मैं दीपक हूँ उस मिट्टी का,

जिसका जलना आवश्यक है।

मैं बाती बनूँ तुम तेल बनो

कुछ का मिटना आवश्यक है।

ज्योति जलाने की खातिर

इतना तो अब करना होगा।

दुनियाँ कितना  जहर भरे

मिलजुलकर हमें रहना होगा।

जो खोटे सिक्के चल गए हैं

उनको अब फिर मिटना होगा।

नव दीप जले नव यौवन है

उसके हित कुछ करना होगा।

सामाजिक मर्यादा हित में

सबका जगना आवश्यक है।

राष्ट्रीय एकता की खातिर

सबको सबल बनाना होगा।

भारत को गढ़ने की खातिर

अब सबको बढ़ना होगा।

यह तेरा है वह मेरा है

इस भाव से अब बचना होगा।

मेरा भारत अपना भारत

चेतनता स्वर आवश्यक है।

भारतीय चेतना के हित में

पाठ सस्वर पढ़ना होगा।

तुम साथ चलो मैं साथ चलूँ

पथ को रौशन करना होगा।

ऊँचे लक्ष्यों को पाना है

हिम्मत का वरण करना होगा। 

मिलजुल चलने वाले पथ में

निश्चित काँटे भी आएंगे।

उनको भी हमें जलाना है

अति सावधान रहना होगा।

मानसिक रुग्ण हो रुक जाओ

बाकी को तो बढ़ना होगा।

बने हो तुम इस मिट्टी से

मर्यादा में बँधना होगा।

स्वर में दमखम भरने खातिर

मिट्टी से तो जुड़ना होगा।

तुम खूब बढ़ो और शिखर चढ़ो

पर जड़ से जुड़ रहना होगा।

उत्ताल तरंगे सागर की

हमको यह ही सिखलाती हैं।

ऊँची उठ जाओ कितनी भी

पर तल पर पग रखना होगा।

पृथ्वी कहती है मुस्काकर

तू स्वर ओजस्वी और बढ़ा

रखूँगी तुझे अन्तस्तल में

नाथों का नाथ बनना होगा। 

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