिया सन 1969 तक संयुक्त राष्ट्र के 141 विश्वविद्यालय सूक्ष्म शिक्षण से शिक्षण कौशल दक्षता बढ़ाने का कार्य करने लगे।

भारत में सूक्ष्म शिक्षण की विकास [DEVELOPMENT OF MICRO-TEACHING IN BHARAT]-

भारत में इलाहाबाद विश्व विद्यालय के डी 0 डी 0 तिवारी (1967 )के द्वारा शिक्षण प्राकिशन के क्षेत्र में सूक्ष्म शिक्षण का प्रयोग किया गया जो की आज के सूक्षम शिक्षण  भिन्नता लिए हुए था  इसके बाद राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवम प्रशिक्षण परिषद ,नई दिल्ली [N.C.E.R,T.,NEW DELHI],एम0 एस0 विश्वविद्यालय बड़ौदा [M.S.UNIVERSITY ,BARODA] चण्डीगढ़,वाराणसी ,देहरादून आदि भी इस परिक्षेत्र से जुड़े ,१९७०से इसके प्रसार ने गति पकड़ी मद्रास में जी 0 बी 0 शाह ने इसे शिक्षक प्रशिक्षण में प्रयुक्त किया सी दोसाज 1970, कलकत्ता में भट्टाचार्य 1974 का भी विशेष योगदान रहा ,पासी एवं शाह 1974 ने सूक्ष्म शिक्षण परिक्षेत्र में प्रथम प्रकाशन किया।पासी,ललिता व जोशी 1976  में  व  बड़ौदा में सिंह एवं ग्रेवाल,गुप्ता 1978 ने इस क्षेत्र में विशेष कार्य किया। सन 1978 में ही इन्दौर विश्व विद्यालय ने ही National proposal for the  Project की रचना की, इसके तहत विभिन्न विश्व-विद्यालयों के शिक्षक प्रशिक्षकों का सहयोग लिया गया व राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवम प्रशिक्षण परिषद ,नई दिल्ली के सहयोग से इसे पूरा किया गया एवं इस क्षेत्र में सतत प्रयास व शोध कार्य को गति मिली। तत्पश्चात जिन विश्वविद्यालयों ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा प्रस्तावित शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम स्वीकारा वहां सूक्ष्मशिक्षण कार्य  क्रियान्वित हुआ व निरन्तर इसका प्रयोग विकास के नूतन आयाम पा  रहा है।

सूक्ष्म शिक्षण की विशेषताएं (Characteristics of Micro-Teaching):

परम्परागत शिक्षण से भिन्न सूक्ष्म शिक्षण शिक्षक प्रशिक्षण में प्रभावी भूमिका अपनी निम्न विशेषताओं के आधार पर निर्वाहित कर पा रही है। :-

01 – इसमें  अधिगमार्थियों की संख्या 5 से 10 के बीच होती है।

02 – शिक्षण अवधि 5 से 10  मिनट के बीच रखी जाती है।

03 – वास्तविक छात्रों की जगह अधिकांशतः सहपाठी ही छात्र की भूमिका अभिनीत करते हैं।

04 – एक कालांश एक कौशल के प्रशिक्षण हेतु होता है।

05 – विषय वस्तु एक सूक्ष्म इकाई होता है।

06 – पुनः सुधार का अवसर उपलब्ध होता है।

07 – यह छात्राध्यापक केन्द्रित रहती है।

08 – यह व्यावसायिक प्रवीणता देने में सक्षम विधि है।

09 – यह लघु अवधि  में अधिक दक्ष बनाती है।

10 – प्रतिपुष्टि तुरन्त प्राप्त हो जाती है।

11 -समय बद्ध होने से गति विधियां नियन्त्रित रहती हैं।

12-शिक्षण कौशल विकास की अत्याधिक प्रभावी व व्यावहारिक व्यवस्था है।

भारतीय मॉडल (Bhartiy  model):

पाठ योजना(Lesson Planning)————   –

शिक्षण (Teaching)—————————  06 मिनट

प्रतिपुष्टि(Feed back)————————-   06 मिनट

पुनःपाठ योजना (Re-lesson Planning)——–  12 मिनट

पुनःशिक्षण (Re-Teaching)——————-    06 मिनट

पुनःप्रतिपुष्टि  (Re-Feed back)—————      06 मिनट

———————————————————-

कुल कालावधि ( Total Time Period)——–       36 मिनट

उक्त मॉडल राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद ,नई दिल्ली ,एम 0 एस 0 विश्वविद्यालय,बड़ौदा,व  इन्दौर विश्वविद्यालय के समेकित प्रयासों से विकसित हुआ।

कौशल (Skill) :

वर्तमान में अधिकांश अध्यापक प्रशिक्षण महाविद्यालय मुख्यतः  प्रस्तावना कौशल(Introductory Skill ),प्रश्नीकरण कौशल (Questioning Skill ), व्याख्या कौशल (Explanation Skill), व्याख्यान कौशल  (Lecture Skill), दृष्टान्त कौशल (Illustration Skill ), उद्दीपन परिवर्तनकौशल (Stimulus Variation Skill), पुनर्बलनकौशल( Reinforcement Skill), श्याम पट्टकौशल (Blackboard Skill), पाठ समापनकौशल (Lesson closure Skill) आदि  का अभ्यास कराते हैं।

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काव्य

आत्मबोध भर देती है।[AATM BODH BHAR DETI H]

by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

माँ बच्चे को हाथ का साथ देती है।

प्रथम गुरु रूप में योगदान देती है।

निज चेहरे पर शिकन ओढ़ लेती है

शिशु मुस्तकबिल को दिशा देती है । । 

अद्भुत पीड़ा है, जो सुकून देती है,

सब दर्दोगम सह, ओठ सी लेती  है,

शिशुमुख देख खुशी से जी लेती है,

माँ तो माँ है रो लेती है,हंस लेती है ।।

धैर्य से सारा परिवार, संजो लेती है,

अपमान के अश्रुघूँट भी पी लेती है,

अपने सपनों में नवरंग नहीं लेती है

शिशु प्रगति अरमान ले जी लेती है ।।

वह स्वयम के लिए कुछ नहीं लेती,

परिवार की झोली, भर ही देती है।

सर्व न्यौछावर कर परिवार खेती है,

तिलतिल जल घर द्वारसजा देती है।

माँ कर्जे में डूब बलैयाँ ले लेती है

वो  ममता हमें ऋणी कर देती है

तपस्वी तप को वही दिशा देती है,

जीवन मन्थन हलाहल पी लेती है ।।

भूख,चोट,पीड़ा सभी सह लेती है,

फूँक से भी अनन्त प्यार दे देती है,

जादुई फूँक में प्यार उड़ेल देती है,

हर लाल को कर्जदार कर देती है।।

समय का हर निशाँ चहरे पे लेती है

जो चीख कर हम सबसे कह देती है,

हर सलवट में वो दर्द  छिपा लेती है

खास आसविश्वास से माँ जी लेती है ।।

आँसू पी पीकर निज ग़म खा लेती है,

पावन सद आशीष हमें वो दे देती है,

यथा शक्ति सारे अवगुण हर लेती है,

नवजीवन हेतु आत्मबोध भर देती है ।।

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