गणों के स्वामी गणपति के अपने वाहन डिंक( मूषक का नाम) के साथ पधारने पर व दस दिवसीय महोत्सव का शुभारम्भ होने पर शुभारम्भ के देवता के समक्ष प्रस्तुत हैं भाव सुमन
गणों के स्वामी गणपति के अपने वाहन डिंक( मूषक का नाम) के साथ पधारने पर व दस दिवसीय महोत्सव का शुभारम्भ होने पर शुभारम्भ के देवता के समक्ष प्रस्तुत हैं भाव सुमन
ये देखो अब कैसा चलन हो रहा है,
सुधा का गरल से मिलन हो रहा है,
ये मानस में क्यों विष वमन हो रहा है,
जलाने को जीवन यतन हो रहा है।जिन्दादिली का पतन हो रहा है,
जीवन का तन से गमन हो रहा है,
जाना तो होता है एक दिन सभी को,
बिना मृत्यु के पर गमन हो रहा है।इस दुनिया को देखो ये क्या हो रहा है,
अकारण मरण का जतन हो रहा है,
माँ रो रही है, पिता रो रहा है,
अकाल मृत्यु का अवतरण हो रहा है।क्या ये सामाजिक पतन हो रहा है,
मूल्यों में अजब अवनमन हो रहा है,
निराशा घुटन अवतरण हो रहा है,
जीवन का देखो हरण हो रहा है।क्यों कालिमा को नमन हो रहा है,
मृत्यु का जबरन वरण हो रहा है,
जीवन का कैसा दमन हो रहा है,
स्वहत्या का क्यूँ आचरण हो रहा है।
जिन्दादिली का दिल में स्थान होना चाहिए,
ना जिन्दगी को इतना परेशान होना चाहिए,
ना सोच का मोहल्ला वीरान होना चाहिए,
दिलों में जिन्दगी का अरमान होना चाहिए।समस्याओं से जूझने का जज्बात होना चाहिए,
तल्खियों का भी इस्तकबाल होना चाहिए,
समस्या कैसी भी हो, दो-चार होना चाहिए,
जूझकर समस्या का समाधान होना चाहिए।बेशकीमती है जीवन, इसे ना खोना चाहिए,
हर मुश्किल के हल का विश्वास होना चाहिए,
परेशां होकर जीवन में ना यूँ रोना चाहिए,
विषम स्थिति में जीने का हौसला होना चाहिए।इन्सान को इन्सान की फितरत न खोना चाहिए,
समस्याओं की आँधी का खैरमकदम होना चाहिए,
अंधड़ का पूरी हिम्मत से दमन होना चाहिए,
जूझकर जिंदगी का वरण होना चाहिए।मानवीय-स्वभाव में ना क्रन्दन होना चाहिए,
संघर्षशील विचारों का तो वन्दन होना चाहिए,
सकारात्मकता पर मानस में मन्थन होना चाहिए,
आत्महत्या के खिलाफ गहन चिन्तन होना चाहिए।
जब भारतवासी के हृदयों का सोया दावानल जागेगा,
जिस दिल में है असुर छिपा,असुर निकल कर भागेगा।
यदि तुम कायर कमजोर रहे तो दुनिया तुम्हें डरायेगी,
छोटी सी बंदरिया गुण्डों की हमको ऑंख दिखाएगी।
राष्ट्रीय चेतना बुला रही है हमें निखरना है,
भारत वर्षोन्नति हेतु, कमर अब कसना है,
जो कुछ उल्टा- पुल्टा था, उसे बदलना है,
भारतीय चेतना का स्वर आरोही करना है।
सोलह कला सम्पूर्ण भगवान श्री कृष्ण चन्द्र भगवान के बारे में उठी जिज्ञासा का समाधान बड़ी बहन कैसे कर रही है ? योगिराज मुरलीवाले के जन्मोत्सव की शुभ कामनाओं के साथ इन दोनों बहनों की बाल लीला का भी आनन्द लें। राधे राधे ……..।
मानव स्वयम को जगत का सर्वोत्कृष्ट प्राणी मानता है। विभिन्न सन्त,महन्त,धर्म गुरु इस खिताब को मानव के पक्ष में रख कर श्रेष्ठ तन के रूप में व्याख्यायित करते हैं लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य के जघन्यतम अपराध यही मानव तो कर रहा है ऐसी स्थिति में कुछ महत्वपूर्ण सवाल चिन्तन को झकझोरते हैं प्रस्तुत प्रारम्भिक चार पंक्तियों में जो सवाल मानसिक द्वन्द ने खड़े किये शेष पंक्तियों में भारतीय परिवेश में समाधान देने का प्रयास है,रखता हूँ आपके पावसआँगन में:-
पर्यावरण में दो शब्द निहित हैं परि +आवरण अर्थात जो हमें हर ओर से ढके हो। इसमें किसी प्रकार का असन्तुलन ही प्रदूषण का परिचायक है जहाँ वस्तुएं ,जल ,वायु ,आकाश हमें प्रभावित करता है वहीं विचार भी पथ भ्रष्ट हो नैतिक प्रदूषण का कारक बनाते हैं। कोई विचार या वाद किस तरह से प्रदूषण का कारक बन सकता है यह इस लेख में स्पष्ट नजर आता है :-
मानव उत्थान के क्रम में ज्ञान का प्रस्फुटन विविध स्वरूपों में हुआ ,ज्ञान ने अध्यात्म से युक्त होकर तीव्र प्रवाह धारण कर विश्व को आप्लावित किया। चरमोत्कर्ष के इस काल को आदि गुरु शंकराचार्य का वरद हस्त मिला और ज्ञान की निर्झरिणी वेदान्त दर्शन के रूप में बह निकली,वेदान्त दर्शन के सिद्धान्तों को गेय रूप में देने का अदना सा प्रयास ही है इस प्रस्तुति के माध्यम से :–
जीवन एक अनोखी यात्रा है मानव यायावर है ,मानव हृदय कभी उत्थान हेतु तरंगित होता है तो कभी अवसाद युक्त हो हार के कगार पर जा बैठता है प्रस्तुत पंक्तियाँ मानव को उत्साह और जीवटता से युक्त रखने को प्रेरित करती हैं और जीवन में विविध रंगों को भरने हेतु जागरण का भाव जगाती हैं जो लोग थक हार कर निराशा के गर्त में गिरने को उद्यत हैं उनमें जाग्रति संचरण कर बताती हैं कि – ‘कुछ और अभी बाकी है ‘
भारत के शौर्य कलश चमक रहे हैं हमने विषम परिस्थितियों में विजय के कालजयी सोपान लिखे हैं। वर्तमान में देश के बाहर के दुश्मनों के अलावा देश के अन्दर के गद्दारों को भी धूल चटानी है। मैं सभी देश प्रेमियों का आह्वान करता हूँ और कहना चाहता हूँ:-